Sliding Message
Surta – 2018 से हिंदी और छत्तीसगढ़ी काव्य की अटूट धारा।

दीर्घायु जीवन का रहस्य-रमेश चौहान

दीर्घायु जीवन का रहस्य-रमेश चौहान

दीर्घायु जीवन का रहस्य

-रमेश चौहान

dirghayu jiwan ka rahasya

इस जगत ऐसा कौन नहीं होगा जो लंबी आयु, सुखी जीवन न चाहता हो । प्रत्येक व्यक्ति की कामना होती है कि वह सुखी रहे, जीवन आनंद से व्यतित हो और वह पूर्ण आयु को निरोगी रहते हुये व्यतित करे । मृत्यु तो अटल सत्य है किंतु असमायिक मृत्यु को टालना चाहिये क्योंकि अथर्ववेद में कहा गया है-‘‘मा पुरा जरसो मृथा’ अर्थात बुढ़ापा के पहले मत मरो ।

बुढ़ापा कब आता है ?

  • वैज्ञानिक शोधों द्वारा यह ज्ञात किया गया है कि जब तक शरीर में सेल (कोशिकाओं) का पुनर्निमाण ठीक-ठाक होता रहेगा तब तक शरीर युवावस्था युक्त, कांतियुक्त बना रहेगा । यदि इन सेलों का पुनर्निमाण किन्ही कारणों से अवरूध हो जाता है तो समय के पूर्व शरीर में वृद्धावस्था का लक्षण प्रकट होने लगता है ।

मनुष्य की आयु कितनी है? 

  • वैज्ञानिक एवं चिकित्सकीय शोधों के अनुसार वर्तमान में मनुष्य की औसत जीवन प्रत्याशा 60 से 70 वर्ष के मध्य है । इस जीवन प्रत्यशा को बढ़ाने चिकित्सकीय प्रयोग निरंतर जारी है ।
  • किन्तु श्रृति कहती है-‘शतायुवै पुरूषः’ अर्थात मनुष्यों की आयु सौ वर्ष निर्धारित है । यह सौ वर्ष बाल, युवा वृद्ध के क्रम में पूर्ण होता है । 

क्या कोई मरना चाहता है ?

  • महाभारत में विदुर जी कहते हैं- ‘अहो महीयसी जन्तोर्जीविताषा बलीयसी’ अर्थात हे राजन जीवन जीने की लालसा अधिक बलवती होती है । 
  • आचार्य कौटिल्य कहते हैं- ‘देही देहं त्यकत्वा ऐन्द्रपदमपि न वांछति’ अर्थात इन्द्र पद की प्राप्ति होने पर भी मनुष्य देह का त्याग करना नहीं चाहता ।
  • आज के समय में भी हम में से कोई मरना नहीं चाहता, जीने का हर जतन करना चाहता है। वैज्ञानिक अमरत्व प्राप्त करने अभीतक कई असफल प्रयास कर चुके हैं और जीवन को सतत् या दीर्घ बनाने के लिये अभी तक प्रयास कर रहे हैं ।

अकाल मृत्यु क्यों होती है ?

  • यद्यपि मनुष्य का जीवन सौ वर्ष निर्धारित है तथापि सर्वसाधारण का शतायु होना दुर्लभ है । विरले व्यक्ति ही इस अवस्था तक जीवित रह पाते हैं 100 वर्ष के पूर्व अथवा जरा अवस्था के पूर्व मृत्यु को अकाल मृत्यु माना जाता है ।
  • सप्तर्षि में से एक योगवसिष्ठ के अनुसार-

मृत्यों न किचिंच्छक्तस्त्वमेको मारयितु बलात् ।मारणीयस्य कर्माणि तत्कर्तृणीति नेतरत् ।।

  • अर्थात ‘‘हे मृत्यु ! तू स्वयं अपनी शक्ति से किसी मनुष्य को नहीं मार सकती, मनुष्य किसी दूसरे कारण से नहीं, अपने ही कर्मो से मारा जाता है ।’’ इसका सीधा-सीधा अर्थ है कि मनुष्य अपनी मृत्यु को अपने कर्मो से स्वयं बुलाता है । जिन साधनों, जिन कर्मो से मनुष्य शतायु हो सकता है उन कारणों के उल्लंघन करके अपने मृत्यु को आमंत्रित करता है ।

दीर्घायु होने का क्या उपाय है ?

  • विज्ञान के अनुसार जब तक शरीर में कोशिकाओं का पुनर्निमाण की प्रक्रिया स्वस्थ रूप से होती रहेगी तब तक शरीर स्वस्थ एवं युवावस्था युक्त रहेगा । 
  • कोशिकाओं की पुनर्निमाण की सतत प्रक्रिया से वृद्धावस्था असमय नहीं होगा । सेल के पुनर्निमाण में विटामिन ई, विटामिन सी, और कोलिन ये तीन तत्वों का योगदान होता है । इसकी पूर्ती करके दीर्घायु बना जा सकता है ।
  • व्यवहारिक रूप से यदि देखा जाये तो एक साधन संपन्न धनवान यदि इसकी पूर्ती भी कर ले तो क्या वह शतायु बन जाता है ? उत्तर है नहीं तो शतायु कैसे हुआ जा सकता है ।
  • श्री पी.डी.खंतवाल कहते हैं कि -‘‘श्रमादि से लोगों की शक्ति का उतना ह्रास नहीं होता, जितना आलस्य और शारीरिक सुखासक्ति से होता है ।’’ यह कथन अनुभवगम्य भी है क्योंकि अपने आसपास वृद्धों को देखें जो जीनका जीवन परिश्रम में व्यतित हुआ है वह अरामपरस्त व्यक्तियों से अधिक स्वस्थ हैं । इससे यह प्रमाणित होता है कि दीर्घायु जीवन जीने के लिये परिश्रम आवश्यक है ।
  • देखने-सुनने में आता है कि वास्तविक साधु-संत जिनका जीवन संयमित है, शतायु होते हैं इससे यह अभिप्रमाणित होता है कि शतायु होने के संयमित जीवन जीना चाहिये ।

धर्मशास्त्र के अनुसार दीर्घायु जीवन-

  • महाभारत के अनुसार- ‘‘आचारश्र्च सतां धर्मः ।’’ अर्थात आचरण ही सज्जनों का धर्म है । यहाँ यह रेखांकित करना आवश्यक है कि धर्म कोई पूजा पद्यति नहीं अपितु आचरण है, किये जाने वाला कर्म है । 
  • ‘धर्मो धारयति अति धर्मः’’ अर्थात जो धारण करने योग्य है वही धर्म है । धारण करने योग्य सत्य, दया साहचर्य जैसे गुण हैं एवं धारण करने का अर्थ इन गुणों को अपने कर्मो में परणित करना है ।
  • महाराज मनु के अनुसार- ‘‘आचाराल्लभते ह्यायुः ।’’ अर्थात आचार से दीर्घ आयु प्राप्त होती है ।
  • आचार्य कौटिल्य के अनुसार- ‘‘मृत्युरपि धर्मष्ठिं रक्षति ।’’ अर्थात मृत्यु भी धर्मपरायण लोगों की रक्षा करती है ।
  • ऋग्वेद के अनुसार- ‘न देवानामतिव्रतं शतात्मा च न जीवति ।’’ अर्थात देवताओं के नियमों को तोड़ कर कोई व्यक्ति शतायु नहीं हो सकता । यहाँ देवताओं के नियम को सृष्टि का, प्रकृति का नियम भी कह सकते हैं । 
  • समान्य बोलचाल में पर्यावरणीय संतुलन का नियम ही देवाताओं का नियम है, यही किये जाना वाला कर्म है जो आचरण बन कर धर्म का रूप धारण कर लेता है । अर्थात प्रकृति के अनुकूल आचार-व्यवहार करके दीर्घायु जीवन प्राप्त किया जा सकता है ।

जीवन की सार्थकता-

  • एक अंग्रेज विचारक के अनुसार- ‘‘उसी व्यक्ति को पूर्ण रूप से जीवित माना जा सकता है, जो सद्विचार, सद्भावना और सत्कर्म से युक्त हो ।’’
  • चलते फिरते शव का कोई महत्व नहीं होता थोडे़ समय में अधिक कार्य करने वाला मनुष्य अपने जीवनकाल को बढ़ा लेता है । आदि शांकराचार्य, स्वामी विवेकानंद जैसे कई महापुरूष अल्प समय में ही बड़ा कार्य करके कम आयु में शरीर त्यागने के बाद भी अमर हैं ।
  • मनुष्यों की वास्तविक आयु उनके कर्मो से मापी जाती है । धर्म-कर्म करने से मनुष्य की आयु निश्चित रूप से बढ़ती है ।

‘‘धर्मो रक्षति रक्षितः’’ यदि धर्म की रक्षा की जाये अर्थात धर्म का पालन किया जाये तो वही धर्म हमारी रक्षा करता है । यही जीवन का गुण रहस्य है । यही दीर्घायु का महामंत्र है ।

Divine Elegance: Hand-Embroidered Lord Ganesha Frame – 300×300 Square
Divine Elegance: Hand-Embroidered Lord Ganesha Frame
AmurtCraft
Divine Elegance: Hand-Embroidered Lord Ganesha Frame
₹1099

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अगर आपको ”सुरता:साहित्य की धरोहर” का काम पसंद आ रहा है तो हमें सपोर्ट करें,
आपका सहयोग हमारी रचनात्मकता को नया आयाम देगा।

☕ Support via BMC 📲 UPI से सपोर्ट

AMURT CRAFT

AmurtCraft, we celebrate the beauty of diverse art forms. Explore our exquisite range of embroidery and cloth art, where traditional techniques meet contemporary designs. Discover the intricate details of our engraving art and the precision of our laser cutting art, each showcasing a blend of skill and imagination.