दो अतुकांत कविताएं-रमेश कुमार सोनी

दो अतुकांत कविताएं

-रमेश कुमार सोनी

दो अतुकांत कविताएं-रमेश कुमार सोनी
दो अतुकांत कविताएं-रमेश कुमार सोनी

1.खिड़की

खिड़कियों के खुलने से दिखता है-
दूर तक हरे-भरे खेतों में
पगडंडी पर बैलों को हकालता बुधारु
काकभगोड़ा के साथ सेल्फी लेता हुआ
बुधारु का ‘टूरा’ समारु
दूर काली सड़कों को रौंदते हुए
दहाड़ती शहरी गाड़ियों के काफिले
सामने पीपल पर बतियाती हुई
मैना की जोड़ी और
इसकी ठंडी छाया में सुस्ताते कुत्ते।
खिड़की को नहीं दिखता-
पनिहारिन का दर्द
मजदूरों के छाले
किसानों के सपने
महाजनों के पेट की गहराई
निठल्ली युवा पीढ़ी की बढ़ती जमात
बाज़ार की लार टपकाती जीभ
कर्ज में डूब रहे लोगों की चिंता और
अनजानी चीखों का वह रहस्य
जो जाने किधर से रोज उठती है और
जाने किधर रोज दब भी जाती है।
खिड़की जो मन की खुले तो
देख पाती हैं औरतें भी-
आज कहाँ ‘बुता’ में जाना ठीक है
किसका घर कल रात जुए की भेंट चढ़ा
किसके घर को निगल रही है-शराब
किसका चाल-चलन ठीक नहीं है
समारी की पीठ का ‘लोर’ क्या कहता है;
सिसक कर कह देती हैं वे-
‘कोनो जनम मं झन मिलय
कोनो ल अइसन जोड़ीदार’ ।
बंद खिड़की में उग आते हैं-
क्रोध-घृणा की घाँस-फूस
हिंसा की बदबूदार चिम्मट काई
रिश्तों को चाटती दीमक और
दुःख की सीलन
इन दिनों खिड़की खुले रखने का वक्त है
आँख,नाक,कान के अलावा
दिल की खिड़की भी खुली हो ताकि
दया,प्रेम,करुणा और सौहाद्र की
ताजी बयार से हम सब सराबोर हो सकें ।
—– —–

2.खुशियाँ रोप लें

आज बाग में फिर कुछ कलियाँ झाँकी
पक्षियों का झुंड
शाम ढले ही लौट आया है
अपने घोंसलों में दाने चुगकर
गाय लौट रही हैं
गोधूलि बेला में
रोज की तरह रंभाते हुए
क्या आपने कभी इनका विराम देखा?
वक्त ना करे कभी ऐसा हो
जैसा हमने देखा है कि-
कुछ लोग नहीं लौटे हैं-
अस्पताल से वापस,
हवा-पानी बिक रहा है
नदियों के ठेके हुए हैं
प्याऊ पर बैनर लगे हैं;
पानी पूछ्ने के रिवाज गुम हुआ है
साँसों की कालाबाज़ारी में-
ऑक्सीजन का मोल महँगा हुआ है।
सब देख रहे हैं कि-
श्मसान धधक रहे हैं
आँसू की धार सूख नहीं पा रही है
घर के घर वीरान हो गए हैं
इन सबके बीच आज भी लोग
कटते हुए पेड़ों पर चुप हैं
प्लास्टिक के फूल बेचकर खुश हैं
खुश हैं बहुत से बचे खुचे हुए लोग
मोबाइल में पक्षियों की रिंगटोन्स से।
आओ आज तो सबक लें
भविष्य के लिए ना सही
अपने लिए ही बचा लें-
थोड़ी हवा,पानी, मिट्टी,भोजन और जिंदगी
आओ रोप लें खुशी का एक पेड़
एफ.डी. के जैसे!
पूण्य मिलेगा सोचकर!
मुझे विश्वास है कि-
तुम्हारी ही हथेली में
एक दिन जरूर
खुशी का बीज अँखुआएगा।

-रमेश कुमार सोनी
कबीर नगर-रायपुर
7049355476

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