दोहा जनउला
-अजय “अमृतांशु”
माटी के चोला हवय, आँच परे पक जाय।
गरमी के मौसम रहय, सबके प्यास बुझाय।।
लाली हरियर रंग मा, सबके मन ला भाय।
खावय जुच्छा जेन हा,तेन अबड़ सुसुवाय।।
खाथे कतको पीस के, सब झन येला भाय।
बिन डारे येकर बिना, सब्जी कहाँ मिठाय।।
चार खड़े हे सूरमा, हाथ सबो के जाम।
रस्सी बाँधे बाँह मा, गजब देत आराम।।
बिना प्राण के साँस ले,आगी ला दहकाय।
लोहा टिन ला छोड़ दव, सोना तक गल जाय।।
- मरकी 2. मिरची 3. पताल 4. खटिया
- धुकनी
अजय “अमृतांशु”
भाटापारा(छत्तीसगढ़)