दोहा मुक्तक के कुछ रंग
-रमेश चौहान
दोहा मुक्तक में दोहा शिल्प के आधार पर प्रचलित मुक्तक का गठन किया जाता है, इस नए शिल्प को दोहा मुक्तक कहते हैं । इस दोहा मुक्तक शिल्प पर प्रस्तुत है कुछ खुशियों के रंग
धर्म
धर्म कर्म का ढंग है, शाश्वत नित्य विचार ।
क्या करें व क्या ना करें, धर्म सही उपचार ।।
पूजा पद्यति पंथ है, नहीं धर्म का काज ,
जड़ चेतन में होत है, स्वत: धर्म संचार ।।
लोभ
लोभ मोह वह दोष है, देत और को क्लेश ।
स्वार्थ हेतु रखता सदा, अपनों से भी द्वेष ।।
स्वार्थ सुरा मद से बड़ा, बोता रहता पाप,
लोभ मोह अरु द्वेष से, रहिए जी निष्क्लेश ।।
मित्रता
सजग बुद्धि अंतस रहे, रोके मन की चाह
वायु दिशा अनुकूल हो, सुगम होत है राह
मित्रों की है मित्रता, भाग्यवान है आप
साथ रहे शुभकामना, छलके नित उत्साह
प्रेम
साथ सदा अटूट रहे, जैसे सुमन सुवास
बनें स्वाति की बूँद यदि, हो चातक की प्यास
भले देह होवे जरा, रहे प्रेम नवजात
लक्ष्मी और रमेश की, एक यही है आस
प्रेम प्यास है प्रेम का, प्रेम प्रेम का घ्राण
प्रेम चाहिए प्रेम को, प्रेम प्रेम का प्राण
प्रेम शब्द नहिं भाव है, जीवन का आधार
जीवन झंझावात का, प्रेम मात्र है त्राण
नवीनता का बोध
नवीनता के बोध में, जगत न बदले रंग
हाड़ मांस का तन वही, मन में किन्तु उमंग
नवीनता से आस है, और एक विश्वास
नवीनता के रंग में, होगी खुशियां संग
-रमेश चौहान