दोहागीत: आग लगी पेट्रोल पर
-रमेश चौहान
आग लगी पेट्रोल पर
कुण्डलियां- अँकुश व्यपारी पर नहीं
जनता मेरे देश का, दिखे विवश लाचार ।
अँकुश व्यपारी पर नहीं, सौ का लिए हजार ।।
सौ का लिए हजार, सभी लघु दीर्घ व्यपारी ।
लाभ नीति हो एक, देश में अब सरकारी ।।
कितना लागत मूल्य, बिक्री का कितना तेरे ।
ध्यान रखें सरकार, विवश हैं जनता मेरे ।।
दोहागीत: आग लगी पेट्रोल पर
आग लगी पेट्रोल पर, धधक रहा है देश ।
राज्य, केन्द्र सरकार को, तनिक नहीं है क्लेश ।।
मँहगाई छूये गगन, जमीदोज है आय ।
जनता अपनी पीर को, कैसे किसे बताय ।।
राज व्यपारी का दिखे, नेता भी अलकेश ।
आग लगी पेट्रोल पर, धधक रहा है देश ।
(अलकेश-कुबेर)
राज्य कहे है केन्द से, और केन्द्र तो राज्य ।
कंदुक के इस खेल का, केवल दिखे सम्राज्य ।।
इसका करें निदान अब, तज नाहक उपदेश ।
आग लगी पेट्रोल पर, धधक रहा है देश ।।
तिल-तिल है दिल जल रहा, जले रसोई गैस ।
खाद्य तेल सब्जी सभी, दिखा रहे हैं टैस ।।
मँहगाई के उत्पात से, जनता है निर्वेश ।
आग लगी पेट्रोल पर, धधक रहा है देश ।।
अटल अटल ना रह सका, उछले थे जब प्याज ।
मँहगाई के मूल्य का, बचा रहेगा ब्याज ।।
कर लो सोच विचार अब, हो जो आप प्रजेश ।
आग लगी पेट्रोल पर, धधक रहा है देश ।।