दोहागीत
दोहागीत
देशभक्तिगीत- है मेरी भी कामना
है मेरी भी कामना, करूँ हाथ दो चार ।
उर पर चढ़ कर शत्रु के, करूँ वार पर वार ।।
लड़े बिना मरना नहीं, फँसकर उनके जाल ।
छद्म रूप में शत्रु बन, चाहे आवे काल ।।
लिखूँ काल के भाल पर, मुझे देश से प्यार ।
है मेरी भी कामना ……….
बुजदिल कायर शत्रु हैं, रचते जो षडयंत्र ।
लिये नहीं हथियार पर, गढ़ते रहते तंत्र ।।
बैरी के उस बाप का, सुनना अब चित्कार ।
है मेरी भी कामना…….
मातृभूमि का मान ही, मेरा निज पहचान ।
मातृभूमि के श्री चरण, करना अर्पण प्राण ।।
बाल न बाका होय कछु, ऐसा करूँ विचार ।
है मेरी भी कामना…..
देशभक्ति गीत-मातृभूमि के पूत सब
मातृभूमि के पूत सब, प्रश्न लियें हैं एक ।
देश प्रेम क्यों क्षीण है, बात नहीं यह नेक ।।
नंगा दंगा क्यों करे, किसका इसमें हाथ ।
किसको क्या है फायदा, जो देतें हैं साथ ।।
किसे मनाने लोग ये, किये रक्त अभिषेक ।
मातृभूमि के पूत सब ……..
आतंकी करतूत को, मिलते ना क्यों दण्ड ।
नेता नेता ही यहां, बटे हुये क्यों खण्ड़ ।।
न्याय न्याय ना लगे, बात रहे सब सेक ।
मातृभूमि के पूत सब …….
गाली देना देश को, नही राज अपराध ।
कैसे कोई कह गया, लेकर मन की साध ।।
आजादी का अर्थ यह, हुये क्यों न अतिरेक ।
मातृभूमि के पूत सब …….
मतदाता क्या भेड़ है, नेता लेते हाँक ।
वोट बैंक के नाम पर, छान रहें हैं खाँक ।
टेर टेर क्यो बोलते, हो बरसाती भेक ।
मातृभूमि के पूत सब …..
खण्ड़ हुये बहुसंख्य के, अल्प नही अब अल्प ।
भेद भाव को छोड़ कर, किये न काया कल्प।।
हीन एक को क्यों किये, दूजे रखे बिसेक ।
मातृभूमि के पूत सब ……
हिन्दू मुस्लिम हिन्द के, भारत माँ के लाल ।
राजनीति के फेर में, होते क्यों बेहाल ।
राज धर्म के काज को, करते क्यो ना स्व-विवेक।
मातृभूमि के पूत सब ……
सीमा पर सैनिक डटे, संगीन लिये हाथ ।
शीश कफन वह बांध कर, लड़े शत्रु के साथ ।
घर में बैरी देख कर, क्लेश हुये उत्सेक ।
मातृभूमि के पूत सब ……
जागो जागो लोग अब, राग-द्वेश को छोड़ ।
प्रेम देश से तुम करो, साँठ-गॉँठ सब तोड़ ।।
आप देश से आप हो, देश आप से हेक ।
मातृभूमि के पूत सब …..
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(शब्दार्थ: उत्सेक -वृद्वि या ज्यादा, हेक-एक)
शाश्वत गीत-अविचल अविरल है समय
अविचल अविरल है समय, प्रतिपल शाश्वत सत्य ।
दृष्टा प्रहरी वह सजग, हर सुख-दुख में रत्य ।।
पराभाव जाने नही, रचे साक्ष्य इतिहास ।
जीत हार के द्वंद में, रहे निर्लिप्त खास ।।
जड़ चेतन हर जीव में, जिसका है वैतत्य ।।
अविचल अविरल है समय…
चाहे ठहरे सूर्य नभ, चाहे ठहरे श्वास ।
उथल-पुथल हो सृष्टि में, चाहे होय विनाश ।।
इनकी गति चलती सहज, होते जो अविवर्त्य ।
अविचल अविरल है समय…
शक्तिवान तो एक है, बाकी इनके दास ।
होकर इनके साथ तुम, चलो छोड़ अकरास ।।
मान समय का जो करे, उनके हो औन्नत्य ।
अविचल अविरल है समय…
कदम-कदम साझा किये, जो जन इनके साथ ।
रहे अमर इतिहास में, उनके सारे गाथ ।।
देख भाल कर आप भी, पायें वह दैवत्य ।
अविचल अविरल है समय..
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(शब्दााार्थ: वैतत्य-विस्तार, अविवर्त्य- अपरिवर्तनीय, अकरास-आलस्य, औन्नत्य-उत्थान)
प्रेरणा गीत-नित्य ध्येय पथ पर चलें (दोहागीत)
नित्य ध्येय पथ पर चलें, जैसे चलते काल ।
सुख-दुख एक पड़ाव है, जीना है हर हाल ।।
रूके नहीं पल भर समय, नित्य चले है राह ।
रखे नहीं मन में कभी, भले बुरे की चाह ।
पथ-पथ है मंजिल नही, फँसे नही जंजाल ।
नित्य ध्येय पथ पर चलें….
जन्म मृत्यु के मध्य में, जीवन पथ है एक ।
धर्म-कर्म के कर्म से, होते जीवन नेक ।।
सतत कर्म अपना करें, रूके बिना अनुकाल ।
नित्य ध्येय पथ पर चलें….
कर्म सृष्टि का आधार है, चलते रहना कर्म ।
फल की चिंता छोड़ दें, समझें गीता मर्म ।।
चलो चलें इस राह पर, सुलझा कर मन-जाल ।
नित्य ध्येय पथ पर चलें….
राह-राह ही होत है, नहीं राह के भेद ।
राह सभी तो साध्य है, मांगे केवल स्वेद ।
साधक साधे साधना, तोड़ साध्य के ढाल ।
नित्य ध्येय पथ पर चलें….
-रमेश चौहान