बाल साहित्य (कविता):डोका और लोका द्वितिय भाग
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
डोका और लोका पुस्तक डोका और लोका नामक दो बंदरों के साहस की कहानी है। बाल पाठकों के लिए दूसरी और अंतिम कड़ी प्रस्तुत है :
पक्षी तो थे पर थोड़े से ,
आश्चर्य चकित थे दोनों
है इतना फैला विस्तृत ये वन ,
नदी बह रही है प्यारी सी।
शीतल जल था स्वच्छ धवल ,
दोनों तट पर हरियाली थी ,
दोनों को आश्चर्य हुआ ,
कितना सुन्दर है ये कानन।
इतना सुन्दर जब इसका प्रांगण,
क्यों नहीं यहाँ पर्याप्त जानवर।
क्यों सूना सूना दिख रहा यहाँ ,
क्या इसके पीछे है कारण।
तभी अचानक उन्हें जोर से
आवाज़ लकड़बग्घों की आयी ,
अगले क्षण हाथी चिंघाडे ,
आवाज़ वन्य जीवों की आयी।
कई सियारों की आवाज़ें ,
वहां भेड़ियों की आवाज़ें ,
भालू के स्वर पड़े सुनाई
पक्षी भी काफी चहके ।
डोका लोका आश्चर्य चकित हो
इधर उधर उछले कूदे ,
दोनों ने सोचा है क्या यह
अब तक कोलाहल नहीं सुना।
फिर ये सब क्यों ऐसा
फिर इतनी सारी आवाज़ें
अरे अचानक दौड़भाग
क्या हुआ यहाँ , क्या हुआ यहाँ।
इधर उधर वे दौड़े भागे
कहीं नहीं था कोई
अब वे विस्मय में डूबे
है यह क्या सब भाई।
दोनों ने ठंडी आहें ली
पेट भरा फल खाकर खूब।
पहुंचे जाकर नदी किनारे
जल पीकर संतुष्ट हुये।
अब फिर से सब शांत वहां था ,
नहीं कहीं कोई आवाज़ें
न कुछ ध्वनि थी , न हल्ला था ,
बस सामान्य पक्षियों के स्वर।
सोचा दोनों ने होगा यूँ ही ,
मन में ऐसे आया होगा।
वैसे वन है काफी छोटा
पर दिखती है जैव विविधता।
सोचा थोड़ा सुस्ता लें दोनों
प्रकृति मनोरम दिखती है।
दिखती है काफी सुंदरता ,
वन कितना सुन्दर दिखता है।
इतने में ही वहां उधर।
वही उठीं ध्वनियाँ फिर से
दोनों विद्युत् गति से उछले
बोले अब निश्चित ही धोखा।
जो दिखता वह नहीं यहाँ पर।
चलो देखते हैं डोका।
ये क्या है देखें मंजर ,
घने रास्तों पर अंदर।
कुछ ही दूर गये दोनों ,
देखा वहां दृश्य कुछ ऐसा ,
छिपे गड़े हैं तम्बू कितने ,
और लगे हज़ारों गैजेट्स।
इन्ही मशीनों से आवाज़ें ,
भालू , बंदर , शेरों वालीं ,
यही मशीनें बोल रहीं
आवाज़ लकड़बग्घों वालीं।
भांप गये दोनों ही क्या है ,
है किसी शिकारी का फंदा ।
आगे बढे और देखा ,
कई शिकारी ले बंदूकें
हो चौकन्ने वहां खड़े।
लोका डोका भांप गये
समय की आहट जान गये ,
सोचा छिपकर रहना अच्छा ,
हलचल की न कोई इच्छा।
दोनों ने इधर उधर देखा ,
बहुत जानवर पक्षी कितने
सब बस पिंजरों में रखे
सब के सब थे बंधे पड़े।
सब के सब पिंजरों में बंधकर ,
वहां बॉक्स में रखे पड़े।
ये तस्कर थे वन्य जीव के
ये तस्कर थे खालों के।
जानवरों की निर्मम हत्या कर ,
उनके अवयव ले जाते थे।
फैलाया था अफवाहें ,
जंगल रहस्यमयी भुतहा है।
आम नागरिक इसीलिए
कभी न आता दिखता था।
अब उन दोनों को क्या करना
लगे सोचने मिलकर दोनों।
सावधान से दोनों बैठे ,
अनहोनी के डर से।
नहीं जीत सकते थे दोनों
उन शिकारियों से लड़कर।
इसीलिए चुपचाप चले वे ,
उनका एक कैमरा लेकर।
धीरे- धीरे ,छिपते- छिपते
दोनों पहुंचे जाकर गांव।
उनको बच्चे ढूंढ रहे थे ,
अब तक घिर आयी थी शाम।
बच्चों ने जब देखा उनको
चेहरे पे खुशियां छायीं ,
जब देखा लिये कैमरा उनको
प्रश्न भरी नज़रें दौड़ाई।
तरह तरह के किये इशारे ,
बच्चों को बातें समझाया ,
बहुत कठिन था समझाना
बच्चों को ,पर, समझाया।
एक बड़ा था बच्चा जो ,
दौड़ा, लैपटॉप ले आया।
जब डाटा को किया ट्रांसफर ,
जंगल का सच बाहर आया।
वहां शिकारी थे कितने ,
कैसे कामो में दिखे निरत।
वन में कैसे अपराधी ,
अपराधों में दिखे निरत।
उस बच्चे ने धीरे -धीरे ,
सब लोगों को पास बुलाया ,
बड़ी सावधानी से सबको ,
जंगल का सच बतलाया।
किन्तु एक उन्ही में था मुखबिर
उसको जैसे ही भनक लगी ,
भागा वह जंगल की ओर अचानक
सोचा सबकी पोल खुली।
भांप गया डोका यह क्या है ,
लोका को किया इशारा ,
फिर क्या था दोनों ने उसको
दौड़ाया फिर पकड़ा।
उसे पकड़ का दोनों ने
तंग जगह पर बांध दिया।
बड़ी सावधानी से यह सब
लोका, डोका कर आये।
यही जरूरत थी ,क्योंकि ,
कोई समझे या समझ न आये।
बच्चों ने सब बातें जाकर
पुलिस को विस्तृत बतलायी।
गंभीर विषय था , रोचक भी था ,
कुछ समझे , कुछ समझ न आयीं।
आखिरकार समझ कर इसको ,
पुलिस फोर्स ने छापा मारा ,
कई तस्करों को पकड़ा ,
जानवरों को पहुंच छुड़ाया।
कितने पक्षी कैद में थे
कितने मरे हुये थे।
वन्य जीव का ऐसा शोषण ,
बड़ा भयानक निर्मम था।
तस्कर गये दबोचे जब ,
लोका , डोका नायक थे।
दोनों को बारी बारी से ,
सबने गले लगाया।
प्रकृति प्रेम की बात हुयी ,
वन रक्षा का प्रण दोहराया।
प्रकृति हमारी माता जैसी ,
वन्य जीव हैं अपने जैसे ।
पारिस्थितिकी की रक्षा खातिर
चलें सभी हम प्रण लेकर।
लेखक के विषय में
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्किट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें(2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी(2019) , चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। , बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017) ,पथिक और प्रवाह(2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑफ़ फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी हिंदी अंग्रेजी कवितायेँ लगभग बीस साझा संकलनों में भी संग्रहीत हैं । उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी में बाल साहित्य के अंतर्गत लगभग 50 नाटक भी लिखे हैं। बाल साहित्य लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे 21 पुरस्कार प्राप्त हैं ।