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डॉ. अर्चना दुबे की 5 कविताऐं

डॉ. अर्चना दुबे की 5 कविताऐं

डॉ. अर्चना दुबे एक परिचय –

आपका जन्‍म 5 फरवरी 1983 जौनपुर उत्‍तरप्रदेश में हुआ है । आपने एम. ए., पीएच–डी. कर रखीं हैं । आप स्वच्छंद  लेखनकार्य जुटी हुई हैा । आप ि‍हिन्‍दी साहित्‍य के विभिन्‍न विधाओं जैसे गीत,गज़ल, लेख, कहानी, लघुकथा, कविता, समीक्षा आदि पर अपनी लेखनी चला रहीं हैं । कई मंच व संस्था द्वारा बहुत से सम्मान पत्र आपको प्राप्त हैं । आपके चार साझा काव्य संग्रह प्रकाशित हैं । आप मेट्रो दिनांक हिंदी साप्ताहिक अखबार (मुम्बई ) से  मार्च 2018 से ( सह सम्पादक ) का कार्य कर रही हैंं। काव्य स्पंदन पत्रिका साप्ताहिक (दिल्ली) से आपकी कवितायें प्रकाशित होती रहती हैं और कई हिंदी अखबार और पत्रिकाओं में लेख, कहाँनी, कविता, गज़ल, लघुकथा, समीक्षा प्रकाशित होती हैं । अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका में भी आपके 5 लेख प्रकाशित हैं ।

1.आजादी के दीवाने-

वंदेमातरम का नारा
आज यहां लगायेंगे
आया है गणतंत्र दिवस
तिरंगे को फहरायेंगे ।

आजादी के उन वीरों ने
कैसे जान गवाये थे
तब जाकरके आज के दिन
हम सब आजादी पाये थे ।

भारत में लहराये तिरंगा
सबकी शान बढ़ाता हैं
हिंदुस्तानी गर्व से कहते
अपनी भारत माता है ।

तीन रंग झंडे का प्यारा
देता यह संदेश है
वीर शहीद की कुर्बानी
देता यह उपदेश हैं ।

भारत माता के चरणों में
लड़ते हुए भी मर जाऊं
जय हिंद का नारा मुंखसे
ध्वजा कफन बध जाऊं ।

खून खोलता है तब मेरा
जब दुश्मन दिख जाता है
खाता हूँ सौगंध मैं माता
सरहद पर में जाता हूँ ।

नजर उठा के देखे जो
दुश्मन मेरे देश को
हाथ तिरंगा लेकर निकाला
देख लाल के वेष को ।

2.हर्ष-

‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌हर्षित मन तब हो जाता है, जब खुशियां आती घर आंगन
सब पुलकित हो खिल उठते है, आपस में झूम के मिलते है ।
 
यह दिन भी बड़ा अनोखा है, सावन सा सुहाना लगता है
जब रिमझिम – रिमझिम बूँदों में, नदियाँ सागर से मिलती है ।
 
कोयल सी गाती गीत नये, मेंढ़क आवाज लगाता है
सुर के इन तानों – बानों में, कौआ भी राग सुनाता है ।
 
नाचे मयुर जब फुदक – फुदक, रंगों का तार सप्तक दिखलाता है
तब मन विह्वल हो जाता है, कैसा सुंदर दिन आता है ।
 
जब हरियाली की यह शोभा, सबको विनोद दे जाता है
मन आनंदित होकरके तब , दिल बाग – बाग हो जाता है ।
 
पेड़ों की कतारे झूम – झूम, सबको संदेश सुनाता है
डाली से डाली का मिलना, आपस का मिलन सिखाता है ।
 
जब ताल, पोखरे, नालें भी, आपस में छलक कर मिलते हैं
यह दृश्य सुहावन लगता है, एक दुजे से जब मिलते है ।
 
जंगल भी आज मंगल होगा, जब हरियाली लहरायेगी
बादल का घुमड़ना भी अच्छा, जब बुँदें नीचे आयेगीं ।   

3. हे मॉं तुझे प्रणाम

हे पावन माँ !
तुम्हे मेरा प्रणाम ।
सच्चे हृदय से करते है तेरा सम्मान
आप हो महान ।
जब भी मुश्किलों में फंस जाते
तेरे ही आंचल में प्यार पाते ।
माथे पर जब तु रखती हो हाथ
तेरे कोमल स्पर्श से ही हम जग जाते ।
तु मनसा, वाचा, कर्मणा
तेरे बिना न हम बड़ें
गोंदी में तेरे जब सिर रखूँ
ममता का सागर उमड़ पड़ें ।
तु माँ कल्याण मयी हो !
तुझमें ही जगत निहीत है
तु मामता की दरियां हो
मन वांछित फल देती हो ।
तुझे पाकर धन्य हुए हम
जीवन को सफल बनाया
इस मातृभूमि के खातिर
जीना हमको सिखलाया ।
करूँ सत – सत तुझे नमन मैं
मिल जाओं जो हर जनम में
तेरे चरणों में सिर झुकाऊँ
तेरा आशीश पाऊँ ।
खूल जाये भाग्य मेरे
जन्मू गर्भ से तेरे
ये मेरी लालसा है
आशीर्वाद तेरा सदा है ।

 4. किताब

शिक्षा का आधार है ज्ञान की पहचान है,
लोगों की शान है नाम इसका ही किताब है ।
 
ज्ञान का भण्डार है पढ़ों तो पहचान है,
इससे जुड़ें जो महान है पहचान ही उसकी किताब है ।
 
जब कुछ प्रश्न अरूझ जाते है किताब ही उत्तर बताते है,
आगे का मार्ग दिखलाते है अपनी पहचान बताते है ।
 
ज्ञान अपार है जो अपना ले महान है,
अंत का न निशान है सागर जैसा किताब विशाल है ।
 
परीक्षाओं से जब घिर जाते है मसला हल यही कराते है,
सोच को हमारी बढ़ाते है संसार में गौरववान किताब ही बनाते है ।
 
पुस्तकालयों से जुड़ते है मन मस्तिष्क को एकाग्रचित्त करते है,
कठिनाई भरे जीवन को एक नयी दिशा किताब देते है ।
 
जो इसके गुण को समझकर जम जायें जीवन उसका सफल बनाएं,
संघर्ष भरी जहाँ में खिताब किताब ही दिलवायें ।
 
उम्मीद को बढ़ाता है नया उमंग जगाता है,
नाम ऊँचा करने के लिए दिल – दिमाग में किताब बस जाता है ।
 
जब उलझनों से घिरे रहते है हम बेकरार पड़ें रहते है,
क्या चुनें असफल रहते है तब मार्गदर्शक किताब बनते है ।
 
युक्तियां कितनी ही विकट हो रास्ते कांटों से भरे हो,
मन जब अपना विचलित हो अमर कहानियाँ किताबों में ही संकलित है
 

5- मनमानी

मैंने एक बार !
पवन से कहा !
कृपया धीरे बहों !
लेकिन !
मेरी बात नहीं मानें !
मुझे ही लताड़ें
लाख कोशिशों के बाद
निराशा सामने आयी
मैं बेचैनी के कारण
उनसे जा टकरायी
उदास होकर पूछी तो
कहने लगें !
मैं अपने मन का मालिक हूँ ।
मालिक बनना नहीं बुरी बात
ऊपर – नीचे तक सोचों
जिन लोगों को है तुमसे आस
इन तुफानों से सब कितने है परेशान
कितनों को उजाड़ दिया
कितनों को बेघर कर दिया
कितनों के तो जीवन ही समाप्त कर दिया
जीव – जंतु – नर – मानव की
समस्याओं को कुछ तो समझों !
हाथ जोड़ करती हूँ फरियाद
मत उजाड़ों इन्हें कर दो आजाद ।

-डॉ. अर्चना दुबे

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