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डाॅ.नीरज वर्मा की कहानी-बकरा

डाॅ.नीरज वर्मा की कहानी-बकरा

बकरा

-डाॅ.नीरज वर्मा

डाॅ.नीरज वर्मा की कहानी-बकरा
डाॅ.नीरज वर्मा की कहानी-बकरा

फ़ातिमा के लिए तो निकाह का मतलब ही आसिया बी को दो वक्त की मालिश करना, अंगारे पर रोटियां सेंकना, और मौका बे मौका गोश्त पकाना था। बुढ़िया खखार-खखार कर घर आंगन एक कर देती लेकिन फातिमा उफ नहीं करती थी। इमरान को भी कहां जिम्मेदारी का एहसास था, फुट्टन,करिया,हेलन और जुग्गा की सोहबत में कब रात होती कब बिहान पता ही नहीं चलता। दिसम्बर की उस धुंधुवाती कड़कती रात में चांद रीति कालीन विरहिणी नायिकाओं सी मुख मलिन किये हुए बेसुध पड़ी थी। हाड़ छेदती ठंड से हलाकान कबरा लगातार किकियाये जा रहा था। टीन के टपरे वाली छत गहराती रात के साथ और कन कनाती जा रही थी। आसिया बी को मालिश कर के फातिमा अपनी गुदड़ी में घुसी ही थी कि, अजीब सी घर-घराहट से मारे डर के उठ बैठी। उस रात घर की एक मात्रा सरकारी बल्ब वाली बत्ती भी गुल थी, इस लिए कोने में ढिबरी जला रखा था। धुंए का भभका छोड़ती ढिबरी की लौ बढ़ा कर देखा तो मारे भय के चीख निकल आयी थी। आसिया बी के आंखो की पुतली का काला पन जाने कहां गायब हो गया था। पपड़ियाये हुए होठ के कोर से लार बह रहे थे। भांय-भांय करती रात में फ़ातिमा दौड़ती भागती शांति धोबिन के झोपड़े की ओर लपकी थी।

‘‘शांति….ओ….शांति….चल तो तनी देख अम्मी को का हो रहा है।’’ ‘‘कंठ जाने कैसे घरट-घरट कर रहा है। मारे डर के तो मेरा हाल बुरा हुआ जा रहा है।’’
‘‘इमरान नहीं है का घर में शांति की आवाज़ में लड़खड़ाहट थी ’’

‘‘अभी तो थे, लेकिन जुग्गा जबरदस्ती खींच कर ले गया फातिमा की आवाज थर थरा रही थी।

‘अच्छा छोड़ चल भीतर ठंड बहुत है अकड़ जाएगी ।’’ और फिर जब बेटे को ही फिकर नहीं है तो तू काहे जान दिये पड़ी है।’’ ‘‘वैसे भी कुछ नहीं होगा बुढ़िया को….’’ ‘‘चच्ची रामफल खा के आई है।’’ शांति फ़ातिमा का हाथ पकड़ कर लगभग घसीटते हुए ले गई थी। सेवक महतो अद्धी पहुंचा गया था,जिसकी पिनक शांति पर अभी भी शेष थी। ‘‘अब आ ही गई है तो थोड़ा सा तू भी चख ले क्या याद करेगी’’,‘‘बुच्ची शादी वाली पार्टी का काम कर के अभी लौटी है।’’ ‘‘ठेकेदार ठीक आदमी है इस लिए धीरे से पॉलिथीन में पकड़ा देता है।’’ सुगंधित गरम मसाला वाले गोस्त और भात के आगे फातिमा जबह और हलाल सब कुछ भूल गई थी। पेट में इंधन पड़ते ही आंखे बोझिल होने लगीं। फिर भी शांति को चलने के लिए ज़िद करती रही। लेकिन शांति तो अपने शुरुर में थी, थोड़ा रुक, थोड़ा रुक, करते हुए उसने फ़ातिमा को खींच कर अपनी गुदड़ी में लपेट लिया। बाध वाली खटिया के नीचे पड़ी गर्म राख वाली बोरसी ने दिसम्बर की कड़-कड़ाती रात को और भी मादक बना दिया था। सोचा बस एक झपकी ले लूं फिर चलती हूं। बी तो सो ही रही है बुढ़ापा और बलगम की वजह से गला घर-घरा रहा होगा। नींद निगोड़ी कब सगी हुई है जो आज होती। एक बार आंख लगी तो कुछ पता ही नहीं चला। चिड़ियां जब चायं-चांय करने लगी और सूरज अपनी ट्राली में ओस समेटने लगा तब फ़ातिमा हड़-बड़ा कर अपनी झोपड़ी की ओर लपकी थी। ठीहे पर पहुंची तो देखा बी के चेहरे पर मक्खियों का जाल सा बून गया है। पिंजड़े की मैना जंग लगा पिंजड़ा छोड़ कर उड़ चुकी थी। अकड़ी हुई देह को झिंझोड़ने के बाद भी जब कोई हलचल नहीं दिखा तो फ़ातिमा का दिल धक् किया। भले बी दिन भर खांसती-खखारती रहती थी, पर थी तो लगता था मानो सर पर आसमान था। वर्ना जिसने हाथ पकड़ा है, वह तो लड़कां के गोल में ही मस्त रहता है। कभी-कभार दो-दो, तीन-तीन दिन गायब रहने के बाद जब मन करता तो आ कर बाध वाली खटिया पर पड़ी गुदड़ी में फ़़ातिमा के संग लपड़-झपड़ करता। इमरान की देह से उठती बासी मछली के गंध से फ़ातिमा को भीतर से हूल आ जाता । इमरान के लपड़-झपड़ से उब कर वह उछल पड़ती थी। पहले तो फ़ातिमा को लगा कि, आसिया बी ठंड से अकड़ गई है। इस लिए लपक कर चाय बना लाई लेकिन मुंह से जब चाय गिरने लगी तो लगी फ़ातिमा चिचियाने। चिचियाहट की गूंज इतनी तीखी थी कि तलाब पीढ़ के रहवासी आंखे मीचते उंघते उबाते दौड़ पड़े थे।

अपनी हातिमी दिखाते हुए मुन्ना मियां ने आते ही छाती से लेकर कलाई तक टटोला। फिर नाक पर उंगली फिराते हुए एलान किया ‘‘चच्ची अब भगवान को प्यारी हो गई….’’ ‘‘तुं हुं काफिरे हा का मुन्ना आसिया नमाज पढ़े वाला मेहरारु रही उ भगवान के पास कैसे जइहें।’’ दाढ़ी वाले काजी नुरुल भुन-भुनाए थे। जिस पर प्रत्कि्रिया स्वरुप फिक्क वाली हंसी हंस कर बदरु किड़बिड़ाया था‘‘हियां बुढ़िया का लहास उठाना मुश्किल लग रहा है और मौलाना अपनी पिंगल पाद रहे हैं।’’…..इधर कुछ अधेड़ और बुढ़ी औरतें चच्ची,बड़ी बी,दादी.मामी जैसे संबोधनो के साथ आंख गीला करने की रश्म अदायगी में भिड़ी थीं। कुछ की चिचियाहट का सूखापन तो वातावरण को कर्कश बना रहा था।

लोग आपस मेें भुन-भुना ही रहे थे तभी गुड्डन बहु बिल-बिलाती हुई पंहुची, ‘‘अब देह हियईं धरे सड़ाओगे का ?’’ ‘‘जो करना है जल्दी करो,’’ ‘‘जानते तो हो लाश उठे बिना किसी के घर चूल्हा जरे वाला नहीं है।’’ ‘‘बात तो सहिए है लेकिन माटी उठावे खातिर रोकड़वा भी तो चहबे ना करेगा।’’ सुन्दर ने अपनी ओर से टुकड़ा जोड़ा था।

‘‘तुम लोग पईसा के लिए ढेर न अधिराओ, कल ही हमरी बछनिया बिकी है, हम लगा देते है जब होगा तो इमरनवा भर देगा।’’ ‘‘उ लबड़- धोधो का चुकाएगा हम ही सब मिल कर चंदा काढ़ लेंगे।’’ सुनिता रजक ने अपनी दिलेरी दिखाई तो लोगों में जोश भर गया था। ‘‘बाकी सब इंतजाम तो हो ही जाएगा, लेकिन कुलच्छनवा इमरान को कहां खोजा जाए एक ही बेटा है,’’ ‘‘वो भी जनाजे को कंधा ना दे तो चच्ची की अत्मा जिन्न बन कर भटकेगी।’’ ‘‘फिर जाने क्या पता किसको ले बइठे।’’ वहां सब की लगभग एक ही राय थी।

जनाजे की इत्तला देने के लिए रिक्शे पर चांगा बांध कर वकिल निकल गया था। ‘‘ज़हाज रानी इत्तला मोहतरमा आसिया खातून निवासी तलाब पीढ़ नवागढ़, का निधन हो गया है।’’ ‘‘आप सभी हजरात को सूचित किया जाता है कि जनाजे में शिरकत करें। ’’ ‘‘जहाज रानी इत्तला…….’’ इधर वकिल का चोंगा गला फाड़ कर लोगों की नींद हराम कर रहा था, उधर लड़कों की चौकड़ी इमरान को सूंघती फिर रही थी। वो तो शुक्र है फुट्टन के सुवर बाड़े में गांजे में धुत्त इमरान मिल गया वर्ना बुढ़िया तो रिक्शा पर ही लद कर गई होती। वैसे जाती भी क्यों नहीं यहां बड़े-बड़े तुर्रम खां के जनाजे को कंधा देने वाला तो मिलता नहीं है, फिर यह तो मुई बुढ़िया थी जिसके आगे नाथ ना पीछे पगहा।
बुढ़िया के जाने का बड़ा साइड इफेक्ट यह हुआ कि जो इमरान फुट्टन, जुग्गा,करिया और हेलन के साथ गली कूचों में चौकड़ी जमाए फिरता था, अब अपने ठिहे पर ही पड़ा रहता। कभी गांजे का सुट्टा खींचता तो कभी पपलू और चौरंगी फेंटता। लेकिन पड़ा रहता घर पर ही। फ़ातिमा को सब ठीक लगता था, लेकिन इमरान का साथी फुट्टन चमार फूटी आंख नहीं सुहाता। फुट्टन की नजर भी हमेशा फ़ातिमा के गेहुआं रंग पर लगी रहती थी। एक दो बार तो फातिमा ने फुट्टन की चप्पल से सिंकाई भी कर दी थी जिस पर इमरान तुनक गया था…. ‘‘अब भौजाई से देवर मजाक नहीं करेगा तो का ससुर का नाती रोड का लौंडा किया करेगा’’।

‘‘बहुत भाई से लाड़ है ना तो संभाल कर रखो उसे, वर्ना अल्ला की कसम कह देती हूं , किसी दिन गले में पत्थर बांध कर अंधा कुंआ में कूद मरुंगी और तुमको पता भी नहीं चलेगा।’’ उसी दिन से इमरान को जाने क्या हुआ फ़ारुक कबाड़ी के यहां से ठेला उठा लाया और दिन भर टूटा- फूटा,लोहा, लक्कड़, कबाड़ बेचो चिल्लाता । जो भी मजूरी मिलती फ़ातिमा के हाथ पर धर देता। फ़ातिमा ठिठोली भी करती ‘‘अच्छा हुआ बी मर बई वर्ना सारी उम्र लंठइए में बीत जाती।’’ इधर हाथ में दो पैसा आने से फातिमा के शौख बढ़ने लगे थे, बब्बन बहु के साथ गोलम्बर चौक में पानी पुरी तो कभी चाट का आनंद लेने से नहीं चुकती। कई बार तो बब्बन बहु बतकुच्चन करके चाट का आनन्द मुफ्त में ही ले लिया करती थी…..‘‘अजोधा जी से काहे भाग आए जी’’ ‘‘का कहिएगा एक दम मस्जिदिया से लगे पानी पुरी बेचते रहे लेकिन धंधा ऐसा चौपट हुआ कि बोरिया बिस्तर ले कर भागना पड़ा।’’ बात ही बात में मनोहर साव से बब्बन बहु की खासी दोस्ती हो गई थी। बबन पांडे की स्थिति भी कोई खास अच्छी नहीं थी। पाड़े जी सिन्दुर, टिकली ,चूड़ी,कंगन जैसे श्रृंगार वाले समान ठेला पर रख कर बेचते थे। लेकिन मार्जिन कुछ खास न होने की वज़ह से धंधा बदलने के फिराक में थे। वैसे भी फ्लिप कार्ट और एमेजान वाले ऑन लाइन शॉपिंग के टाइम में ठेले पर बिन्दी,चूड़ी खरीदने के लिए कौन खड़ा होता है। बब्बन पांड़े दिन भर की मजूरी के बाद किराए की खोली में पहुंचे ही थे कि. बब्बी और टून्नी की आपसी कपर चिथौवल के कारण टून्नी की ललाट से रिसते खून को देख कर डर गये। पहले तो लगा दोनों की दम तक कूटाई कर दें लेकिन पड़ाईन की चिचियाहट से मन घबरा गया इसलिए इमरान की चौकड़ी की ओर भागे थे….इमरान के सामने दुःख का पिटारा खोल कर रांड रोवन शुरु किये ही थे कि, गांजे की चिलम बढ़ाते हुए फुट्टन ठिठियाया था…‘‘अब चूड़ी और टिकुली में ही पड़े रहोगे पांड़े तो कितना तीर मारोगे।’’ ‘‘कबाड़ का धंधा करो कबाड़ का……’’ ‘‘ स्वच्छ भारत अभियान लह गया तो दिन भर में हजार रुप्पइया चीत्त।’’ ‘‘बिजली विभाग वाले पट गये तो बल्ले-बल्ले लोहा के भाव तांबा खरीदो।’’ ‘‘जादा से जादा क्या होगा दो तीन दिन थाना फउज दारी का चक्कर आउ का …….।’’

‘‘अरे महराज खर्चा पानी कीजिए तो ऐश करने का एक से बढ़ कर एक पुड़िया है अपने पास…’’पीठ पर धौल जमाते हुए हेलन बब्बन पांड़े को लगभग बाहों में भर लिया था।

‘‘अपने जैसा कमजोर समझे हो का’’…‘‘का चलेगा बोलो ….’’ खिस्से निकालते हुए बब्बन पांड़े लग-भग चिथड़ा हो चले पर्स को निकाले ही थे कि, ‘‘जुग्गा चिल्लाया था मां कसम हाथ लग जाता तो मजा आ जाता’’…‘‘का हुआ बे ’’करिया ने बीड़ी की टूंटी रगड़ते हुए गंदी सी गाली उछाली थी।
‘‘बेन…….चो….बड़ा जबरजस्त खस्सी है’’ ‘‘एक दम गदबदाया’’ ‘‘रान में ही दो किलो मांस निकल जाएगा’’ ‘‘पंजरी गूंथ कर खाने में तो मजा आ जाएगा’’ बब्बन पांड़े के मुंह से आह निकल गयी थी। ‘‘चोप्प बे पंडित तुम भी स्साला पंडित के पंडिते रहोगे’’ ‘‘कलेजी भूंज दो तो मां कसम…’’इमरान ने बात छेड़ी ही थी तभी करिया ने बकरे के भेजे की ओर इशारा करके सब के मुंह में पानी ला दिया था..‘‘यार भेजा फ्राई का तो मजा ही कुछ और है एक दम मक्खन लगेगा।’’ ‘‘कड़ाही फोड़ कर न खा जाओ तो कहना।’’ इमरान,जुग्गा,फुट्टन, हेलन,करिया,और बब्बन ने मिल कर बकरे के अंग-अंग को आंखो से लील लिया था।

‘‘यार लगता है कहीं से भागा हुआ है, स्साले को साफ किया जा सकता है।’’ जुग्गा ने योजना बनाई। जिस पर संदेह व्यक्त करते हुए इमरान ने कहा था,ससुर के नाती यदि पकड़े गये ना तो जमानत के लिए भी तरस जाओगे।’’ ‘‘तुम भी लगे हो, हियां कितना गुरु घंटाली करके बैठे हैं फुट्टन ने घी डाला था।’’ ‘‘चलो देखते हैं जो होगा देख लिया जाएगा। अब कोई कुछ बोलेगा नहीं इसे अपने मन से जाने दो अगर किसी के घर में घुस गया तो समझो पालतु है।’’ फिर अपन लोग भाग जाएंगे। कौन सा अपने बाप का माल है।’’बब्बन पांड़े ने पूरा प्लान तैयार किया था।

‘‘लेकिन यार इसके बगल में वो बूढ़ा चल रहा है…मेरी समझ से तो बकरा पक्का बूढ़े का है।’’ इमरान ने शंका व्यक्त की थी।

‘‘इसके लिए मेरे पास धांसू अइडिया है।’’ ‘‘मैं सायकल के अगले चक्के से बकरे को ठोकर मारुगां यदि बकरा बिलबिलाया और बुड्ढे ने कुछ चूं-चपड़ की तब तो मामला गड़-बड़ है नहीं तो माल अपना समझो।’’क्या धांसू अइडिया है जुग्गा एकदम से पीठ ठोंका तो बब्बन तिलमिला गया और मुंह से गंदी गाली निकालते हुए आगे बढ़ गया।

सायकल की ठोकर से बकरे की आंखो के आगे अंधेरा छा गया था, लेकिन बुड्ढे को कोई फर्क नहीं पड़ा। ठंड में लुगदी लपेटे मानव जात की गति पूर्ववत बनी रही पर चोट से तिलमिलाए बेचारे पशु की गति तीव्र हो गई थी। इमरान और करिया के बीच आंखो ही आंखो में ईशारा हो गया था। जबकि बब्बन पाड़े धीरे से आगे बढ़ कर जुग्गा से फुस-फुसाए थे।‘‘पट्ठा इस बुढ़उ का तो नहीं है इतना तो तय समझो।’’ अब जे़ड प्लस सुरक्षा वाले अंदाज में इमरान,फुट्टन दांए जुग्गा,करिया बाएं हेलन आगे और बब्बन पांडे पीछे सुरक्षा वलय बना कर चल रहे थे। उनका अन्दाज ऐसा था कि, किसी को भनक भी न लगे और अपना काम भी हो जाए। खैर जो भी हो लेकिन जन्म जात आदत कहां छूटती है,बकरा महोदय सड़क के किनारे पंक्तिबद्ध बैठ कर सब्जी का व्यापार कर रही टोली की टोकरी में अपना मुंह घुंसेड़े ही थे कि, दिल जला देने वाली गाली के साथ एक दो डंडा भी रशीद कर दिए गए।
सायकल और देश एक जैसे होते हैं, दोनां ही गति धीमी होने पर लड़खड़ा जाते हैं। बकरे की निगरानी के फेर में धीमी गति से सायकल चलाते हुए बब्बन पांड़े एक स्कूटर वाले के उपर लगभग गिर ही पड़े थे। तभी पीछे से आ रहे ठुल्ले ने घुड़की लगाई थी….‘‘दिन में ही पऊवा चढ़ाया है क्या बे बहन के…….’’ बब्बन को घुड़की खाता देख फुट्टन और जुग्गा सकपका गये, लगा पकड़ लिए गये । लेकिन भीड़ भरे रास्ते में सिपाही को कहां इतनी फुर्सत। वह तो बगैर उनकी ओर देखे सामने से निकल गया। वर्दी धारी को बिना अपनी ओर ध्यान दिए जाता देख दोनों के जान में जान आई। इन सब चीजों से बेखबर श्रीमान जी अपनी मधुरी चाल में सड़क का मुआयना करते हुए चल रहे थे। कभी इधर मुंह मारते कभी उधर ताकते। कभी सूखी पड़ी नाली में उतर कर पीक वाली पान की पत्तीयां चबाते,तो कभी दो कदम पीछे चल कर निगम की सूखी नाली में उग आए खर पतवार का रसास्वादन करते। उनके लिए तो पूरा सड़क अपना था। एक बार तो सड़क पर पसरने का भी मन बनाया लेकिन ट्राफिक की चिल-पों से घबराहट सी हुई सो दुम दबा कर तेज कदमों से निकल लिए थे।

सड़क से लगे एक आधुनिक मकान के आहाते से लटक रही बल्लरियां लोगों का मन मोह रही थीं। मकान का मालिक बेचारा दरवाजे पर स्कूटर खड़ी करके हड़बड़ी में बाहर का दरवाजा भिड़ाए बगैर भीतर गया तो महोदय भी पीछे हो लिए….‘‘ल्यो स्साला घुस गया…।’’ फुट्टन का मुंह लटक गया था। ‘‘अबे यार देख नहीं रहे हो कितना रइसाना बंगला है…’’ ‘‘स्साला रईस लोग कुत्ता पालते हैं बकरा बकरी न पालने लगे…’’ इमरान ने टुकड़ा लगाया था। ‘‘कह तो ठीक रहा है बे कटुआ लेकिन देखा नहीं हजरत मुसलमानी टोपी पहने थे…लगता है मौलाना जुम्मे की नमाज अता करके आ रहे हैं।’’ ‘‘तो उससे बकरे को क्या वह कौन सा मौलाना साहब को रोजा तुड़वाने गया है।’’बब्बन पांड़े टपक पड़े थे। ‘‘आपको भी ना बे वजह टांग अड़ाने की बड़ी बूरी लत है।’’ जुग्गा कूढ़ गया था। ‘‘आपको क्या पता मुस्सले स्साले हवेली काहे न ठोंक लें।’’ ‘‘घर में बकरी बांधे बिना जी नहीं भरता।’’ ‘‘टाइल्स लगे फर्श पर भी बकरी लेंड़ी गिराती मिलेगी।’’ सब अपने-अपने हिसाब से अटकलें लगा ही रहे थे तभी विदेशी नस्ल के टॉमी ने जोश-खरोश के साथ जब स्वामी भक्ति दिखाई तो महोदय भागते बने थे। यहां बेचारे की जान पर बन आई थी और इन लोगों की बांछे खिल गई थीं। लगा मानो सारे रास्ते खुद ब खुद खुलते चले जा रहे है। ‘‘कितना लाजवाब पुट्ठा है यार’’। करिया ने टुकड़ा लगाया तो पाड़े जी चहके थे।‘‘ हां यार रान तो एक दम लाजवाब है।’’ ‘‘यार इसके साथ 8 पी.एम. चलेगा मजा आ जाएगा…जुग्गा खुश हो गया था।’’ ‘‘घर में भूंजी भांग नहीं बीबी पादे चूरा।’’इमरान पिनका था‘‘यार तुम लोग तो कुकुरों की भांति लड़ रहे हो।’’ ‘‘यहां महुआ की अद्धी का तो टोटा ़है और चले हो अंग्रेजी चढ़ाने’’। बब्बन पांडे़ चिढ़ गये थे। अभी सब का जोड़ जुगाड़ चल ही रहा था, तभी श्रम साधना कर भाल पर स्वेद बिन्दू सजाए गज चाल में चलता मदमस्त मानव जात प्रकट हुआ था। एक-एक नस का उभार लिए पिंडिलियों को देख कर लगता था मानो श्रम की भट्ठी में पका कोई महा मानव है। उसे देखते ही पांड़े जी के दिमाग में कुछ नया क्लिक किया था। ‘‘ का हो महराज कहां से आना हो रहा है,’’ ऐसा लगा मानो बब्बन पांड़े का उससे युगों-युगों का भाई पना है। किधर जाना हो रहा है भाई बब्बन पांड़े ने टटोला, जिसके जवाब में उसने अन्यमनस्कता से बस यूं ही सर हिला दिया था। यार एक काम है अगर चाहो तो तुम्हे भी कुछ फायदा हो सकता है। दिन भर कूड़ा करकट में मुंह मारने के बाद भी पेट न भरने के बाद मरखनी गईया सा वह मानवजात भी थोड़ा खिन्नाया हुआ था। पर कान में जब फायदे वाली बात गई तो उसे लगा बात को पसारने में क्या हर्ज है। ‘‘ ससुर दिन भर माटी गारा करके जान निकली जा रही है उपर से तुम सर पर चढ़े आ रहे हो तुम चाहते क्या हो भाई’’…..वह अकड़ा था।
‘‘अरे दद्दा हम समझ सकते हैं तुम्हारी तकलीफ।’’ दिन भर खून पसीना गारने के बाद मालिक के मुंह से प्रेम के एक बोल भी न फूटे तो तकलीफ तो होती ही है’’। बब्बन कमजोर नस पकड़ने की कोशिश कर रहा था।

‘‘बात तो ठीक ही कह रहे हो भाई,’’ मालिक तो जो है सो हइए है स्साला ठेकेदार भी खाल उधेड़े रहता है।’’ ‘‘यहां तक कंउवा कुकूर भी भर दोपहर जाने कहां बिलाए रहते हैं।’’ ‘‘मगर का मजाल कि घूंट भर पानी पीने बैठ जाओ।’’ ठेकेदार अंकुसी डाले खड़ा हो जाता है।’’

‘‘हां यार ठेकेदार तो दलाले न होता है।’’ और मांस नोचुवा दलाल ससुरन सब एक जइसे होते हैं वो फिर मजूर के दलाल हों या रंडी के। ‘‘उपर से मजूरी इतनी की पेट की आग भी न बुझे।’’ ‘‘इससे अच्छा तो खुद की बकरी चराओ और चैन की बंशी बजाओ।’’ ‘‘मगर चिंता मत करो दोस्त तुम्हारे लिए आज विशेष आफर है।’’ ‘‘तुम भी याद रखोगे किसी रईस से पाला पड़ा था।’’ एक अंजान आदमी की पीठ ठोंकते हुए बब्बन पांड़े ने अपनापा दिखाने की भरपूर कोशिश की थी।

‘‘यार वैसे भी आज दिन खराब है और तुम बेकार में मगज़ मारी कर रहे हो चलो हटो जाने दो’’

‘‘जाना तो सब को है भाई यहां रुकने कौन आया है, जिन्दगी में करक मशक तो सब के साथ लगा रहता है।’’बब्बन ने दार्शनिकता बघारी थी। तभी बगल से जूंऽऽऽसे मोटर सायकल गुजरी तो रीढ़ की हड्डी में झुरझुरी पैदा हो गई थी। ‘‘स्साले लौण्डे लफाड़े बे वजह बाप का धन बिला रहे हैं’’। बब्बन पांड़े को बात से भटकता देख वह मानव जात वहां से सरकने लगा था।‘‘अरे सुनो तो भाई नाराज काहे होते हो मेन बात तो तुमसे कह ही नहीं पाया हूं’’…..‘‘यह मेरा बकरा इसके गले की रस्सी देख ही रहे हो जो बड़ी छोटी है जिसे पकड़ कर सायकल चलाने में मुझे दिक्कत हो रही है।’’ अगर तुम दो फर्लांग तक इसे पकड़ कर चलने में मेरी मदद करोगे तो तुम्हारा बड़ा उपकार होगा। मैं इसका मेहनताना तुम्हे दे दूंगा इसकी चिन्ता एकदम मत करना।

‘‘वैसे जाना कितनी दूर है’’…..मेहनताना की बात सुन कर उसको इंट्रेस्ट हुआ था।‘‘ज्यादा दूर नहीं बस यही तलाब पीढ़ तक’’ बब्बन तत्पर हो गया था।

शहर में बकरे को भी अजीब बेचैनी हो रही थी। कहीं प्रचार वाहन की चिल्लपों तो कहीं ठेले और कबाड़ी वाले। बहुत बचते-बचाते भी एक मोटर सायकल वाला ठोक ही देता। ओ तो अल्ला का शुक्र है कि, एक कबाड़ पड़े रिक्शे पर ही गाज गिरी थी। बकरा कसाई बाड़ा यह सोच कर भागा था कि जिन्दगी आराम से गुजरेगी। पर यहां तो मामला ही कुछ और निकला था। कभी जंगल देखा तो नहीं था पर जंगल के बारे में जितना सुना था जंगल उससे भी भयानक लगा। इस लिए बहुत सांच विचार कर बकरे ने खुद को ढिला छोड़ दिया। शाम के झुल-मुल में जब किसी अंजान ने चल प्यारे कहते हुए आगे और पीछे की दोनां टांगो को पकड़ कर एक झटके से उठा कर कंधे पर लादा तो झटके से उठने और कंधे पर लदने के मध्य थोड़ी दर्दानुभूति हुई इसलिए मुंह से अनायास चीख निकल गई थी। लेकिन सुखासन मिलते ही बकरा भी ठाठ में आ गया था। बकरे को कंधे पर लदता देख बब्बन पांड़े को वहां से बीस मीटर की दूरी बनाना ही उचित लगा था। थोड़ी दूरी पर इमरान, फुट्टन, जुग्गा,करिया और हेलन सब मिल कर लगे थे ठिठियाने। ‘‘क्या दिमाग है पांड़े जी का इसे कहते माल खाए जोलहा और मार खाए गदहा।’’‘‘ ससुर के नाती पकड़ा गया तो पेट भर कूटायेगा, और नहीं पकड़ाया तो स्साला माल अपना।’’ आपस में ठिल्ली उड़ाते पांचो पहले से तलाब पीढ़ पर पहुंच कर तब्बल छूरी पजाने में व्यस्त हो गये थे। फातिमा और पड़ाईन अपने लोगों को न्योतने के बाद मसाले की में तैयारी में भीड़ गईं थी……….।

कहानीकार का परिचय

डा. नीरज वर्मा
डा. नीरज वर्मा
नामडा. नीरज वर्मा
जन्म-05-05-1974
संप्रति-छ.ग.शासन के विद्यालय में व्याख्याता।
शिक्षा-एम.ए.हिन्दी एवं संस्कृत,डी.एड. पी-एच.डी.।
प्रकाशन-हंस,कथादेश,परीकथा,कथाक्रम, साम्य, वसुधा, उद्भावना, कथाबिंब, युग तेवर,परतीपलार, प्रतिश्रुति,पूर्वापर, आदि पत्रिकाओं में एक से अधिक बार कहानी प्रकाशित वर्तमान में कई कहानियां स्वीकृत । आकाशवाणी अम्बिकापुर से नियमित रचना पाठ ,दूरदर्शन रायपुर से एक से अधिक बार साक्षात्कार प्रसारित और चर्चित। अभी तक बीस कहानियां राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में प्रकाशित और चर्चित।
संपादन-साहित्यिक पत्रिका ‘लौ’, ‘‘नया सबेरा’’ ‘‘प्रतिबिम्ब’’‘‘अक्षर दीप’’ आदि का संपादन और सह संपादन।
प्रकाशित पुस्तकः-‘‘हिन्दी का सांस्कृतिक भूगोल’’
सम्‍मान-हंस में प्रकाशित कहानी ‘पत्थर’के लिए तिलौथु सासाराम बिहार के कालेज राधा-शंता से सम्मानित।
संपर्क-डा.नीरज वर्मा मायापुर ,अम्बिकापुर सरगुजा छ.ग.497001
मो.- 9340086203/8109895593
ईमेल[email protected]
डा. नीरज वर्मा का परिचय

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