डॉ. नीरज वर्मा की कहानी वार्ड क्रमांक 24
वार्ड क्रमांक 24
-डॉ. नीरज वर्मा
राम-राम गुप्ता भईया….राम-राम भाई….खपच्चियों से बंधे ठेले में चारो ओर केला के गुच्छों को ठूंस-ठूंस कर भरते हुए गुप्तेश्वर ने सिर हिला कर कलिम का अभिवादन स्वीकार किया था। अरे फुग्गी भाई कहां चल दिए…….अब जानते तो हो मियां की दौड़ मस्ज़िद तक, फिर काम के बिना यहां किसका पेट भरा है भाई । अभी कलिम मोहल्ले में कदम रखा ही था, तभी पीछे से कर-कराती हुई आवाज का गोला सिर पर गिरा था….. आज कल केबल काहे काट देते हो ? एक भी सिरियल पूरा देखने नहीं देते। आओ इस दफा पैसा लेने तब बताती हूं। अपने मोटे ग्लास वाले चश्मे के नीचे से झांकते हुए बिन्नी की अम्मा कुड़-कुड़ाई थी। उसी काम में लगा हूं अम्मा थोड़ा सबर करो कुछ देर में सब ठीक हो जाएगा। ऐसा कोई दिन नहीं होगा जब मोहल्ले की औरतें चैनल को ले कर कलिम की थुक्का फज़ि़हत न करती हों लेकिन वह भी नम्बर का घाघ था। बत्तीसी निकाल कर सब का क्रोध ठंडा करता चाय चुक्कड़ पी कर निकल लिया करता। कुछ बूढ़ी औरतें तो मुसल्ले को चाय पिलाने के लिए बहूओ पर कुड़ कुड़ाया भी करती थीं।
मोहल्ले के पूर्वी भाग वाले बरगद की तिकोनी शाख पर लाल मुंह वाला लंगूर सूरज आ कर बैठता उससे पहले ही लोग मुँह में दातुन की कूंची दबाए कंधे पर गमछी टांगे लोटा आपस में बतकुच्चन करते झुरमुट की ओर निकल लिया करते थे। कुछ तो कंधो पर पेट टांगे दिन के शुरुवात की ओर सरक लिया करते। तिकोनी गली में सड़क के दोनो ओर टेढ़े-मेढ़े मकान ऐसे खड़े थे मानो किसी की शव यात्रा में जाने के लिए मौन पंक्तिबद्ध हों। उन उदास घरो के बीच कुछ महलां की अकड़ देखते बनती थी। गली में नंग-धडंग बच्चे बरसाती कीड़ों की भांति इधर-उधर मचल रहे थे। हवेलियों की शान बनी रहे इसलिए उनके सामने कोटा पत्थर से नाली को ढांक दिया गया था। पर मातमी सूरत वाले घरों का इतना सौभाग्य कहां ! उनके सामने से बहने काले गेजेदार पानी धारा प्रवाह छल-छला रहे थे। जहां निवास करने वाले एक से एक अनाम रहवासी गुच्छों की शक्ल में उड़ा करते। नाली से उड़ने वाला भभका अगर नसिका द्वार से सीधे प्रवेश कर जाए तो एक बारगी हूल आ जाए लेकिन वहां बसने वाले इसके अभ्यस्त थे। वो लोग तो बड़े चाव से फेरी लगाने वाले गुप-चुप के ठेले पर खड़े हो कर चाट फुलकी का आनन्द ले लिया करते थे। ऐसा नहीं था कि वहां के लोग बाकी भारत से कटे हुए लोग थे उस गली की चेतना का आभास वहां टी.वी. पर चीखते चील्लाते बाबाओं से लगाया जा सकता था जो भारत विकास का सूर अलाप रहे थे। टी.वी पर झगड़ते बाबाओ की चिंता ऐसी लग रही थी मानो वो ना हो तो देश की लुटिया तो डूबी समझो। वैसे इन सब के बीच मोहल्ले में आज अलग बयार बह रही थी। गली जहां खतम होती है वहां लगभग सत्तर साल पुराने कुँआ की जगत पर लोगों का जमावड़ा लगा हुवा था। मोहल्ले के एक मात्रा हवेली के मालिक बबन दुबे के चेहरे पर चिन्ता की लकीर तैर रही थी। नीले रंग की चरखानी लूंगी और झक्क सफेद बनियान में दुबे जी मुखिया वाले अंदाज में नज़र आ रहे थे।
मोहल्ले का समीकरण बदल गया था। जिसके विषय में सपने में भी अनुमान नहीं था अचानक उसकी घोषणा सुन कर लोगो को धक्का लगा था। मोहल्ले का तो मानो समीकरण ही बदल गया था। वार्ड पार्षद की सीट पिछड़ो के लिए आरक्षित क्या हुई लोगो में हलचल मच गई थी । कहां तो दुबे जी पिछले पांच बरस से मूंछो पर ताव दिए ताल ठोंक रहे थे अबकी चाहे जो हो जाए पैसो का परनाला ही क्यों न खोलना पड़ जाए अगली पार्षदी तो हमारी ही होगी। अनेको पुल पुलिया सड़क आदि के ठेकेदार दुबे जी थे भी दबंग देह भुजा तो रावणी था ही पैसो की भी कोई कमी न थी। कहते हैं लगोंट में हमेशा देशी कट्टा बंधा रहता है। गद…..गद करते बूलेट में निकलते तो अच्छे अच्छों का पेशाब सटक जाता था। मोहल्ले की बेटी बहुरिया आड़ कर लिया करती थीं। पर सारा किया धरा धूल में मिल गया नये सीमांकन में वार्ड नम्बर 24 को पिछड़ो के लिए आरक्षित कर दिया गया था। बात हवा में तैर रही थी कि कर्पूरी साव और जगधारी कलवार की सारी कारस्तानी है काना फुसी तो यह थी कि सारा का सारा खेल दुलारे बहू के लिए रचा गया है। कर्पूरी साव दुलारे बहू से देवर भौजाई का रिश्ता रखते है सो तोहफे में जोड़ जुगाड़ करके वार्ड को पिछड़ो के लिए आरक्षित करवा दिया।
उन्हे इसका कोइ तोड़ नज़र नहीं आ रहा था इस लिए अपने समर्थकों की आपात कालिन मिटिंग बुलाइ थी। महराज सब कर्पूरी साव का खेला है दुलारे की घर वाली को सपोर्ट करने के लिए ही खेल रचा गया है।
बात तो ठीकही कह रहे हो, अब ससूरा इत्ता समय भी नहीं है कि हाईकोर्ट में चैलेंज किया जाए। अपोजिट भले खेल रचा है लेकिन चुनाव के मैदान में दुलारे के भीतर हम अपना चोंच नहीं घुसेड़े तो हम भी मर्दाना के जामल नहीं होंगे साला कुत्ता के जामल होंगे। बबन दुबे की मुंछे गुस्से से फड़फड़ा रही थीं।
इसका का उपाय रचा जाए हुजूर उकड़ू बैठे मानिक महतो ने अपनी जिज्ञासा उछाली थी।
तोड़ का होगा तोड़ क्या होगा दुलारे बहु को उठवा लो साली को नचावल जाएगा दुबे जी का चम्मच सा दिखने वाला सुरेन्दर ठाकुर पान से रची अपनी टेढ़ी-मेढ़ी खिस्से निकाल कर हो-हो वाली हँसी हँसा था।
कुँवे के पास गहमा-गहमी देख कर रजिन्दर भी मूंगफली भरे अपने लचर-पचर ठेले के साथ वहां रुक गया था। हालाकि उसका उद्देश्य व्यवसाय न हो कर माहौल का जायजा लेना भर था लगे हाथ कुछ बिक जाए तो क्या बुरा था।
इ साला पंडितो होना आज के जुग में गरहे है….नौकरी करे जाओ नीच जाति का आरक्षण, राजनीति करो तो, इ खेला कन्हाई जबान खोला ही था कि दुबे जी की लील जाने वाली नज़र देख कर पैंट गीला नहीं किया बस…….साला का बोला रे कबाड़ी इ पानी का टंकी देख रहा है ना एकर ऊपर से फेंक देंगे फिर साला रहबे नहीं करेगा तो कहां से सांस लेगा और कहां से……दुबे जी का फिल्मी डायलाग सुन कर वहां बैठे सभी लोग एक साथ खी-खी करके हँस दिए थे। बात कुछ ज्यादा ही गंभीर थी लोग अपनी राय अपनी योग्यता के अनुसार रख रहे थे। एक सीरे से मुख्य सड़क की ओर जोड़ने वाली गली होने की वजह से गली में आवजाही भी लगातार जारी था। लोग विचार कर ही रहे थे तभी अपने पुराने पैंथर में मुर्गे की डलिया बांधे मेवा लाल ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। पैंथर में बंधे डलिया के भीतर कुछ मुर्गे अपनी पूरी ताकत से एक दूसरे को नोच-खसोट रहे थे। उनमे से फार्म वाले कुछ सफेद मुर्गे मुर्दा से पड़े हुए थे। हालाकि लूटपाट हिंसा बालात्कार के बीच कमजोर आदमी ऐसे ही पड़ा रहता है। वैसे भी लोकतंत्र के लिए ए सब आम बात है। लोकतंत्र के आम आदमी की हद अपने लिए किकियाने तक ही है। मुर्गे की काँव-काँव कचर-कचर के मध्य मेवा लाल ने अपनी जिज्ञासा उछाली थी लेकिन बबन दुबे की नशीली आंखो पर नज़र पड़ते ही सटक कर वहीं उकड़ू बैठ गये थे। घोर मंथन चल रहा था लोग अपनी अपनी योग्यता के अनुसार अपने विचार रख रहे थे।
भईया नामांकन की आखरी तारीख के विषय में कुछ पता है एक थोड़े पढ़े लिखे कह सकते हैं समझदार हरिहर बाबू ने तकनीकि विषय पर बात की दिशा को मोड़ा था।
समय कहां है अब कुछ तो सोचना ही पड़ेगा वर्ना पांच साल झाल पीटने के अलावा कुछ भी नहीं बचेगा।
सूरज सर पर तबला बजाने लगा था कुछ को ठेला फेरी के लिए भी विलंब हो रहा था सो धीर-धीरे लोग वहां से सरकने लगे थे। जनाधार खिसकता देख बबन दुबे के सामने सभा भंग करने के अलावा कोइ चारा शेष नहीं था। सभा तो बे नतीजा ही समाप्त हो रही थी पर भीड़ देख कर बबन दुबे को अपने सामर्थ्य का पता चल गया था। कहते हैं न सत्ता सामर्थ्यवान के घर की चाकरी होती है। बबन दुबे ने हरिहर बाबू को कनखियाया चलिए हरिहर बाबू इस विषय पर ठंडा दिमाग से विचार किया जाएगा।
ठेकेदारी का कुछ काम निपटाने के बाद दुबे जी की कोठी पर कुछ सेलेक्टेड लोगो की मीटींग बुलाई गई थी। कोठी के बाहरी हिस्से में विदेशी नस्ल के पौधों का शानदार बगीचा था। जिनकी सेवा के लिए माली मुस्तैद थे। बगीचे में छुईमुई से कुछ देशी गुलाब भी सकुचाए से खडे थे। विशाल कहलाने वाले बरगदों को भी बोनसाई करके दुबे जी ने अर्दली बना लिया था। गमले में उगने वाला सेव मोहल्ले वालो के लिए कौतुक का विषय था। बगीचा सुन्दर हो भी क्यों नहीं मोहल्ले के लोग पीने के पानी के लिए भले हाहाकार मचा रहे हो बबन दुबे के बगीचे में लगे देशी-विदेशी पौधे शान से नहाते हुए इतराया करते थे।
बकरे के ताजे गोस्त से अघाए विदेशी रॉनी और टॉमी को दलान में टहलते देख कर बड़े-बड़े हिम्मत वालों का पसीना छटक जाता था। प्रायः आलीशान बगीचे के बीच लगे मखमली गद्दे वाले झूले में पसर कर दुबे जी जीवन सुख भोगा करते थे। कई बार तो वहीं पड़े-पड़े अपने स्मार्ट एनराइड फोन से ठेकेदारी का काम भी निपटा लिया करते थे। पर आज सब कुछ लोकतांत्रिक था। बबन दुबे खास अंदाज में बाध वाली खटिया पर अधलेटे थे वहीं उनके अगल-बगल लगी पांच सात कुर्सियों में मोहल्ले के कुछ खास लोग आसनस्थ थे। रॉनी और टॉनी कुछ बखेड़ा न खड़ी कर दें इस लिए उन्हे किनारे बांध दिया गया था।
कर्पूरी साव ने तो सारा खेल बिगाड़ कर रख दिया दुबे जी……मेरी समझ से तो उसने आपको रोकने के लिए ही सारा गणित लगाया है। महेश्वर सिंह ने बात की शुरुवात की थी।
आप ठीक कह रहे है। बबन जी का नाम इस बार नगर पालिका उपाध्यक्ष के लिए मजबूत दावेदार के रुप में लिया जा रहा था अब परेशानी है कि आधा से अधिक वार्ड तो पिछड़ो एस.सी और एस.टी. के लिए रिजर्व कर दिया गया है। जिन वार्डो में सामान्य कोटा है भी वहां रिस्क ज्यादा है, क्योंकि चुनावी ध्रुवीकरण में वहीं के लोगों में सिर फुट्टौव्वल हो रहा है। अगर रिस्क लिया भी जाए और परिणाम उल्टा हो जाए तो ….युवा लेकिन समझदार कहे जाने वाले रफीक ने अपनी समझ का पिटारा खोला था।
बाबू साहब हम लोगो के तो सारे किए धरे पर पानी फिर गया और नहीं तो चार सौ लोगो का नाम जुड़वाया गया था जो दुबे भईया के लिए एकदम सालिड वोट था।
चुप रहो यार ए सब हल्ला नहीं किया जाता है। दुलारे तक बात पहुंच गई तो नया बखेड़ा खड़ा हो जाएगा।
बात तो सहिए कह रहे हैं भईया लेकिन जो बात होनी थी सो तो हो गई अब इसका तो कोई तोड़ निकालने ना पड़ेगा।
हम तो कह रहे है अब ए सब पचड़ा रहने ही दिया जाए इससे हमारा कोइ खाना खर्चा तो चलेगा नहीं तो काहे सिर दर्द मोल लें। अब कोई पार्षद बने हमारा का बिगड़ेगा हमारा संबंध तो सीधे राजधानी से है ठेकेदारी तो वैसे ही चलेगी जैसे चलती है। दुबे जी अचानक बैक फुट पर आ गये थे।
बात उसकी नहीं है दुबे जी बात अब आन की है अगर यूंही छोड़ दिया जाएगा तो लोगां का हौसला बुलंद हो जाएगा अब लड़ाई तो फारवड और बैकवर्ड का है। लाख पांच लाख के लिए पीछे मत हटिए आप नहीं लड़ेंगे तो कहिए हम खर्चा करेंगे लेकिन कैंडिडेट हमारा अपना आदमी होगा। सचिता सिंह ने ललकारा था।
बात पैसे की नहीं है पांच क्या हम तो दस खर्चा कर दें लेकिन बात भी तो बने यहां तो ऐसा पेंच फंसा है कि हमारे कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
इसमें समझना क्या है? लोहा को लोहा ही काटता है हम चुनाव लड़ नहीं सकते हैं लड़वा तो सकते हैं न….।
पिछड़ा के खिलाफ पिछड़ा लेकिन हमारा अपना आदमी क्यों आप सब सहमत हैं कि नहीं सचिता सिंह ने उपस्थित लोगों की मंशा जाननी चाही तो सबने लगभग एक स्वर में अपनी सहमति जताई थी।
आप लोग बात तो ठीक कह रहे है। लेकिन आज की तारीख में विश्वास किस पर किया जाए किसी पर दांव खेला भी जाए तो क्या भरोसा वो आपका अपना होगा समय समाज को देखते हुए दुबे जी की शंका निर्मूल नहीं थी लेकिन लोगो का दबाव था और बात भी आन की थी।
होगा काहे नहीं मान लीजिए बेइमानी करेगा तो कितने दिन पांच साल ही न फिर बच के कहां जाएगा बच्चू पहले दांव का घोड़ा तो तैयार कीजिए काम कैसे निकालना है हम लोग न देखेंगे….विनोद सिन्हा आवेश में आ गये थे……देखिए लाला जी का ताव इकीस लाला मिल कर एक मूली नहीं उखाड़ पाए और ए चले है……सुकेश मिश्रा ने मसखरी की तो सिन्हा जी पिनक गये थे………यही सब हम को अच्छा नहीं लगता……अरे आप तो सच मान लिए, मैं तो बस मजाक कर रहा था….ददन भईया खुद ही इतना पावर फुल हैं कि अच्छे-अच्छे सटक जाते है।
अरे यार मसखरी का समय नहीं है हम लोग यहां कुछ गंभीर विचार करने बैठैं हैं और एक बात गांठ बांध लीजिए जनता बहुत होशियार हो गई है बाहुबल और धनबल से चुनाव जीतना आसान नहीं रह गया है। आदमी के आंत की थाह नहीं लगती कहेगा कुछ करेगा कुछ । मुंह पर कुछ कहेगा पेट में कुछ रहेगा। किसका क्या बिगाड़ लीजिएगा ।
बात को भटकाइए मत भाई बबन भईया अगर तेतरी देवी को खड़ा कर दिया जाए तो कैसा रहेगा सचिता बाबू ने अपना विचार रखा था ना…ना तेतरी तो ठीक है पर उसका लड़का गिरह कट है फांदे बाज अभी कुछ दिन पहले चरस मामले में हमही तो टी.आई से कह कर मामला रफा-दफा किए नही ंतो चलान हो ही गया था।
आप लोग कहते तो हमारा भतीजा भी ठीक ही था विनय चौरसिया धीरे से अपनी दावेदारी प्रस्तुत किए थे। लेकिन उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया तो चुप हो गये। उम्मिद्वार चयन समिति की बैठक लगभग दो घंटे चली लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। शाम होते तक मोहल्ले में पर्याप्त हलचल मच गई थी। दुलारे और दुलारे बहु शक्ति प्रदर्शन वाली मुद्रा में लगभग बीस पच्चीस की भीड़ के साथ निकल पड़े थे। झक्क सफेद पायजामा कुर्ता में निकले दुलारे बाबू के चेहरे से सौम्यता टपक रही थी। सिर पर आंचल डाले दुलारे बहु बड़े बुजुर्गो का पैर छू कर लोगो का दिल जीतने का प्रयास कर रही थी। विनम्रता की पराकाष्ठा ही कहा जा सकता है, बबन बाबू विरोधी दल के हैं यह जानते हुए य भी दुलारे युगल उनसे आर्शिवाद लेने गये थे….भईया अब हमारी इज्जत आपके हाथों है आप अपना आर्षीवाद दीजिए आप चाहेंगे तो हमको जीतने से कोई नहीं रोक सकेगा।
ठीक ही कह रहे हो….दुबे जी मूंछो के नीचे से हंसे थे। पूरा शहर चुनावी रंग में रंग गया था। उम्मीद्वार आपने द्वारा किए गये नेकी को भूनाने में लगे हुए थे। किसी ने लोगो को राशन कार्ड बनवाने में मदद की थी तो कोइ वृद्धा पेंशन दिलवाया था। लोगों ने वादे भी बढ़ चढ़ कर किया कोई जीतने के बाद घरों मे नल लगवाने की बात कर रहा था। एक उम्मीद्वार ने तो जीतने के बाद युवाओ को उद्योग विभाग की मदद से युवाओं को ऋण दिलाने की बात कर रहा था। किसी ने गली-गली में नाली खुदवाने की बात की तो कोइ विवाह आदि में होने वाली परेशानियो को देखते हुए सामुदायिक भवन बनवाने पर आमादा था। बिजली का खम्भा, स्कूल भवन की मरम्मत, स्मार्टकार्ड और भी ढेरो लोक लुभावन वादां से प्रत्याषी एक दूसरे का मन मोहने में लगे हुए थे। नामांकन की तिथी घोषित होते ही दुलारे युगल लगभग साठ समर्थको की भीड़ लेकर ढोल-नगाड़ो के साथ पर्चा भरने चला गया था।
दुबे जी और उनकी उम्मीद्वार चयन समिति के लोग तीन दिन के मशक्कत के बाद एक नाम पर सहमत होते दिखे थे। दर असल उन लोगो ने उम्मीदवारी पर ही चर्चा नहीं किया था प्रत्याषी चुनाव जीत जाए उनकी चिन्ता यह भी थी। यही कारण था कि सबसे पहले उन्होने मोहल्ले का आंकड़ा निकाला गया तीन हजार सात सौ चौतीस लोगों वाले मोहल्ले में सुढ़ी, बनिया, कायस्थ, ब्राम्हन, कलार के अलावा मुसलमानो की संख्या सबसे ज्यादा थी। दो एक आदिवासी हरिजन भी थे जहां की औरतें घरो में झाड़ू पोंछा का काम करती थी इसलिए उन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया था। सर्वे के दौरान सबसे ज्यादा मुसलमानो की संख्या ही निकल कर आई थी इसलिए प्रत्याषी मुसलमान कौम का ही हो इस बात का भी ख्याल रखा गया था। यहां पर जो मुख्य बात निकल कर आई थी उसमे कुछ मुसलमान तो पढ़े लिखे थे लेकिन अधिकांश मुस्लिम कम पढे लिखे थे। आज दुनिया घोर विषमता वाले समाज में तब्दील हो गई है। सामंतवाद अपने नये रुप में हमारे सामने उपस्थित है। जहां अकूत खजाने पर कुंडली मार कर बैठें दुनिया के मुट्ठी भर लोगों के लिए दुनिया एशगाह है वहीं बाकी की आबादी के लिए जीवन एक सपना के अलावा कुछ भी नहीं है। आदमी सपनो की मृग मारिचिका में दौड़ता हुआ दम तोड़ देता है। उनके लिए वही ठेला खोमचा, पंचर बनाने वाली सायकल की दुकान उन्हे न तो चुनावी दंगल से कुछ लेना देना होता है न ही, उनके नतीजों से उन्हे तो कोई भी सपना बेचने वाला अपने पीछे-पीछे घुमा सकता है।
दुबे जी की उम्मीदवार चयन समीति ने इस विषय पर गंभीर मंथन कर के एक ऐसे उम्मीदवार के चयन पर बल दिया था जिसकी मुस्लीम समुदाय में अच्छी खासी पकड़ हो लेकिन वह व्यक्ति हुकूम का गुलाम बन कर दुबे जी के आगे पीछे घुमने के लिए भी एक पैर पर तैयार खड़ा मिले। कुल मिला कर व्यापार में एट्टी-ट्वेंटी का साझेदारी हो। बहुत मशक्कत के बाद जिस नाम पर सहमति बनी थी उस पर दुबे जी थोड़ा असहमत थे पर मौके की नजाकत को देखते हुए उससे बढ़िया नाम हो ही नहीं सकता था। क्योंकि उस आदमी की पहुँच घर-घर में थी।
डिस्क आपरेटर होने की वजह से कलिम की पहुंच लगभग सभी घरों में थी इसलिए कलिम सबकी नज़र में श्रेष्ठ दावेदार था। इसलिए आनन-फानन में रात को करीब साढ़े सात बजे कलिम के ठीहे पर ही बैठक का आयोजन कया गया। दरवाजे पर बजबजाती नाली में लगातार पानी बहने की वजह से एक अजीब किस्म की सड़ान्धता हवा में पसर रही थी। मच्छरों की तो मानो दावत चल रही हो। कलिम के घर की बाहरी दीवारों पर प्लास्टर नहीं होने की वजह से दीवारों के इंर्ट कुछ मिलने की उम्मीद में दांत निकाले भीखारी से दिख रहे थे। बगल के ओसारे में लेड़ी गिराती बकरियां मिमियाते हुए अपने होने का अहसास दिला रही थी।
देखिए कलिम जी वैसे तो हमारा मन चुनाव-उनाव के चक्कर में पड़ने का एक दम नहीं है पर भईया लोग की ज़िद्द के आगे हम हारे हैं। इन सब का मानना है कि मोहल्ले के सबसे योग्य कैंडिडेट आपही हैं। हम तो कह रहे हैं कि दुलारे भी अपना ही आदमी है । पर ऐ सब हैं कि जिद्द ठाने बैठे हैं कहते हैं कि आटा चक्की चलाने वाला पार्षदी का करेगा अब आप तो जानिए रहे है। मोहल्ल को पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया है। इस लिए सबने आपको ही चुनाव लड़वाने के लिए मन बनाया है। दुबे जी ने कलिम के आगे सीधे सपाट लहजे में अपनी बात रखी थी। बबन दुबे प्रायः कलिम को कलिमवा मियां आदि कह कर संबोधित किया करते मोहल्ले में जन्मे बढ़े मुन्नवर कबाड़ी के बेटे को इसका बुरा भी नहीं लगता था। पर आज अपने लिए आदर सूचक शब्द सुन कर कलिम घबरा गया था। उसके सामने हलाल से पहले की बकरी का चेहरा तैर गया था।
कलिम के आगे एक साथ बीस जोड़ी आंखे में जिज्ञासा तैर गई थी। लेकिन अकबकाहट उसके चेहरे पर स्पष्ट देखी जा सकती थी….चुनाव मैं ? कहां भइया…काहे मजाक कर रहे हैं…. ? मैं एक मामूली केबल आपरेटर….यां खाने के तो लाले पड़े हैं और आप कह रहे हैं चुनाव।
तुम दूनिया की फिकर काहे कर रहे हो कलिम भाई जब बबन भईया कह रहे हैं तो कुछ सोच समझ कर ही ना कह रहे होंगे। लवकेश पांडे ने बबन दुबे की ओर से बात आगे बढ़ाई थी।
अरे यार जो बात है उसे खोल कर समझाइए उन सब में वरिश्ठ सचिदानन्द ने अगे बढ़ कर कहा था। देखो कलिम बेटा हम आपको सब बात खुल कर समझाते हैं….तुमको शायद पता होगा नगर पालिका चुनाव में हमारा मोहल्ला पिछड़ों के लिए आरक्षित कर दिया गया है। हमें लगता है ए सब जान बूझ कर बबन बाबू को रोकने के लिए किया गया है। अब बबन बाबू चुनाव लड़ नहीं सकते लेकिन लड़वा तो सकते हैं न इसलिए हम लोगो की राय बनी है कि हमारा आदमी वार्ड पार्षदी का चुनाव लड़ेगा और विघटनकारी ताकत को पार्षद बनने से रोकेगा इसके लिए हमें लगा तुम सबसे योग्य दावेदार हो।
आपका कहना तो ठीक है चचा लेकिन चुनाव-सुनाव ताकतवालों का खेल है…यहां तो फूटी कौड़ी नहीं है और तनिक सोचने का मौका भी तो दीजिए। अब्बा से सलाह तो ले लेते कलिम थोड़ा अन्यमनस्क हुआ था।
अब तुम भी ज्यादा भाव न खाओ कलिम मियां किस्मत तुम्हारे घर चल कर आई है और तुम हो कि रही मुन्नव्वर भईया की बात तो बबन भईया की बात ओ नहीं टालेंगे लवकेश पांड़े सपाट लहजे में कलिम को समझाया था।
दिन के बारह बजे होंगे बबन भईया झक्क सफेद कुर्ता पायजामा कुर्ता की जोड़ी ले कर कलिम के घर पहुँचे थे। आज कलिम का नामांकन भरने जाना था। पुराने माडल के खुले जीप में काफिला सजाया गया एक दम नेताओं वाले अंदाज में कलिम को जीप के सामने खड़ा किया गया । बबन दुबे बगल वाली सीट में बैठे। जीप से ले कर कलिम तक सब को गेंदे के फूल से लादा गया। कलिम की गाड़ी के पीछे बोनान्जा और होण्डा सीटी जैसी गाड़ियों का काफिला सजाया गया। जिसके पीछे लगभग पचास मोटर सायकल की रैली सजाई गई। कलिम के पास खुद को शहंशाह कहने का पूरा कारण था। लेकिन राजा से बड़ा राजा बनाने वाला होता है। लोकतंत्र ने यह अधिकार तो जनता को दिया है पर जनता तो वही देखती है न जो उसे दिखाया जाता है। भारत की भोली-भाली जनता के लिए तो उम्मीदवार के चरित्र से ज्यादा पार्टी का चुनाव चिन्ह महत्वपूर्ण होता है। यहां पर भी कलिम से ज्यादा बबन दुबे का महत्व था। इसलिए मतवाली भीड़ बबन भइया जिन्दा बाद के नारे लगाते हुए निर्वाचन कार्यालय पहुंँची तो सारा वतावरण बबन मई हो गया था। कलिम का सीना चौड़ा हुआ जा रहा था हो भी क्यों ना ? यह नषीब बिरले को ही मिलता है।
वार्ड क्रमांक 24 में चुनावी माहौल गर्मा गया था। दुलारे बहु ने पहले सिर पर आंचल रख कर बड़े बुजुर्गों का आर्शिवाद लिया लेकिन मुकाबला तगड़ा होता देख पल्लू कमर में खुस गइ थी। रिक्शे पर प्रचार का भोपा लगातार गला फाड़ रहा था। लोगो के घर संपर्क का तो तांता लग गया था। एक-एक घरों में दो-दो तीन-तीन बार जाया जाने लगा। कलिम बबन दुबे का आदमी था और दुबे जी की पकड़ प्रदेश स्तर तक थी इसलिए मोहल्ले में प्रदेश स्तरीय नेताओं ने भी सभाएं की……..अगर चुनाव में कलिम बाबू जीत गये तो मोहल्ले के सभी घरों में एकल बत्ती कनेक्शन करा दिया जाएगा। कोई भी गरीब परिवार ऐसा नहीं रह जाएगा जिसके घर में एकल बत्ती कनेक्शन न हो या उसका गरीबी रेखा के नीचे वाला कार्ड न बने।
चुनाव जातीय उन्माद फैलाता है तो कभी कभी एकता के नमूने भी पेश करता है। वार्ड क्रमांक 24 में बबन दुबे के निर्देशन में इसे देखा जा सकता था। बबन दुबे के सड़क किनारे वाले दुकान में चुनाव कार्यालय बनाया गया था। पूरे मोहल्ले को चुनाव प्रचार बैनर पोस्टर से ढांक दिया गया था। हिन्दु हो या मुसलमान मोहल्ले के सभी नंग धड़ंग बच्चो के गले में कलिम के नाम की माला दिख रही थी। चुनाव प्रचार रिक्शा मोहल्ले भर में गला फाड़ते ऐसे दौड़ रहे थे मानो उन्हे दम मारने की फुरसत न हो।
दुलारे ने तो अपनी आटाचक्की को ही चुनाव कार्यालय बना दिया था। वहां दिन भर युवा कार्यकर्ताओं का हुजूम लगा रहता था। प्रचार अभियान में दुलारे ने कलिम की जाति को आधार बना कर खूब कटाक्ष किया। कर्पूरी साव भी दूलारे बहु को जीताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिए थे। रात की काली चादर पसर चूकी थी फटे दूध से छितराए बादलों के बीच से झांकता चांद सहमा-सहमा सा लग रहा था। कर्पूरी साव दुलारे के कुछ खास लोगों के साथ जीत की रणनीति बनाने के लिए दुलारे के पीछे वाली बाड़ी में बैठे थे। मरियायी बल्ब की पीली रौशनी में चारों ओर कुछ कुर्सिया लगी हुई थीं । सभा के मध्य भाग में रखे टेबल पर रखे बोतल का कट देख कर शराब के मंहगे होने का अनुमान लगाया जा सकता था। दुलारे बहु का तो रंग ही अलग नज़र आ रहा था झक्क सफेद सिफान की साड़ी में गदबदाई दुलारे बहु कर्पुरी साव तिरछा के मुस्कुरा देती थी। सिल्की होने की वजह से साड़ी का पल्लू बार-बार सरक जाता था। जिसे बचाने का कोई खास प्रयास भी दुलारे बहु के द्वारा नहीं किया जा रहा था। हालाकि पल्लू के नीचे देखने लायक ऐसा कुछ था भी नहीं जिस पर कर्पुरी साव कुछ तव्वज्जो देते। हां एक बार तिरछी निगाह से दुलारे ऊपर तंज जरुर कसा था……उमर के साथ-साथ भऊजी कुछ ज्यादा चटक होती जा रहीं हैं। दुलारे ने उनकी बातो पर कुछ खास तव्वज्जो नहीं दिया था लेकिन चेहरे का रंग स्याह हो गया था। चुनाव अपने पक्ष में करने के लिए उपस्थित लोगो ने अपने अपने विचार रखे किसी ने चुनाव के ठीक एक दिन पहले दारु बटवाने को कहा तो कोइ दारु के साथ-साथ मुर्गा खिलाने के पक्ष में दिखा। लेकिन गुड्डन ने जो बात कही उसे सुन कर उपस्थित लोगो के रोंगटे खडे़ हो गये थे।
कहिए तो एक झटके में पासा पलट कर रख दें…..गुड्डन तिरछी हँंसी हँसा था।
अरे भाई तुम चिन्ता काहे करते हो तुम्हे तो बस दुल्हा बन कर घोड़ी पर बैठना है कलिम भाई समधियौज करने के लिए बबम भइया तैयार ही हैं। गुड्डन मिस्त्री ने होंठ खीच कर खैनी गलियाते हुए जब अपनी बात उछाली तो वहां बैठे लोग ठह-ठह हँस पड़े थे। कलिम के दरवाजे पर रात एक बजे तक महफिल जमी रही। चाय कुक्कड़ के कई दौर चले कौन सी गाड़ी में चढ़ कर नामांकन भरने जाना है, आगे-आगे कितनी गाड़ियां चलेंगी, पीछे कितनी गाड़िया होंगी, कौन सी बैंड पार्टी होगी आदि-आदि सभी विषयों पर विस्तृत चर्चा के बाद बबन भईया अपने दलबल के साथ वहां से चले गये थे। कलिम को आज अपने आप पर गर्व हो रहा था उसकी रात आज आँखो में कटी थी। कभी चुनाव लड़ने की फुरफुरी से देह गनगना जाता था तो कभी अजीब सी चिंता हो जाती थी। कुल मिला कर आज का सूरज चिंता और उत्साह के मिश्रण में घुला हुआ था। बदलाव की आंधी अंतः स्थल को झकझोर रही थी। बादलो के बीच फँसा मरियाया सा दरिद्र सूरज आज जब निकला तो घर के बाहर वाली नाली वैसे ही उफान मार रही थी। बकरियों की मिनमिनाहट से वैसे ही वातावरण में कोलाहल भर रहा था। घर के बाहरी दीवरों के ईंट वैसे ही दांत निकाले खड़े थे। पर उन सब के बीच कुछ नया था तो एक सपना जो वहां की हवा में तैर रहा था। भाग्य साथ हो तो आदमी फर्श से अर्श पर पहुँच जाता है, सुना था आज अनुभव हो रहा था।
ऐसा कौन सा तीर धरे बैठै हो …देखो हमारे सामने ढेर भंजा न करो एक भद्दी सी गाली देते हुए नशे के शुरुर में कर्पुरी साव पिनके थे।
सरकार आप आदेश तो करिए…..हवा का रुख भी बदल जाएगा और किसी को कानो कान खबर भी नहीं होगी।
अब कहोगे भी……इस बार दुलारे ने मीठी झिड़की दी थी।
मोहल्ले में चुनाव प्रचार चरम पर था….बबन दुबे का लगभग तीन लाख साफ हो गया था गरीब महिलाओं को साड़ी तो पुरुषो को धोती कंबल बंटवाए गए। लगभग हर घर में कलिम के फोटो वाले कैलेंडर टांगे गये। बाहर से तो माहौल बबन दुबे के पक्ष मज़बूत दिख रहा रहा था पर हिन्दु मतो में भीतर घात होने की आशंका नजर आ रही थी। मुँह पर तो लोग बबन दुबे की तारीफ करते थकते नहीं थे लेकिन पीठ पीछे कलिम को चुनाव में खड़ा करने के मुद्दे पर मुख़ालफत करते भी नज़र आ रहे थे। प्रारंभिक गणना के अनुसार मोहल्ले में मुसलमान मतदाताओं की संख्या ही जीत के लिए पर्याप्त थी लेकिन सभी मुस्लिम मतदाताओं में भी एकता कम ही दिख रही थी। एक तो दुलारे की पुरानी पैठ थी दूसरा कुछ सुन्नी मतदाता सिया होने की वजह से कलिम से खार खाए बैठै थे। बहुत मेहनत के बावजूद भी हवा पूरी तरह से काबू में होती नहीं दिख रही थी। बबन दुबे कुछ ऐसा करने के फिराक में थे जो हवा का रुख ही बदल दे। इस विषय पर दिन निकले सचिदा बाबू के साथ चुनाव कार्यालय में बैठ कर चर्चा कर ही रहे थे तभी गुड्डन और विजय लल्लन बाबू के पैर के नीचे उकड़ू बैठ गये थे।…..कैसे रे रंगा बिल्ला तुम लोग यहां क्या कर रहे हो…बबन दुबे दोनों को संदेह भरी नजर से देखा था। इन दोनो से सम्हल के ही रहिएगा दोनां दुलारे के टोही विमान हैं सचिदा बाबू ने भी बबन दुबे का समर्थन किया था।
हुजूर छोटका को लड़की हुई थी बरही किया तो रात का पुलाव बच गया….डाल दिया हमारी हिरनिया के आगे ओ भी भूखी थी दम भर दबा ली रात भर भी नहीं टिक सकी पेट फूल गया बेचारी का और राम नाम स्वाहा हो गया। बेचारी का छः दिन का बछड़ा दिन भर गला फाड़ता रहता है। बिन माँ के कमजोर हो गया है ऐसे भी कसाई पीछे पड़ा है कुछ काम आपही लोग कर देते तो भोले का सवारी भोले के काम आ जाता फिर कलिम भी मुसलमान है……देखिए कैसे उसके खिलाफ हवा तैयार होती है। गुड्डन की बात सुन कर वहां बैठे लोग भीतर से गनगना गये थे। एक विजय सोनवानी ही था जिसकी आंखे चमक उठी थी……वाह उस्ताद….वाह क्या दिमाग पाई है आपने। मोहल्ला क्या पूरे शहर के मुस्सल्लों का सुपड़ा साफ हो जाएगा, विजय चहका था……चोप्प साला…..बोला सो बोला कर्पूरी साव भड़क गये थे उनका तो नशा हिरन हो गया था। तुम लोगो को पता है क्या बात कर रहे हो पूरे शहर में कितने घर जलेंगे कितने बच्चों की लाशे दहक उठेगीं…….चुनाव लड़ने चले हो कि साम्प्रदायिक दंगा फैलाने….दुलारे बाबू ऐसे चुनाव नहीं जीता जा सकता…आज जो बात हुई सो हुई ऐसे लोगों से दूर ही रहे तो बेहतर होगा वर्ना आप समझे……कर्पूरी साव एक झटके में उठ कर चले गये थे।
ऐसी कोई बात नहीं है साहब हम गरीब लोग कबाड़ बेच कर पेट चलाने वाले आपका का अहित करेंगे….और बबन भइया का कम एहसान है कि उनके विषय में गलत सोचेंगे गुड्डन रिरियाया था।
ओ सब ठीक है पर तुम लोग तो दुलारे के आदमी हो कल ही ना गला फाड़ रहे थे जन-जन के प्यारे हमारे दूलारे।
गरीब किसी का आदमी नहीं होता है साहब वो तो सिर्फ पैसा का आदमी होता है ।
अब ज्यादा पहेली बुझा कर हमारा भेजा न खाओ जो भी कहना है कहो जल्दी से बबन दुबे थोड़ा पिनके थे।
भईया वैसे तो हम लोग कम अक्ल के हैं लेकिन छोटी मुँह बड़ी बात हम तो कह रहे थे टंटा ही खतम कर दिया जाए न रहे बांस न बजे बांसूरी ।
क्या मतलब है जी तुम्हारा कहना क्या चाहते हो……बबन दुबे चौंके थे।
नहीं साहब हमारा वो मतलब नहीं है कुछ खास हो जाए तो….बीड़ी के सुट्टे लेते हुए गुड्डन ने जो आइडिया दिया सच में धांसू था। बात ही बात में मामला तय जो मामला तय हुवा उसने विरोधी खेमे में भूचाल ला दिया था। वैसे लोकतंत्र में जीत के लिए यह सब आम बात है। बचाव की जिम्मेदारी तो प्रत्याषी की होती है…..लगभग रात के साढ़े बारह बजे दुलारे की जीप के पिछले भाग में सीट के नीचे देशी शराब की पेटी ऐसे छुपाई गई जिसकी दुलारे तक को भनक नहीं लगी। दुलारे बाबू जब चुनाव प्रचार के लिए निकले तो वही हुँआ जो बबन दुबे चाहते थे। मतदाताओ को शराब बांटने के जुर्म में दुलारे को गिरफ्तार कर लिया गया था। विपक्षी कमजोर तो पड़ गया लेकिन सहानुभूति की एक लहर सी चल निकली थी। पासा उल्टा पड़ता दिख रहा था। सहानुभूति और सत्ता के बीच संघर्ष का अपना अलग लोकतांत्रिक इतिहास है। सत्ता सुन्दरी जितनी सुन्दर है उसे पाना उतना ही कठिन।
सड़ी गली उबड़ी कुबड़ी गंधाती महकती जनता को शासित करने के लिए उनके कंधो पर ही चढ़ना पड़ता है। काल के इस दौर में लोकप्रियता ईमानदारी से नहीं प्रलोभन से मिलती है। तिल बाड़ी में जाफरानी खुशबू वाला गोस्त अच्छे अच्छो का ईमान डिगा रही थी। दावते तख़रीर में लज़ीज बिरियानी का लुत्फ लोग छक कर ले रहे थे। अमा ….मिया इतना लजीज मटन बिरियनी बिरियानी आज तक नहीं खाया थोड़ा और सालन देना कादिर भाई प्लेट खिसे निकालते हुए प्लेट आगे बढ़ाए थे….अरे चचा आप भी नाहक खिंचाई कर रहे हैं कितना खा कर फेंक दिए और अब……दो भई कलिम…बबन दुबे कहते हुए आगे बढ़ गये थे। वैसे तो यह दावत मुस्लिम मतदाताओ के लिए था लेकिन इसे तक़रीर का शक्ल दिया गया था। जाहिर है तक़रीर है तो मुस्लिम आवाम ही हिस्सा लेगी। इसलिए दावत ने अंत में सभा का शक्ल ले लिया था जिसमें ज़कात के नाम पर पुरुषों को कंबल और महिलाओं को साड़ी बांटा जा रहा था बबन दुबे एक किनारे कुर्सी पर बैठ गये थे लोग कतारो की शक्ल में आ रहे थे। तभी इमाम के नेतृत्व में कुछ लोग आए…..महराज हमारा विश्वास है आपकी शागिर्दी में कलिम अच्छा काम करेगा। हमने अंजुमन कमेटी नें कलिम को वोट देने का फैसला भी लिया है…..लेकिन….लेकिन क्या बात है….बबन दुबे थोड़ा़ सकपकाए थे। बबन बाबू मोहल्ले में आपकी फज़ल से मोहल्ले में सब कुछ तो है लेकिन एक ही समस्या है जो आप चाहे तो पूरी कर सकते हैं।
हां-हां कहिए न….।
दुबे जी हम लोगो को रोजा नमाज की बड़ी परेशानी हो जाती है। मस्ज़िद इतना दूर है कि अजान भी सुनाई नहीं देता है। अल्लाह की फज़ल से शौकत बाबू ने मदरसा के लिए जगह दे दिया तो बच्चों को दिन-ए-इलाही की तालिम के लिए आराम हो गया है। अगर आप चाहे तो मोहल्ले में एक मस्जिद भी बन जाएगा। अल्ला ताला की मेहरबानी से आपको कोई कमी भी नहीं है। मोहल्ले भर के चचा जहुर भाई जब बोल रहे थे तो उनकी हाजी दाढ़ी थर-थरा रही थी।
चचा आप एक दम सही कह रहे हैं लेकिन इसमें मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूं आपका मतलब नहीं समझ पाया….बबन दुबे थोड़ा सकते में आ गये थे।
हज़रत चौगड्डे पर आपकी जमीन का एक टुकड़ा है। जहां लोग कचड़ा फेंकते हैं अगर आप उसे कमेटी के नाम कर देते तो….वैसे यह तख़रीर के लिए कोई सौदा नहीं है। वोट डालने के लिए हम कोइ शर्त भी नहीं रख रहे हैं लेकिन….यदि यह हो जाता तो आने वाली नस्ल आपको हमेशा याद रखेगी। बात धीरे-धीरे वहां मौजू़द लोगों के बीच फैल गई थी। लोगों के बीच काना फुँसी होने लगी थी। सब एक स्वर में बोल रहे थे। बात मजहब की आई तो कलिम भी सब की हां में हां मिलाने लगा था। धर्म को मुद्दा बनने में ज्यादा समय नहीं लगता है। चारो ओर से दबाव बनने लगा था। बबन दुबे दिक्कत में फंस गये थे उनकी स्थिति सांप छछूदंर वाली हो गयी थी। न उगलते बन रहा था न निगलते उगलो तो अंध निगलो तो कोढ़ी…….।
भईया छोटा सा दांव है खेलने में कोइ हरज नहीं होगा…….इन लोगों ने यदि चाह लिया तो जीत से कोई रोक नहीं सकता। चारो ओर से दबाव बनता देख बबन दुबे ने भू-खंड दान करने की घोषणा कर दी थी। बात यहां तक बढ़ी की आनन-फानन में बैठक बुला कर इस विषय में गंभीर चर्चा की गई और जमीन अंजुमन कमेटी के नाम से रजिस्टर्ड कर दी गयी।
चुनाव के दिन भारी मात्रा में मतदान हुँआ अंत में जीत बबन दुबे की ही हुई….कलिम चुनाव जीत गया। कलिम अब बबन दुबे का खास मुलाजिम बन गया था। सत्ता हमेशा की तरह पूँजी की चेरी बन कर रह गई थी। कलिम के भीतर भी परिवर्तन दिखने लगा था। अब वो जहां भी जाता गुड्डन, लल्लन, फुग्गी उसके आगे-पीछे घुमते थे। प्रायमरी स्कूल के अध्यापक वेतन पत्रक में हस्तक्षर कराने के लिए दरवाजे की मिट्टी कोड़ते नजर आते थे। उचित मूल्य की वार्ड के चारो सरकारी दुकान वाले दो सौ रु नियमित कलिम की नज़र किया करते थे। मोहल्ले की काली गेजेदार नालियां की बज-बजाहट समय के साथ बढ़ गई थी। किचड़ से सना हुँआ सूरज जब वार्ड क्रमांक 24 में निकल रहा होता तो उसकी मुलाकत अजान करने के लिए हड़बड़ी में दौड़ते ऊँचे पांयचे वाले मुवज्जीन से जरुर होती थी। अजान से कुछ लोगो के नींद में खलल पड़ती तो कुछ लोग उसी बहाने उठ कर हाजत के लिए निकल पड़ते थे।
-डा.नीरज वर्मा
मायापुर अम्बिकापुर
8109885593
वार्ड क्रमांक 24 राजनीति के चालबाजियों को लेकर गुँथी गई लाजवाब कहानी है।
लेखक व प्रस्तुत कर्ता को हार्दिक बधाई।
सादर धन्यवाद वर्मा भैया
बहुत धन्यवाद भाई
बहुत धन्यवाद भाई