बाल साहित्य (कविता संग्रह):एक घोंसला चिड़िया का -प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

एक बाल साहित्य (कविता):एक घोंसला चिड़िया का

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

“एक घोंसला चिड़िया का” नामक पुस्तक में बच्चों के लिए चालीस कवितायेँ हैं । कवि प्रोफेसर रवीन्द्र प्रताप सिंह ने जीव जन्तुओ , प्रकृति और बाल भावों को केंद्र में रखते हुए बाल पाठकों के लिए सार्थक और रोचक पाठ प्रस्तुत किये हैं।”

ek ghosala chidiya ka
ek ghosala chidiya ka

1.बॉलकनी में नया घोंसला

बॉलकनी में नया घोंसला ,
देखो उसमे चिड़िया आयी।
जाने कहाँ कहाँ से जाकर
नरम घास के रेशे लायी।

उसको मालूम है की बच्चे
उसे दोस्त ही मानेगें ,
जब वह उसमे सोयेगी ,
वो बिलकुल नहीं जगायेंगे।
जब होंगे नन्हे बच्चे तो ,
उसके पास भी खेलेंगे ,
ये सोचकर चिड़िया ने
आज घोंसला वहाँ सजाया।

2.कौआ बच्चों से रोज़ सवेरे

दाना खाने आता है।
बच्चा उसका दोस्त पुराना ,
दाने लाकर देता है।
दोनों होते खुश मिलकर यूँ,
अपनी अपनी बात बताते ,
रोज़ खेलते खुश होते
फिर अपने कामों में लगते।

3.नाच रही हैं तितलीं

ये क्यों नाच रही हैं तितलीं,
फूलों के ऊपर कितनी।
लहरा लहरा फूल हवा में
झूम रहे हैं धुन में अपनी।
ऐसे ही चलता रहती है ,
राग दोस्ती फूलों की।
आती तितली रोज़ हवा में ,
फूलों के ऊपर कितनी।

4.दिन हैं कितना आज सुहाना

मोर आज तोते संग आया ,
वहाँ गिलहरी भी बैठी थी।
मूंगफली के कितने दाने ,
बच्चों ने बिखराये थे।

दाने खाकर खुश थे चारों ,
मुस्काते चर्चा में लगते ,
कहते क्या काम उन्हें करने ,
दिन भी कितना आज सुहाना।

5.आये पक्षी बहुत दूर से

उड़ते उड़ते आये पक्षी बहुत दूर से
लिए कहानी ,गीत ये कितने दूर दूर के।
देखा हैं जा जा धरती पर ,
रहते हैं कैसे लोग कहाँ।
किसकी कैसा जीवन यापन ,
किसकी कैसी दिनचर्या।
किसके कैसे समाज हैं ,
किसके कैसे स्कूल और घर।
पक्षी ये उड़ते रहते हैं ,
सुन सुन कर लोगों की बातें ,
खुश होकर चलते रहते हैं।

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