
फेसबुक के फैशन-
आजकल फेसबुक म फुसियाना मन खुसियाना रखे के सबले बड़का अउ सस्ता साधन होगे हे। अपन फेस ल बुक बनाके टेस मारत ऐब छिपाए म ही समझदारी हे। समे के संग कदम मिलाके चलना अउ जमाना म रंग जमाना ही अकलमंद के पहिचान हे। मैं एक सच्चा मरद किसम के मरद हरौं। नारी परानी मन बरोबर घुटना म दिमाक नइ रखौ भलकुन भूँसा भरे भेजा म सौ टका टनाटन दिमाक रखे के भरम पाल रखथौं। महूँ काबर पीछू रहौं। झट एकाउण्ट बनाके अपन फुसियाहा बिलवा फेस ल नवा लुक देके बुक कर देंव। जल्दी के काम सैतान के – ए हाना ह अबूझ, बयकूप अउ गँवार मन के थोथना ले झरके सोभा देवत होही। हमर तो एके सिध्दांत हे – पहली आवव पहली पावव। चाहे कोट -कोट ले खाए के मामला होवय चाहे कुट -कुटले कुटाय के – सिंघ्दात बोले तो सिध्दांत।
फेसबुकिया कवि –
उहाँ कतको लपरहा, चटरहा, चिटियाहा, चिपरहा टूरामन कवितई झाड़त मिलिन। हमर इहाँ बबा हँ डोकरी दाई ल हाना म ताना मारय। ओला नान्हेपन म सुने रहवँ। तुक मिलावत -मिलावत महूँ गजब बड़ कवि होय के भरम पाले बइठे रहेंवँ। भड़ास निकाले के जगा पाके महूँ भड़ौनी गाए लगेवँ। अइसे तो मोर मन कविता के सधन वन हरे। एक विचार ल हलाथौं हजार कविता झरे -बोहाए लगथे। एक ठन पेड़ ल हलाके एक कविता झर्राएवँ-
सजना/सज ना/जलन लगे/जल न लगे/जिया न परे/ जियान परे/ जीए बर/जीए जावत हौं/ जी ! ए जावत हौं।
नौसिखिया मनके फुल कमेंट मिलिस बाॅस। घाघ मन तो जनमजात जलनकुकड़ा होथे। उन्कर मनके सदाबहार कैक्टस कभू ककरो बड़ई बर कोंवर होबे नइ करय। मैं अपन आप ल बिगबाॅस समझे -माने म चिटको देरी नइ करेवँ। समझदार मनखे ल सुभ काम म देरी करना भी नइ चाही। अउ जादा नहीं त कम से कम अतका समझदारी तो मोर तीर हावय। अइसे मैं जनम से समझदार हौं। ओकर बाद मैं का नइ करेंव -झन पूछ। तुम पूछिहौच काबर- मोला बताए बर खुदे लकर्री छाए हे।
फेर का होइस ! कविता के नाम म उत्ता-धुर्रा चुटकुला पेले लगेंवँ। ककरो कविता ल चोराके मोर ए कहिके ढीलेंव। अइसने -वइसने करत कतको झन के गारी -गुप्तार, उलाहना झेलेंव। फेर हार नइ मानेवँ, ओला गला के हार बना लेवँ। मनखे ल सीखना चाही कि वो अपन कमजोरी ल ताकत बनावय, जइसे मैं बनाएवँ। नकटा पर गेंव। कतको झिन कूटे बर घलो तियार रिहिन, महीं मेंछरा देंवँ। आखिर म मोर कवि मन अउ कविता फेसबुक म बसियाए – फुसियाए लगिस। अतका तिकड़म करके घलो फेसबुक के सहारा ककरो दिल ल बुक नइ कर सकेंव। एकर ले बढ़के भला भोला -भाला, भला, ईमानदार अउ सादा -सच्चा मनखे होए के का प्रमाण हो सकथे।
का -का उदिम -अतलंग नइ करेवं। हफ्ता म दूदी पइत फेसियल कराएवं। जिंहा जाववँ सेल्फी लेववँ। सेल्फी के चक्कर म सेल्फिस होगेवँ। आखिर म फिस बनके रहिगेवँ। गत उही होइस जो सत हे। मछली जल के रानी हे, कतको धो बस्सानी हे।
वइसनेहे वाट्सएप –
फेसबुक म गदफद -पचपच ले फुसियाए -बस्साए के बाद वाट्सएप कोति भाग अजमाए बर भागेंवँ। भाग भरोसा जीयइया -खवइया मनखे मनके आसरा- भरोसा गजब पोठ होथे। ए अलग बात हे के ककरो भाग पातर- पनियर त ककरो मोठ होथे। आसरा के मामला म मैं बिलकुल ढुलमुलहा बिन पेंदी के लोटा हौं। मतलब न एकदम रिंगी -चिंगी, पातर- पनियर हौं, न बने दमदम ले रोंठ, मोठ न पोठ हौं। हाँ, गोठ -गोठ बजूर हे। गोठ -गोठ माने गोट्ठू गिल्ली बरोबर -फोदल्ला। गोट्ठू गिल्ली माड़े म फदामा अउ मारे के बेरा छदामा। डिक्टो वइसनेहे मैं पोठ-पोठ, मोठ-मोठ, गोठ-गोठ भर म अँटियाथौं-सोंटियाथौं। असल बूता के बेरा करमछड़हा गोट्ठू- गिल्ली कस बोचक जथौं। अइसे मनखे ल गोठ म कमी नइ करना चाही। बोचकना- बाचना तो बेरा -बखत के बात ए। काबर के ’बात -बात म बात बनै, बात -बात म लात तनै’ कहे जाथेे।
ए किसिम ले हुसियार मनखे ल घात लगाके बात के अघात करना चाही अउ जिनगी के खुसियार चुहक रसा ले लेना चाही। जब पातर मुँह के छोकरी बात करे गंभीर त कुंदरू मुँह के छोकरा हर बात म भाला तीर – काबर नइ कर सकत हे। कोनो ल आपत्ति भी नइ होना चाही।
वाट्सएप म घला एक ले बढ़के एक साहित्यकार –
वाट्सएप म देखेवँ, उहों एक ले बढ़के एक साहित्यकार ग्रुप बने हे। नौसिखियामन पकर -पकर मारत रहय। सठियाहा मन उन्कर तुकबंदी -लंदी -फंदी कविता मनके सटर-पटर म लगे रहय। उन्करो फटे म धीरे से अपन एक टाँग ल घुसेर देवं। उप्परवाले जब टाँग दिए हे त ओकर सदुपयोग तो होना चाही न। टाँग ल टाँगके रखना बयकूप, डरपोकना अउ लिज्झड़ मनके काम ए। हम तो सीधा टाँग घुसेरे अउ अँड़ाए के काम करथन। सट्टे कविता भेज देंव –
मोर कमीज/बदतमीज/झाँके बोड्डी/देखे चड्डी/देखे बदतमीज/मोर कमीज
एमा घाघ, नौसिखिया, घाघ नौसिखिया अउ नौसिखिया घाघ सबो के कमेंट आइस, बड़े-बड़े इमोजी के संग। मोर एक झिन जुन्नेटहा नंगराहा चड्डियाहा संगी हे। नंगराहा ए सेति काबर के हमन जब ले नंगु-चंगु रहेन तब ले संगवारी हवन अउ चड्डियाहा ए सेति काबर के हमर जमाना म लंगोट नइ रिहिस, हम सीधा चड्डीधारी होएन। इतिहासकार मन चाहय त हमर नाम ल चड्डीधारी गिरोह के प्रवर्तक के रूप म निस्संकोच स्वर्णाक्षर म लिख सकत हे।
वाह ! वाह !! गज्जब। - चड्डीयाहा संगी लिखिस। का बकथस यार ! - मैं होश म जोसियाएवं। अबे ! हर बखत फकत बकत नइ राहौं मैं। कभू कभार मोर भूँकई ल घलो पतिया ले कर। - चड्डीयाहा चंगिया -जंगिया के कहिस। मैं फूलके हाउसफुल होगेवं। मोर टें टें देख कतको झन के टाँय टाँय फिस्स होगे। साहित्य जगत म कैक्टस के घनघोर जंगल उग आइस।
वाट्सएप म कवि अउ कवितई-
ग्रुप म एक झिन कका किसम के कवि रिहिस। वो अपन आप ल गजब बड़ समीक्षक समझै। वो अपन आप ल समीक्षक भर समझै, कविता ल नइ समझै। अइसे कतको मनखे होथे जउन हर बात के मतलब समझथे फेर मतलब के बात नइ समझै। वो मोर असन महाकवि के कविता म मीन मेख निकाले लगिस। एक दिन झाड़ देवं –
कका ! कुकुर कर्कस कुँकियाए/मोर बढ़त/देख न पाए/नीच/देखाए
कका समीक्षा तो समीक्षा कविता कहानी पढ़े-लिखे बर छोड़ दिस। सोचिस होही – जा रे ! परलोकिया !! तोर जातरी आए हे तेला कोन काय करही ! अपन रूच भोजन पर रूच सिंगार ! धर अपन कविता, अपने मुँह म मार।
मोला कुछू फरक नइ परिस। मैं तो एकला चलो म विश्वास करथौं। खाए के बेर अकेल्ला चलो, गँवाए के बेर पीछल्ला।
एक दिन अइसे आइस के मैं अपने ताने साहित्य जगत के जाने- माने गोल्ल्र होगेवं। कोनो जानय-मानय के नही तेला नइ जानवँ, फेर मैंह जानत, मानत अउ तानत रहेवँ। ग्रुुप म एक झिन चिपरीमुँहा टेटकी कवियित्री मिलिस जउन मोर कविता के गजब दीवानी रहय। वोकर खातिर अपन छप्पन इंची छाती म छिपे छुटकन दिल ले ए कविता पेलेवं –
अबक तबक सबक चटक मटक फटक खटक सटक गटक चहक महक बहक रट फट चट पट खोल मन के पट मत हट झट सट
मामला फिट होगे। काम सलटे लगिस। काया पलटे लगिस। हम दूनो मिल ज्वाइंट एकाउण्ट खोल लेन। अब हमन अपन अलग ग्रुप बना ले हवन, जेकर एडमिन मैं अउ चिपरी दूनो झिन हवन। ग्रुप बिंदास चलत हे। हमर कविता म सबो चेला -चपाटी मनके कमेंट आथे। हमन ककरो कविता म कमेंट नइ करन। हमार मन म उगे बंबरी के काँटा हँ हमन ल कमेण्ट करे बर रोकथे। ग्रुप के सरगना होए के इही एक फायदा होथे। साहित्य म घलो घाघ होना कोनो साधना ले कम नइ होवय।
फेसबुक, वाट्सएप, कवि अउ कवितई के अपने मजा हे । फेसबुक मा होय के वाट्सएप मोला अपन कवितई करना हे । वाह रे फेसबुक, वाह रे वाट्सएप, फेसबुक वाट्सएप के कवि अउ कविताई, फेसबुक अउ फेसबुक म कविता अपन अलगे मजा हे ।
-धर्मेन्द्र् निर्मल ग्राम पोस्ट कुरूद भिलाईनगर] जिला दुर्ग छ.ग. 490024 9406096346