प्यार, रोमांस और आनंद उत्सव का लोकगीत:फागगीत
-रमेश चौहान
परिचय:
भारतीय लोक गीत भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिबिंब हैं। यह प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है, और क्षेत्र के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने में गहराई से पिरोया हुआ है। ऐसा ही एक भारतीय लोकगीत फागगीत है, जिसे होली के अवसर पर गाया जाता है ।
फागगीत का इतिहास और उत्पत्ति:
फागगीत एक प्रकार का पारंपरिक लोक गीत है जिसकी उत्पत्ति भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में हुई थी। यह आमतौर पर वसंत के मौसम में गाया जाता है, और होली के त्योहार से जुड़ा होता है। फागगीत का संबंध भगवान कृष्ण से है । कृष्ण और गोपियों के मध्य हास्य-परिहास को इन गीतों में पिरोया जाता है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि फागगीत की उत्पत्ती द्वापरयुग में श्रीकृष्ण के समय से हुआ है ।
फागगीत के विषय-वस्तु और गीत:
फागगीत के गीत आम तौर पर चंचल और विनोदी स्वभाव के होते हैं, जो प्रेम, रोमांस और प्रेमालाप के अम्बर के चारों ओर घूमते रहते हैं। गीत को समूह गान के रूप में गाया जाता है, जिसमें प्रमुख गायक एक पंक्ति गाता है, और बाकी समूह एक कोरस के साथ उस पंक्ति को दुहराते हैं। गीत आम तौर पर स्थानीय बोली में गाया जाता है, और इसमें अक्सर क्षेत्रीय मुहावरे और भाव शामिल होते हैं जो उस क्षेत्र के लिए अद्वितीय होते हैं। गीतों में अक्सर कृष्ण के संदर्भ होते हैं, जो आनंद और उत्सव की भावना से ओत-प्रोत होते हैं।
फागगीत के कुछ उदाहरण-
पारंपरिक फागगीत
चलो हां यशोदा धीरे झुला दे पालना
चलो हो यशोदा धीरे झुला दे पालना
तोर ललना उचक न जाय ।।टेक।।
चलो हां यशोदा काहेन के पालना बनो है,
तोर काहेन लागे डोर ।।1।।
चलो हां यशोदा चंदन, काट पालना बनो हैं
तोर रेशम लोग डोर ।।2।।
चलो हां कदम तरी ठाढ़े भिजगै श्यामरो
चलो हां कदम तरी ठाढ़े भिजगै श्यामरो
केशर के उड़ै बहार ।।टेक।।
चलो हां कदम तरी कै मन के सरगारो हे,
कै मन उडै गुलाल ।।1।।
चलो हां कदम तरी नौ मन के सरगारो हे,
दस मन उडै गुलाल ।।2।।
चलो हां राधा तोर चुनरी के कारन मे
चलो हां राधा तोर चुनरी के कारन मे
कन्हैया ने हो गई चोर ।।टेक।।
चलो हां राधा कोन महल चोरी भयो है,
तोर कोन महल भई लुट ।।1।।
चलो हां राधा रंग महल चोरी भयो है,
तोर शीश महल भई लुट ।।2।।
चलो हां अर्जुन मारो बाण तुम गहि गहि के
चलो हां अर्जुन मारो बाण तुम गहि गहि के,
रथ हाके श्रीभगवान ।।टेक।।
चलो हां अर्जुन कै मारै कै घायल है,
कै परे सगर मैदान ।।1।।
चलो हां अर्जुन नौ मारे दस घायल है,
कई परे सगर मैदान ।।2।।
चलो हां राम दल घेर लियो लंका को
चलो हां राम दल घेर लियो लंका को,
लंका के दसो द्वार ।। टेक।।
चलो हां राम दल काहने के लंका बने हैं,
काहेन लगे किवाड़ ।।1।।
चलो हां राम दल सोनन के लंका बने हैं
चंदन लगे किवाड़ ।।2।।
श्रृंगारिक फागगीत
उदाहरण स्वरूप कुछ छत्तीसगढ़ी श्रृंगारिक फागगीत प्रस्तुत है-
चल हां गोरी, तोर नयना म जादू हे
चल हां गोरी, तोर नयना म जादू हे,
मोला करे बिभारे ।।टेक।।
चल हां गोरी, तोर नयना म का घुरे हे,
अउ का के करथे गोठ।।1।।
चल हां गोरी, तोर नयना म मया घुरे हे,
अउ मया के करथे गोठ ।।2।।
चल हां गोरी, तोर नयना म का लगे हे,
अउ दिखय कोने रंग ।।3।।
चल हां गोरी, तोर नयना म जादू लगे हे,
जेमा दिखय मया के रंग ।।4।।
चल हां मयारुक, तोर मया म बहिया हँव
चल हां मयारुक, तोर मया म बहिया हँव,
जेमा बिगड़े मोरे चाल ।।टेक।।
चल हां मयारुक, कहां जाके मैं लुकॉंव,
अउ कहां पावँव चैन ।।1।।
चल हां मयारुक, तोर गली म जाके लुकॉंव,
अउ तोर दरस म पावँव चैन ।।2।।
चल हां मयारुक, मोला काबर नई लगय पियास,
अउ काबर नई लगय भूख।।3।।
चल हां मयारुक, तोर दरस बिन नई लगय पियास,
अउ मिलन बिन ना लागय भूख ।।4।।
फागगीत में प्रयुक्त वाद्य यंत्र:
गीत की विशेषता इसकी उत्साहित, चंचल गति है। इसे आमतौर पर पारंपरिक भारतीय ताल वाद्य यंत्र ढोलक और मंजीरा के साथ गाई जाती है। कई स्थानों पर फाग गीत क लिए बनाए गए विशेष वाद्य्ययंत्र नंगाड़ा, जो मिट्टी से बने तबला जैसा किन्तु तबला से काफी बड़ा होता है से गाया जाता है । वाद्य यंत्रों की जीवंत लय के साथ गीत की चंचल गति, इसे एक उत्सवपूर्ण और ऊर्जावान बनाती है, जिससे सुनने वाले फागगीत पर थिरकने के लिए मजबूर हो जाते हैंं।
फागगीत का सांस्कृतिक महत्व:
फागगीत उत्तर प्रदेश के साथ उत्तर और मध्य भारत में एक अत्यधिक लोकप्रिय लोक गीत है, जो होली के समय विशेष रूप से गाया जाता है । इसे विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों समारोहों के दौरान भी प्रस्तुत किया जाता है। यह पेशेवर लोक गायकों द्वारा भी प्रदर्शित किया जाता है । इस गीत के माध्यम से सामाजिक समरसता का संदेश दिया जाता है ।
फागगीत की उत्पत्ति भारत के प्राचीन परंपराओं में देखी जा सकती है। इसका संबंध भगवान कृष्ण से होने के कारण बहुसंख्यक समाज का एक भजन का रूप भी है, जिसे लोग आस्था से गाते एवं सुनते हैं । इसके बाद भी फागगीत में अनेक धर्मो के लोग बड़े ही उत्साह से भाग लेते हैं, इस प्रकार यह सहिष्णुता एवं धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक भी है ।
फागगीत के संरक्षण में चुनौतियां:
फागगीत के इतने लोकप्रियता के बावजूद भी इसके खो जाने का खतरा बना हुआ है । जैसे-जैसे भारत का आधुनिकीकरण और शहरीकरण हो रहा है, वैसे-वैसे फागगीत जैसे पारंपरिक लोक गीत तेजी से हाशिए पर जा रहे हैं। बहुत से युवा आज पश्चिमी शैली के संगीत और पश्चिमी संस्कृति में अधिक रुचि रखते हैं, और अपने पूर्वजों के पारंपरिक लोकगीत से दूर हो रहे हैं।
फागगीत के संरक्षण में चुनौतियों से उबरने के उपाय :
फागगीत और अन्य भारतीय लोक गीतों की परंपरा को बनाए रखने के लिए, यह आवश्यक है कि लोग इसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी इन परंपराओं को जारी रखें। लोकगीतों का संरक्षण अनौपचारिक साधनों के माध्यम से किया जा सकता है, जैसे पारिवारिक समारोहों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में इन गीतों को गाना। इसे औपचारिक शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से भी संरक्षित किया जा सकता है, जो बच्चों को इन गीतों के इतिहास और महत्व के बारे में सिखाए।
हाल के वर्षों में, भारत में युवा लोगों के बीच भारतीय लोक संगीत में रुचि बढ़ रही है। इससे फागगीत जैसे पारंपरिक लोकगीतों का पुनरुत्थान हुआ है। अब कई संगठन और सांस्कृतिक समूह हैं जो भारतीय लोक संगीत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने और इन परंपराओं को व्यापक दर्शकों तक पहुंचाने के लिए समर्पित रूप से कार्य कर रहे हैं।
निष्कर्ष:
अंत में, फागगीत भारतीय लोक संगीत का एक अनूठा और महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी चंचल और उत्साहित धुन, इसके विनोदी गीतों के साथ मिलकर इसे एक आनंदमय और उत्सवपूर्ण गीत बनाते हैं जिससे लोग इस गीत में झूमने लगते हैं। लोगों को इस महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परंपरा को संरक्षित और बढ़ावा देना जारी रखना महत्वपूर्ण है, ताकि आने वाली पीढ़ियों द्वारा इसका आनंद लिया जा सके।