फागुन के रंग छंद कविता के संग

फागुन के रंग छंद कविता के संग-

फागुन के रंग छंद कविता के संग

फागुन के रंग छंद कविता के संग म ही होथे काबर के फागुन उमंग मस्‍ती अउ उत्‍साह के मादक नशा ले बउराये रहिथे । हालाकि एके दिन के होली तिहार होथे फेर ये तिहार के शुरूवात बसंत पंचमी ले शुरू होके चइत एकम तक होते । ये ढंग ले फागुन महिना के शुरू होय के 10 दिन पहिली माघ शुक्‍ल पंचमी यने बसंत पंचमी ले शुरू होके फागुन महिना सिराये के बाद चइत के शुरू दिन होली के तिहार मानाये जाथे । 

फागुन के परिचय कोनो महिना ले न होके एक उत्‍साह परब अउ बसंत ऋतु ले होथे । ये परब ल सब रंग के परब जानथें अउ मानथें । जउन प्रकार के रंग हा रंग-रंग के होथे ओइसने फागुन के मजा घला रंग रंग के होथे । फागुन ह नाचे गाये अउ खुशी मनाये के परब आये ।

छत्‍तीसगढ़ के पारम्‍परिक फाग गीत-

नाचब-गावब का गीत कविता के बिना हो सकत है का ?  ये प्रकार फागुन गीत-कविता के परब आय ।  हालाकि भारत देश के अलग-अलग क्षेत्र मा होली म गाये के अलग-अलग नाम के गीत गाये जाथे । हमर छत्‍तीसगढ़ मा ये गीत मन ला फाग गीत कहे जाथे ।

फाग गीत अउ ओखर साज-बाज-

फाग गीत एक गायकी प्रधान विधा आय जेला सुन के कोनो भू झूमे लगथें । अइसे फाग गीत गायकी विधान के अनुसार दादरा ताल निबद्ध होथे फेर ऐखर अन एक लय, गति अउ पहिचान होथे । फाग गीत के अपन खुद के अलग साज-बाज मजलब वाद्य यंत्र घला होथे जेमा प्रमुख हे नंगड़ा अउ टिमकी येखर बिना फााग के कल्‍पना नई करे जा सकय । पहिली के मनखे चिकारा संग फाग गीत गात रहिन हे । आजकल घला कोनो-कोनो मेरा ऐखर उपयोग देखे जा सकत हे । आज-काल  हारमोनियम केसियो के उपयोग घला फागगीत म होय लगे है फेर जादातर पारम्‍परिक रूप म केवल नंगाड़ा, टिमकी, ढोलक-मादर संग फाग गीत जादा गाये जाथे ।

फाग गीत के विषय वस्‍तु-

छत्‍तीसगढ़ी फाग गीत के मुख्‍य विषय वस्‍तु राधा-कृष्‍ण के उपासना होथे । कृष्‍ण के रास लीला फाग गीत म प्रमुख होथे । थोर-बहुत राम भगवान के स्‍तुति के घला फााग गीत गाये जाथे । रस अलंकार के पक्ष ले देखी त फाग गीत संयोग श्रृंगार प्रधान होथे । भगवान कृष्‍ण अद राधा के निश्‍चल प्रेम के वर्णन ला ही फाग गीत कहे गे हे । हालाकि समय के अनुसार फाग गीत म अब संसारिक श्रृंगार गीत के मात्रा बाढ़त जात हे ।  इहां तक के गुरहा फाग के नाम अश्‍लील गीत घला थारे-बहुत गाये जाथे । भजन-स्‍तुति, मया-प्रेम के रस ले फाग गीत सरोबर होथे । ये फाग गीत म मया-प्रेम के एक बानगी देखव-

पारम्‍परिक फाग गीत

कोने रंग लगांंव, कोनेे रंग लगांंव
कोने रंग लगांंव, आसो के होरी मा ।

कोने अंग पिऊरा रे, कोने अंग लाल
कोने अंग लाल
कोने अंग हरियर रे, कोने अंग गुलाल
कोने अंग गुलाल
कोने रंग लगांव, आसो के होरी मा ।

पिऊरा रंग ले, तोला पिऊरावंव
के मांघ सजावंव लाल
माघ सजावंव लाल
हाथ हरियर चूरी कस, ओठ गुलाबी गुलाल
ओठ गुलाबी गुलाल
कोने रंग लगांंव, आसो के होरी मा ।

रंग-रंग के हाथ मा, धरे हंंव गुलाल
धरे हंव गुलाल
तोला रंगे बिना रे गोरी,  कइसे  मोर तिहार
कइसे मोर तिहार
कोने रंग लगांंव, आसो के होरी मा ।
-रमेश चौहान

फागुन के बयार मा कवि मन बयाये रहिथे-

देश के अइसे कोन कवि होही जउन होली, फागुन ऊँपर कविता नई लिखे होही अउ अइसे कोन मनखे होही जउन ये होरी म कोनो न कोनो गीत कविता नई गुनगुनाये होही । फागुन के बयार मा कवि मन बयाये रहिथे ये लव ये मौका म येहू ल गुनगुनाव-

चारो कोती छाय, मदन के बयार संगी (रोला छंद)-

चारो कोती छाय, मदन के बयार संगी ।
मउरे सुघ्घर आम, मुड़ी मा पहिरे कलिगी ।।
परसा फूले लाल, खार मा जम्मो कोती ।
सरसो पिउरा साथ, छाय रे चारो कोती ।।

माते हे अंगूर, संग मा महुवा माते ।
आनी बानी फूल, गहद ले बगिया माते ।।
तितली भवरा देख, मंडरावत बड़ भाते ।
होरी के गा डांग,  फाग के गीत सुनाथे ।।

पिचकारी के रंग, मया ले गदगद लागे ।
हवा म उड़े गुलाल, प्रेम के बदरी छागे ।
रंग रंग के रंग, देख मुह लइका भागे ।
मया म हे मदहोश, रंग के नसा म माते ।।
होवय जिहां ग फाग, धाम बृज कस हे लागे ।
दे बुलऊवा श्‍याम,, संग मा राधा आगे ।
राधा बिना न श्‍याम, श्‍याम राधा के होरी ।
 हवय समर्पण प्रेम, नई होवय बर जोरी ।।

राधा के तै श्‍याम, रंग दे अपन रंग मा ।
खेलव होरी रास, श्‍याम रे तोरे संग मा ।
तै ह हवस चितचोर, बसे हस मोरे मन मा ।
महु ला बना ले गोप, सखा तै अपन मन मा ।।

सरसी छंद म जोगीरा सराररा होली गीत के पर्याय-

ब्रज अउ अवध के होली जोगीरा सराररा के बिना पूरा नई माने जोय । छत्‍तीसगढ़ी ल ब्रज बोली के बहिनी कहे जाथे  ये पायके येखर प्रभाव तो येमा होबे करही जोगीरा सराररा  ले शुरूआत करत चुहुलबाजी अउ चुटिला  ब्‍यंग के बानगी ये पिरोये जाथे-

जोगीरा सराररा मउरे आमा ममहावय जब, नशा म झूमय सॉंझ-

मउरे आमा ममहावय जब, नशा म झूमय साँझ ।
फाग गीत मा बाजा बाजे, ढोल नगाड़ा झाँझ ।।
जोगीरा सारा रारा ..
जोगीरा सारा रारा ..

सपटे सपटे नोनी देखय, मचलत हावे बाबू ।
कइसे गाल गुलाल मलवं मैं, दिल हावे बेकाबू ।
जोगीरा सारा रारा ..
जोगीरा सारा रारा ..

दाई ल बबा हा कहत हवय, डारत-डारत रंग ।
जिनगी मोर पहावत जावय, तोर मया के संग ।।
जोगीरा सारा रारा ..
जोगीरा सारा रारा ..

भइया-भौजी खेलत होरी, डारत रंग गुलाल ।
नंनद देखत सोचत हावय, कब होही जयमाल ।।
जोगीरा सारा रारा ..
जोगीरा सारा रारा ..

होली हे होली हे होली, धरव मया के रंग ।
प्रेम जवानी सब मा छाये, सबके एके ढंग ।।
जोगीरा सारा रारा ..
जोगीरा सारा रारा ..

सवैया म होरी गीत –

होरी गीत गीत अउ कविता के कोनो भी विधा म लिखे मिलथे फेर जाथा रचना सवैया म मिलथे । ये छंद विधान के महत्‍वपूर्ण छंद हे जउन गेय होय के कारण आसानी ले गीत के लय बाट म बइठ जथे । ये देखव सवैया म होरी गीत-

नाचत गात मनावत होरी (सवैया)-

ढोलक मादर झांझ बजावत
हाथ लमावत गावत फागे।
मोहन ओ छलिया नट नागर
रास रचावव रंग जमाके ।
आवव आवव भक्त बुलावत।
गावत फाग उडावत रोरी ।
फागुन मा रसिया रस लावत
नाचत गात मनावत होरी ।।


हे सकलावत आवत जावय
छांट निमार बनावत टोली ।
भांग धरे छलकावत जावत
बांटत बांटत ओ हमजोली।
रंगत संगत के दिखथे जब
रंग लगाय करे मुॅह-जोरी
छोट बड़े सब भेद भुलावत
नाचत गात मनावत होरी ।।


हाथ धरे पिचका लइका मन
रंग भरे अउ मारन लागे ।
आवय जावय जेन गलीन म
ओहर तो मुॅह तोपत भागे ।
मारत हे पिचका मुॅह ऊपर
ओ लइका मन हा बरजोरी  ।
आज बुरा मत मानव जी कहि
नाचत गात मनावत होरी ।।


हाथ गुलाल धरे दउडावत
नंनद देखत भागत भौजी ।
भागत देखत साजन आवय
रंग मले मुॅह मा मन मौजी ।
रंगय साजन रंग म हाॅसत
लागय ओ जस चांद चकोरी
रंगय रंग दुनों इतरावत
नाचत गात मनावत होरी ।।

फागुन के कविता-

फागुन के गीत जतके महत्‍व के हे ओतके फागुन के गीत घला महत्‍वपूर्ण ।  जइसे फागुन के रंग-रंग के रंग होथे ओइसन फागुन के गीत कविता घला रंग-रंग के कविता शिल्‍प म रंगे रहिथे । त आवव फागुन के रंग कविता संग मनाथन अउ दू-चारठन कविता के मजा लेथन-

होली के उमंग (‍त्रिभंगी छंद)-

हे होली उमंग, धरे सब रंग, आनी बानी,  खुुुुशी भरे ।
ले के पिचकारी, सबो दुवारी, लइका ताने, हाथ धरे ।।
मल दे गुलाल, हवे रे गाल, कोरा कोरा, जेन हवे।
वो करे तंग, मया के रंग, तन मन तोरे, मोर हवे ।।

गावत हे फाग रे (घनाक्षरी छंद)-

आमा मउराये जब, बउराये परसा हा, 
भवरा हा मंडरा के, गावत हे फाग रे ।
झुमर-झुमर झूमे, चुमे गहुदे डारा ल,
महर-महर करे, फूल के पराग रे ।।
तन ला गुदगुदाये, अउ लुभाये मन ला 
हिरदय म जागे हे, प्रीत अनुराग रे ।
ओ चिरई-चिरगुन, रूख-राई संग मिल,
छेड़े हावे गुरतुर, मादर के राग रे ।।

होरी गीत(सार छंद)-

होरी हे होरी हे होरी, रंग मया के होरी ।
अपन मया के रंग रंग दे, ये बालम बरजोरी ।।


मया बिना जग सुन्ना लागे, जइसे  घर धंधाये ।
जतका रंग मया के होथे, मन मा मोर समाये ।।
कतका दिन ले आरूग राखॅव, मया चबेना होगे ।
काली के फूल डोहड़ी हा, फूल कैयना होगे ।
मन के दरपण तैं हा बइठे, करे करेजा चोरी ।
होरी हे होरी हे होरी ........


साटी बिछिया खिनवा मोरे, दिन रात गोहराये ।
ऑंखी के आंजे काजर हा, मोही ला भरमाये ।।
कतका दिन के रद्दा जोहत, बेरा अइसन आये ।
राधा के बनवारी कान्हा, बसुरी आज बजाये ।।
ये मोरे तैं करिया बिलवा, रंग मोर मुॅह गोरी ।
होरी हे होरी हे होरी......

मोर जिनगी हे तोरे (कुण्‍डलियां)-

 तोरे गुरतुर बोल ले, होते मोरे भोर ।।
हासी मुच मुच तोर ओ, टानिक आवय मोर ।
टानिक आवय मोर, मया हर तोरे गोरी ।
जब ले होय बिहाव, मनावत हन हम होरी ।।
रखबे तै हर ध्यान, मया झन होवय थोरे ।
सिरतुन के हे बात, मोर जिनगी हे तोरे ।।
गीत कविता अउ आलेख
-रमेश चौहान

होली गीत 

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One thought on “फागुन के रंग छंद कविता के संग

  1. बड़ सुघ्घर आपके रचना होरी गीत

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