Ganeshji-ki-kathayen-aur-mandir गणेशजी की कथाएं और मंदिर

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गणेशजी की कथाएं और मंदिर

-रमेश चौहान

‘गणेशजी की कथाएं और मंदिर’ नामक इस आलेख में भगवान गणेश के वैदिक महत्‍व, पौराणिक कथाएं, पूजा पद्यति और देश-विदेश स्थित प्रमुख गणेश मंदिरों की चर्चा की गई । आशा ही नहीं विश्‍वास है यह आलेख गणेश भकत और गणेशजी में रूचि लेने वालों के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होगा ।

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प्रस्‍तावना-

भारत में शायद ही कोई ऐसा हो जो गणेशजी की महिमा से परिचित न हो यहॉं का बच्‍चा-बच्‍चा जानता है कि भगवान गणेश प्रथम पूज्‍य है । चाहे वह गृहस्‍थी हो, चाहे वह सन्‍यासी हो, चाहे वह शैव हो, चाहे वह वैष्‍णव हो सभी व्‍यक्तियों, संप्रदायों के द्वारा गणेशजी की प्रथम पूजा की जाती है । चाहे घर का कोई मांगलिक, धार्मिक अनुष्‍ठान हो, चाहे व्‍यपार का प्रारंभ करना हो चाहे अन्‍य कामों का प्रारंभ करना हो हर काम, हर आयोजन के प्रारंभ गणेश जी के पूजन से ही करते हैं यही कारण है कि हमारे समाज में किसी कार्य को प्रारंभ करने के लिये ‘श्रीगणेश करें’  कहा जाता है । इस प्रकार कोई पूजा-पाठ का आयोजन हो या न हो किन्‍तु गणेशजी का नाम हर कार्य के पहले लिया ही जाता है ।

गणेशजी का वैदिक महत्‍व-

हमारे वेद-पुराणों में  गणेशजी की पूजा-अराधना को सबसे पहले ही नहीं सबसे महत्‍वपूर्ण स्‍वीकार किया गया है । इन पावन ग्रंथों के अनुसार महागणपति गणराज को कारणब्रह्म अर्थात सृष्टि के सभी प्रकार के कार्यो एवं रचनाओं का कारण और कार्यब्रह्म अर्थात सृष्टि के सभी प्रकार कार्यो एवं रचनाओं को करनेवाल स्‍वीकार किया गया है । इस गणेशजी को ही उत्‍पत्‍ती, स्थिाति और प्रलय का कारण और करण के रूप माना गया है । शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है।

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गणेशजी का जन्‍म की कथा-

श्रीगणेशजी अजन्‍मा है । गणेशजी मॉं के गर्भ से जन्‍म नहीं लिया है । भगवान गणेश के जन्‍म के संबंध में प्रचलित कथा के अनुसार भी भगवान गणेश का जन्‍म नहीं हुआ है अपितु माता पार्वती ने गणेशजी की देह की रचना अपने शरीर के हरिद्रलेप से की हैं । इस कथा के अनुसार एकबार माता पार्वती स्‍नान करते समय  शरीर में चंदन-हल्‍दी  आदि का उबटन लगाई हुई थी । इसी समय अपने पहरेदारी की कामना से एक मानवाकृति की रचना कर उसे अपने आद्य शक्ति से प्राणवान कर दिये । गणेश जी जो पहले गजमुख नहीं थे, को अपने पहरेदारी का दायित्‍व दिया । बालक गणेश अपने मॉं के के पहरेदारी में द्वार के बाहर खड़े हो गये । उनकी परीक्षा लेने सभी देवता आकर अंदर जाने की चेष्‍टा करने लगे किन्‍तु बालगणेश सभी को पराजीत करते चले गये । अंत में भगवान भोलेनाथ आये उन्‍हें भी बालगणेण द्वार ही रूकने कहा किन्‍तु भोलेनाथ ने कहा यह घर मेरा है मुझे अंदर जाने दो । बालगणेश के नहीं मानने पर भोलेनाथ उनका सिर धड़ से अलग कर दिया । इस माता बहुत ही रूष्‍ट हुई, उनके क्रोध से बचने के लिये इस बालक पुनर्जीवित किया गया इसके उसके धड़ पर हाथी का सिर जोड़ दिया गया । तब गणेश गजानन कहलाने लगे । इस घटना के विद्वानों ने बालक गणेश की रचना पर माता-पिता दोनों की सहयोग से जोड़कर देखते हैं, इस घटना के पहले वह बालक केवल माता की रचना थी, भगवान भोलेनाथ द्वारा उस बालक के धड़ में सिर जोड़ जाने से वह पिता की भी रचना हो गया । इस प्रकार गणेशजी के माता पार्वती एवं पिता भगवान भोलेनाथ को स्‍वीकार किया गया । यह घटना भादो मास के शुक्‍ल चतुर्थी को हुआ था । इस कारण इसी दिन भादो मास के शुक्‍ल चतुर्थी को गणेशजयंती  के रूप में जाना जाता है ।

गणेशजी के प्रथम पूज्‍य होने की कथा-

त्रिदेव ब्रह्मा,विष्‍णु और महेश ने देवों में सबसे पहले किसकी पूजा की जाये यह तय करने के लिये देवताओं के मध्‍य एक स्‍वस्‍थ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया । प्रतियोगिता का शर्त था कि जो देवता पृथ्‍वी के सात प्रदक्षिणा करके वापस आयेगा वही प्रथम पूज्‍य होंगे । सभी देवताओं ने अपने-अपने वाहनों से पृथ्‍वी प्र‍दक्षिण प्रारंभ कर दी किन्‍तु गणेशजी अपने मूषक वाहन में बैठकर अपने माता-पिता भगवान भोले नाथ एवं माता गौरी के प्रदक्षिणा प्रारंभ कर दी । उनसे ऐसा करने का कारण पूछने पर उसने बताया कि माता स्‍वयं धरती की प्रतीक होती हैं और पिता आकाश का प्रतीक होता है । इस प्रकार मैनें धरती और आकश का सात प्रदक्षिण पूरा कर ली है । उनके इस तर्क से त्रिदेव बहुत प्रसन्‍न हुये और गणेशजी को बुद्धि का देवता स्‍वीकार अग्र पूजा के अधिकारी नियुक्‍त किये तब से गणेशजी की सबसे पहले पूजा की जाती है ।

गणेशजी का व्‍यवहारिक महत्‍व-

गणेशजी को प्रथम पूज्‍य मानकर सभी कार्यो के प्रारंभ में गणेशजी की पूजा की जाती है । गणेशजी को बुद्धि के देवता के रूप स्‍वीकार किया जाता है । गणेशजी को विघ्‍नविनाशक के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ हर बाधाओं और कष्‍टों से रक्षा करने वाला होता है । गणेशजी की पत्‍नी रिद्धी और सिद्धी हैं जो धन-धान्‍य और यश-कीर्ति की प्रतीक हैं । इस प्रकार गणेशजी की अराधना से ही रिद्धी-सिद्धी प्राप्‍त किये जा सकते हैं । शुभ और लाभ गणेशजी के पुत्र हैं जो सफलता एवं प्रगति के परिचायक हैं । इसप्रकार मानवजीवन के भौतिक जीवन एवं अध्‍यात्मिक दोनों जीवन के लिये गणेशजी का अराधना सुख-शांति, सफलता-प्रगति, धन-धान्‍य, यश-कीर्ति और मुक्ति का साधन है ।

श्रीगणेशजी का पूजन-पद्यति-

पूजन पद्यति स्‍वयं में वृहद और जटिल भी होता है किन्‍तु यथाशक्ति पूजन करने का विधान बनाया गया है । इसलिये अपने शारीरिक और आर्थिक शक्ति-सामर्थ्‍य के अनुसार भगवान की पूजा जाती है । इसके संक्षेप में दो विधियां प्रचलित है-

  1. पंचोपचार पूजन- इस पूजन पॉंच प्रकार के पूजन सामाग्री से भगवान की पूजा की जाती है । इसके लिये पहले चंदन, गंध, कुंकुम, हल्‍दी आदि मे से कोई एक या सभी, दूसरा पुष्‍प-पल्‍लव भेट करना, तीसरा धूप देना, चौथा दीप और पॉंचवा नैवेद्य चढ़ाना होता है ।
  2. षोडशोपचार पूजन – इस पूजन पद्यति में सोलह प्रकार से भगवान की पूजा की जाती है । इसका क्रमा इसप्रकार है- 1.आव्‍हान करना 2.आसन देना 3. पाद्य देना 4.अर्घ देना 5;आचवन करना 6. स्‍नान कराना 7.वस्‍त्र चढ़ाना 8. उपवस्‍त्र और यज्ञोपवित 9.चंदन, गंध, कुंकुम, हल्‍दी आदि मे से कोई एक या सभी 10.पुष्‍प-पल्‍लव भेट करना 11..धूप देन. 12..दीप 13.नैवेद्य चढ़ाना 14.ध्‍यान-प्रणाम 15. आरती-परिक्रमा और 16. पुष्‍पांजली-क्षमाप्रार्थना ।

गणेशजी मंत्राष्‍टक (आठ मंत्र)-

  1. गणेशजी का बीज मंत्र -”गं”
  2. कामनापूर्ति मंत्र- ‘ॐ गं गणपतये नमः’
  3. षडाक्षर मंत्र -”ॐ वक्रतुंडाय हुम”
  4. उच्छिष्‍ट मंत्र- ”ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वा”
  5. विघ्‍ननिवारण मंत्र-”गं क्षिप्रप्रसादनाय नम”
  6. हेरम्‍ब गणपति मंत्र – ‘ॐ गं नमः’
  7. लक्ष्‍मीविनायक मंत्र- ”ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा”
  8. त्रैलोक्‍य मोहन गणेश मंत्र -”ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।’

गणेशजी के 108 नामनावली-

1. बालगणपति 2. भालचन्द्र 3. बुद्धिनाथ 4. धूम्रवर्ण 5. एकाक्षर 6. एकदन्त 7. गजकर्ण 8. गजानन 9. गजवक्र 10. गजवक्त्र 11. गणाध्यक्ष 12. गणपति 13. गौरीसुत 14. लम्बकर्ण 15. लम्बोदर 16. महाबल 17. महागणपति 18. महेश्वर 19. मंगलमूर्ति 20. मूषकवाहन 21. निदीश्वरम 22. प्रथमेश्वर 23. शूपकर्ण 24. शुभम 25. सिद्धिदाता 26. सिद्दिविनायक 27. सुरेश्वरम 28. वक्रतुण्ड 29. अखूरथ 30. अलम्पता 31. अमित 32. अनन्तचिदरुपम 33. अवनीश 34. अविघ्न 35. भीम 36. भूपति  37. भुवनपति 38. बुद्धिप्रिय 39. बुद्धिविधाता 40. चतुर्भुज 41. देवादेव 42. देवांतकनाशकारी 43. देवव्रत :44. देवेन्द्राशिक 45. धार्मिक 46. दूर्जा 47. द्वैमातुर 48. एकदंष्ट्र 49. ईशानपुत्र 50. गदाधर 51. गणाध्यक्षिण 52. गुणिन 53. हरिद्र 54. हेरम्ब 55. कपिल 56. कवीश 57. कीर्ति 58. कृपाकर 59. कृष्णपिंगाश 60. क्षेमंकरी 61. क्षिप्रा 62. मनोमय 63. मृत्युंजय 64. मूढ़ाकरम 65. मुक्तिदायी 66. नादप्रतिष्ठित 67. नमस्थेतु 68. नन्दन 69. सिद्धांथ 70. पीताम्बर 71. प्रमोद  72. पुरुष 73. रक्त 74. रुद्रप्रिय 75. सर्वदेवात्मन 76. सर्वसिद्धांत 77. सर्वात्मन 78. ओमकार 79. शशिवर्णम 80. शुभगुणकानन 81. श्वेता 82. सिद्धिप्रिय 83. स्कन्दपूर्वज 84. सुमुख 85. स्वरूप 86. तरुण 87. उद्दण्ड 88. उमापुत्र 89. वरगणपति 90. वरप्रद 91. वरदविनायक 92. वीरगणपति 93. विद्यावारिधि 94. विघ्नहर 95. विघ्नहत्र्ता 96. विघ्नविनाशन 97. विघ्नराज 98. विघ्नराजेन्द्र 99. विघ्नविनाशाय 100. विघ्नेश्वर 101. विकट 102. विनायक 103. विश्वमुख 104. विश्वराजा 105. यज्ञकाय 106. यशस्कर 107. यशस्विन 108.  योगाधिप ।

अष्‍टविनायक का महत्‍व और अष्‍टविनायक मंदिर-

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भगवान गणेशजी के अष्‍ट मतलब आठ की संख्‍याा को विशेष महत्‍व दिया जाता है, गणोशाष्‍टक, गणेशा मंत्राष्‍टक आदि इसी प्रकार अष्‍टविनायक का भी महत्‍व है । अष्‍टविनायक का शाब्दिक अर्थ आठ विनायक या आठ गणेशजी होता है । वास्‍तव में संपूर्ण भारत में गणेशजी कि पूजा होती है किन्‍तु महाराष्‍ट्र में गणेशजी का विशेष महत्‍व है  । महाराष्‍ट्र में आठ गणेश मंदिरों का समूह जिसे अष्‍टविनायक के नाम से जाना जाता है । महाराष्‍ट्र के साथ-साथ संपूर्ण भारत के लोग इन अष्‍टविनायक मंदिरों के दर्शन करने आते हैं । लोगों की मान्‍यता है कि एक साथ अष्‍टविनायक मंदिर के दर्शन करने से सभी प्रकार के मनोकामना पूर्ण होते हैं । इन आठ मंदिनों में पॉंच मंदिर महाराष्‍ट्र के पुणे जिले में, दो रायगढ़ जिले तथा एक अहमदनगर जिले में स्थित हैं । इन सभी मंदिरों के प्रतिमों को स्‍वयंभू माना जाता है मतलब ये प्रतिमाएं स्‍वयं प्रकट हुई है, ऐसा स्‍वीकार किया जाता है । ये इस प्रकार हैं –

1. मोरेश्‍वर अष्‍टविनायक मोरगॉंव,पुणे महाराष्‍ट्र–

अष्‍टविनायक में मोरेश्‍वर को प्रथम अष्‍टविनायक माना जाता है । मोरेश्वर का मंदिर एक विशाल किला है। मंदिर काले पत्थर से बना है । इसे बहमनी काल के दौरान बनाया गया था। इस मंदिर के गर्भगृह में मयूरेश्‍वर अष्‍टविनायक की प्रतिमा स्‍थापित जिसके ऑंखें हीरों से जडि़त है । इस मूर्ति के एक-एक ओर रिद्धी और सिद्धी की कास्‍य की प्रतिमा स्‍थापित है । साथ में गणेशजी का वाहन मूषक एवं नागराज की प्रतिमा भी स्‍थापित है ।

2. चिंतामणी अष्‍टविनायक  थेउर, पूणे महाराष्‍ट्र-

चिंतामणी अष्‍टविनायक को दूसरा अष्‍टविनायक माना जाता है । चिंतामणी मंदिर का निर्माण माधवराव पेशवा के वंशज द्वारा कराया गया माना जाता है जिसका विस्‍तार माधवराव पेशवा ने कराया । एक कदंब वृक्ष के नीचे गणेशजी का यह मंदिर स्थित है भक्‍तों चिंता को दूर करने की मान्‍यता इसे चिंतामणी कहा जाता है ।

3. सिद्धिविनायक अष्‍टविनायक सिद्धटेक अहमदनगर महाराष्‍ट्र-

सिद्धविनायक अष्‍टविनायक को तीसरा अष्‍टविनायक माना जाता है । इस मंदिर का जीर्णधार  अहिल्‍या बाई होल्‍कर ने कराया था । यह मंदिर भीमा नदी के उत्‍तर दिशा में स्थित है । यहां के सिद्धविनायक और रंजनगांव के महागणपति के सूंड़ दायीं ओर मुड़ी हुई है  बाकी अष्‍टविनायकों का सूंड बायीं ओर मुड़ी हुई है ।

4. महागणपति अष्‍टविनायक रंजनगॉंव पुणे महाराष्‍ट्र –

महागणपति अष्‍टविनायक को चौथा अष्‍टविनायक माना जाता है । इसे त्रिपुरारीवडे नाम से भी जाना जाता है । यहां के महागणपति और सिद्धटेक के सिद्धविनायक के सूंड़ दायीं ओर मुड़ी हुई है  बाकी अष्‍टविनायकों का सूंड बायीं ओर मुड़ी हुई है ।

5. विघ्‍नेश्‍वर अष्‍टविनायक ओझर पुणे महाराष्‍ट्र –

विघ्‍नेश्‍वर अष्‍टविनायक को पांचवा अष्‍टविनायक  माना जाता है । यहाू की प्रतिमा विशाल इनके नेत्रों में माणीक एवं मस्‍तक पर हीरे जडि़त हैं । यह मंदिर कुकड़ी नदी के तट पर स्थित है ।

6. गिरिजात्‍मज अष्‍टविनायक लेन्‍याद्री पुणे महाराष्‍ट्र-

गिरिजात्‍मज अष्‍टविनायक को छठवां अष्‍टविनायक माना जाता है । यह जुन्नार गुफाओं और कुकड़ी नदी के आसपास के क्षेत्र में पहाड़ी पर स्थित है । इस मंदिर तक जाने के लिये लगभग 400 सीढि़या चढ़नी पड़ती है । इस मंदिर के दीवारो, खम्‍बों में किये गये नक्‍काशी दर्शनीय हैं ।

7. वरदविनायक अष्‍टविनायक महाद रायगढ़ महाराष्‍ट्र –

वरदविनायक अष्‍टविनायक को सातवां अष्‍टविनायक माना जाता है । यह मंदिर एक मठ के रूप में व्‍यवस्थित है । इस मंदिर का निर्माण पेशवा काल के समय कराया गया माना जाता है ।

8.बल्‍लालेश्‍वर अष्‍टकविनायक पाली रायगढ़ महाराष्‍ट्र-

बल्‍लालेश्‍वर अष्‍टविनायक को आठवां अष्‍टविनायक माना जाता है । यह मंदिर पूर्वाभुमुख है । गणेशजी के ऑंख और माथे पर हीरे जडि़त हैं ।

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स्‍वयंभू सिद्ध गणेश मंदिर-

भारत में चार स्वयंभू गणेश मंदिर माने जाते है, जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी प्रथम है।  दूसरा अवंतिका गणेश मंदिर उज्जैन मध्‍यप्रदेश, तीसरा सिद्दपुर गणेश मंदिरगुजरात एवं सिहोर मध्‍यप्रदेश में चौथा स्‍वयंभू सिद्ध गणेश मंदिर स्थित है।

1. त्रिनेत्रगणेशजी, रणथम्‍भौर राजस्‍थान-

राजस्‍थान के सवाई माधोपरु जिले में स्थित त्रिनेत्रगणेश का मंदिर विश्‍वधरोहर में सम्मिलित है । इस प्रतिमा को स्‍वयंभू माना जाता है । याहं गणेजी के तीन नेत्र है । यह एक ऐसा एक मात्र मंदिर जहां गणेश अपने पूरे परिवार रिद्धी-सिद्धी दोनों पत्नियों और शुभ-लाभ दोनों पुत्रों के साथ विराजित हैं ।

2. अवंतिका गणेश मंदिर उज्‍जैन मध्‍यप्रदेश-

मध्‍यप्रदेश के प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर उज्‍जैन से करीब 6 किलोमीटर दूर ग्राम जवास्या में  यह मंदिर व्‍यवस्थित है । भगवान गणेश का यह प्राचीनतम मंदिर स्थित है। इस मंदिर के गर्भगृह में गणेशजी के तीन प्रतिमाएं स्‍थापित इन्‍हें क्रमश: चिंतामण, इच्छामन और सिद्धिविनायक कहा जाता है ।

3.सिद्दपुर गणेश मंदिर गुजरात –

गुजरात के सिद्धपुर में सिद्धगणेश मंदिर स्थित है । यहां गणेशचतुर्थी के समय दसदिवसीय गणेश महोत्‍सव मेला का आयोजन किया जाता है ।

4.सिद्धगणेश मंदिर सिहोर मध्‍यप्रदेश-

सिहोर मध्‍यप्रदेश में गणेशजी सिद्ध गणेश मंदिर स्थित है । इसे भी चिंतामण या चिंतामणि गणेश कहते हैं । इस मंदिर का निर्माण विक्रमादित्‍य ने कराया है । यहां भादों  में गणेश चतुर्थी के समय 10 दिवसीय मेले का आयोजन होता है ।

देश में प्रमुख गणेश मंदिर-

अष्‍टविनायक, सिद्धगणेश के अतिरिक्‍त देश में और गणेश मंदिर है जिसका महत्‍व बहुत अधिक है । इनमें प्रमुख इस प्रकार हैं-

1.सिद्धविनायक मंदिर मुंबई –

यह गणेश मंदिरों चढ़ावा के दृष्टिकोण से सबसे बड़ा गणेश मंदिर माना जाता है ।  यहॉं देश-विदेश के भक्‍त दर्शन करने आते हैा । फिल्‍मनगरी में यह मंदिर स्थित होने के कारण फिल्‍मों के नायक-नायिकायें इस मंदिर में अपने मनौती लेकर आते हैं साथ ही देश राजनेता भी इसके शरण में आते हैं । इस मंदिर का निर्माण 1801 में देउभाई पाटिल ने कराया था ।

2. श्रीमंतदग्‍दूसेठ हलवाई मंदिर पुणे-

यह मंदिर अपने वास्‍तु कला के लिये प्रसिद्ध है । इस मंदिर का निर्माण 1893 में दग्‍दूसेठ हलवाई ने कराया था ।

3.उच्‍ची पिल्‍लयार कोइल मंदिर तमिलनाडु-

तमिलनाडु के तियचिरापल्‍ली में पहाड़ी पर स्थित भगवान गणेशजी यह मंदिर स्थित है । 

4.कनपकम विनायक मंदिर चित्‍तूर आंध्रप्रदेश-

कनिपकम में इस मंदिर का निर्माण 14वीं सदी के पहले कुलोथुंग चोला ने कराया था । बाद इसका विस्‍तार विजयनगर सामाग्रज्‍य में हुआ ।

मोती डूंगरी मंदिर, जयपुर

जयपुर में एक छोटी सी पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है। यह आकर्षक महल से घिरा हुआ है । इस मंदिर का निर्माण 1761 के आसपास का बताया जाता है ।

मधुर महागणपति कासरगोड केरल

मधुवाहिनी नदी के तट पर यह मंदिर स्थित है । इस मंदिर का निर्माण 10 वीं शताब्दी में कुंबला के माय पति राजा ने करवाया था ।

मनाकुला विनायगर मंदिर पुडुचेरी

इस मंदिर का निर्माण 15 वी शताब्दी में किया गया था। यहां गणेश जी के शास्त्रीय ₹16 को प्रदर्शित किया गया है।

श्रीशमीगणेश मंदिर-

गणेश मंदिर के सम्‍मुख शमीवृक्ष होने के संयोग से ऐसे मंदिर श्रीशमीगणेश मंदिर कहते हैं इसका अपना आप में विशेष महत्‍व होता है । यह दुर्लभ संयोग होता है । शमी को शनि का प्रतिक मानते हैं । शमी वृक्ष पावन और समिधा उपयोगी माना जाता है, इसके बिना भगवान गणेश का भोग नहीं, यज्ञ को पूर्ण नहीं माना जाता ।

श्रीशमीगणेश मंदिर नवागढ़ छत्‍तीसगढ़-

shami ganesh

 इस मंदिर के निर्माण के संबंध में मान्यता है कि संवत 646 में इस मंदिर का निर्माण तांत्रिक विधि से कराई गई थी । 6 फीट के एक पत्थर पर भगवान गणेशजी को पद्मासन मुद्रा में उकेरा गया है । इस मंदिर के दक्षिण भाग में एक अष्‍टकोणीय कुँआ विद्यमान है । इस मंदिर के सम्मुख पहले दो शमी का वृक्ष था, जिसमें एक आज भी स्थित है ।  इसी कारण इस मंदिर को ‘श्रीशमि गणेश मंदिर‘ कहा जाता है । गणेश मंदिर एवं शमिवृक्ष का यह दुर्लभ संयोग पूरे विश्व में केवल तीन स्थानों पर बतलाया जाता है ।  प्रसिद्ध धार्मिक पत्रिका ‘कल्याण‘ के ‘गणेश‘ अंक में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है । मान्यता के अनुसार इस स्थान पर दो गणेश भक्त संत जीवित समाधी लिये थे । एक समाधी स्थल मंदिर से सटा हुआ, उत्तर दिशा में एवं एक पूर्व दिशा में 100 मीटर की दूरी पर स्थित है ।  मंदिर के शिलालेख उल्लेखित जानकारी के अनुसार 1880 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण परिवार द्वारा कराया गया है।  गर्भगृह को छोड़ कर शेष मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार ‘सिद्ध विनायक श्रीशमि गणेश मंदिर सेवा संस्थान‘ द्वारा 2013 में कराया गया है ।  जिससे मंदिर एक नये आकर्षक कलेवर में पर्यटकों को लुभाने में सफल रहा है ।

विश्‍व के प्रमुख 5 गणेश मंदिर-

गणेशजी का भारत में अनेकोनेक मंदिर स्थित तो हैं ही इसके अतिरिक्‍त विश्‍व के अनेक क्षेत्रों में गणेशजी का मंदिर स्थित है । इनमें प्रमुख है-

  1. अमेरिका के फ्लोरिडा, एरिजोना, साल्‍टलेक सिटी, अलास्‍का और कैलीफोर्निया स्थित गणेश मंदिर ।
  2. कनाड़ा के टोरंटो, ब्रैंपटन और ढडमॉनटन स्थित गणेश मंदिर ।
  3. मलेशिया के कोट्टमलाई, जलान, और इपोह स्थित गणेश मंदिर ।
  4. इंग्‍लैंड के लंदन, विंबलडन, और थार्नटन स्थित गणेश मंदिर ।
  5. दक्षिण अफ्रिका के डर्बन, लेडीस्मिथ, और माउंट एजकोंब स्थित गणेश मंदिर

विश्व की सबसे ऊंची गणेश प्रतिमा-

थाईलैंड के फ्राग अकात मैं बैठे मूवी गणेश की 49 मीटर ऊंची प्रतिमा है, तो 39 मीटर कांसे की प्रतिमा यही गणेश इंटरनेशनल पार्क में स्थापित है । थाईलैंड में ‘चाचोएंगसाओ” नामक एक शहर है जिसे सिटी आफ गणेशा के नाम से जाना जाता है । यहां गणेश जी को “फ्ररा फिकोनेत’ के रूप में पूजा जाता है । यहां इनकी पूजा विघ्नहरने वाला और सफलता का देवता मानकर किया जाता है । नए कारोबार की शुरुआत करते समय और शादी विवाह में गणेश जी की पूजा यहां के लोग जरूर करते हैं ।

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