गंगासागर यात्रा
गंगासागर यात्रा
गंगासागर यात्रा की योजना-
सच कहते हैं कि आदमी को जितना मिलता जाता है, उसे और की चाहना होती जाती है। मैं भी इससे अलग नहीं हूँ , कहाँ तो मायके-ससुराल के अलावा कहीं की राह नहीं देख पाई थी और कहाँ चारो धाम की यात्रा पूरी कर चुकने के बाद भी गंगा सागर की यात्रा का लालच चैन से बैठने नहीं दे रहा था, इस बार भी यात्रा की योजना श्री आदित्य प्रसाद त्रिपाठी और श्री ठाकुर राम पटेल ने बनाई, इस बार हमारे दल में कुछ नये यात्री शामिल हुए जिनमें देवकी दीदी की छोटी बहन,और पटेल गुरूजी के खमतराई वाले रिश्तेदार भी थे। हम संख्या में कुल सत्ताइस जन थे। अपने यात्रा के सामान के साथ हम लोग दस मार्च सन् 2018 को रात के आठ बजे बिलासपुर रेलवे स्टेशन पर मिले । साढ़े आठ बजे बिलासपुर पटना सुपरफास्ट से हमारी यात्रा प्रारंभ हुई । चूंकि हमारा रिजर्वेशन बहुत पहले से हुआ था, इसलिए हमें कोई परेशानी नहीं हुई। अगले स्टेशन चांपा में टी.टी आई. हमारे डिब्बे में आये और बिना रिजर्वेशन वालों को जनरल में भेज कर अनाधिकृत भीड़ से राहत दिलाई । रात का अंधेरा चिरती सूपर फास्ट पटरियों पर दौड़ रही थी। रायगढ़,ब्रिजराज नगर, झारसोगुडा- हाँ झारसोगुडा ही, कुछ जयादा ही भीड़ चढ़ी, कई लोग रास्ते में सामान रख कर खड़े हो गये।
मेरा मन देश की धड़कन का मुरीद हो गया-
एक दरम्याने कद की वृद्धावस्था की ओर झुकी बंगाली महिला, एक लम्बे -चौड़े, भारी- भरकम काया वाले बुर्जुग को सहारा दिये बड़ी मुकिश्ल से डिब्बे में चढ़ी। उसके पीछे- पीछे एक कम उम्र का युवक उनका सुटकेस लिए चढ़ा । उनके मध्य कई लोग घुस चुके थे, पुरूष ने पेंट -शर्ट पहन रखा था उसकी कलाई पर महंगी सी दिखने वाली रिस्टवाच बहुत अच्छी लग रही थी। उनके माथे से पसीने की धार बह रही थी। वे बहुत मुश्किल से लड़खड़ाते हुए चल रहे थे, बांगला में वे कुछ स्फुट स्वर में कह-कह कर अपनी बेचैनी प्रकट कर रहे थे। उनकी बर्थ मेरी बर्थ से थोड़ा आगे थी। वैसे तो अभी मैं जाग ही रही थी , थोड़ी सुस्ती जैसी आई थी, इस हलचल से वह भी जाती रही। मेरा मन बार- बार उस स्त्री की सहायता करने के लिए आगे बढ़ने का हो रहा था किंतु साहस नही हो रहा था किसी अनजान पुरूष को स्पर्श करने का, वह महिला किसी तरह अपने पति को लेकर अपनी बर्थ तक पहुँच गई, उसके साथ का युवक एक जगह सामान के साथ बैठ गया।
मैंने लेटे- लेटे देखा कि वे अपनी बर्थ पर पसर गये हैं ,महिला ने उनका सिर गोद में ले कर सहलाना प्रारंभ कर दिया है। मुझे अब जाकर निश्चय हुआ कि उन्हें डॉक्टर की आवश्यता है।
’’ हेल्प लाइन में फोन करके डॉक्टर को बुलाइये कोई जल्दी से!’’ मेरे मुँह से घबरायी सी आवाज निकली, मुझे पता है कि टिकिट के पीछे हेल्प लाइन नंबर लिखा रहता है लेकिन टिकिट तो त्रिपाठी जी के पास थी, वे कुछ दूर बैठे थे। मेरी आवाज सुनकर और भी सहयात्री सचेत हुए, एक युवक ने हेल्पलाइन ट्राई की। पहले तो कई बार तक सम्पर्क हो हीं पाया लेकिन एक बार लग ही गया। उधर से रोगी तक पहुँचने का लोकेशन पूछा गया और जल्दी से आने का आश्वासन दिया गया।
इधर रोगी की हालत बिगड़ती जा रही थी। अब वे हाथ पैर पटक- पटक कर अपना सीना मल रहे थे। महिला कुछ कहती हुई रोती जा रही थी और कहती जा रही थी ’ डॉक्टर आस्चे गो ।’’ मै उठ कर उसके पास गई और उसे धीरज देने लगी। उनका छटपटाना जारी रहा, मोबाइल से और भी कई लोग मदद के लिए इधर-उधर फोन लगा रहे थे, पता चला कि अगले स्टेशन पर डॉक्टर मरीज का इंतजार कर रहा है, कोई ऐसा उपाय नहीं कि जिससे वह जल्दी आ सके । कभी- कभी कितनी विवशता हो जाती है आदमी की ? वह प्रतीक्षा के सिवा कुछ नहीं कर सकता। राउरकेला में गाड़ी रुकी, पहले से इंतजार करते डॉक्टर डिब्बे में प्रविष्ट हुए , उनके साथ उनके सहयोगी भी थे, उन्होंने दवाईयों का बैग उठा रखा था । इधर मैंने देखा कि रोगी धीरे- धीरे शांत हो रहा था, डॉक्टर ने स्टेथस्कोप निकाल कर उनकी जाँच प्रारंभ कर दी। मैं वहीं खड़ी थी और भी लोग थे ।
’’ आप लोग अपनी जगह पर जाइये तो! हवा आने दीजिये पेशेंट के पास तक ! हमें अपना काम करने दीजिए आप लोग !’’ डॉक्टर की परेशानी समझ कर मैं अपनी बर्थ पर आ गई, सभी लोग दूर हट गये । अब तो मरीज एकदम शांत हो चुका था, मुझे लगा शायद आराम मिल गया है या…. शायद ….?? नहीं- नहीं ऐसा नहीं सोचना चाहिए। मेरी नजरे भीड़ के आगे मरीज़ को देखने का प्रयास कर रहीं थीं । कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, टेढ़ी किये- किये मेरी गर्दन दर्द करने लगी। मुझे मजबूर होकर करवट बदलना पड़ा। डिब्बे में छाई खामोशी पर रेल के चक्कों का शोर भारी पड़ रहा था। मुझे हल्की सी झपकी आ गई,कब अगला स्टेशन पार हुआ और कब डॉक्टर और उसके साथी नीचे उतरे मुझे पता न चला।
’’ देखूँ तो वह कैसा है ? लगता है आराम है, तभी सब अपनी-अपनी जगह पर चले गये हैं।’’
’’ क्या हुआ दीदी? दादा ठीक तो है न….ऽ….ऽ.?मैंने हिचकते हुए पूछा।
’’ कहाँ ? मेरा पोती चोला गिया ….ऽ…..! मेरा शामी हाम को एकला छोड़ दिया। चोला गिया! हाम कूछ कोरने नईं सका ऽ…..!’’ वह बिलख रही थी। मैं भी रो पड़ी।
’’हिम्मत. राखो दीदी! क्या डॉक्टर कुछ नहीं कर पाया?’’
’’ की कोरेगा रे बाबा ? उसका आने का पोइले ही .ऽ….ऽ……!’’वह वाक्य पूरा नहीं कर पाई। और हा- हा कार कर उठी।
’’ पहले से तबियत खराब थी क्या दीदी?’’
’’ दू बार बाइपास सर्जरी हो गियां।’’
ऐसे में आप अकेली सफर पर क्यों निकलीं?’’
’’ अकेली कहाँ ? नौकर है न साथ में, उधर बैठा है सामान के साथ , हम लोग तो हमेशा एइसाइ जात्रा किया है, कोबी कुछ नइ हुआ, इस बार तोबियत घर से ही खराब था।’’ उसने अपनी आँखें पोंछी ।
’’ बाल- बच्चे कितने हैं दीदी?’’
’’ एकी लेरका है , बहुत लेखा पोरा किया ,मूम्बई में बोरो कंपनी में काज कोरता है। शादी दिया तोब से हाम लोक को भालो नेई बासता।’’ उसके रुदन में क्रोध का मिश्रण हो गया।
’’ आता- जाता नहीं दीदी?’’
’’ आना जाना कोन बोलेगा? कोबी फोन तक नेई कोरता, एक दफे हाम लोक गिया था उसके पास, तो लेरका बात तक नेई किया, बोहू दूसरे दिन सामान उठा के बाइरे राक दिया। उसी टाइम पइला हाट अटैक आया था इनको , हाम दोस दिन हस्पताल में था, साब लोक आया पर बेटा- बोहू नेई आया। जब मेरा शामी चोला गिया तो हाम उसका मुँह नेई देखेगा, कुछ भी हो जाय नेई बात कोरेगा, उससे। मेरा शामी तो चोला ही गिया, अब क्या बचा जिन्दगी में? वह गला दबा कर रो रही थी ताकि सोने वालों की नींद खराब न हो। उसकी दोहरी पीड़ा में डूब कर मैं आँसू बहा रही थी।
’’ कहाँ जायेंगी इन्हें लेकर ?’’ मैंने फिर पूछा।
’’ पुरूलिया में मेरा मायेर बाड़ी है, फोन किया है वो लेरका, वहाँ ही उतर जाऊँगा,वो लोक सोब देखेगा, भतिजा लोक है जोवान्-जोवान्।’’कहने के बाद वह फिर अपने पति के बालों को सहलाते हुए रोने लगी।
मुझे बहुत देर से खड़ी देखकर सामने वाली सीट पर बैठे सज्जन उठ बैठे और बाले– ’’ आप यहाँ आराम से बैठ जाइये।’’
उनके आग्रह का मान रखकर मैं बैठ गई । रात का अधिकांश भाग ऐसे ही बीता । पुरूलिया स्टेशन पर जैसे ही ट्रेन रुकी,जी आर पी. के जवानो के साथ छः सात हट्टे’ कट्टे जवान डिब्बे में घुसे, एक ने उन्हें अपनी बाँहों में संभाला , उनका रुदन और तेज हो गया ।
आने वाले स्ट्रेचर ले कर आये थे। सबने मिल कर शव को स्ट्रेचर पर रखा और नीचे उतर गये । गाड़ी समय से कुछ अधिक समय ही रुक गई । महिला के ऊपर अचानक आ पड़ी मुसीबत में जिस प्रकार रेलविभाग ने सहायता की उससे मेरा मन देश की धड़कन का मुरीद हो गया।
-तुलसी देवी तिवारी
शेष अगले भाग में– बाबाबैजनाथ, देवघर दर्शन https://www.surta.in/devghar-baba-baijnath-darshan/