घनाक्षरी छंद लिखना सीखें,
घनाक्षरी छंद का संपूर्ण परिचय
-रमेश चौहान
घनाक्षरी छंद लिखना सीखें, घनाक्षरी छंद का संपूर्ण परिचय
घनाक्षरी छंद का परिचय-
हिन्दी साहित्य के स्वर्णयुग में जहाँ भावों में भक्ति और अध्यात्म का वर्चस्व था वहीं काव्य शिल्प में छंद का सर्वत्र प्रभाव था । इस समय दोहा छंद के बाद सर्वाधिक प्रचलित एवं लोकप्रिय छंद घनाक्षरी रहा । इतने समय बाद आज भी घनाक्षरी छंद का प्रभाव यथावत बना हुआ है । केवल उसके कथ्य और कहन में अंतर आया है किन्तु शिल्प विधान और महत्व यथावत बने हुये हैं । आज ऐसा कोई कवि सम्मेलन शायद ही होते होंगे जिसमें घनाक्षरी छंद नहीं पढ़े जाते होंगे । इसी बात से इस छंद का महत्व का पता चलता है ।
घनाक्षरी छंद का उद्भव-
हिन्दी साहित्य में घनाक्षरी छंद का प्रयोग कब से हो रहें यह ठीक-ठीक कह पाना संभवन नहीं किन्तु हिन्दी साहित्यय के स्वर्णिम युग में घनाक्षरी छंद का न केवल परिचय होता अपितु प्रचुरता में भी उपलब्ध होता है। घनाक्षरी या कवित्त के नाम से उस समय के प्रायः सभी कवियों ने इस विधा पर अपनी कवितायें लिखी हैं । कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार है :-
जगन्ननाथ प्रसाद ‘रत्नाकर’ की घनाक्षरी रचना –
कोऊ चले कांपि संग कोऊ उर चांपि चले
कोऊ चले कछुक अलापि हलबल से ।
कहै रतनाकर सुदेश तजि कोऊ चलै
कोऊ चले कहत संदेश अबिरल से ॥
आंस चले काहू के सु काहू के उसांस चले
काहू के हियै पै चंद्रहास चले हल से ।
ऊधव के चलत चलाचल चली यौं चल
अचल चले और अचले हूँ भये चल से ।।
तुलसीदास जी की घनाक्षरी रचना-
भक्तिकालिन प्रसिद्व कवि तुलसीदास जी ने हनुमान बाहुक की रचना इसी घनाक्षरी छंद के आधार मान कर किये हैं –
भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन.अनुमानि सिसु.केलि कियो फेरफार सो ।
पाछिले पगनि गम गगन मगन.मनए क्रम को न भ्रमए कपि बालक बिहार सो ।।
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधिए लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो।
बल कैंधौं बीर.रस धीरज कैए साहस कैए तुलसी सरीर धरे सबनि को सार सो ।।
घनाक्षरी क्या है ?
घनाक्षरी एक वार्णिक छंद है, जिसके चार पद होते हैं, प्रत्येक पद में चार चरण होते हैं पहले तीन चरण में 8-8 वर्ण और चौथे चरण में 7 या 8 या 9 वर्ण होते हैं । अंतिम चरण में वर्णो की संख्या के आधार पर घनाक्षरी के प्रकार का निर्माण होता है ।
घनाक्षरी छंद के प्रकार
घनाक्षरी छंद मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-
- 31 वर्णी घनाक्षरी- जिस घनाक्षरी के पहले तीन चरण में 8-8 वर्ण और सातवें चरण में 7 वर्ण हो कुल प्रत्येक पद में 32 वर्ण होते हैं ।
जैसे- मनहरण, जनहरण, और कलाधर । - 32 वर्णी घनाक्षरी- इस घनाक्षरी के चारो चरण में 8-8 वर्ण कुल 32 वर्ण होते हैं ।
जैसे-जलहरण, रूपघनाक्षरी, डमरू घनाक्षरी, कृपाण घनाक्षरी और विजया घनाक्षरी । - 33 वर्णी घनाक्षरीः इस घनाक्षरी के पहले तीन चरण में 8-8 वर्ण और चौथै चरण में 9 वर्ण होते हैं !
जैसे-देवघनाक्षरी
घनाक्षरी छंद की परिभाषा घनाक्षरी छंद में-
आठ-आठ आठ-सात, आठ-आठ आठ-आठ
आठ-आठ आठ-नव, वर्ण भार गिन लौ ।।
आठ-सात अंत गुरू, ‘मन’ ‘जन’ ‘कलाधर’,
अंत छोड़ सभी लघु, जनहरण कहि दौ ।
गुरू लघु क्रमवार, नाम रखे कलाधर
नेम कुछु न विशेष, मनहरण गढ़ भौ ।।
आठ-आठ आठ-आठ, ‘रूप‘ रखे अंत लघु
अंत दुई लघु रख, कहिये जलहरण ।
सभी वर्ण लघु भर, नाम ‘डमरू’ तौ धर
आठ-आठ सानुप्रास, ‘कृपाण’ नाम करण ।।
यदि प्रति यति अंत, रखे नगण-नगण
हो ‘विजया’ घनाक्षरी, सुजष मन भरण ।
आठ-आठ आठ-नव, अंत तीन लघु रख
नाम देवघनाक्षरी, गहिये वर्ण शरण ।।
मनहरण घनाक्षरी-
घनाक्षरी में मनहरण घनाक्षरी सबसे अधिक लोकप्रिय है । इस लोकप्रियता का प्रभाव यहाँ तक है कि बहुत से कवि मित्र भी मनहरण को ही घनाक्षरी का पर्याय समझ बैठते हैं । इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 7 वर्ण होते हैं प्रत्येक पद का अंत गुरू से होना अनिवार्य है किन्तु अंत में लघु-गुरू का प्रचलन अधिक है । चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।
सुन्दर सुजान पर, मन्थ मुसकान पर, बांसुरी की तान पर, ठौरन ठगी रहै । मूरति विषाल पर, कंचनसी माल पर, हंसननी चाल पर, खोरन खगी रहै ।। भीहें धनु मैन पर, लोने जुग रैन पर, शुद्व रस बैन पर, वाहिद पगी रहै । चंचल से तन पर, सांवरे बदन पर, नंद के नंदन पर, लगन लगी रहै ।।
जनहरण घनाक्षरी-
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद 8,8,8,और 7 वर्ण होते हैं । प्रत्येक पद का 31 वां वर्ण गुरु शेष सभी वर्ण लघु होते हैं । चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।
यदुपति जय जय, नर नरहरि जय जय, जय कमल नयन, जल गिरधरये ।
जगपति हरि जय, जय गुरू जग जय, जय मनसिज जय, जय मन हरये ।।
जय परम सुमतिधर कुमतिन छयकर जगत तपत हर नरवरये ।
जय जलज सदृष छबि सुजन नलिन रवि पढ़त सुकवि जस जग परवे ।।
कलाधर घनाक्षरी-
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद 8,8,8,और 7 वर्ण होते हैं । प्रत्येक पद में क्रमशः गुरु-लघु 15 बार आता है और अंत में 1 गुरू होता है । चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।
जाय के भरत्थ चित्रकूट राम पास बेगि हाथ जोरि दीन है सुप्रेम तें बिनैं करी ।
सीय तात माताा कौशिला वशिष्ठ आदि पूज्य लोक वेद प्रीति नीति की सुरीतिही धरी ।
जान भूप बैन धर्म पाल राम हैं सकोच धीर इे गँभीरबंधु की गलानि को हरी ।
पादुका दई पठाय औध को समाज साज देख नेह राम सीय के हिये कृपा भरी ।।
रूपघनाक्षरी-
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । 32 वां वर्ण अनिवार्य रूप से लघु होना चाहिये । चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।
बेर बेर बेर लै सराहैं बेर बेर बहुरसिक बिहारी देत बंधु कहँ फेर फेर ।
चाखि भाषै यह वाहु ते महान मीठो लेहु तो लखन यों बखानत हैं हेर हेर ।।
बेर बेर देबै बेर सबरी सु बेर बेर तऊ रघुबीर बेर बेर तेहि टेर टेर ।
लायो बेर बेर जनि लावो बेर बेर जनि लावो बेर लावो कहैं बेर बेर ।।
जलहरण घनाक्षरी-
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । 31वां एवं 32वां वर्ण अनिवार्य रूप से लघु होना चाहिये अर्थात अंत में दो लघु होना चाहिये । चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।
भरत सदा ही पूजे पादुका उते सनेम इते राम सीय बंधु सहित सिधारे बन ।
सूूूूूूपनखा कै कुरूप मारे खल झुंड घने हरी दससीस सीता राघव बिकल मन ।।
मिले हनुमान त्यों सुकंठ सों मिताई ठानि वाली हति दीनों राज्य सुग्रीवहिं जानि जन ।
रसिक बिहारी केसरी कुमार सिंधु लांघि लंक सीय सुधि लायो मोद बाढ़ो तन ।।
डमरू घनाक्षरी-
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । सभी 32वों वर्ण अनिवार्य रूप से लघु होना चाहिये अर्थात सभी वर्ण लघु होना चाहिये । चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।
रहत रजत नग नगर न गज तट गज खल कल गर गरल तरल धर ।
न गनत गन यष सघन अगन गन अतन हतन तन लसत नखर कर ।।
जलज नयन कर चरण हरण अघ श्रण सकल चर अचर खचर तर ।
चहत छनक जय लहत कहत यह हर हर हर हर हर हर हर हर ।।
कृपाण घनाक्षरी –
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । सभी चरणों में सानुप्रास होता है अर्थात समान उच्चारण समतुक होता है । चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।
चलह है के विकराल, महाकालहू को काल, किये दोउ दृग लाल, धाई रन समुहान ।
जहां क्रुध है महान, युद्व करि घमसान, लोथि लोथि पै लदान, तड़पी ज्यों तड़ियान ।।
जहां ज्वाला कोट भान, के समान दरसान, जीव जन्तु अकुलान, भूमि लागी थहरान ।
तहां लागे लहरान, निसिचरहूं परान, वहां कालिका रिसान, झुकि झारी किरपान ।।
विजया घनाक्षरी-
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । सभी पदोंं के अंत में लघु गुरू या नगण मतलब तीन लघु होना चाहिये । चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।
भई हूँ अति बावरी बिरह घेरी बावरी चलत है चवावरी परोगी जाय बावरी ।
फिरतिहुं उतावरी लगत नाहीं तावरी सुबारी को बतावरी चल्यों है जात दांवरी ।।
थके हैं दोऊ पांवरी चढ़त नाहीं पांवरी पियारो नाहीं पांवरी जहर बांटि खांवरी ।
दौरत नाहीं नावरी पुकार के सुनावरी सुन्दर कोऊ नावरी डूबत राखे नावरी ।।
देवघनाक्षरी –
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 9 के क्रम में 33 वर्ण होते हैं । सभी पदों के अंत में नगण मतलब तीन लघु होना चाहिये । चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।
झिल्ली झनकारैं पिक, चातक पुकारैं बन, मोरनि गुहारैं उठी, जुगुनू चमकि चमकि । घोर घनघोर भारे, धुरवा धुरारे धाम, धूमनि मचावैं नाचैं, दामिनी दमकि दमकि ।। झूकनि बयार बहै, लूकान लगावैं अंक, हूकनि भभूकिन का, उर में खमकि खमकि । कैसे करि राखौं प्राण, प्यारे जसवन्त बिन, नान्हीं नान्हीं बूंद झरै, मेघवा झमकि झमकि ।।
घनाक्षरी छंद के नियम-
- घनाक्षरी में चार पद होता है ।
- प्रत्येक पद में चार चरण या चार बार यति होता है ।
- पहले के तीन चरण में आठ-आठ वर्ण निश्चित रूप से होते हैं ।
- चौथे चरण में सात, आठ या नौ वर्ण हो सकते हैं ! इसी अंतर से घनाक्षरी का प्रकार बनता है ।
- चौथे चरण में सात वर्ण होने पर मनहरण, जनहरण और कलाधर नाम का घनाक्षरी बनता है ! जिसमें लघु गुरू का भेद होता है ।
- चौथे चरण में आठ वर्ण होने पर रूप, जलहरण, डमरू, कृपाण और विजया नाम का घनाक्षरी बनता है । जिसमें लघु गुरू का भेद होता है ।
- चौथे चरण में नौ वर्ण आने पर देवघनाक्षरी बनता है ।
घनाक्षरी छंद लिखना सीखें –
घनाक्षरी उपरोक्त नियमों के आधार पर लिखा जा सकता है किन्तु इसके लिये हमें वर्ण की गणना करना और वर्ण में लघु गुरू का निर्धारण करने आना चाहिये । इसलिये सबसे पहले हम वर्ण को समझने का प्रयास करेंगे फिर वर्ण लघु-गुरू का निर्धारण करना देखेंगे तत्पष्चात शब्दों में वर्णो की गणना करना सीखेंगे अंत में घनाक्षरी लिखना जानेंगे ।
वर्ण-
‘‘मुख से उच्चारित ध्वनि के संकेतों, उनके लिपि में लिखित प्रतिकों को ही वर्ण कहते हैं ।’’ हिन्दी वर्णमाला में 53 वर्णो को तीन भागों में भाटा गया है-
- स्वर-
अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ. अनुस्वार-अं. अनुनासिक-अँ. विसर्ग-अः - व्यंजनः
क,ख,ग,घ,ङ, च,छ,ज,झ,ञ. ट,ठ,ड,ढ,ण,ड़,ढ़, त,थ,द,ध,न, प,फ,ब,भ,म, य,र,ल,व,श,ष,स,ह, - संयुक्त वर्ण-
क्ष, त्र, ज्ञ,श्र
वर्ण गिनने नियम-
- हिंदी वर्णमाला के सभी वर्ण चाहे वह स्वर हो, व्यंजन हो, संयुक्त वर्ण हो, लघु मात्रिक हो या दीर्घ मात्रिक सबके सब एक वर्ण के होते हैं ।
- अर्ध वर्ण की कोई गिनती नहीं होती ।
उदाहरण-
कमल=क+म+ल=3 वर्ण
पाठशाला= पा+ठ+शा+ला =4 वर्ण
रमेश=र+मे+श=3 वर्ण
सत्य=सत्+ य=2 वर्ण (यहां आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)
कंप्यूटर=कंम्प्+यू़+ट+र=4वर्ण (यहां भी आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)
लघु-गुरु का निर्धारण करना-
वर्णो के ध्वनि संकेतो को उच्चारित करने में जो समय लगता है उस समय को मात्रा कहते हैं । यह दो प्रकार का होता है-
- लघु- जिस वर्ण के उच्चारण में एक चुटकी बजाने में लगे समय के बराबर समय लगे उसे लघु मात्रा कहते हैं। इसका मात्रा भार 1 होता है ।
- गुरू-जिस वर्ण के उच्चारण में लघु वर्ण के उच्चारण से अधिक समय लगता है उसे गुरू या दीर्घ कहते हैं ! इसका मात्रा भार 2 होता है ।
लघु गुरु निर्धारण के नियम-
- हिंदी वर्णमाला के तीन स्वर अ, इ, उ, ऋ एवं अनुनासिक-अँ लघु होते हैं और इस मात्रा से बनने वाले व्यंजन भी लघु होते हैं ।
लघु स्वरः-अ,इ,उ,ऋ,अँ
लघु व्यंजनः- क, कि, कु, कृ, कँ, ख, खि, खु, खृ, खँ ..इसीप्रकार - इन लघु स्वरों को छोड़कर शेष स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ और अनुस्वार अं गुरू स्वर होते हैं तथा इन से बनने वाले व्यंजन भी गुरु होता है ।
गुरू स्वरः- आ, ई,ऊ, ए, ऐ, ओ, औ,अं
गुरू व्यंजन:- का की, कू, के, कै, को, कौ, कं,……..इसीप्रकार - अर्ध वर्ण का स्वयं में कोई मात्रा भार नहीं होता,किन्तु यह दूसरे वर्ण को गुरू कर सकता है ।
- अर्ध वर्ण से प्रारंभ होने वाले शब्द में मात्रा के दृष्टिकोण से भी अर्ध वर्ण को छोड़ दिया जाता है ।
- किंतु यदि अर्ध वर्ण शब्द के मध्य या अंत में आवे तो यह उस वर्ण को गुरु कर देता है जिस पर इसका उच्चारण भार पड़ता है । यह प्रायः अपनी बाँई ओर के वर्ण को गुरु करता है ।
- यदि जिस वर्ण पर अर्ध वर्ण का भार पड़ रहा हो वह पहले से गुरु है तो वह गुरु ही रहेगा ।
- संयुक्त वर्ण में एक अर्ध वर्ण एवं एक पूर्ण होता है, इसके अर्ध वर्ण में उपरोक्त अर्ध वर्ण नियम लागू होता है ।
उदाहरण-
रमेश=र+मे+श=लघु़+गुरू+लघु=1+2+1=4 मात्रा
सत्य=सत्य+=गुरु+लघु =2+1=3 मात्रा
तुम्हारा=तु़+म्हा+रा=लघु+गुरू+गुरू =1+2+2=5 मात्रा
कंप्यूटर=कम्प्+यू+ट+र=गुरु़+गुरु़+लघु़+लघु=2+2+1+1=6 मात्रा
यज्ञ=यग्+य=गुरू+लघु=2+1=3
क्षमा=क्ष+मा=लघु+गुरू =1+2=3
वर्णिक एवं मात्रिक में अंतर-
जब उच्चारित ध्वनि संकेतो को गिनती की जाती है तो वार्णिक एवं ध्वनि संकेतों के उच्चारण में लगे समय की गणना लघु, गुरू के रूप में की जाती है इसे मात्रिक कहते हैं । मात्रिक में मात्रा महत्वपूर्ण होता है वार्णिक में वर्ण महत्वपूर्ण होता है । लेकिन दोनों प्रकार के छंद रचना में इन दोनों का ज्ञान होना आवश्यक है ।
उदाहरण-
रमेश=र+मे+श=4 वर्ण, रमेश=र+मे+श=लघु़+गुरू+लघु=1+2+1=4 मात्रा
कंप्यूटर=कंम्प्+यू़+ट+र=4वर्ण, कंप्यूटर=कम्प्+यू+ट+र=गुरु़+गुरु़+लघु़+लघु=2+2+1+1=6 मात्रा
सत्य=सत्+ य=2 वर्ण, सत्य=सत्य+=गुरु+लघु =2+1=3 मात्रा
घनाक्षरी रचना का अभ्यास –
उपरोक्त जानकारी के पश्चात हम एक घनाक्षरी की रचना का अभ्यास करते हैं । सबसे पहले आपको एक विचार या सोच की आवश्यकता होती है । सबसे पहले इस विचार को शब्द में बदलना है फिर शब्दों का चयन ऐसे करना है कि घनाक्षरी के नियमों का पूरा-पूरा पालन हो सके ।
हम एक मनहरण घनाक्षरी लिखने का अभ्यास करते है-
विचार-
मनहरण घनाक्षरी को मनहरण घनाक्षरी में परिभाषित करना ।
मनहरण घनाक्षरी के नियमः- मनहरण घनाक्षरी में चार पद होते हैं जिसके प्रत्येक पद में चार चरण होते हैं । पहले तीन चरण 8-8 वर्ण और चैथे चरण में 7 वर्ण होता हैजिसका अंत लघु गुरू से हो । इसी कथन को घनाक्षरी में लिखने का प्रयास करते हैं-
पहला पद-
- पहला चरण- ‘वर्ण-छंद घनाक्षरी’ (8 वर्ण)
- दूसरा चरण- ‘ गढ़न हरणमन’ (8 वर्ण)
- तीसरा चरण- ‘ नियम-धियम आप’ (8 वर्ण)
- चौथा चरण- ‘धैर्य धर जानिए’ (7 वर्ण, अंत में लघु गुरू)
दूसरा पद –
- पहला चरण- आठ-आठ आठ-सात, (8 वर्ण)
- दूसरा चरण- चार बार वर्ण रख (8 वर्ण)
- तीसरा चरण- चार बार यति कर, (8 वर्ण)
- चौथा चरण- चार पद तानिए (7 वर्ण, अंत में लघु गुरू, पलिे और दूसरे पद के अंत में समान तुक)
इसी प्रकार तीसरे और चैथे पद की रचना कर लेने पर एक घनाक्षरी संपूर्णरूप् में इस प्रकार होगा-
वर्ण-छंद घनाक्षरी, गढ़न हरणमन
नियम-धियम आप, धैर्य धर जानिए ।
आठ-आठ आठ-सात, चार बार वर्ण रख
चार बार यति कर, चार पद तानिए ।।
गति यति लय भर, चरणांत गुरु धर
साधि-साधि शब्द-वर्ण, नेम यही मानिए ।
सम-सम सम-वर्ण, विषम-विषम सम,
चरण-चरण सब, क्रम यही पालिए ।।
-रमेश चौहान