गीति-नाट्य:ले सुगंध जब पवन बहा-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

गीति-नाट्य:ले सुगंध जब पवन बहा

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

गीति-नाट्य:ले सुगंध जब पवन बहा

पात्र

नट : पुरुष सूत्रधार
संगीत : महिला सूत्रधार
गगन : युवक
सुगंध : युवती
विरक्त : एक गंभीर व्यक्ति

नट : एक सतरंगी सोच , एक कमनीयता और बहाव लिये आता है बसंत ! शीत ऋतु का अंत और नरम मखमली धूप ! नयी कोपलों से जीवंत हो उठे पेड़ों के डंठल। लगता है वे अपनी तन्द्रा से निकल गुनगुनाने लगे अपने विचार, अरे हाँ पक्षी , भँवरे ,तितलियाँ ही तो हैं उनके दूत , और हाँ पवन भी तो है , है ना ! एक मधुर गान , मधुर तान ! हर तरफ , हंसी , ख़ुशी ठिठोली। कला, साहित्य ,संस्कृति , जीवन के विभिन्न पथ , रूप एवं रंग भर गये बसंत की झलक से। शायद धरती पर मनुष्य के प्रादुर्भाव वेला से ही बसंत एक महत्वपूर्ण समय रहा है। इसीलिए तो आदि कवियों से लेकर वर्तमान तक हर काल में भारतीय उपमहाद्वीप में रचित कृतियां बसंत की झलक दिखाये बिना नहीं रहतीं , हाँ यह जरूर है – कहीं बसंत मन में है , कहीं वाह्य वातावरण में , व्यवहार में !

संगीत : फसलों में दाने दृह होने को है , फूलों से डालियाँ लदी जा रही हैं। यौवन भावों , चेतना , सौंदर्य, आसक्ति तो बढ़ा ही रही है यह ऋतु ,कहीं न कहीं विचलन और निराशा भी , ये देखिये नैसर्गिक सौंदर्य की प्रतिमूर्ति एक नवयौवना अपने खेतों में ! विचलित हो रही है वह बसंत में ! क्या क्रीड़ा करता है बसंत और उसका अनुभाव !

सुगंध: (खेत , नवयौवना एकांत गीत गाती है )
बासंती पवन तू चलत बड़ा झकझोर
चली उड़ धानी मोरी चूनर,
तू चलत बड़ा झकझोर।
फसिल ठाढ़ि खेतन गदरायी ,
आम रहे बौराये , रहे बौराये।
बासंती पवन , बासंती पवन
तू चलत बड़ा झकझोर।
उड़त मोर चूनर जा पहुंची
पिय के मोरे खेत,
पडत नज़र सब रंग बिखर गे
सतरंगी भा खेत ,
सतरंगी सब खेत !
सतरंगी अब खेत !
बासंती पवन ,मतवाली पवन हरियाली पवन
तू रूप धरे गदराई फसल , ललचायी महक
तू उड़- जा रे , उड़- जा –उड़- जा , उर के हेत ,
उड़ -जा रे उर के हेत , नैन जुरे रे नैन …

नट: बसंत ऋतु , भारत उप महाद्धीप में जीवन के हर पहलू में ख़ुशी का संचार करती है , लालित्य लाती है । प्रसन्नता बिखरती है हर जगह! नयी कोपलें , सुन्दर फूल , भावनाओं के बहाव , स्वप्नों की उड़ान – क्या कुछ नहीं है बसंत में ! भाव , विभाव- अनुभाव -श्रृंगार रस उत्पन्न करते हैं – फसलों में रस , मन में प्रफुल्लता !
नायिका की चूनर उड़ कर नायक के खेत में पहुंच गयी ।

संगीत: आपको बड़ा अच्छा लगा होगा ! है भी तो यह ! यह मदमस्त समय मन को स्थिर रहने नहीं देता, व्रती लोग भी एक आकर्षण पाते हैं। अरे अचानक एक सज्जन सन्यास भाव मन में भरे गुजरते हैं। देखिये इनके भाव , ये रहा इनका गीत –
(गंभीर से दिखने वाले एक व्यक्ति चलते-चलते एक रमणीक स्थान पर रुक जाते हैं। प्रकृति का आनंद लेते हुए गीत गाते हैं।)

विरक्त: चलत रहत चित नाम रटन विधि ,
मन कत रहा डेराय …
उड़त नजर मकरंद भ्रमित
कुसुम भंवर फँसि जाय ।
मधु रस छनि -छनि पवन चलत है ,
छुवत चलत हिँय आय ,
लिए सन्देशा लहर-लहर कै ,
चित चितवन हेतु ढिठाय।

पवन चलत बासंती वेला
मन -उर -चित व्याकुलाय।
उड़त नजर मकरंद भ्रमित
मन बासंती होय जाय
मन बासंती होय जाय !
चित संग मन तकरार करत है ,
करत बसंत ठिठोल
करत बसंत ठिठोल ,
उड़त नजर मकरंद भ्रमित
कुसुम भंवर फंस जाय !

नट : सही है , बसंत न केवल मन को ख़ुशी से भरता है , चित को व्याकुल और विरही भी बनाता है । कालिदास का श्लोक याद दिला देता है यह बसंत –

प्रफूल्ला चूतांकुर तीक्ष्ण शयको,द्विरेक माला विलसद धर्नुगुण:
मनंति भेत्तु सूरत प्रसिंगानां,वसंत योध्दा समुपागत: प्रिये।

संगीत : अरे आप तो संस्कृत में आ गये। अर्थात ?

नट : अर्थात -वृक्षों में फूल आ गये हैं, जलाशयों में कमल खिल उठे हैं, स्त्रियाँ सकाम हो उठी हैं, पवन सुगंधित हो उठी है, रातें सुखद हो गयी हैं और दिन मनोरम, ओ प्रिये! बसंत में सब कुछ पहले से और सुखद हो उठा है। नायक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
अच्छा , तो हाँ , नायिका की चुनरी बासंती हवा में उड़ कर नायक के खेत में पहुंच गयी !
चुनरी अपने खेत में पाकर ! नायक प्रसन्न तो है , किन्तु यह आभासिक प्रसन्नता क्या परिणाम देगी – आस या संत्रास , आइये देखते हैं –

खेत, एकांत । अपने खेत में बैठा है युवक गगन । प्रकृति का सौंदर्य निहारते हुए सोच विचार में मग्न है। गीत गाता है )
गगन: ( विचारों में खोया गीत गुनगुना रहा है। )

फसल भई सतरंगी
का मैं दे दूँ , भेंट चढ़ा दूँ ,
मीच मीच हम दीद निहारें
होत नहीं बिस्वास
होई पूरी हमरी आस।
होय फसल भई सतरंगी ,
इंद्रधनुष सी चूनर उड़ि कर ,
छायी हमरे खेत , आयी हमरे खेत ,
सतरंगी हो पटरंगी !
सतरंगी !
सतरंगी मन का भेष !
मीच मीच हम दीद निहारें
पूरी हमरी आस !
पवन खटोला चढ़ि चल आवत ,
फूल खेलि मकरंद लुटावत ,
मन मधु मा गा पेस !
मीच मीच हम दीद निहारें
धन्य बसंत का खेल
बासंती होय गा मेल !

संगीत : चूनर तो पवन उड़ा लाया , किन्तु नायिका अभी आ न सकी – सामाजिक बंधन , माया -मर्यादा ! बस यही सुनाई देता है , और चलती है बसंती हवा –

गयी क्षितिज तक उड़-उड़ आसा ,
जल रस बन – मधु रस बन कै जल
विरह -पावक घहराय
पावक विरह धधकाय !
डारि -डारि सुगंध कै आहुत,
मन लपट चली चढ़ि जाय ,
गगन भवा सतरंग पवन सनि,
कहाँ छुपी है आस ,
कहत रहा मुस्काय समीरा
करत सिंगार दिखी अभिलाषा
मन विरही भा धधकाय !
छिति जल पावक गगन सभै सब ,
सतरंगी पवन ठाढ़ मुस्काय !
देख देख मन भा सतरंगी
रंग देख भरमाय !
है बसंत केरी अब का मंशा ,
नयन मचल अब जांय !

संगीत : ऋतुओं का लालित्य , ऋतुओं संग- सामंजस्य बहुत जरूरी है , आपा -धापी के दौर में कहीं न कहीं ऋतुओं से प्रेम छूटता जा रहा है ,और याद आती है ,अज्ञेय की कविता ‘बसंत आया’ से कुछ पंक्तियाँ –

“बसंत आया तो है,पर बहुत दबे पांव,
यहां शहर में,हमने बसंत की पहचान खो दी है,
उसने बसंत की पहचान खो दी है,
उसने हमें चौंकाया नहीं।
अब कहाँ गया बसंत?”
नट : अरे कहीं नहीं गया बसंत ,
चलो नाचें गायें
बसंत मनायें !

संगीत : अच्छा ! पक्का ?

नट : हाँ -हाँ !

संगीत : तो आओ गायें ! गायें साथ साथ !
(दोनों गीत गाते हैं )
मन बसंत , है ऋतु बसंत
है हर मन मोहित रंग बसंत
चल चलें उड़ें , फैला अनंत
है बसंत मोहक बसंत !

(हर तरफ मृदु स्वर मृदु संगीत बसंत के रंग छा जाते हैं।)
-समाप्त –

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह के विषय में
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्केट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी (2019),चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017),पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑव फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) प्रोजेक्ट पेनल्टीमेट (2021) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, डॉ राम कुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान 2020 ,एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सत्रह पुरस्कार प्राप्त हैं ।

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One thought on “गीति-नाट्य:ले सुगंध जब पवन बहा-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

  1. अति बसंत ऋतु वर्णन, गीतिनाट्य शैली में सुंदर चित्रण के लिए हार्दिक बधाई शुभकामनाएं

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