हाइकु शतक
-रमेश चौहान
हाइकु शतक-रमेश चौहान
हाइकु शतक-रमेश चौहान
वंदना
- हे गजानन
कलम के देवता
रखना लाज । - ज्ञान दायनी
हर लीजिये तम
अज्ञान मेट । - ईश्वर सदा,
कण कण बसता,
हवा स्वास सा । 4.मन बावला
पथ भूला राही है,
जग भवर । - विष्णु सा वह,
ब्रह्मा महेश वह,
गुरू जो वह 6.जान लो मुझे
तेरे ही घटवासी
मैं अविनाशी । 7.स्वर्ग का पथ
चरित्र व्यवहार
निर्माता गुरू
संकृति-संस्कार
- टूटता घर,
अपना परिवार,
स्नेह दुलार । - रूठे अपने,
टूट रहे सपने,
ढूंढे छुपने । - कहीं दिखे है ?
एक छत के नीर्चे ?
दो सगे भाई । - संस्कार लुप्त,
परम्परा सुसुप्त
कौन है तृप्त ? - संस्कार क्या है ?
कौन नही जानता ?
कौन मानता ?? - नवाचारीय,
कैसे बनी कुरीति ?
अपनी रीति । - मान सम्मान,
परम्परा का पालन
मनभावन । - आत्म सम्मान
प्राणों से बढ़कर
बचा लो तुम । - छोड़ माँ बाप
मनाये बद्रीनाथ
पूत आज के । - लोक मर्यादा
परिधान समान
सज्जन ओढ़े । - देख दुनिया,
जीने का मन नही,
स्वार्थ के नाते । - वाह रे धोखा,
अपने ही पराये,
मित्र ही शत्रु । - सात जन्मो का,
मान्यता स्वीकारे जो
तलाक मांगे । - क्यों बिखरे ?
अपना परिवार
घोसला जैसे - लोकराज है
लोभ मोह में लोग
क्यो करे शोक - काम व पैसा,
सब कुछ है तेरा
ईश्वर तुल्य ? - अनुभव से,
ता उम्र सीखे जीना,
पेड़ समान । - सादा जीवन,
मर्यादित पिंजरा,
कैद सज्जन । - लक्ष्मण रेखा,
लांघ सके है कौन,
दैत्य रावन । - जीवन है क्या ?
मन का यक्ष प्रश्न
सुख या दुख । - क्यों रोता है ?
सिक्के के दो पहलू
होगी सुबह । - धूप छांव सा
जीवन बगिया में
सुख दुख है । - झोंको के साथ
झूम के नन्हा पौधा
खड़ा अटल । - नन्हा बालक
भगवान समान
स्वच्छ निर्मल ।
श्रृंगार संयोग-वियोग
- प्रेम की रीत,
हार में ही है जीत,
हारना सीख । - प्रेम क्या है ?
भावों का समर्पण
स्वप्रस्फूटित । - वियोग क्या ?
प्रेम की गहराई
तैराक मन । - हे भगवान,
प्रेम का भूखा तू भी,
प्रेम ही पूजा । - एक चेहरा
जाना पहचाना सा
अनजाना है । - दोस्त रूठा है
करूं क्या जतन मैं
कोई बताये । - सावन लाये
रिमझिम फुहार
दिल बीमार - झूमा सावन,
आसुओं की है झड़ी
प्रतिक्षा शेष । - फैला प्रकाश
चमकती बिजली
मन उदास - मन भरा है,
ऐसी मिली सौगात,
बेवाफाई का । - तू भी रंगा है ?
मित्रता के रंग में,
कहां है जुदा ? - मुझसे प्यार,
कोई करे न करे,
मैं तो करूंगा । - गोताखोर मै,
दिल की गइराई
समुद्र तल । - ढूंढ रहा मै
अनंत गहराई
कहां समाई ? - मन का साथी,
चिड़िया हो चहको,
खुला आंगन । - प्रीत की रीत,
जल मरे पतंगा
सुधा पीकर । - चांद विहिन
पूर्णमासी का रात,
तू मेरी चांद । - तुझ बिन मै,
तेल बीन दीपक,
वजूदहीन । - धड़क रहा
दिल की धड़कन,
तेरे प्यार में । - हे अनुराग,
प्रेम एक पूजा है,
स्वच्छ निर्मल । - श्वास प्रश्वास
अधर पर नाम
स्नेही साजन । - सुनता कोई,
गुनगुनाता है कोई
मैं तो मौन हूं । - सुन रे आली,
मैं बाग का हूं माली,
सजाओ थाली ।
देश अपना
- संस्कारी बन,
संस्कृति संवाहक,
भारतवासी । - सारे जहां में
भारत यशगान
गीत बन जाये । - अपनत्व है ?
देश से सरोकार ?
सब बेकार । - आजादी पर्व
धर्म-धर्म का पर्व
देश का गर्व. - पाले सपना ?
आजादी के सिपाही
मिली आजादी ? 60.स्वतंत्र तंत्र
विचार परतंत्र
देश स्वतंत्र ? - कहां है खादी ?
कैसे भरे संस्कार ?
गांधी विचार । - मानव कढ़े
हर चेहरा पढ़े
विकास गढ़े । - सुस्त रूपया
लुड़कता बाजार
देश बेजार । - तन कैद में
मन आजाद रखे
मेरे शहीद । - देश की चिंता
हमें भी हैं करना
बन सपूत । - होंगेे विजेता
निज मन जो जीते
विश्व विजेता ।
राजनीति
- राजनीतिज्ञ,
कुशल अभिनेता,
मूक दर्शक। - कुटनीतिज्ञ
कुशल राजनेता
मित्र ही शत्रु - शकुनी नेता
लोकतंत्र चैसर
बिसात लोग - ढूंढते हुये
भ्रष्टाचार का पथ
खुद खो गया । - स्वतंत्र देश
परतंत्र शसक
ये कैसा नाता ?
शिक्षा नीति
- मीड डे मील,
बच्चे हैं बुद्धिहिन,
कैसी योजना । - ये शिक्षानिति
हमारी पाठशाला,
प्रयोग शाला । - मीड डे मील,
मौत के सौदागर
मासूम बच्चे ।
प्रकृति
- बरसे मेघ
टपकता छप्पर
गरीब घर - बाढ़ का पीर
सड़को पर नीर
बेबस जन - बद्री केदार,
हिमालय प्रकोप
आस्था का मारा - बदली छाई
धरती मुस्कुराई
प्यास बुझाई - खेती का काम
करते हैं किसान
पालनकर्ता । - काशी जो छाये
शरद ऋतु आये
प्रेम जगाये ।
लोकतंत्र
- भ्रष्ट प्रत्याशी
लालची मतदाता,
लोकतंत्र है ? - पढ़े लिखे हो ?
डाले हो कभी वोट ?
क्यो देते दोष ?? - देख लो भाई,
कौन नेता चिटर ?
तुम वोटर । - अमीट स्याही
खामोश रहकर
करते चोट । - क्यों मानते हो ?
ये देश तुम्हारा है ?
मौन क्यों भाई ?? - देख तमाशा
नेता मांगते भीख
लोकतंत्र है । - जांच परख
आँखो देखी गवाह
तुम्ही हो जज । - खोलता वह
आश्वासनों का बाक्स
सम्हलो जरा । - कागजी फूल
चढ़ावा लाया वह
हे जन देव । - मदिरा स्नान
गहरा षडयंत्र
बेसुध लोग । - चुनोगे कैसे ?
लड़खड़ाते पांव
ड़ोलते हाथ ? - होश में ज्ञानी
घर बैठे अज्ञानी
निर्लिप्त भाव । - जड़ भरत
देश के बुद्धिजीवी
करे संताप । - वह आदमी
बकबक कर रहा
मदहोश हो । - हे मुफ्तखोर
भ्रष्टाचारी मानव,
निज मान है ?
ऐसा भी
96. हम आजाद वे सभी कह रहे मर्यादाहीन 97. हिन्द की हिन्दी जन मन की जुबा होगी की नही ? 98. बुरा नही है ज्ञान जो हम जाने इस जग का । 99. सीमा की सीमा खो रही पहचान चीन शैतान । 100.आतंकवाद गर्दन रेत कर, करे संवाद ।
हाइकु शतक-रमेश चौहान
प्रवासी मन, हाइकु संग्रह-डॉ.जेन्नी शबनम