हरीश पटेल ‘हर’ के 30 मुक्‍तक

हरीश पटेल ‘हर’ के 30 मुक्‍तक

-हरीश पटेल ‘हर’

हरीश पटेल ‘हर’

हरीश पटेल 'हर' के 30 मुक्‍तक
हरीश पटेल ‘हर’ के 30 मुक्‍तक’

हरीश पटेल ‘हर’

(1)
पराया आसरा रखना बड़ी है भूल, गलती है।
भरोसा हो सदा खुद पर तभी तो दाल गलती है।
भले मानुष बड़े बिरले, यहाँ अपना नहीं कोई,
यहाँ अपनी सफलता ही सदा अपनों को’ खलती है ।

(2)
हुआ पत्थर वही पूजित, सदा जो चोंट है खाया।।
समय की मार से ही मन प्रबल ये हो तभी पाया।।
प्रभावों में वही रहता, अभावों में पला है जो,
खरा सोना वही जो हर कसौटी में निखर आया।।

(3)
घटा की चाह बस इतनी नदी बनकर बहा जाए।
नदी की चाह बस इतनी समंदर में समा जाए ।
गगन की सैर करना चाहता है नीर सागर का,
घटा बन नीर सागर का पुनः अम्बर में ‘ छा जाए।।

(4)
मिटाती आँख से आँसू विदा लेती हुई बिटिया ।
कहे व्याकुल न हो बाबुल, दुआ देती हुई बिटिया।
अगर संसार सागर में,फँसे मझधार में जब भी,
सदा तुमको मिलेगी नाव को खेती हुई बिटिया।

(5)
यही बस आरजू मेरी वतन के काम आ जाऊँ ।
शहीदों की शहादत – सा सही मैं दाम दे आऊँ ।
तिरंगे से लिपटकर मौत भी प्यारी लगेगी तब,
बड़े ही गर्व से इस जिंदगी की शाम कर पाऊँ ।

(6)
किसी के काम आने से हुआ यह तन सदा पावन ।
दया,ममता,क्षमा ने ही किया है मन सदा पावन।
सहारा धर्म का लेकर करें हम अर्थ का अर्जन,
यहाँ सत्कर्म के तप से हुआ जीवन सदा पावन।।️

(7)
घड़े का एक छोटा छेद ही जल है बहा देता ।
भले थोड़ा मगर अंगार जंगल है जला देता।
खटाई की जरा सी बूँद से ही दूध फटता है,
इसी के भाँति ही इक दोष सब गुण है छिपा देता।

(8)
जहाँ का अन्न है खाया,धरा में बीज को बों कर ।
जहाँ दिन – रैन कटते हैं, हमेशा चैन से सोकर।
शिराओं में लहू की धार जिसकी नीर से निर्मित ।
रहें इसका सगा होकर , रहें इसका सदा होकर।।

(8)
हुए क्यों शोक से संतप्त, मन में क्यों भरा भय है ।
विनाशी देह है इसके लिए क्यों प्रेम अतिशय है ।
मिटा मन से विषादों को उठा गांडीव को अर्जुन,
लड़े जो धर्म के हित में वही रण जीतता, तय है।।

(9)
हवा में बात करने से न कोई काम होता है।
बिना श्रम के न हाथों में कभी परिणाम होता है।
वही होता सफल जग में जिसे विश्वास कर्मों पर,
उड़े जो कल्पना के व्योम में, नाकाम होता है।।

(10)
नहीं मिलता कभी भी लक्ष्य अति उत्साह में साथी।
कभी मत फूलना कोरी प्रशंसा,वाह में साथी।
समय बलवान है ये मोड़ जीवन में कई लाता
जरा चलना सम्भल कर जिंदगी की राह में साथी।।

(11)
सिया के राम सबके राम हैं,आधार जन -जन के।
मिले आराम, जिनके नाम से सब दुख कटे मन के।
गया जो भी शरण उनकी,उसे अपना लिए रघुवर,
सदा से हैं रहे श्री राम, धन-भंडार, निर्धन के।।

(12)
कभी ना हौसला टूटा, कभी ना हार मानी थी।
पराजय भी मिला लेकिन नई जो रार ठानी थी।
सिखाया कीच में भी बन ‘कमल’ कैसे हमें रहना,
सदा सुनता सदन हो शांत केवल अटल वाणी थी।।

(13)
कभी रोया नहीं खुलकर छिपाया दुख सदा मन मे,
सदा संतान के खातिर बिताया कष्ट जीवन में
दिलाते हैं हमें सब कुछ, निभाते हैं सभी रिश्ते,
पिता सा है नहीं कोई धरा, आकाश, त्रिभुवन में।।

(14)
धरा में है मुझे लाया, सुलाया गोद में अपने।
पिलाया दूध का अमृत, खिलाया प्रेम से जिसने।
कहूँ माँ के लिए मैं क्या, हुए अल्फाज़ कम सारे,
हमेशा आसरा देती, अगर ठुकरा दिया जग ने।

(15)
तराने प्रीत के गाओ निभाओ प्रेम से रिश्ता ।
न टूटेंगे कभी बंधन बनाओ प्रेम से रिश्ता।
धरा में है कमीं बस प्रेम की ही और जरुरत भी,
सभी को है यही करना सिखाओ प्रेम से रिश्ता।।

(16)
कभी तो कर दिया कर दान,दोनो वक्त की रोटी।
न खा पाते कई इंसान, दोनों वक्त की रोटी।
मिला भरपेट भोजन तो बड़े तकदीर वाले तुम,
कमाना है नहीं आसान, दोनों वक्त की रोटी।।

(17)
हिमालय है मुकुट जिसका,सदा पग धो रहा सागर।
धरा श्री राम जी की है, यहीं घनश्याम नट नागर।
यही माँ भारती, जिनसे मिला है प्रेम देवों से,
भरी रहती सदा ही भारती के प्रीत की गागर।।

(18)
रखो मन में सदा संयम, सदा व्रत नेम से रहना।
बड़ा अनमोल है जीवन सभी से प्रेम से रहना।
मिले अंगार भी पथ में,नहीं रुकना कभी साथी,
सदा जलते अनल में भी चमकते हेम से रहना।।

(19)
हमेशा साधना का साध्य ही साहित्य होता है।
हमेशा सत्य से जिसका यहाँ औचित्य होता है।
सिपाही है कलम का वो,कलम शमशीर है उसका ,
हमेशा झूठ से ही युद्ध जिसका नित्य होता है।

(20)
किसी से आसरा रखकर, नहीं भ्रम मान लेना तुम।
नहीं कोई सहायक है जगत में जान लेना तुम।
भरोसा गैर कंधों पर, कभी भी तुम नहीं करना,
किसी भी काम से पहले उसे बस ठान लेना तुम।।

(21)️
जवानों देश के जागो, जगाना है जमाना भी।
चलो अब नींद को छोड़ो, उठो है पग बढ़ाना भी।
निराशा की निशा काली,दिवाकर बन तमस हरना,
सदा ऊर्जा कि किरणों से जगत को जगमगाना भी।

(22)
हजारों मुश्किलों में भी यहाँ जो मुस्कुराता है।
सदा कंटक पथों में छाप खुद की छोड़ जाता है।
निभाता है सही किरदार अपना इस धरा में जो,
जमाना याद कर उसको उसी के गीत गाता है।

(23)️
मिला आशीष जब उनका हुआ उत्थान तब जाकर।
दिया है ज्ञान गुरुवर ने मिला सम्मान तब जाकर।
गवाही दे रहा इतिहास, हो रघुनाथ या मोहन,
हुई गुरु की कृपा उनपर बने भगवान तब जाकर।

(24)
कभी भी याद, गलती से किया तुमने नहीं मुझको ।
जरा सा प्यार मांगा था, दिया तुमने नहीं मुझको ।
इरादा नेक मेरा है, नहीं था मन कभी मैला,
जिया खुद में तुझे मैंने,जिया तुमने नहीं मुझको ।

(25)
हुआ है आज पहली बार मैं यों रो रहा हूँ जी
नयन के नीर से तपते हृदय को धो रहा हूँ जी
बुझा है आस का दीपक, दिवाकर की छटा धूमिल
उसे पाने कि चाहत में स्वयं को खो रहा हूँ जी

(26)️
कभी भी याद, गलती से किया तुमने नहीं मुझको ।
जरा सा प्यार मांगा था, दिया तुमने नहीं मुझको ।
इरादा नेक मेरा है, नहीं था मन कभी मैला,
जिया खुद में तुझे मैंने,जिया तुमने नहीं मुझको ।

(27)️
हुआ है आज पहली बार मैं यों रो रहा हूँ जी।
नयन के नीर से तपते हृदय को धो रहा हूँ जी।
बुझा है आस का दीपक, दिवाकर की छटा धूमिल,
उसे पाने कि चाहत में स्वयं को खो रहा हूँ जी।।

(28)
दवा हो गम भुलाने की हमें दे दो हमें दे दो
अदा कोई मुस्कराने की हमें दे दो हमें दे दो
हमें पागल नहीं रहना, नहीं रहना दिवाना बन
पता होगा अगर उनका हमें दे दो हमें दे दो

(29)
हुआ है आज पहली बार मैं यों रो रहा हूँ जी।
नयन के नीर से तपते हृदय को धो रहा हूँ जी।
बुझा है आस का दीपक, दिवाकर की छटा धूमिल,
उसे पाने कि चाहत में स्वयं को खो रहा हूँ जी।।

(30)
चढ़ाया शीश सीमा में, निभाया फर्ज अपना है।
शहीदों में कराया नाम जिसने दर्ज अपना है।
वहाँ वे स्वर्ग में बैठे बिना संशय कहेंगे ये,
दिया है देश को सबकुछ, चुकाया कर्ज अपना है।

हरीश पटेल ‘हर’

-हरीश पटेल "हर"
  ग्राम - तोरन, 
(थान खम्हरिया)
    बेमेतरा

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6 thoughts on “हरीश पटेल ‘हर’ के 30 मुक्‍तक

  1. बहुत ही सुंदर प्रेरणादायक मुक्तक भैया जी

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