‘दो बैलों की कथा’ का छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद ‘हीरा अउ मोती’

मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘दो बैलों की कथा’ का छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद

“दू बइला के किस्सा” -हीरा अउ मोती

-अनुवादक-रमेशकुमार सिंह चौहान

"दू बइला के किस्सा"-हीरा अउ मोती
“दू बइला के किस्सा”-हीरा अउ मोती

जानवर मन मा गदहा ला सबले बड़े अक्ल वाले समझे जाथे । जब हम कोनो ला अउवल दरजा के बेकूफ कहना चाहथन त वोला गदहा कहिथन । गदहा हा सही सही मा बेवकूफ हे के ये हा ओखर सीधापन हे, ओखर निसफिकर सब संग घुले मिले के गुण हा ओला ये पदबी दे हे । येखर का ठीकाना गाये सींग मारथे, अभी-अभी जनमे गाय कइसे अचानक बघनीन हो जथे । कुकुर हा बहुत गरीब-गुरबा जानवर आये, फेर कभू कभू गुस्सा मा आई जथे । फेर कोनो गदहा ला गुस्सा करत सुने हंव, कोनो देखे हंव । चाहे ओला कतको मारव-पिटव, चाहे कइसनो सरहा कचरा खाय बर दे दौ । ओखर चेहरा मा कभू उदासी के भाव नई दिखय । बइसाख मा भले एकाक घा मस्ती मा शरारत कर लेथे फेर ओला कभू खुश होत नई देखे गे हे । ओखर चेहरा मा दुख के बादर हा चोबीस घंटा छाये रहिथे । सुख-दुःख, नफा-नुकसान चाहे काहीं होय ओइसने के ओइसने । ऋषी-मुनी के जतका गुण होथे वो जम्मो गुण पूरा के पूरा ओमा दिखथे । फेर वाह रे मनखे ओला बेकूफ कहिथें । गुण के अतका बेइजत्ती ।

       शायद ये संसार मा सीधापन के कोनो कदर नई हे । देख ना भारत के रहईया मन के आफ्रिका मा का गति हे । काबर ओमन ला अमरीका मा घुसरन नई दे जात हे । ओमन शराब नई पीयय, चार पइसा बेरा-बखत बर बचा के रखथें । जांगर टोर बुता करथें, कोखरो संग लड़य-झगड़य नहीं, चार बात सुन के गम ल पी जथें । तभो बदनाम हें, कहे जाथे, ये जीवन के आदर्श ला खालहे गिरावत हे । कहूं ये मन ईट के जवाब पथरा ले दे बर सीख जतीन त सभ्य, जेंटल कहाय ल धर लेतींन । जापान के मिसाल देखे के लइक हे, एके ठन जीत हा ओला संसार के सभ्य जाती मा ला के खड़ा कर देइस । फेर गदहा के एक अउ छोटे भाई हे, जउन ओखर ले कम गधहा हे, वा हे ‘बइला‘. जेन अर्थ मा गदहा के परयोग करथें कुछ ओइसने बछिया के बड़े ददा के घला उपयोग करथें । कोनो-कोनो बइला ला सबले बड़े बेकूफ कहिथें । फेर हमर सोच अइसन नई हे । बइला कभू-कभू मारथे, कभू कभू अड़ के खड़ा होत घला देखे जा सकत हे अउ कोनो न कोनो ढंग ले अपन गुस्सा अउ दुख ला देखाई डरथे तभे गधा ला येखर ले नीचे रखे गे हे ।

         झूरी करा दू ठन बइला रहिस- हीरा अउ मोती. देखे म सुघ्घर, काम-बुता मा टंच, ऊच्च-पुर बहुत दिन एके संग रहत-रहत दूनो मा भाई-भाई कस मया हो गे रहय दूनो एक दूसर कोती मुँह करे अपन भाखा म गोठियावत-बतावत रहंय । एक-दूसर के मन के बात ला कइसे समझ जात रहिन हे, हम कह नई सकन । जरूर उनमा कोई गुप्त षक्ति होही । सब जीव म अपन आप ला सबले श्रेष्ठ कहइया मनखे मन येखर ले रीता रहिगे । दूनों एक दूसर ला सूॅंघ के, चाट के एक दूसर ले मया बांट लेत रहिन, कभू कभू दूनों झन सींग मिला लेत रहिन, लड़े बर नही खियाले कुछ के मजा ले बर मया लगा के मया देखाय बर, जइसने दूनों म मया होय लगथे तइसने मस्ती मा कुस्ती होय लगथे । येखर बिना दोस्ती टांय-टांय फुस हो जथे, दोस्ती कमजोर पर जथे, फेर जादा विष्वास नई करे जा सकय । जब दूनो बइला गाड़ी मां फंदातिन तहां अपन-अपन मुड़ी ला हला-हला के अइसे कोशिश करतिन के जादा ले जादा गरू ओखर पीठ मा आवय ।

      दिन-भर जब मझंनिया के संझा दूनो हीरा अउ मोती ढिलातीन तहां दूनों एक दूसर ला चाट-चाट के अपन दिन भर के थकासी ला मढ़ातीन । कोटना मा बोरे कोड़हा-भूसा दाना ला दूनों एके संग मुॅह ला बोर-बोर के खाये लगतीन । कहूं एक झन अपन मुॅह ला कोटना ले हटा लेतीस त दूसर घला अपन मुॅह ला कोटना ले निकाल लेतीस ।

       संयोग के बात के झूरी एक घा दूनों बइला हीरा अउ मोती के जोड़ी ला अपन ससुरार भेज दिस । बइला मन ला का पता उन्हला कहां भेजे जात हे, समझिन मालिक हा उन्हला बेच दिस । उन्खर अइसन बेचई उन्हला बने लगीस के घिनहा राम जानय, फेर झूरी के सारा गया ला अपन घर तक बइला मन ला लेगे मा पसीन छूटगे । पाछू ले कहू हॉकतीस त उल्टा-सीधा भागतीन, सांकड़ा धर के कहू आघू ले खीचतिस त दूनों पाछू कोती जोर लगाये लगतीन, कहूं मारतीस त दूनो सींग ला नवा के हुंकारे लगतीन । कहूं भगवान हा उनमन ला कहूं जुबान दे रहितीस त झूरी ले पूछतीन -हम गरीबहा मन ला आखीर काबर निकालत हस कहिके ।

     हमन तो तोर सेवा करे मा कोनो कसर नई छोड़े हन । कहूं अतका बुता-काम मा काम नई चलतीस त अउ जादा कमा लेतेंन । हमन ला तो तोर चाकरी मा मरना तक कबूल हे । हमन तो कभू दाना-पानी बर तो कभू शिकायत नई करे हन । जउन तैं हां हमन ला खाये-पीये बर देत रहे तेन ला हमन चुपचाप मुड़ नवा के खा-पी लेत रहेन, फेर तैं काबर हमन ले अइसन जालिम के हाथ मा बेच देस ।

      मुंंधियार होय के बेरा दूनो बइला हीरा अउ मोती अपन नवा जघा मा पहुॅचीन । दिन-भर के भूखाये रहिन, तभो ले जब कोटना मा लेगे गीस त एको झन अपन मुॅह मा नई डारिन । दिल भारी होत रहिस । जेला उमन अपन घर समझत रहिन, वो हा आज छूट गे, नवा घर, नवा गांव नवा आदमी उमन ला अनचिन्हार लगत रहिस ।

      दूनों हीरा अउ मोती चुपे-चाप अपन भाषा मा सलाह करीन, दूनों एक-दूसर ला कनेखी देखिन अउ चुपे-चाप सुत गे । जब गांव मा सोवा परगे त दूनों झन जोर लगा के खूंटा ला तोड़ डरिन अउ अपन घर कोती चले लगीन । खूंटा बहुते मजबूत रहिस, अइसे नई लगत रहिस के कोनो बइला ये खूंटा ला टोर डरतिन फेर दूनो मा ये समय दूनों के ताकत ह दुहरा हो गे रहिस ।  एके झटका मा डोरी टूट गे ।

     सुत उठ के बिहनिया ले देखथे के दूनो बइला हीरा अउ मोती कोठा मा खड़े हंवय । दूनों के टोटो आधा-आधा गेरूवा लटकत रहय । माड़ी भर चिखला सनाय रहय । दूनो के आंखी ले गुस्सा संग मया फूटत रहय ।

      झूरी बइला मन ला देख के गद्गद होगे । दउड़त जाके पोटार लेइस, मया मा चुमे लागीस । बड़ मनोहर झांकी रहय ।

     घर अउ गांव के लइकामन सकलागे । ताली बजा-बला के उन्खर आव-भगत करे लगीन । गांव के इतिहास म अइसन अउ होय रहिस के नही का पता फेर ये गांव बर एक बड़े बात रहिस । लइका मन बानर दल तय कर लेईन, ये दूनो पशु-पहलवान मन के सम्मान होना चाही । कोनो अपन घर ले रोटी लाइन, कोनो गुड़, कोनो चोकरा, कोनो भूसा ।

एक लइका कहिस – ‘अइसन बइला कोखरो मेरा नई होही’
दूसर हां-मा-हां मिलात कहिस- ‘अतका दूरिहा ले दूनों अकेल्ला चले आइन’
तीसर हा कहिस- ‘ये मन बइला नो हय, आघू जनम के मनखे आंय’

येखर विरोध करे के कोनो हिम्मत नई कर पाईन । झूरी के सुवारी जब बइला मन ला घर के दुवारी मा देखीस त आगी कस बरे लग गे । कहिस-‘ बहुत नमक हराम बइला हे, एक दिन घला काम-बुता नई कर सकीन, भाग के आगे ।’

     झूरी अपन बइला हीरा अउ मोती मन बर अइसन गोठ सुन नई सकीस-‘ नमक हराम काबर ? दाना-पानी नई देइस होही त का करतीन ?’ ओखर सुवारी हा रोब झाड़त कहिस- भइगे-भइगे तही भर तो बइला मन ला दाना-भूसा खवाय ल जानथस बाकी मन तो सुख्खा पानी पीया के रखत होंही ।’

झूरी चिढ़ावत कहिस- ‘दाना-पानी मिलतीस त काबर भागतीन ।
ओखर सुवारी चिढ़ गे -‘येखर सेती भगीन होही के ओमन तोर बुद्धु कस बइला मन सहलावय नही, खवाथे त रगड़ के जोतथे घला । ये दूनो ठइरिन कामचोर, भाग गे ऊंहा ले, अब देखत हंव कहां ले खली अउ चोकरा मिलथे । सुख्खा भूसा के सिवा कुछ-छू नई देवंव, खावंय चाहे मरंय ।‘

वोही होइस । नौकर ला ओ बने चेता दिस के बइला मन ला सुख्खा भूसा के छोड़ कुछ-छूवन मत देवय।
बइलामन कोटना म मुँह डारिन त सिठ्ठा-सिठ्ठा, न कोई सर न कोई स्वाद !
का खायें ? दुवारी कोती ल निहारे लग गें । झूरी हा नौकर ले कहिस-‘‘ एकोकनी कोड़हा-खरी डार नई सकस बे ?‘‘
‘‘मालिकन मोला मारे डरही ‘‘
‘‘लुका-चोरी डार नई सकस‘
‘‘नही रे ददा, पाछू तहूं ओखरे कोती बोले लगबे ‘‘

दूसर दिन झूरी के सारा फेर आइस अउ बइला मन ला ले के चल दिस । येदरी वो हा दूनो बइला ला गाड़ी म फांदिस ।
दू-चार घा मोती ह गाड़ी ल खाई गिराये के कोशिश घला करिस, फेर हीरा हा संम्हाल लेईस । वो हा जादा सहइया जीव रहिस ।
संझा बेरा घर पहुंच के वो हा दूनों बइला ला मोठ-मोठ डोरी ले बांध देइस अउ काल के मजा चखाईस फेर सुख्खा भूसा कोटना मा डार देईस । वोही मेरा अपन दूनो बइला ला कोड़हा-खरी सब कुछ देइस ।

      दूनों बइला हीरा अउ मोती के अइसन अपमान कब-भू नई होय रहिस । झूरी हा इमन ला फूल के छड़ी तक ले छूवत नई रहिस । ओखर ललकार भर ले दूनों बइला उड़े लग जात रहिन । इहां मार खायें हें । अइसन अपमान ले दूनों दुखी तो रहिबे करे रहिन ऊपर ले मिलस का ? सूख्खा भूसा !

      कोटना कोती मुड़ उठा के देखिन तक नही ।

      दूसर दिन गया ह बइला हीरा अउ मोती मन ला नागर म जोतिस, फेर इन दूनों मन मानों गोड़ नई उठाय के कसम खा ले रहिन । वो मारत-मारत थक गे, फेर ये दूनों गोड़ नई उठाइन । एक घा जब वो निरदइ ह हीरा के नाक खूब डंडा जमाईस त मोती अपन गुस्सा मा काबू नई रख पाईस । नागर लेके भागिस, डाढ़ी-जोता सब टूट-टाट के बरोबर होगे । गला म कहू लंबा-लंबा डोरी नई रहितिस त दूनों पकड़ म नई आतिन ।

हीरा अपन भाषा म कहिस- ‘भागना बेकार हे ।‘
मोती कहिस- ‘तोला तो ये मारे डरे रहिस ।‘
‘अब तो अउ बहुते मार परही ।‘
‘परन दे बइला जोनी म जनम धरे हन त मार ले कब तक बाचबो ।‘
‘गया दू अउ आदमी संग दउड़त आवत हे, दूनों के हाथ म लाठी हे ।‘
मेती बोलिस- ‘ कहि त ये मन ल मैं मजा चखा दौंव ।‘
हीरा ह समझाइस-‘नही भाई ! खड़ा हो जा ।‘
‘मोला मारही त मैं एकाक झन ल पटक देहू ।‘
‘नही ये हमर जात के कोनो धरम नो हय ।‘

     मोती मने मन चूर के रहिगे । गया तबतक आ पहुॅचिस अउ दूनों झन ला पकड़ के ले गे । गनिमत रहिस ये बखत ओ कोनो मारपीट नई करिस, नही त मोती ह नई बचातिस । ओखर तेवर ल गया अउ ओखर संगी ह समझ के चुपेचाप रहिना भल समझिन ।

     आज दूनों हीरा अउ मोती के सामने फेर ओही सुक्खा पैरा-भूसा डारे गेइस, दूनों चुपेचाप खड़े रहिन ।

     घर मा सबझन खाये-पीये लगीन वोतके बेरा एक नानकुन नोनी हाथ मा दूठन रोटी धरे निकलीस अउ दूनों के मुँह मा दे के चल दिस । वो एक रोटी ले उन्खर भूख का माड़तिस फेर हां फेर उन दूनो के करेजा ला ठंड़ा मिलिस मानो सही मा खाये ला मिल गे । इहां कोनो तो बने मनखे रहिथे ।  वो नोनी भैरो के रहिस । ओखर दाई मर गे रहिस । मौसी दाई ओखर ले मारमीट करय । येखर सेती ओ नोनी ला ये बइलामन ले मया हो गे रहिस ये मन अपन कस लगत रहिस । दूनो बइला दिन-भर जातिन, डंडा खातिन, अड़तिन, अउ कोठा मा बंधा जातिन अउ रात के वोही नोनी येमन ला दू रोटी खवा देतिस । मया के प्रसाद मा अतका बरकत रहिस के दू-दू कोटना सूख्खा भूसा खाके घलो दुबरावत नई रहिन फेर उन दूनों के आँखी मा, रूवाँ-रूवाँ मा विद्रोह भर गे रहिस ।

एक दिन मोती हा अपन मुक्का भाषा मा कहिस- ‘अब तो नई सहावत हे हीरा !
‘का करे के सोचे हस ?
‘‘एकाकझन ला सिंग मा उठा के पटक देहूँ’’
‘‘फेर सोचे हस, ओ नोनी जेन हमला रोटी खवाथे, वो हर ओखरे बेटी ये, जेन ये घर के मालिक हे, बिचारी बिन ददा के अनाथ हो जही ।’’
‘‘त का मालिकन ला पटक दौंव, ओही, बिचारी नोनी ला अब्बड़ के मारथे ।’’
‘‘अरे भाई माइलोंगिन  ऊपर सिंग चलाना मना हे, येला काबर भूलाजथस ।’’
‘तैं तो कोनों ढंग ले निकलने नई देवस, बता खूँटा टोर-टार के भाग चली ।’
हाँ, चल मैं मान जथँव फेर अतका मोटहा गेरवा के डोरी टूटही कइसे ?’
‘येखर एक तरीका हे पहली डोरी ला थोकिन चाबे जाये फेर एक झटका के काम हे ।’

       रतिहाजब नोनी रोटी दे के चल दिस त दूनोंझन गेरवा के डोरी ल चबाये लगिन फेर डोरी अतका मोटहा रहिस के उन्खर मुँह मा आत्ते नई रहिस बिचारामन घेरी-घेरी जोर लगा के रहिही जांय ।

अचानक घर के दरवाजा खुलीस अउ वो नोनी हा निकलिस , दूनोंझन मुड़ीनवा के नोनी के हाथ ला चाटे लगीन, दूनों हीरा अउ मोती के पूछी खड़ा हो गे । नोनी ऊँखर माथा ला सहलाये लगिस अउ कहिस-‘ गेरवा ला खोल देथव, चुप्पेकन भाग जाहूँ, नही ता येमन मार डारहीं आज घर मा सलाह होत रहिन इँखर नाक मा नाथ डाले जाय कहिके ।

ओ हर गेरवा ला खोल दिस, फेर दूनोंझन चुप्पे खड़े रहँय
मोती अपन भाषा मा पूछिस-‘अब चलत काबर नई हस ?’
हीरा हा कहिस-‘चले बर तो चल देबो फेर ये अनाथ ऊपर आफत आ जही, सबझन येखरे ऊपर शंका करे लगहीं ।

       अचानक नोनी हा चिल्लाय लगिस- फूफा वाले दूनों बइला भागत हे, ये ददा ! ददा ! दूनों बइला हीरा अउ मोती भागत हे, ये ददा !  ददा ! जल्दी दउडव ।

      गया हड़बड़ा के के भीतर ले निकलिस अउ बइलामन ला पकड़े लगिस, वो दूनों भागीन । गया पाछू करे लागिस, वोमन जोर से भागे लगिन, गया चिल्लाय लगिस, फेर गाँव के कुछ आदमी संग मा धरे बर लहूटिस, ओ दूनों संगी ला भागे के मौका मिल गे । सोझ दउडते रहिगे, दउडिइ मा रद्दा के सुरता तक नई रहिस । जेन चिनहे-जाने रद्दा ले आय रहिन, ओ रद्दा के ये मेरा पत्ता नई रहिस । नवा-नवा गाँव मिले लगिस । दूनों एक खेत के मेड़ मा खड़ा होके सोचे लग गें, अब का करना चाही ।

हीरा हा कहिस-‘मोला लगथे हमन रद्दा भूला गे हन ।’
‘तहुँ नगत के भागे हस, वोही मेरा ओला मार देना रहिस ।’
‘ओला मार देतेन ता दुनिया का कहितिस ? ओ भला अपन धरम छोड़ दय, हम अपन धरम काबर छोड़ी ।

     दूनों हीरा अउ मोती भूख ले व्याकुल होत रहिन, खेत मा बटुरा लगे रहिस, चरे लगिन, रही-रही के कान देत रहिन के के आवत तो नई हे ।
जब पेट भर गे, दूनों ला लगिस अब ओमन ढिल्ला हें मस्त हो के मस्तीयें लगिन, उझले-कूदे लागिन । पहिली दूनों डकार लेइन फेर दूनों सींग मिला के एक दूसर ला ठकेले लगिन मोती हीरा ला कई कदम पाछू कर दिस, इहाँ तक के वो गड्डा मा गिर गे तब ओला गुस्सा आ गे, संभल के उठिस अउ मोती संग भिड गे । मोती देखिस खेल-खेल मा झगड़ा बाढ़ जही ओ पाछू हट गे ।

    अरे ये का ? कोई सांड गरजत आवत हे । हाँ, सांडेच तो आय । वो एकदम आघू मा आ गे । दूनों संगी एक-दूसर ला देखे लगिन । सांड, एकदम हाथी कस रहिस । ओखर ले भिड़ना जान ले हाथ धोना हे, लेकिन भिड़े मा घला जान बाचे के कोनो गूंजाइस नई दिखत हे । इँखरे कोती आवत घला रहय । कतका भयंकर सूरत हे !
मोती हा मूक भाषा मा कहिस-‘बुरा फंसगेन, जान बाचही ? कोनो उपाय सोच ।
हीरा चिंतित लहजा मा कहिस-‘अपन घमंड मा चूर हे कोनो अरजी-बिनती नई सुनही ।
‘भाग चली का ?’
‘भागब कायरता होही’
‘त इहें मर, हम तो इहाँ ले फुर्र होत हन ।
‘अउ दउडाही त ?’
‘त कोनो उपाय सोच जल्दी !’
‘उपाय येही हे के हम दूनों मिलके हमला करथन । मैं आघू कोती ले रउन्दत हँव, तैं पाछू कोती ले रउन्द । दूनों कोती ले मार परही त भागबे करही । कहूँ मोर कोती झपटही त तैं बाजू डहर ले सिंग घुसेर देबे, जोखिम तो हे, फेर कोनो दूसर उपाय नई हे ।

दूनों संगी हीरा अउ मोती परान हाथ म धर के उदडीन । सांड ला घला अइसन जुरमिल के लडईया बैरी मन से लड़े के कोनो तजूरबा नई रहिस ।

     वो तो एक-एक बैरी संग लड़े टकरहा रहय । जइसने हीरा हा झपट्टा मारीस, मोती पाछू कोती ले दउड़ाये लगिस । सांड़ ओखर कोती मुड़िस त हीरा हुबेले लगिस । सांड़ चाहत रहिस के एक-एक करे दूनों ला गिरा लय, फेर ये दूनों घला उस्ताद रहिन । ओला ओ मौका देत्ते नई रहिन । एक-घा सांड़ हा झल्ला के हीरा ला मारी डरहूँ के दउडिस त मोती दूसर कोती ले ओखर पेट मा सिंग भोंग दिस । सांड़ गुस्सा मा तलमला के पाछू मुड़िस त हीरा ह दूसर कोती ले सिंग गड़ा दिस ।

     आखिर बिचारा लहूँ-लुहान होके भागीस । दूनों संगी बहुत दुरिहा तक पाछू करिन । इहाँ तक के भागत-भागत सांड़ बेहोश होके गिरगे । दूनों संगी जीत के नशा मा चूर झूमत-नाचत चले जात रहिन ।

मोती अपन भाषा मा कहिस- ‘मोर मन करत रहिस ओला मारी डरँव ।’
हीरा मना करत कहिस- ‘गिरे बैरी ऊपर सींग नई चलाना चाही ।’
‘ये सब बकवास हे, बैरी ला अइसे मारना चाही के ओ उठे मत सकय ।’
‘अब घर कइसे पहुँचबो तेला सोच’
‘पहिली कुछु खा ली, तब ना सोची’

     आघू बटुरा के खेत रहय , मोती घुस गे, हीरा मना करते रहिगे, फेर ओ ओखर एक्को नई सुनिस । अभी दूये-चार कौरा खाये रहिस होही के आदमीमन लाठी लेके दउड़ाये लगिन अउ दूनों संगी ला घेर लेइन । हीरा तो मेड़ मा रहय निकल गे । मोती पल्लो करे खेत मा रहिस । ओखर खुर हा चिखला मा धंसे लग गे । भागे नई सकिस, पकड़ा गे । हीरा देखिस संगी मुसिबत मा हे त लहुट गे, फसबो त दूनों फसबो । रखवार मन ओहू ला पकड़ लीन ।

बिहनिया दूनों संगी हीरा अउ मोती कांजीहउस मा बंद कर दे गेइन ।

      दूनों संगी हीरा अउ मोती ला जीवन मा अइसन पहिली दुख परे रहय के पूरा दिन बीत गे अउ खाये बर एकोठन कांदी-कचरा तक नई मिले रहय ।  समझ नई आत रहिस ये कइसन मालिक हे, येखर ले तो कइसनो होय गया हा बने रहिस । इहाँ कईठन भइसा रहिस, कईठन छेरी, कईठन घोड़ा, कईठन गदहा, फेर कोखरो आघू मा चारा नई रहिस । सब के सब भुईंया मा मुर्दा जइसे पड़े रहँय ।

     कईठन अतका कमजोर हो गे रहँय के खड़ा तक नई हो सकत रहिन । पूरा दिन दूनों संगी रचावर कोती टकटकी लगाये देखते रहँय, फेर कोनो चारा लेके आत नई दिखँय । तब दूनोंझन दीवार के नुनछुर माटी ला चाटे ला शुरू कर दिन, फेर का येखर ले पेट भरही ।

     रात के घला जब कुछु खाय ल नई मिलीस त हीरा के दिल मा बगावत के आगी बरे लग गे । मोती ले कहिस-‘अब सहे नई जात हे मोती !

मोती मुड़ लटकाय कहिस-‘मोला अइसे लगथे के परान छूटत हे ।’
‘आ दीवाल ला तोड़थन’
‘मोर ले अब कुछ नई होवय’
‘बस येही बल-बूता मा अकड़त रहेय’
‘जम्मा अकड़ निकल गे’

     बाड़ा के दीवाल कच्चा रहिस । हीरा मजबूत तो रहिबे करिस, अपन चोचखारू सींग ला दीवाल मा गड़ा दिस अउ जोर लगाईस त माटी के ढिन्ढ़ा निकल गे । फेर तो ओखर हिम्मत बाढ गे । दउड़-दउड़ के दीवाल फोरे के कोशिश करे लग गे हर दरी थोर-थोर माटी गिरे लगिस ।

     ओतके बेरा कांजीहाउस के चौकीदार कंडील धर के जानवर मन के हाजरी लेबर निकले रहय । हीरा के बदमासी देख के कई डंडा पिटीस अउ मोटहा असन डोरी ले बांध देइस ।

मोती ढुलगे-ढुलगे कहिस-‘आखिर मार खायेस ना, का मिलिस ?’
‘अपन ताकत भर जोर लगायेंव तो’
‘अइसनो जोर लगाना का काम के जेखर ले अउ बंधा गेस’
‘जोर तो लगाबे करहूँ, चाहे कतको बांधय’
‘परान जात रहिही’
‘कोनो चिंता नई हे, मरना तो अइसे भी हे । सोच के देख कहूँ दीवाल गिर जतिस त के झने के परान बच जतीस । अतका भाई इहां बंद हे । कोखरो देह मा जान नई हे । दू-चार दिन येही हाल रहिहीं त मर जहीं ।’
‘हाँ, ये बात तो हे, अच्छा त ला महूँ ला जोर लगावन दे ।’

    मोती हा दीवाल मा सींग मारिस, थोकिन माटी गिरीस अउ फेर हिम्मत बाढ़ गे, फेर दीवाल म सींग फँसा के अइसे जोर लगाय लगिस के जइसे कोनो बैरी संग लड़त हे का । आखिर दू घंटा के जोर-अजमाईस के बाद दीवाल के ऊपर ले ओही-कहूँ एक हाथ के दीवाल गिर गे । ओ दुहरा ताकत लगा के दूसर धक्का लगाईस आधा दीवाल गिर गे ।

     दीवाल के गिरते अधमरा परे सबो जानवर के जान मा जान आगे, तीनों घोड़ी सरपट भाग गे, फेर छेरी मन निकल गे, येखर बाद भइसा मन निकल गे, फेर गदहा मन जइसे के तइसे खड़ेच रहँय ।

हीरा पूछिस-‘तुम दूनों ला नई भागना हे का ?’
एक गदहा कहिस-‘भागेन कहूँ अउ फेर पकड़ ले गेन त’
‘त का होही, अभी तो भागे के मौका हे’
‘हमला तो डर लगथे, हमन तो इहें पड़े रहिबो’

      आधा रात ले जादा हो गे रहय । दूनों गदहा अभी ले खड़े सोचत रहँय भागिन के मत भागिन, अउ मोती अपन संगी के डोरी ला तोड़े के कोशिश मा लगे रहय । जब वो हार गे त हीरा हा कहिस-‘तैं जा, मोला परे रहन दे, शायद कभू, कहूँ भेट हो जय ।

     मोती हा आँखी मा आँसू छलकात कहिस-‘तैं मोला अतका स्वार्थी समझथस, हीरा मैं अउ तैं एक संग रहे हन । आज तैं विपत मा पर गे हस त मैं छोड़ के चल दौं ?

‘बहुत मार परही, मनखें समझ जाहीं, ये सब तोरे करसथानी आय ।’
 मोती छाती फूला के कहिस-‘जेन अपराध के सेती तैं बंधाय हस, ओखर बर कहूँ महूँ ला मार परही त, का के चिंता । अतका तो होई गे हे के नौ-दस झन के जान तो बच गे, ओमन आर्शीवाद तो देहीं ।

     अइसन कहत मोती दूनों गदहा ला सींग ले हुबेल-हुबेल के बाड़ा ले बाहिर निकाल के अपन संगी तीर आके सो गय ।

     बिहनिया होत्ते मुंशी, चौकीदार मन मा कइसे खलबली मचीस होही, येला लिखे के जरूरत नई हे । बस अतका काफी हे के मोती के खूब मरम्मत होइस अउ मोटहा डोरी ले बांध दे गिस ।

     एक हप्ता तक दूनों संगी हीरा अउ मोती ऊँहें बंधाय रहिगे । कोनो एक मुठा कांदी-कचरा तक नई डारिन । हाँ, एक बार पानी देखा देत रहिन । येही ऊन्खर आधार रहय । दूनों हीरा अउ मोती अतका कमजोर हो गे रहिन के उठे तक नई सकत रहँय, हाँड़ा-हाँड़ा दिखत रहय । एक दिन बाड़ा के आघू मा डुगडुगी बाजे लग गे अउ मझनिया होत-होत ऊँहा पच्चास-साठ आदमी जमा होगे । तब दूनों संगी ला निकाले गेइस अउ मनखेमन आके उन्खर सूरत ला देखय अउ उदास होके चल दँय ।

     अइसन मरहा बइला ला कोन खरीदही । अचानक एक झन दाढ़ीवाले आदमी, जेखर आँखी लाल रहय अउ चेहरा-मोहरा पथरा असन रहय, अइस अउ दूनों संगी के कुला में अंगरी डार के मुंशी ले बात करे लगिस । चेहरा देख के मनेमन दूनों संगी के करेजा काँप गय । वो का ये, काबर देखत हे, येमा कोनो शंका नई होइस । दूनों एक-दूसर ला डर-भूतहा देखिन अउ मुड़ी ला नवा दिन ।

    हीरा हा कहिस-‘गया के घर ले फोकट के भागेन, अब तो परान नई बाचय । मोती हा बिना श्रद्धा के भाव ले कहिस, भगवान सबके ऊपर दया करथे, ओला हमार ऊपर दया काबर नई आवय ?’

     भगवान के हमार बर जीना-मरना दूनों बराबर हे । चलव, अच्छा हे, कुछ दिन ओखर तीर तो रहिबो । एक बार ओ भगवान हा ओ नोनी के रूप मा हमला बचाय रहिस । का अब नई बचाही ।’
‘ये आदमी छूरी चलाही, देख लेबे ।’
‘त का के चिंता हे ? मास, खाल, सींग, हड्डी सब कोखरो तो काम आही ।’

    नीलाम होय के बाद दूनों संग वो दाढ़ीवाले के संग चलिन । दूनों हीरा अउ मोती के रूँवा-रूँवा काँपत रहिस । बिचारामन गोड़ तक ला नई उठा सकत रहिन । फेर डर के मारे गिरत-अपटत भागत जात रहिन, काबर के थोरको धीरे रेंगे मा डंडा पड़ जत रहिस ।

      रस्ता मा गाय-बइला मन हरियर-हरियर चारा चरत नजर आइन । सबो जानवर कतका खुश रहँय, चिक्कन, चंचल, कोनो उछलत रहँय त कोनो बइठे-बइठे सुग्घर पगुरावत रहँय । कतका सुखी जीवन रहिस अन्खर, फेर कतका स्वार्थी हे सब, कोनो ला ये बात के चिंता नई हे के ये दू भाई कसाई के हाथ म पर के कतका दुखी हें ।

      अचानक दूनों हीरा अउ मोती ला अइसे लगिस के रद्दा हा चिन्हे-जाने हे । हाँ, येही रद्दा ले गया हा लेगे रहिस । वोही खेत, वोही बगिचा, वोही गाँव मिले लगिस, हरपल उन्खर चाल बाढ़े लग गय । सब थकान, सब कमजोरी गायब हो गे । ये ले अपने गाँव आगे, येही कुँवा मा आत रहेन, हाँ येही कुँवा ये ।
मोती कहिस-‘हमर घर नजदिक आगे हे ।’
हीरा कहिस-‘भगवान के दया हे ।’
‘मैं तो अब घर भागत हँव।’
‘ये जान देही तब तो ?’
‘येला तो मारके गिरा देथँव ।’
‘नहीं-नहीं, दउड के कोठा तक चलथन, ओखर ले आघू नई जान ।’
दूनों हीरा अउ मोती नानचिक बछरू कस मेछरावत घर कोती दउड़ीन । वो हमर कोठा हे । दूनों दउड के अपन कोठा मा आके खड़ा हो गे । दाढ़ीवाले घला पाछू-पाछू दउडत आगे ।

     झूरी दुवारी म बइठे रवनिया तापत रहिस । बइलामन ल देखिस त दउड के एक-एक करके गला लगाये ला लगीस । दूनों संगी हीरा अउ मोती आँखी ले खुशी के आँसू झरे लगीस । एक झन हा झूरी के हाथ ला चाटत रहय ।

 दाढ़ीवाले जाके बइलामन के डोरी ला पकड़ लेइस । झूरी हा कहिस-‘मोर बइला ये ।’

‘तोर बइला कइसे हे ? मैं तो कांजीहाउस ले नीलाम मा खरीद के लावत हँव ।’
‘मोला लगत रहिस चोरा के लेगत रहे ! चुप-चाप तैं ये मेर ले भाग तो, ये मोर बइला ये, मैं बेचहूँ त तो बेचाही । कोनो ला मोर बइला के नीलाम करे के अधिकार नई हे ।
‘जाके थाना मा रिपोट कर देहूँ ।’
‘मोर बइला ये, येखर सबूत येही हे ये बइला मन मोर दुवारी मा खड़े हे ।’

     दाढ़ीवाले झल्ला के बइलामन ला जबरदस्ती पकड़े बर आघू बाढ़िस, ओतके बेर मोती सींग मा हुबेले ला करिस । दाढ़ीवाले पाछु घुचिस, मोती दउड़ाय लगिस । दाढ़ीवाले भागीस, मोती दउड़ाते गय, गाँव ले बाहिर निकाल के दम लेइस, फेर वो दाढ़ीवाले ला देखते रहिस, दाढ़ीवाले दूरिहा ले खड़े-खड़े धमकी देत रहय, गाली बकत रहय, पथरा मा फेक-फेक मारत रहय, अउ मोती जीते पहलवान कस रस्ता रोके खड़े रहय । गाँव के मन ये तमाशा ला देख-देख के खूब हँसत रहँय । जब दाढ़ीवाले हार के चल देइस त मोती अकड़ के लहूटिस । हीरा कहिस-‘मोला लगत रहिस कहूँ तैं गुस्सा मा आके मार डरबे का ।’
‘अब नई आवय ।’
‘आही त दूरिहा ले खबर लेहूँ, देखत हँव कइसे लेगही ।’
‘कहूँ गोली मरवा देही त ?’
‘मर भले जहूँ, फेर ओखर काम नई आवँव ।’
‘हमार जान के कोनो कीमते नई समझँय ।’
‘येखर सेती के हम अतका सीधा हन ।’

थोरके बेरा मा कोटना मा भूसा-दाना चारा भर दे गेइस अउ दूनों संगी हीरा अउ मोती खाय लगीन । झूरी खड़े-खड़े दूनों ला सहलाये लगिस । वो उन्हला पोटार लेइस । झूरी के बाई घला भीतर ले दउड़त-दउड़त निकल के आगे । वो हा आके दूनों बइला के माथा ला चूमे लग गे ।

अनुवादक-रमेशकुमार सिंह चौहान

रमेश चौहान के छत्‍तीसगढ़ी कहानी –मुर्रा के लाडू

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5 thoughts on “‘दो बैलों की कथा’ का छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद ‘हीरा अउ मोती’

  1. श्रीमान रमेश चौहान छत्तीसगढ़ी को भाषा का दर्जा दिलाए जाने के सार्थक प्रयासों में आपका योगदान अविस्मरणीय है।प्रेमचंद जी की प्रसिद्ध कहानी के मूल भावों को यथावत रखते हुए किया गया अनुवाद निःसंदेह साहित्यिक गरिमा के अनुकूल है।आपको हार्दिक बधाई।

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