हिन्दी दिवस काव्य संकलन
आज 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य पर हिन्दी भाषा को समर्पित कुछ कवियों की चुनिंदा कवितायें प्रस्तुत की जा रही हैं । आशा ही नहीं विश्वास है यह हिन्दी भाषा प्रेमियों को निश्चित ही अच्छा लगेगा-
हिन्दी दिवस काव्य संकलन (हिन्दी दिवस पर कविता)
1. हिन्दी भारत की थाती-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
इसमें जीवन का दर्पण,
संस्कृति के हैं स्वप्न प्रबल।
जन – जीवन को मिलता संबल
राष्ट्र प्रेम के रूपक निर्मल।
हिन्दी भारत की थाती की
अनुपम ,सुन्दर संवाहक।
हिन्दी भारत की क्षमता की
मोहक कृति , उन्नत रूपक।
इसमें जन जन का प्रेम बसा
इसने शीतल संवाद रचा।
भारत का संवाद प्रबल ,
इस भाषा में कितना प्रांजल।
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह,
अंग्रेजी प्रोफेसर, लखनउ विश्वविद्यालय
2. हमारी संस्कृति की पहचान है हिन्दी-सुनिल शर्मा “नील”
चलो माथे में अपनी माँ के इसको मिल सजाए हम |
कही खोई हुई है जो उसे अब ढूँढ़ लाए हम |
बिना बिंदी लगे है भाल सूना मातु भारत का,
चलो अब मान हिंदी का उसे फिर से दिलाए हम ||
हमारी संस्कृति की पहचान है हिन्दी
भारतवासियों का अभिमान है हिन्दी
माता का लाड, पिता का अनुशासन है
शिष्टता का जगत में वितान है हिन्दी
बड़ी मनभावन,बड़ी मीठी,बड़ी सरल
ईश्वर का मनुज को वरदान है हिन्दी
वीरों का शौर्य,सनातन की गाथा है
शिष्टता का सुंदर उपमान है हिन्दी
छन्द,कविता,गीत,कहानी,गजल, मुक्तक
भावों के प्रकटन का विधान है हिन्दी
तुलसी दिनकर सूर नीरज पंत कबीर
कवि को अमरत्व का वरदान है हिन्दी
मान का एकदिनी ढोंग करने वालों
सहती इससे अतिशय अपमान है हिन्दी
किंचित नारों में नही व्यवहार में लाएँ
ऐसा अब माँगती अभियान है हिन्दी ||
-सुनिल शर्मा”नील”
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
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3. हिंदी ही अपनाओ तुम हिंदुस्तानी हो यार.-डॉं. अशोक आकाश
हिन्दी दिवस है जश्न मनाओ प्रश्न उठाओ यार |
लेकिन खुद से पूछो तुम को इससे कितना प्यार ||
हिन्दुस्तान है मेरा देश मुझको हिन्दी से प्यार |
हिन्दी ही अपनाओ तुम हिन्दुस्तानी हो यार ||
हिन्दी की बातें करते जो इनकी टांगे तोड़ रहे ||
हिन्दुस्तान में हिन्दी भाषा मझधार में छोड़ रहे |
हिन्दी ही अपनाओ जिसको हिन्दुस्तॉ से प्यार ….
हिन्दी ही अपनाओ तुम हिंदुस्तान हो यार…..
हिन्दी में मां की ममता लगती माथे की बिंदी |
लेकिन हिन्दुस्तान में हो गई हिन्दी चिंदी चिंदी |
संस्कृत की बिटिया हिन्दी है अद्भुत संस्कार ….
हिन्दी ही अपनाओ जिसको हिंन्दुस्तान से प्यार ….
विश्व शक्ति बनने के लिए है बाकी थोड़ी दूरी |
मजबूत हिन्दुस्तॉ के लिए है हिन्दी बहुत जरूरी ||
हार ही जाता वह रण में जो मान ही लेता हार…..
हिन्दी ही अपनाओ जिसको हिन्दुस्ता से प्यार ….
नाम तो हिन्दुस्तान है पर संविधान अंग्रेजी |
संसद न्यायालय में चलती अंग्रेजी की कुंजी ||
हिन्दुस्तान में अंग्रेजी के आगे क्यों हिन्दी लाचार …..
हिन्दी ही अपनाओ जिसको हिन्दुस्तान से प्यार…
-डॉ. अशोक आकाश
बालोद, छत्तीसगढ़
4. दिवस मनायें : हम बन समवेत गायक-अवधेश कुमार सिन्हा
डगमग पैर अंधेरी रातें
कैसे कहूं दिल की बातें
प्रिय मित्र चतुर सुजान
जग प्रकाशित अनजान
मग कठिन कंकर कँटीले
पग रखते चूभन दर्दिले
दोपहरी में घूप अंधेरा
हतप्रभ नर खोज बसेरा
भाव वाहक सरिता निर्मल
अब नहीं वह अमल -विमल
सत्य नंगा है खडा अकेला
भाषायें भाव प्रवाह की मेला.
वृहद भूखंड विविध भाषायें
समृद्ध सुसज्जित सर्व-
युगों की दिव्य गाथायें.
विविध सुतों की विविध मातायें
गहन भावों की, दिव्य सरितायें.
पावन अमल सर्व भाव -जल
राग-दीप्त होते- वे अपवित्र
दूषित होते वे, मलिन विचित्र.
मातायें सर्व सबकी गाथायें-
लिपियां भिन्न अनेक समतायें.
माताओं का सर्वदा मान करो –
राष्ट्र बंधुओं ! समवेत गान करो
पवित्र भावों का सर्वदा वंदन हो –
विभेदकारी भावों का नहीं मंडन हो.
स्वमाता सह सर्व माताओं ! प्रणाम.
श्रेष्ठ भावों के सर्व सुपुजित जल-
सर्व प्राणदायिनि सर्व वारि विमल.
भारत समृद्ध सशक्त बहु-वंदित हो
समष्टि भाव -उल्लसित आनंदित हो
सर्व फले फूले, सर्व आनंद में झूले
दूषित भावों को किजिये विशुद्ध
भाव-सरितायें नहीं चाहतीं युद्ध.
गंगाजल का सतत् परिशोधन हो
क्षुद्रस्वार्थ हेतु भावों का नही दोहन हो
गंगाजल को विमल व मुक्त करो
हीन भावों से रहित विमुक्त करो.
महाभारत हुआ था कुछ के हेतु:
मर गये अनेक लिये राग-केतु.
विजय दंशित कुछ फूट कर रोए
प्रायश्चित जल से निज को भिगोए
शमित राग हों – नही वमन जहर का
मार्ग मिलकर ढूढे -सबके मिलन का.
अहंमय भाव नहीं कभी सिद्धि-दायक
दिवस मनायें : हम बन समवेत गायक.
4. हिन्दी छंद माला-रमेश चौहान
दोहे-
देश मनाये हिन्दी दिवस, जाने कितने लोग ।
जाने सो माने नहीं, कैसे कहें कुजोग।।
हिन्दी भाषी भी यहां, देवनागरी छोड़ ।
रोमन में हिन्दी लिखें, अपना माथा फोड़ ।।
कुण्डलियां-
हिन्दी बेटी हिन्द की, ढूंढ रही सम्मान ।
ग्राम नगर व गली गली, धिक् धिक् हिन्दुस्तान ।
धिक् धिक् हिन्दुस्तान, दासता छोड़े कैसे ।
सामंती पहचान, बेड़ियाँ तोड़े कैसे।।
कह ‘रमेश‘ समझाय, बना माथे की बिन्दी ।
बन जा धरतीपुत्र, बड़ी ममतामय हिन्दी ।।
उल्लाला छंद
हिन्दी अपने देश, बने अब जन जन भाषा ।
टूटे सीमा रेख, लोक मन हो अभिलाषा ।।
कंठ मधुर हो गीत, जयतु जय जय जय हिन्दी ।
मातृभाशा की बोल, खिले जस माथे बिन्दी ।।
भाषा बोली भिन्न है, भले हमारे प्रांत में ।
हिन्दी हम को जोड़ती, भाषा भाषा भ्रांत में ।।
त्रिभंगी छंद
भाषा यह हिन्दी, बनकर बिन्दी, भारत माँ के, माथ भरे ।
जन-मन की आशा, हिन्दी भाषा, जाति धर्म को, एक करे ।।
कोयल की बानी, देव जुबानी, संस्कृत तनया, पूज्य बने ।
क्यों दिवस मनायें,क्यों न बतायें, हिन्दी निशदिन, कंठ सने ।।
-रमेश चौहान
संपादक, सुरता