डॉ. विनयकुमार पाठक जी एवं डॉ . विनोदकुमार वर्मा की संयुक्त कृति ‘हिन्दी का संपूर्ण व्याकरण’ पर प्रो .रविकान्त सनाढ्य की समीक्षात्मक पत्र प्राप्त हुआ इसे मूल रूप में ही प्रकाशित किया जा रहा है-
प्रिय डॉ. विनयकुमार पाठक जी एवं डॉ . विनोदकुमार वर्मा ,
सादर अभिवादन !
आप द्वारा प्रेषित ग्रंथ ‘हिन्दी का संपूर्ण व्याकरण’ मुझे चार -पाँच दिन पूर्व प्राप्त हुई। निश्चित रूप से आपने बहुत विद्वत्तापूर्ण कार्य किया है ।आपका परिश्रम मुँह बोल रहा है। आपने व्यवस्थित रूप से एक ऐसी सुगम पठनीय सामग्री तैयार की है जो एक ही ग्रंथ में विद्यार्थियों को परीक्षोपयोगी समस्त पाठ्यक्रम उपलब्ध करा सकेगी और उन्हें यत्र -तत्र भटकाव से बचा लेगी।
मुझे इसका सूक्ष्मता से अध्ययन करने में समय लगा इसलिए उत्तर विलंब से दे रहा हूँ।
यद्यपि ‘हिन्दी का संपूर्ण व्याकरण’ में वर्तनी की अशुद्धियों का आपने पर्याप्त ध्यान रखने का पूरा प्रयास किया है तथा योजक चिह्नों , समस्तपद के सिद्धान्त की अनुपालना भी की है , तथापि कुछ स्थानों पर अशुद्धियाँ रह गई हैं, यथा-
- ‘ विज्ञजनों ‘ अशुद्ध शब्द है।
‘ जन ‘ अपने-आप में बहुवचन शब्द है अतः ‘ विज्ञजन ‘ लिखते तो श्रेयस्कर होता। - सदृश शब्द ‘ सद्दश ‘ मुद्रित हुआ है ।
- ‘ बूँद ‘ शब्द चन्द्रबिन्दुयुक्त होना चाहिए , परन्तु ‘ बूंद ‘ मुद्रित हुआ है।
- आपने समस्तपद के सिद्धान्त का पुस्तक में कई जगह प्रशंसनीय रूप से पालन किया है, परन्तु आप लेखक द्वय ने स्वयं के नामों में इस सिद्धान्त का पालन नहीं किया है। वस्तुतः नाम ( विनोदकुमार,विनयकुमार आदि) को समस्तपद मिलाकर लिखा जाना उपयुक्त है मगर वर्तमान में इसका अनुपालन आम लोग भी नहीं कर रहे हैं।
- विरामचिह्न के प्रकरण में आपने एक महत्त्वपूर्ण विरामचिह्न — दुहरे पूर्णविराम का विवेचन नहीं किया है। ( ।। ) यह दुहरा पूर्णविराम पारंपरिक प्राचीन वाङ्गमय में अपनी प्रमुख भूमिका रखता है। इसका कोई उल्लेख अधिकतर व्याकरण ग्रंथों के विरामचिह्न-प्रकरण में,नहीं होने से नई पीढ़ी इसे भूल जाएगी।
- आपके ग्रंथ का नामकरण मुझे एकांगी प्रतीत हो रहा है । इसमें केवल व्याकरण ही नहीं, अपितु भाषा एवं साहित्य का भी समावेश है, अतः इसका नाम हिन्दी भाषा, साहित्य और व्याकरण होता तो अधिक सार्थक होता- यथाहि औचित्येन विना प्रतनुते नालंकृतिर्नो गुणा :।
मैं आपको मनोयोग पूर्ण लेखन हेतु हार्दिक बधाई देता हूँ कि आपने परम उपादेय पाठ्य सामग्री से प्रतियोगी परीक्षाओं के विद्यार्थियों व अन्य कक्षाओं के बालकों को भी लाभान्वित करने के उद्देश्य से उपकृत किया है।
आप मेरी आलोचनात्मक टिप्पणी को अन्यथा न लेते हुए भविष्य के संस्करणों में उक्त अशुद्धियों का परिहार करेंगे तो सोने में सुहागा होगा और मुझे प्रसन्नता होगी।
–प्रो .रविकान्त सनाढ्य
सेवानिवृत्त प्राचार्य
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, शाहपुरा,
ज़िला- भीलवाड़ा ( राज.)
मो.94616-60354