Hindi Poems of Ravindra Pratap Singh

सतरंगे भाव इस बसंत-प्रो रवीन्‍द्र प्रताप सिंह

‘सतरंगी भाव इस बसंत’ प्रो रवीन्‍द्र प्रताप सिंह का एक काव्य संग्रह है जिनमें उनके 11 कविताएं संग्रहित हैं । सभी कविताएं संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार से श्रृंगारित हैं । इन कविताओं को नई कविता और नवगीत के शिल्‍प में आबद्ध किया गया है । शब्‍द और कहन दोनों ही अपने आप अनूठे हैं । एक पाठक के तौर यह कविताएं प्रशंसनीय है ।

Hindi Poems of Ravindra Pratap Singh

1.संवाद का अभाव

वह सिसकती शाम
किस्से लिए हज़ार
न जाने क्यों
पार कर छोटी नदी
उतर जाती है ,
हज़ार गहराइयाँ लिये
ये लरजती आँखें
मुरझाई हुईं
थोड़ा सकुचाई
और हताश ।

कह नहीं पातीं
कोई बात
न संवाद
न प्रश्न
न मीमांसा
न सन्देश
शांत क्यों हैं संवेग
और उमड़ते भी नहीं हैं भाव
निष्प्राय क्यों पड़े
संवाद का अभाव।

2.वही सिसकती शाम

और वही सिसकती शाम
पूछती है प्रश्न
उत्तरों से सने प्रश्न ,
लिपटे , लिपटाये
उस वितान पार
उलझ रहे द्वन्द।
सज रहा नया दिवस
स्वप्न से जगा प्रात।
प्रश्न लिए दोपहर
और फिर ढलान में
सम्हल , ढुलक कई पहर
फिर वही शाम
लिये कोई स्वप्न
और कई विचलन
धूल भरी तेज हवा
या नये उगे प्रश्न,
आज शाम इस तरफ !

3.अंगड़ाई लेता सा दिन भी ओझल हुआ अचानक

अंगड़ाई लेता सा दिन भी ओझल हुआ अचानक ,
शाम दिखाई देती है , शायद कुछ जल्दी आयी है।

मुस्कान लिये यादें आयी हैं , कुछ शायद कहने वाली हैं ,
देखो कुछ फुर्सत मिल जाती , कहाँ ये रुकने वाली हैं।

फिर धीरे से रात अकेली चलकर आ जायेगी ,
उनको भी मालूम है यादें यूँ ही खाली रह जायेंगी।

अक्षर अक्षर शर्माता है , शब्द ये क्यों घबराते हैं ,
क्या किस्सा है , क्या मंज़र है , अजब सा सबकुछ दिखता है।

4.कैसी कैसी बातें करना देखो तुम भी सीख गये

कैसी कैसी बातें करना देखो तुम भी सीख गये,
सब ये मौसम की करतूतें , शर्माना तुम सीख गये।

कल तक ख्वाबों में ही चाहे , अक्सर वो आया करते थे
ये तो बस ऋतुओं की फितरत, वो उठ कर जाना सीख गये।

कितने कितने खत लिख डाले , कितने कहाँ संदेशे भेजे
सुना है दिल क्या भी कुछ बोले ,वो ठुकराना भी सीख गये।

5.और फिर एक दिन

और फिर एक दिन ठिठक गये पाँव,
वही सुबह , वही शाम , लहर वही , ठहराव ,
गीत भी सुने- सुने , बंदिशें वही , वही बहार ,
सजी धजी शाम , मान भरे कर रही झंकार।

पार्श्व में विकल टेर लिये , राग लिये
विहग वृन्द विरह में कर रहे राग में विराग ,
मन हज़ार दे संदेस , ग्राम ,नगर, देश- देश ,
पलट गए पाँव और फिर ठिठक गये पाँव।
उधार दे नयी सुबह रात गयी निकल
कह गयी नया दिवस ,प्रयास तो बचा सही ,
क्या करे रात कुटिल पर उदार
देर शाम आ धमकती , हम भी कर्जदार।
काश हे नीलवर्ण विहग उड़ो तुम और
ले चलो विरल भाव , सघन करो तान रखो छोर।

6.यूँ ही कैसे कभी कभी , मिल जाता ख्वाबों में कोई

यूँ ही कैसे कभी कभी , मिल जाता ख्वाबों में कोई ,
और अचानक किसी सुबह ,आँखों में ख्वाब सजाता कोई।

कभी पैरहन वो अलसाये , कभी नींद में जागे सोये
कभी ढुलक कर पास बुलाये ,मन को कैसे रोके कोई।

राहें अलसाती पास बुलाती , बाहें कभी मचल फैलाती ,
कभी दूर तक चलता रहता , पर यह क्या मिलता न कोई।

कभी ख्वाब की वो यादें , कहतीं कुछ ,कुछ मन में लातीं ,
कभी दूर से ही मुस्काकर जाने कैसी हंसी उड़ातीं।

ख्वाबों की दुनिया बसती है ,उसमे जाना मजबूरी है ,
सोच रहा हूँ मन से उनके ,मेरी कितनी अब दूरी है।

7.वही कहानी पूरी करने , कितने किस्से सुने सुनाया

वही कहानी पूरी करने , कितने किस्से सुने सुनाया
कितना कितना भरमा यूँ ही , खुद को कितना बहलाया ।

कितनी बारिश आयीं बरसीं , भरे कुहासा रातें बीतीं
लाख कहानी मन में लेकर सर्द – सर्द सी सुबहें जागीं।

कितने गुजरे पतझड़ रोते, आशा लिये बहारें आयीं ,
पछुवा -पुरवा की मनमानी , जब जैसा मन उड़ती आयीं।

हिले नहीं फिर भी वो टीले , ढीले ढीले से मटमैले ,
कुछ तिलिस्म सी बातें सुनते , आयीं साड़ियां औंध गयीं।

जब भी मन की गाँठ टटोली , किस्से ही ढुलके अलसाये ,
ख्वाबों से पुछा क्या करना , वो भी यूँ कुछ कह न पाये।

8.तुम कहते आते रहते हो अक्सर ही इन राहों पर

तुम कहते आते रहते हो अक्सर ही इन राहों पर ,
राहों पर जब नज़र पड़ी , कहीं नहीं पद चिन्ह तुम्हारे।

वैसे सूना – सूना सा सब , वैसे ही है गर्द जमी ,
फूलों में अब कहाँ बची है , खुशबू जो थी वहाँ कभी।

कहते थे कुछ लम्हों खातिर इंतज़ार फैला रक्खा है ,
लम्हें अक्सर मिल जाते हैं बस ख्वाब जगाये रखना है।

यहाँ बचे ख्वाबों से कुछ हैं , उनसे ही बातें करते हैं ,
वो भी तो जाने न जाने ,जिक्र तुम्हारा ला देते हैं।

9.ख्वाब टूटे और कुछ दिन बेवजह चर्चा रहा

ख्वाब टूटे और कुछ दिन बेवजह चर्चा रहा ,
क्या हुआ है , बात क्या हर जगह चर्चा रहा।

जब भी उनकी याद आयी ,अंदाज़ भी बोझिल हुये ,
गैर ,हाँ सुनने लगे , अपनों ने कर दी अनसुनी।

रहा गुज़रा वो सफर , साथ में जिसमे चले ,
याद वो आता रहा , हर साँस में ठिठका चला।

वो सरकती शाम भी यादें लिये बढ़ती रही ,
रास्ते बेचैन से , कुछ बिन कहे कहने लगे।

फिर दिखाई पड़ गया , चाँद सा कुछ फलक पे ,
ले पुराने वायदों को फब्तियां कसने लगा।

फिर वही स्याही और फिर वही मौन
चलें देखें वादियां , या मिले फिरहौंन।

कलम की जो नोक है वो हंस रही है ,
कह रही है चलो फसलें देख लें फिर।

नयी सी दुनिया कोई या लोक कोई और ,
फिसल कर देखो जरा कुछ तो मिलेगा।

फिसलना जोखिम भरा , लेकिन गति तो है ,
इस तरह ही ठूंठ बनकर आखिर मिला क्या।

10.एक आरसे पार के कुछ शब्द झंकृत कर रहे मन

एक आरसे पार के कुछ शब्द झंकृत कर रहे मन
शब्द की आभा अभी ताज़ी बराबर।
है वहां लावण्य भी , माधुर्य भी है तरोताज़ा

कमनीयता , शौर्य भी अब तक वहां
पर उस रूप ही है दमकती।
वही कोमल अग्नि सहसा चिंगारियां लेकर
फैलती है , धधकती है फिर कई दिन तक।
जाने न जाने कभी ताने , कभी तानें कभी चर्चा छेड़ती है
और फिर कब तक सवेरा , कब दुपहरी ,साँझ कब क्या।
एक सृष्टि नयी बनती , एक सृष्टि वही दिखती ,
और फिर भीगे हुए ये नेत्र यूँ हिन् फिसलते हैं।
एक तो था स्वप्न , असलियत में यह कड़ी है दूसरी
वो आंख दोनों सोचती हैं , वो और थीं या हैं यहीं।

11.शब्द तुमको चूम कर , आकाश में उड़ने लगे

शब्द तुमको चूम कर , आकाश में उड़ने लगे
तभी शायद कोई बगुला बरगला लाया उन्हें।
कह रहे थे ,हैं हमारे पास कोई मशविरा
अगर चाहो हम कहें , कैसे कहाँ उनसे मिला।
कह रहें हैं शब्द मेरी तुम सुनो ,
एक अपनी ,खुद की अपनी स्वप्न -दुनिया ही गढ़ो।
चल पड़ो बस स्वयं के मजमून कुछ ले
एक सपना समझ कर ले चल उड़ो
और फिर लो मूँद कर अपने नयन
मैं उन्ही सब दायरों में बेसाख्ता चलने लगा
बेहिचक , बेख़ौफ़ अपनी कल्पना में।
ये बेचारा मन में यूँ ही किस तरफ बहने लगा।

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह के विषय में
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्केट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी (2019),चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017),पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑव फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) प्रोजेक्ट पेनल्टीमेट (2021) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, डॉ राम कुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान 2020 ,एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे 21 पुरस्कार प्राप्त हैं ।

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *