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पुस्तक समीक्षा:गिरीश पंकज रचनावली

पुस्तक समीक्षा:गिरीश पंकज रचनावली

विविध विषयों, दृष्टिकोणों और विचारधाराओं का संगम गिरीश पंकज रचनावली
– डुमन लाल ध्रुव

हिन्दी साहित्य की समकालीन धारा में व्यंग्य एक प्रभावशाली और जरूरी विधा है जो समाज की विद्रूपताओं पर चुटीले मगर मर्मस्पर्शी अंदाज में प्रहार करती है। इस विधा में जिन नामों ने राष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट पहचान बनाई है उनमें श्री गिरीश पंकज का नाम शीर्ष पर आता है। उनके बहुआयामी लेखन को समेटती ” गिरीश पंकज रचनावली ” बीस खंडों में प्रकाशित एक ऐसी रचना-संपदा है जो न केवल व्यंग्य साहित्य का वैचारिक मानचित्र प्रस्तुत करती है बल्कि पत्रकारिता, सामाजिक चेतना, छत्तीसगढ़ी चिंतन और विचारधारात्मक लेखन का भी प्रतिबिंब है।
इस रचनावली का संयोजन एवं संपादन श्री वरुण माहेश्वरी द्वारा किया गया है और इसका प्रकाशन ज्ञान मुद्रा पब्लिकेशन, भोपाल से हुआ है।
” गिरीश पंकज रचनावली ” केवल किसी लेखक की प्रकाशित रचनाओं का संकलन मात्र नहीं बल्कि यह एक विचारयात्रा है। जिसमें लेखक के चिंतन, दृष्टिकोण, सरोकार और संवेदना के व्यापक आयामों की झलक मिलती है। बीस खंडों में विभाजित यह रचनावली अलग-अलग भागों में विभाज्य है। गिरीश पंकज के व्यंग्य लेखन की विशेषता यह है कि वे सामाजिक विसंगतियों और राजनीतिक बुनावट को बड़ी सादगी से उजागर करते हैं। हास्य का शिष्ट प्रयोग, तीखे व्यंग्य-बाणों की जगह करुणा-जनित कटाक्ष, और भाषा की सहजता उन्हें विशेष बनाती है। उनकी रचनाएं व्यंग्यात्मक तेवरों का परिचय देती हैं।
गिरीश पंकज केवल व्यंग्यकार नहीं हैं, वे समाज के सजग विचारक भी हैं। रचनावली में छत्तीसगढ़ के लोकजीवन, शिक्षा, भाषा, पर्यावरण, भारतीय संस्कृति और राष्ट्र निर्माण से संबंधित लेख अत्यंत विचारोत्तेजक हैं।
वे विकास और भूमंडलीकरण की चकाचौंध में खोते मानवीय मूल्यों, लोक संस्कृति के क्षरण और शिक्षा के बाजारीकरण पर स्पष्ट चिंता व्यक्त करते हैं।
लेखक की जड़ें छत्तीसगढ़ में हैं और यह गहराई उनके लेखन में स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। छत्तीसगढ़ की लोक भाषा, परंपराएं, गंध और आत्मा उनके लेखों में जीवंत है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद सांस्कृतिक अस्मिता के प्रश्नों पर उनके लेख विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। वे छत्तीसगढ़ को केवल भौगोलिक या राजनीतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना के रूप में देखते हैं।
श्री पंकज का पत्रकारिता में दीर्घ अनुभव उनके लेखन की गंभीरता को आधार देता है। वे पत्रकारिता को ‘सत्य की साधना’ मानते हैं। इस रचनावली में समाचार संस्कृति, मीडिया की भूमिका, मिशन पत्रकारिता बनाम व्यापारिक पत्रकारिता जैसे विषयों पर उनके लेख अत्यंत प्रासंगिक हैं।
इस रचनावली में पांच महत्वपूर्ण साक्षात्कार सम्मिलित हैं, जो गिरीश पंकज के जीवन-दर्शन, लेखकीय यात्रा, रचनात्मक दृष्टिकोण और समकालीन समाज के प्रति उनकी धारणा को उद्घाटित करते हैं। ये साक्षात्कार केवल संवाद नहीं, बल्कि वैचारिक विमर्श के दस्तावेज हैं।
गिरीश पंकज की भाषा आम जन की भाषा है। वे कठिन शब्दों, क्लिष्ट वाक्य संरचनाओं से दूर रहते हैं। सहजता, प्रवाह और व्यंग्यात्मक रोचकता उनकी शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं। उनका लेखन व्यावसायिक पत्रकारिता की शैली में होते हुए भी साहित्यिक गरिमा और भाषाई अनुशासन का निर्वाह करता है।
” गिरीश पंकज रचनावली ” का महत्त्व केवल इसके लेखकीय विस्तार में नहीं, बल्कि इसकी वैचारिक प्रासंगिकता में निहित है। यह रचनावली आज के यांत्रिक और मूल्यहीन समय में एक लेखक के विचारशील नागरिक के रूप में किए गए हस्तक्षेप का साक्ष्य है।
यह रचनावली हिन्दी व्यंग्य साहित्य को समृद्ध करती है।
यह पत्रकारिता और सामाजिक लेखन को गंभीर विमर्श के केंद्र में लाती है।
यह छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक विमर्श को राष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करती है।
यह नवोदित लेखकों और पत्रकारों के लिए दिशा-निर्देशक की तरह है।
“गिरीश पंकज रचनावली” एक ऐसी कृति है जो किसी एक विधा में सीमित नहीं रहती। यह विविध विषयों, दृष्टिकोणों और विचारधाराओं का संगम है। श्री गिरीश पंकज का लेखन एक ऐसे समाज की परिकल्पना करता है जो समरसता, लोकचेतना, विचारशीलता और सामाजिक उत्तरदायित्व से युक्त हो। यह रचनावली निःसंदेह हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता का अमूल्य दस्तावेज है।
आज जब लेखन ‘संसाधन’ बनता जा रहा है और पत्रकारिता ‘उत्पाद’, ऐसे समय में गिरीश पंकज जैसे लेखक की रचनावली हमारे सामने न केवल एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, बल्कि यह प्रेरणा भी देती है कि लेखन का मूल उद्देश्य सामाजिक सरोकार और मानवीय चेतना का विस्तार होना चाहिए।
“गिरीश पंकज रचनावली” न केवल उनके व्यक्तित्व का प्रतिबिंब है, बल्कि यह भारत की आत्मा की आवाज भी है।
– डुमन लाल ध्रुव
मुजगहन, धमतरी छग
पिन – 493773
मोबाइल – 9424210208

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