भारतीय किसानों की समस्‍याएं और उनके निदान के लिये किये जा रहे उपाय (Indian farmers’ problems and measures being taken to diagnose them)

भारतीय किसानों की समस्‍याएं और उनके निदान के लिये किये जा रहे उपाय
भारतीय किसानों की समस्‍याएं और उनके निदान के लिये किये जा रहे उपाय

भारतीय किसानों की समस्‍याएं और उनके निदान के लिये किये जा रहे उपाय (Indian farmers’ problems and measures being taken to diagnose them) भूमिका-

हम अपने जन्‍म से यह सुनते आ रहे हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है । पहले यहां की जनसंख्‍या का 90 प्रतिशत प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से कृषि से जुड़े हुये थे । आज देश के लगभग 70-75 प्रतिशत लोग कृषि से जुड़े हुये हैं । कृषि कार्य से प्रत्‍यक्ष जुड़े हुये लोगों को किसान कहा जाता है । किसान अपने साथ-साथ अन्‍य लोगों के पेट भरने का उद्यम करते हैं ।  पेट पालन दो प्रकार से संभव है शाकाहार और मांसाहार इसीकारण इस प्रकार के उद्यम करने वाले लोगों किसान कहा जाता है । चाहे वह खेती से उपज प्राप्‍त करना हो, चाहे पशुपालन करना हो किसान का ही काम है । कृषि प्रधान देश भारत में किसानों को ‘धरती का देवता’, अन्‍नदाता, जीवनदाता जैसे शब्‍दों से सम्‍मानित किया जाता है । भारतीय किसानों की समस्‍याएं और उनके निदान के लिये किये जा रहे उपाय इस विषय पर किसान की परिभाषा लेकर आज हो रहे किसानों की आंदोलन तक क्रमबद्ध चर्चा करने का प्रयास करते हैं ।

किसान की परिभाषा (Definition of farmer)-

जिस भूमि से कृषि उपज प्राप्‍त किया जाता है, उसे खेत इसमें काम करने वालों को किसान तथा इस काम को खेती कहा जाता है । किसान शब्‍द का व्‍यापक अर्थ होता है किसी परिभाषा में बांधना इसके अर्थ को सीमित करना होगा यही कारण है अभी तक इसका ठीक-ठीक परिभाषा नहीं दी गई है फिर भी इसे समझने की सहजता की दृष्टिकोण से इसे इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है –

‘खाद्यान उत्‍पादन के क्षेत्र में कार्यरत लोगों को किसान कहा जाता है ।”

किसान

खेतिहर किसान-

खाद्यान उत्‍पादन अन्‍न, फल आदि के रूप में खेती से किये जाने के कारण इन्‍हें खेतिहर कहा जाता है । खेतों में काम करने वालों को खेतिहर किसान कहते हैं ।

पशुपालक किसान-

मांसाहार खाद्यान मछली, मुर्गा, बकरा आदि पालने के कारण इन्‍हें पशुपालक कहा जाता है । पशुपालन करने वालों को पशुपालक किसान कहते हैं ।

भूमि स्‍वामी किसान-

इस प्रकार खेतिहर और पशुपालक को संयुक्‍त रूप से किसान की संज्ञा दी गई है । किन्‍तु कुछ लोग ऐसे होते जिनके नाम पर खेती की जमीन तो है किन्‍तु वह स्‍वयं अपने जमीन पर खेती नहीं करते अपितु वह खेतीहर मजदूरों से खेती कराते हैं अथवा अपने खेत को किराये पर दे देते हैं । भूमिस्‍वामी होने के कारण भूमिस्‍वामी किसान कहलाते हैं ।

भारतीय किसान परिवार की स्थिति (Status of Indian Farmer Family)-

भारत के अधिकांश भागों की खेती वर्षा पर ही निर्भर है इसी कारण इसमें अनिश्चिता बनी रहती है । वर्षा अच्‍छी हुई तो खेती अच्‍छी अन्‍यथा भारतीय खेती कर्ज में लदने का एक माध्‍यम । नाबार्ड के एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में लगभग दस करोड़ किसान हैं जिसमें 52 प्रतिशत किसान कर्ज में दबे हुये हैं । एक और सर्वेक्षण के अनुसार भारतीय किसान परिवार की औसत मासिक आय लगभग 9 हजार रूपय है, जिसमें परिवार के औसत 4 लोग संलग्‍न रहते हैं । आय के मामले पंजाब एवं हरियाणा के किसान अव्‍वल हैं जिनकी मासिक आय लगभग 21 हजार रूपये है । किन्‍तु शेष राज्‍यों की स्थिति काफी दयनीय है । जहॉं औसत मासिक आय दस से पन्‍द्रह हजार के बीच ही है ।

किसानों की मुख्‍य समस्‍याएं (Major problems of farmers)-

भारतीय किसानों के सम्‍मुख अनेक स्‍मस्‍याएं हैं जैसे कृषि भूमि पर उचित अधिकार न होना, फसलों का उचित दाम न मिलना, वर्षा पर अधिक निर्भरता सिंचाई की उचित व्‍यवस्‍था न होना , खाद बीज की उचित उपलब्‍धता न होना, पूंजी कमी आदि फिर भी  किसानों की दो समस्‍याएं सबसे अधिक चुनौतिपूर्ण है- पहला फसल लागत का अधिक होना, और दूसरा. फसल उत्‍पादन का उचित मूल्‍य न मिलना ।

फसल लागत का अधिक होना (High cost of crop)-

किसानों के लिए खेत में बुआई की तैयारी से लेकर फसल उत्‍पादन के एकत्रीकरण और इसके बिक्री तक लागत मूल्‍य इतने अधिक हैं कि छोटे किसान या तो कर्ज में डूब जाते हैं या मानसिक रूप से टूट जाते हैं इसका भयंकार परिणाम यह होता है कि किसानी खेती करना छोड़कर मजदूरी करने लगते हैं, यही कारण है कि दिनों दिन किसानों की संख्‍या कमी दर्ज किया जा रहा है । 

खेती में मशीनीकरण का प्रयोग जहॉ कृषि कार्य को आसान किया है वहीं यह लागत मूल्‍य को बढ़ा दिया है क्‍योंकि ये कृषि उपकरण केवल बड़े किसानों के पास ही उपलब्‍ध छोटे किसानों को इन उपकरणों का प्रयोग तो किराये से ही करना पड़ता है ।  इसी प्रकार आधुनिक संकरित बीजों का मूल्‍य भी इतना अधिक है यह छोटे किसनों के पहुॅच से लगभग बाहर हो जाता है । इसके अतिरिक्‍त खाद भी महंगें हैं । छोटे किसानों को सिंचाई के लिये बड़े किसानों से पानी खरीदना पड़ता है । मध्‍यम वर्गीय किसानों की समस्‍याएं भी कृषि उपकरणों के संचालन के आवश्‍यक बिजली, डिजल-पेट्रोल आदि ईंधनों का महंगा होना है । सभी किसानों के लिए खेतिहर मजदूरों का लागत मूल्‍य भी एक समस्‍या है । अधिकांश किसानों का कहना है कि खेती में जितनी लागत लगती उस अनुपात में आय नहीं हो पाता और यही कर्जभार को बढ़ाता है ।

फसल उत्‍पादन का उचित मूल्‍य न मिलना (Not getting the proper value of crop production)-

किसानों की सबसे बड़ी समस्‍या यही है कि किसानों को फसल लागत के बराबर भी फसल उत्‍पादन  का मूल्‍य नहीं मिलता । इसी समस्‍या से उपजा हैं न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य का मांग । किसानों को अपनी फसल का मूल्‍य निर्धारण का अधिकार होना चाहिये । जिस प्रकार एक उद्योगपति, एक व्‍यपारी उत्‍पादन के लागत मूल्‍य, भाड़ा आदि जोड़ने के बाद अपने लिये एक निश्चित लाभ तय करने के बाद उत्‍पादन का मूल्‍य निर्धारित करते हैं ठीक उसी प्रकार किसानों को भी अपने उपज का मूल्‍य निर्धारण का अधिकार होना चाहिये । 

जहॉ सरकार अनेक फसलों में कुछ फसलों का  न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य पर खरीदी कर रहे हैं जिसके न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य निर्धारण पर भी किसानों का प्रश्‍न खड़ा है, वहीं निजि व्‍यपारी किसानों के फसलों का मूल्‍य स्‍वयं निर्धारित कर औने-पौने में खरीदते हैं । 

किसानों के फसल लागत मूल्‍य और फसल उत्‍पाद के बिक्री मूल्‍य का असंगत होना ही किसानों की सबसे बड़ी समस्‍या है । यह समस्‍या इतना गंभीर है कि किसान इससे मानसीक तनाव में आ जातें हैं यहॉं तक की कई बार ये लोग आत्‍महत्‍या करने को भी मजबूर हो जाते हैं । 

सरकार द्वारा किसानों की समस्‍याओं के निदान के लिये किये गये उपाय (Measures taken by the government to diagnose the problems of farmers)-

भारत के आजादी के पश्‍चात से आज तक निश्चित रूप से किसानों की समस्‍याओं कम करने के प्रयास लगातार किये जा रहे हैं ।1965 में कृषि मूल्‍य निर्धारण आयोग की स्‍थापना, 1985 में लागत निर्धारण आयोग का गठन, 2004 में राष्‍ट्रीय किसान आयोग का गठन और अभी 2020 में तीन कृषि कानून को लागू करना सरकार द्वारा किये जा रहे उपायों में प्रमुख हैं किन्‍तु यह कटु सत्‍य है कि किसानों की समस्‍याएं यथावत बनी हुई है । किसान इसका मुख्‍य कारण मानते हैं कि सरकारें कृषि को उचित महत्‍व नहीं देती । किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के उद्देश्‍य से केन्‍द्र सरकार ने 2004 में एम.एस. स्‍वामीनाथन की अध्‍यक्षता में राष्‍ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया । इस आयोग के रिपोर्ट को स्‍वामीनाथन रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है ।

स्‍वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट (Swaminathan Commission Report)-

केन्‍द्र सरकार ने 2004 में एम.एस. स्‍वामीनाथन की अध्‍यक्षता में राष्‍ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया । इस आयोग के रिपोर्ट को स्‍वामीनाथन रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है । स्‍वामीनाथन आयोग ने 2004 से 2006 के केन्‍द्र सरकार को  पॉंच रिपोर्ट सौंपी जिसमें किसानों की बेहतरी के लिये इनेक  सझाव दिये गये हैं, जिनमें प्रमुख हैं-

  1. .न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) औसत लागत से 50 फीसदी से अधिक होनी चाहिये । किसानों की फसल के न्यूनतम सर्मथन मूल्य कुछ ही फसलों तक सीमित न होकर लगभग सभी फसलों तक होना चाहिये ।
  2. कृषि  राज्‍य सूची से निकाल कर समवर्ती सूची में लाया जाये जिससे केन्‍द्र एवं राज्‍य सरकारें मिलकर किसानों की बेहतरी के लिये उपाय कर सकें ।
  3. किसानों को अच्‍छी क्‍वालिटि के बीज कम दामों पर उपलब्‍ध कराया जाना चाहिये ।
  4. देश के सभी गॉंवों के किसानों के कृषि जागरूकता के लिये विलेज नालेज सेंटर या ज्ञान चौपाल केन्‍द्र की स्‍थापना किया जाना चाहिये ।
  5. तिरिक्त व बेकार जमीन को भूमिहीनों में बांट दिया जाए ।  
  6. कॉर्पोरेट सेक्टर के लिए गैर-कृषि कार्यों को लेकर मुख्य कृषि भूमि और वनों का डायवर्जन न किया जाए । कमेटी ने नेशनल लैंड यूज एडवाइजरी सर्विस का गठन करने को भी सुझाव दिया । 
  7. प्राकृतिक आपदाओं से किसानों को बचाने  के लिए ‘कृषि जोखिम फंड’ बनाया जाए ।
  8. छोटे-मंझोले गरीब और जरूरतमंद किसानों के लिए कर्ज की व्यवस्था किया जाए । कर्ज की ब्‍याज दर 4 प्रतिशत से कम रखने का सुझाव दिया गया ।
  9. महिला किसानों के लिए अलग से किसान क्रेडिट कार्ड बनवाना चाहिये ।
  10. मिट्टी के पोषण से जुड़ी कमियों को सुधारा जाए । इसके लिये मिट्टी की टेस्टिंग वाली लैबों का बड़ा नेटवर्क तैयार करना चाहिये ।

स्‍वामीनाथन आयोग के सुझावों पर क्रियान्‍वयन (Implementation on Swaminathan Commission’s suggestions)-

स्‍वामीनाथन आयोग की प्रमुख सिफारिशों को शामिल करते हुए ‘राष्ट्रीय किसान नीति’ तैयार किया गया, जिसमें  201 एक्शन पॉइंट को लागू करने योजना बनाई गई । इसके क्रियान्वयन की निगरानी करने के लिए अंतर-मंत्रालयी समिति (आईएमसी) का गठन हुआ । इस समीति का अब तककुल आठ बठकें हुई हैं-

  • पहली बैठक 14 अक्टूबर 2009 को हुई थी, जिसमें 201 सिफारिशों को लागू करने की रूपरेखा तैयार की गई । 
  • दूसरी बैठक तीन जून 2010 को हुई और तब तक 42 सिफारिशों को लागू किया गया ।
  • तीसरी बैठक जून 2012 में हुई और तब तक 152 सिफारिशों को लागू किया गया । 
  • चौथी बैठक सितंबर 2013 को हुई ।
  • पांचवीं बैठक जनवरी 2014 में  हुई । रिकॉर्ड के मुताबिक इस दौरान 25 और सिफारिशों को लागू किया गया ।
  • छठी बैठक अगस्त 2015 को हुई थी । इसमें 17 और सिफारिशों को लागू माना गया ।
  • सातवीं बैठक आठ अप्रैल 2019 को हुई थी ।
  • केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अनुसार स्वामीनाथन आयोग के 201 सुझावों में से 200 सुझावों को सरकार ने स्वीकार किया है, जिसमें किसानों को उनकी फसलों की लागत से 50 फीसदी ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देना भी शामिल है।

कृषि सुधार बिल (नये कृषि कानून 2020) (Agricultural Reforms Bill (New Agricultural Bill 2020))-

केंद्र सरकार की ओर से कृषि सुधार बिल कहे जा रहे तीन विधेयक इस प्रकार हैं-

कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020-

इसके तहत प्रावधान किया गया है कि  किसानों और व्यापारियों को राज्यों में स्थित कृषि उत्पाद बाजार समिति से बाहर भी उत्पादों की खरीद-बिक्री की व्‍यवस्‍था विकसित किया जाये । इसका उद्देश्य व्यापार व परिवहन लागत को कम करके किसानों के उत्पाद को अधिक मूल्य दिलवाना तथा ई-ट्रेडिंग के लिए सुविधाजनक तंत्र विकसित करना है। इस कानून के अनुसार किसानों को अपनी उपज को बेचने के लिए अधिक विकल्प होंगे ।  किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच सकेंगे ।

मूल्य आश्वासन पर किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण) समझौता और कृषि सेवा विधेयक 2020-

इस विधेयक में किसानों को कृषि कारोबार करने वाली कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों व संगठित खुदरा विक्रेताओं से सीधा जोड़ने, कृषि उत्पादों का पूर्व  में ही दाम तय करके कारोबारियों के साथ करार की सुविधा प्रदान करने, और पांच हेक्टेयर से कम भूमि वाले सीमांत व छोटे किसानों को समूह व अनुबंधित कृषि का लाभ देने का प्रावधान किया गया है । इस कानून के अनुसार कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का विकल्‍प होगा जिसके अनुसार किसान अपनी जमीन निजी कंपनियों को ठेके पर दे सकता है ।

आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020-

अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज व आलू आदि को आवश्यक वस्तु की सूची से हटाने का प्रावधान है जिसमें कहा गया है कि युद्ध जैसी अपवाद स्थितियों को छोड़कर इन उत्पादों के संग्रह की सीमा तय नहीं की जाएगी।

नये कृषि कानून 2020 पर किसानों का विरोध (Farmers protest on new agricultural law 2020)-

नये कृषि कानूनों के विरोध में विगत दो माह से किसान आंदोलनरत हैं और ये लोग इन कानूनों को वापस लेने के मांग पर अड़े हुये हैं । आंदोलनरत किसानों को इन कानूनों से जो आपत्‍ती है इसके प्रमुख बिन्‍दु इस प्रकार हैं-

  • पहला कानून जिसका नाम ‘कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020’ है, पर आंदोलनरत किसानों का मानना है कि यह कानून निकट भविष्य में सरकारी कृषि मंडियों को खत्‍म कर देगी । सरकार निजी क्षेत्र को बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी जवाबदेही के कृषि उपज के क्रय-विक्रय की खुली छूट देकर निकट भविष्य में खुद अनाज खरीदने से बचना चाहती है । सरकार चाहती है कि अधिक से अधिक कृषि उपज की खरीदारी निजी क्षेत्र करें ताकि वह अपने भंडारण और वितरण की जवाबदेही से बच सके।
  • दूसरा कानून ‘कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020 पर विरोध  कर रहे किसानों का कहना है कि इसके जरिए किसानों को विवाद की स्थिति में सिविल कोर्ट जाने से रोका गया है । इस विधेयक के विरोध दूसरा कारण कांट्रैक्ट फार्मिंग भी जिसमें किसानों को आशंका है कि देश में भूमिहीन किसानों के एक बहुत बड़े वर्ग के जीवन पर गहरा संकट आने वाला है ।
  • तीसरा कानून ‘आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020’ से किसानों को आशंका है कि इस कानून से आने वाले निकट भविष्य में खाद्य पदार्थों महंगे हो जायेंगे । किसानों का कहना है कि इस कानून के जरिए निजी क्षेत्र को असीमित भंडारण की छूट दी जा रही है । उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी ।

आंदोलनरत किसानों की आशंका और सरकार की सफाई (Fear of agitated farmers and cleaning of government)-

नये कृषि कानूनों का विरोध कर रहे आंदोलनरत किसानों को कई अशंकाएं हैं, इन अशंकाओं को दूर करने के लिये सरकार कई पहल कर रही है । इन आशंकाओं और उस सरकार की सफाई को इस प्रकार सूचीबद्ध किया जा सकता है-

क्रमांककिसानों की आशंकाएंसरकार की सफाई
1.पहले कानून से मुख्‍य आशंका यह है कि  न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) आधारित खरीद प्रणाली खत्म हो जाएगी। फसलों की सरकारी खरीद के साथ-साथ ई-ट्रेडिंग बंद हो जाएगी। इससे एक आशंका यह भी है कि यदि किसान सरकारी मंडियों के बाहर उत्पाद बेचेंगे तो राज्यों को राजस्व का नुकसान होगा। कमीशन एजेंट बेरोजगार हो जाएंगे।
केंद्र सरकार संसद से लेकर सरकार-किसान वार्ताओं में यह कई बार स्‍पष्‍ट कर रही  कि न तो मंडियां बंद होंगी, न ही एमएसपी प्रणाली खत्म होने जा रही है। इस कानून के जरिये पुरानी व्यवस्था के साथ-साथ किसानों को नए विकल्प उपलब्ध कराए जा रहे हैं। यह उनके लिए फायदेमंद है।
2.अनुबंधित कृषि समझौते में किसानों को आशंका है कि किसान का पक्ष कमजोर होगा। वे मोलभाव नहीं कर पाएंगे। प्रायोजक शायद छोटे व सीमांत किसानों की बड़ी संख्या को देखते हुए उनसे परहेज करें। बड़ी कंपनियां, निर्यातक, थोक विक्रेता व प्रसंस्करण इकाइयां किसी भी प्रकार के विवाद का लाभ उठाना चाहेंगी। कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा।
सरकार का कहना है कि इस कानून का लाभ देश के 86 फीसद किसानों को मिलेगा। किसान जब चाहें अनुबंध तोड़ सकते हैं, लेकिन कंपनियां अनुबंध तोड़ती हैं तो उन्हें जुर्माना अदा करना होगा। तय समय सीमा में विवादों का निपटारा होगा। खेत और फसल दोनों का मालिक हर स्थिति में किसान ही रहेगा।
3.तीसरे कानून से आशंका है कि जब आवश्‍यक वस्‍तुओं का भंडारण निजी कंपनियां करेंगी तो ये कंपनियां किसानों पर कई तरह से शर्त लगा सकते हैं, इससे किसानों को कम कीमत मिलने की आशंका है । असामान्य परिस्थितियों के लिए तय की गई कीमत की सीमा इतनी अधिक होगी कि उसे हासिल करना आम आदमी के वश में नहीं होगा। 
इस पर सरकार का कहना है कि  इससे कोल्ड स्टोर व खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में निवेश बढ़ेगा, क्योंकि वे अपनी क्षमता के अनुरूप उत्पादों का भंडारण कर सकेंगे। इससे किसानों की फसल बर्बाद नहीं होगी। फसलों को लेकर किसानों की अनिश्चितता खत्म हो जाएगी। व्यापारी आलू व प्याज जैसी फसलों की भी ज्यादा खरीद करके उनका कोल्ड स्टोर में भंडारण कर सकेंगे। इससे फसलों की खरीद के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को उनके उत्पादों की उचित कीमत मिल पाएगी।
आंदोलनरत किसानों की आशंका और सरकार की सफाई

किसानों की आशांकाओं का समुचित निदान होना चाहिये (There should be a proper solution to the farmers’ fears-)-

अभी किसान जिन आशांकाओं के चलते नये कृषि कानूनों को वापस लेने के मांग पर अड़े हुये, उन आशांकाओं का समुचित निदान होना चाहिये । किसानों को कानून वापस लेने के मांग पर अडिग रहना भी व्‍यवहारिक नहीं है क्‍योंकि इस प्रकार कोई भी उचित-अनुचित मांगों को लेकर आंदोलन करके किसी कानून को वापस लेने पर सरकार को बाध्‍य कर सकते हैं । किसानों को चाहिये कि अपनी आशांकाओं का समुचित निदान का मांग करना चाहिये न कि कानून वापसी का । सरकार को भी चाहिये किसानों की समस्‍याओं पर संजीदगी से सहानुभूति पूर्वक विचार करे । इस समस्‍या निदान होना आवश्‍यक है । देशहित में में आंदोलनरत किसानों को हठधर्मिता छोड़ कर सरकार के साथ व्‍यवहारिक मांग करना चाहिये  और सरकार को भी चाहिये कि इस समस्‍या अतिशिघ्र निदान करें ।


इसे भी देखें – किसान आंदोलनकारी द्वारा लाल किले पर झंड़ा फहराना कई प्रश्‍न खड़ा कर रहे हैं

Loading

3 thoughts on “भारतीय किसानों की समस्‍याएं और उनके निदान के लिये किये जा रहे उपाय (Indian farmers’ problems and measures being taken to diagnose them)

  1. किसान आंदोलन, कृषि बिल एवं सरकार की नीति पर समस्या समाधान हेतु सारगर्भित आलेख के लिय बधाई….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *