ज्‍योतिष एवं आयुर्वेद में अंत:संबंध Interconnection in Astrology and Ayurveda

Astrology and Ayurveda

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ज्‍योतिष एवं आयुर्वेद में संबंध Relation in Astrology and Ayurveda

Astrology and Ayurveda ज्‍योतिष एवं आयुर्वेद को एक दूसरे के पूरक के रूप में देखा जाता रहा है हमारे प्राचीन भारत में चिकित्सा शास्‍त्र का ज्योतिश शास्‍त्र से अंतःसंम्बन्ध रहा है ।  प्राचीन ग्रंथ चरक संहिता, सुश्रुत संहिता आदि में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि जो भी चिकित्सक आयुर्वेद पद्धति से उपचार करता है, उसे ज्योतिष का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिये ।  रोगी के उपचार करने के लिये प्रकृति से वनस्‍पत्‍ती लेने, वनस्‍पत्‍ती से औषधि निर्माण करने, और रोगी को औषधि देने के लिए मुहूर्त और ग्रह नक्षत्रों की स्थितियां देखना चाहिये। यही कारण है उस समय के आयुर्वेदाचार्य आयुर्वेद में पारंगत होने के साथ-साथ ज्‍योतिष के भी अच्‍छे जानकार होते थें । आज भी गॉंवों में देहाती वनऔषधी दिन विशेष और समय विशेष पर दिये जाते हैं । यह इस बात को प्रमाणित करता है कि आयुर्वेद और ज्‍योतिष में अंत:संग्‍बन्‍ध है ।

रोग और रोगी के दृष्टिकोण से आयुर्वेद एवं ज्‍योतिष के प्रमुख कारक Major Factors of Astrology and Ayurveda-

Astrology and Ayurveda आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में रोगों के कारण को समूल नष्‍ट करने का प्रयास होता है । ज्‍योतिष शास्‍त्र मानवजीवन के प्रत्‍येक कष्‍टों से मुक्ति का उपाय सुझाता है । आयुर्वेद के अनुसार मानव देह एवं मन का विकार कफ, वात और पित्त इन तीन कारको पर निर्भर होता है और ज्योतिष शास्‍त्र में द्वादश राशि, नवग्रहों एवं सत्‍ताईश नक्षत्रों का विशेष महत्‍व होता है । ज्‍योतिष में जन्‍म चक्र के तीन कारक लग्‍न, सूर्य तथा चन्‍द्रमा का अलग-अलग और परस्‍पर अंत:संबंधों का विशलेषण मुख्‍य होता है । लग्‍न व्‍यक्ति के भौतिक देह, सूर्य आत्मिक देह और चन्‍द्रमा मन का कारक है । इन्‍हीं तीनों कारकों के विपरित हाेने पर नकारात्‍मक प्रभाव के रूप में हमारे शरीर में रोग उत्‍पन्‍न हो सकते हैं, वहीं इनके सकरारात्‍मक प्रभाव रोगों का शमन करते हैं ।

ज्योतिष से रोगों के निदान और समाधान पर शोध अध्‍ययन Astrology research study on diagnosis and solution of diseases-

राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान भोपाल के शोधार्थी डॉं. भूपेंद्र पाण्डेय ने Relation in Astrology and Ayurveda ज्योतिष से रोगों के निदान और समाधान पर शोध किये हैं। इस शोध के लिए उन्होंने देश व विदेश के ऐसे करीब 1500 लोगों की कुंडलियों पर अध्ययन किया है। इन कुण्‍डलियों का चयन इस प्रकार किया गया कि इनमें अधिकांश  विभिन्‍न रोगों से ग्रस्‍त थे । प्रत्येक बीमारी से संबंधित 100-100 कुंडलियों का अध्ययन किया गया। इनमें ग्रहों व नक्षत्रों की दशा के अनुसार रोगों में समानता मिली है। इन कुंडलियों का अध्ययन जब ज्योतिष और आयुर्वेद के ज्ञान को मिलाकर किया गया तो चौंकाने वाली जानकारियां सामने आयीं।

कुंडलियों में बैठे ग्रहों की स्थितियां उन पर दूसरे ग्रहों की दृष्टि, उन ग्रहों का बल व स्वभाव, ग्रहों का नक्षत्रों में संचार व वेध और ग्रहों की दशा व दिशा। इससे यह पता लगाया गया कि बीमार व्यक्ति किस रोग से कब से पीड़ित था। यह भी पता चला है कि बीमारी साध्य थी या असाध्य। इस शोध की सफलता के बाद अब कुंडलियों के आधार पर बाकी अन्य रोगों की भी पहचान के लिए अध्ययन किया जा रहा है। डॉ. भूपेंद्र पाण्डेय का कहना है कि रोगों के उपचार के लिए मरीज को मंत्र, दान, व्रत, औषधियों का सेवन या स्नान और रत्नों या औषधियों का धारण करने के सुझाव दिए जाते हैं। जिनको धारण या सेवन करने से चिकित्सक के द्वारा दी जा रही औषधियों का प्रभाव तुरंत होता है।

आधुनिक चिकित्‍सा पद्यति की सीमा Limit of modern medical practice-

Astrology and Ayurveda आधुनिक चिकित्‍सा पद्यति का विकास कई बार हतप्रभ करने वाला परिणम दे रहा है । गंभीर से गंभीर रोगों का निराकरण आज संभव है । इतने विकास के बाद भी आधुनिक और उन्नत प्रकार के चिकित्सीय उपकरणों द्वारा रोग की पहचान सूक्ष्मता से हो भी जाती है, तथापि कई बार देखने में आता है कि जहाँ इन उन्नत उपकरणों द्वारा रोग की पहचान का सटीक निष्‍कर्ष नहीं निकल  पाता है, वही रोगी का स्वास्थ्य, धन, समय आदि का व्यर्थ हो जाता है । कई बार यह देखने को मिलता है रोगी को औषधि का शीघ्रता से और शतप्रतिशत लाभ नहीं हो पाता ।

रोग उत्‍पन्‍न होने के संबंध में दो अहम प्रश्‍न उत्‍पन्‍न होते हैं पहला कोई रोग क्‍यों उत्‍पन्‍न होता हैं ? और दूसरा सभी लोगों के लिये रोग उत्‍पन्‍न होने के समान कारण और समान परिस्थिति होने के बाद भी कुछ लोगों को रोग होता है और कुछ लोगों को नहीं ऐसा क्‍यों ? आधुनिक चिकित्सा विज्ञान पहले प्रश्‍न के उत्‍तर देने में पूरी तरह सक्षम है किन्‍तु दूसरे प्रश्‍न के संबंध में निरूत्‍तर है ।

 दैवव्यपाश्रय चिकित्सा पद्धति Medical practice of god asylum-

Astrology and Ayurveda ‘दवा के साथ दुवा भी चाहिये’ ऐसा यूँ ही नहीं कहा जाता है । यह एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है, जिसे दैवव्यपाश्रय चिकित्सा पद्धति कहते हैं । आयुर्वेद में बीमारियों के तीन कारण असात्म्येन्द्रियार्थ संयोग, प्रज्ञापराध तथा परिणाम और इनके उपचारार्थ तीन प्रकार दैव-व्यपाश्रय, युक्ति-व्यपाश्रय व सत्त्वावजय की चिकित्सा निर्दिष्ट हैं-

त्रिविधमौषधमिति- दैवव्यपाश्रयं, युक्तिव्यपाश्रयं, सत्त्वावजयश्च
-च.सू. 11.54

युक्ति-व्यापाश्रय का अर्थ औषधि एवं आहार द्रव्यों के साथ-साथ जीवन-शैली, पंचकर्म आदि की प्रमाण-आधारित योजना व क्रियान्वयन है। दैव-व्यपाश्रय का अर्थ अदृष्ट (अद्रव्य/ आध्यात्मिक) चिकित्सा, तथा सत्त्वावजय का अर्थ सत्य-आधारित आत्म-नियंत्रण या मन को नियंत्रित कर जय प्राप्त करना है। दैव-व्यपाश्रय चिकित्सा में मंत्र, औषध व मणि धारण करना, मंगलकारी कार्य, त्याग, उपहार, हवन, नियम-पालन, प्रायश्चित, उपवास, कल्याणकारी विचारों को सुनना, प्रणिधान (वरिष्ठ के प्रति निष्कपट एवं पूर्ण सम्मान) तथा तीर्थाटन-पर्यटन आदि शामिल हैं। 

मन्त्रौषधिमणिमङ्गलबल्युपहारहोमनियमप्रायश्चित्तोपवासस्वस्त्ययनप्रणिपातगमनादि, 
युक्तिव्यपाश्रयं- पुनराहारौषधद्रव्याणां योजना, सत्त्वावजयः- पुनरहितेभ्योऽर्थेभ्यो मनोनिग्रहः||
-चरकसंहिता (च.वि. 8.87)

सत्त्वावजय और दैव-व्यपाश्रय को प्रायः परस्पर अंतर्निहित मान लिया जाता है। कायचिकित्सा के सन्दर्भ में प्रयुक्त सत्त्वावजय में वस्तुतः योग के ही अवयव हैं। साथ ही, दैव-व्यपाश्रय के वे सभी उपाय भी योग के ही अंग हैं, जिनके द्वारा मन पर चिकित्सार्थ नियंत्रण किया जाता है।

रोग निदान में ज्‍योतिष का महत्‍व Importance of astrology in the diagnosis-

Astrology and Ayurveda ज्‍योतिष शास्‍त्र में द्वादश राशियां, नवग्रह और सत्‍ताईस नक्षत्र रोग के संबंध में जानकारी देते हैं । प्रत्‍येक राशि, ग्रह और नक्षत्र शरीर के किसी-न-किसी अंग का प्रतिनिधित्‍व करते हैं । जिस राशि, ग्रह और नक्षत्र का नकारात्‍मक प्रभाव होता है, उससे संबंधित अंगों पर रोगों का प्रभाव उभर आता है । समान्‍य रूप में हम राशिओं और ग्रहों के अन्‍त:संबंध को इस तरह समझ सकते हैं कि राशियॉं जैसे अलग-अलग आकृतियों वाले पात्र हों और ग्रह अलग-अलग प्रकृति के पदार्थ तो जैसी प्रकृति के पदार्थ को जैसी आकृति के पात्र में रखा जाये तो वह उसी अनुरूप व्‍यवहार करेगा, उसी अनुरूप उनके परिणाम भी होंगे ।

ज्योतिष ज्ञान के विस्तृत जानकारी के बिना भी कुछ संक्षेप जानकारी से रोगों का निदान किया जा सकता है इसके लिये केवल इतना जानना है कि कौन से रोग किन राशियों, ग्रहों के कारण होतेें हैं । अपने रोग के अनुरूप उस ग्रह का पहचान कीजिये फिर उस ग्रह को शांत करने का दिये गये उपाय कर लीजिये आप देखेंगे कुछ दिनों के प्रयास आपके रोग ठीक होने लगेंगे, यहाँ तक कि वह रोग समूल नष्‍ट हो जायेगा ।

राशियों सें संबंधित अंग एवं संभावित रोग Related organs and possible diseases in zodiac signs-

Astrology and Ayurveda प्रत्‍येक राशि पंचमहाभूत तत्‍वों में से किसी न किसी का प्रतिनिधित्‍व करती है जिससे हमारा शरीर बना हुआ है, साथ ही ये राशियां हमारे शरीर के किसी न किसी आंतरिक अथवा वाह्य अंगों को भी व्‍यक्‍त करती हैं । इसेे इस सारणी से समझा जा सकता है-

भावराशितत्‍वअंगसंबंधित रोग
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प्रथममेषअग्निसिर, दिमाग, ऊपरी जबड़ामस्तिष्‍क रोग, सिरदर्द, मलेरिय, रक्‍ताघात, नेत्ररोग,पाइरिया, मुँहासे, चेचक, मिरगी आदि
द्वितीयवृषपृथ्‍वीगला,जीभ, नाक, निचला जबड़ागलकण्‍ड, कण्‍ठप्रदाह, मोटापा, मुखपक्षाघात, दांतदर्द, डिप्‍थीरिया, फोड़ा-फुंसी
तृतीयमिथुनवायुफेफड़ा, कंधा, श्‍वास नली,हाथ-बाजू, ऊपर का पसलीदमा, मानसिक असंतुलन, मस्तिष्‍क ज्‍वर,साइनोसाइटिस, ब्रोंकाइटिस, कंधों की जकड़न, नशों में जकड़न
चतुर्थकर्कजलफेफड़ा, स्‍तन, उदर, नीचे का पसलीअजीर्ण, अपच, पाचन संबंधी रोग, क्षय रोग, कफ, गैस विकार, कैंसर, वातरोग
पंचमसिंहअग्नितिल्‍ली, पिताश्‍य, हृदय, यकृत,पीठ, कोख, कमर, रक्‍तहृदयरोग, पीलिया, बुखार, कमरदर्द, चेचक, आदि
षष्‍ठम्कन्‍यापृथ्‍वीनाभि, अग्‍नाशय, कमर ऑंत, मेखलाक्षेत्रऑंतरोग, कोष्‍ठबद्धता, ऐंठन, दस्‍त, हैजा, मलद्वार कष्‍ट, अर्थराईटिस
सप्‍तम्तुलावायुगुर्दा, मूत्राशय, अण्‍डाशय, डिम्‍ब मूत्रवाहिनी, गर्भाशयगुर्दे-मूत्राशय का रोग, कमर दर्द, मधुमेह, रीढ़ की हड्डी का दर्द, पथरी
अष्‍टम्वृश्चिकजलमलद्वार, मलाशय, भ्रूण, लिंग, योनि, अण्‍डकोष, गर्भाशय प्रोस्‍टेटबवासीर, नासूर, पथरी, गुप्तरोग, हार्निया
नवम्धनुअग्निनितम्‍ब, जंघासाइटिका, ट्यूमर, गठिया, पक्षाघात, दुर्घटना में चोट लगना
दशम्मकरपृथ्‍वीघुटना, जोड़, वाह्य त्‍वचा, बाल, नाखून, कंकालघुटने का दर्द, जोड़ों में दर्द, एक्जिमा, चमड़ी का रोग, ल्‍यूकोडर्मा, हाथीपॉंव
एकादशकुम्‍भवायुपॉंव, एड़ी, कानहृदय रोग, रक्‍त विकार, पागलपन
द्वादशमीनजलतलवा, पॉंवगोखरू, टी.बी. एड़ी का दर्द
भावराशितत्‍वअंगसंबंधित रोग
Astrology and Ayurveda राशियों सें संबंधित अंग एवं संभावित रोग

ग्रहों सें संबंधित अंग एवं संभावित रोग Related organs and possible diseases in Planet-

Astrology and Ayurveda प्रत्‍येक ग्रह हमारे शरीर के किसी न किसी आंतरिक एवं वाह्य अंगों को भी व्‍यक्‍त करती हैं । इसेे इस सारणी से समझा जा सकता है-

ग्रहअंगरोग
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सूर्यसिर, हृदय, दायीं ऑंख, मुख, तिल्‍ली, गला मस्तिष्‍क, पिताशय, हड्डी, रक्‍त, फेफड़ा स्‍तनमस्तिष्‍क रोग, हृदय रोग, उच्‍च रक्‍तचाप, उदर-विकासर मेननजाइटिस, मिरगी, सिरदर्द नेत्रविकार, बुखार आदि
चन्‍द्रछाती, लार, गर्भ, रक्‍त लसिका, ग्रंन्थियां, मूत्र, मन, बायीं ऑंख, उदर, डिग्‍बग्रंन्थि, महिला जननांगनेत्ररोग, हिस्‍टीरिया, उदर रोग, अस्‍थमा, डायरिया, दस्‍त, मानसिक रोग, महिला गुप्‍त रोग
मंगलपित्‍त, मांसपेशी, जीभ, पेशीतंत्र, तन्‍तु, प्रोस्‍टेट, अस्थि-मज्‍जा, नाक, ऊतकतीव्र ज्‍वर, सिरदर्द, मुँहासा, चेचक, घाव, जलन, कटना, बवासीर, नासूर, गर्भपात, लकवा, पोलियों हाइड्रोंसील, हार्निया
बुधस्‍नायु, जीभ, ऑंत, वाणी, नाक, कान, गला, फेफड़ामस्तिष्‍कविकार, स्‍मृतिहृरास, हकलाहट, पक्षाघात, सूँघने, सुनने और बोलने की शक्ति में कमी आना
गुरूयकृत, नितम्‍ब, जॉंघ, मांस, चर्बी, कफ, पॉंवपीलिया, यकृत संबंधी रोग, मोतियाबिंद, कैंसर, शोथ, चात, बादी, तिल्‍ली, गठिया, नाभि चलना
शुक्रपुरूष जननांग, ऑंख, मुख, ठुड्डी, वीर्य, गुर्दात्‍वचा रोग, गुप्‍तांग रोग, मधुमेह, नेत्ररोग, कोढ, एक्जिमा, मूत्ररोग
शनिपॉंव, घुटना, श्‍वास, हड्डी, बाल, नाखून, दॉंत, कानबहरापन, दॉंत दर्द, पायरिया, ब्‍लडप्रेसर, आर्थराइटिस, कैंसर, जटिल रोग
राहूशरीर में कमर से ऊपर का हिस्‍सामंगल एवं शनि के जैसे
केतुशरीर में कमर से नीचे का हिस्‍सामंगल एवं शनि के जैसे
ग्रहअंगरोग
Astrology and Ayurveda ग्रहों सें संबंधित अंग एवं संभावित रोग

अरिष्‍ट निवारण के लिये ग्रहों का जप-दान पूजन Chanting and worshiping planets for undesirable prevention-

Astrology and Ayurveda नवग्रह कुंडली के द्वादश भावों में किसी के लिये शुुुभ तो किसी के लिये अशुभ तो किसी के लिये मध्‍यम फलदायक होते हैं । आपके कुण्‍डली में जो ग्रह नकारात्‍मक परिणाम दे रहा हो उसके अनुरूप रोग उभरते हैं या इसे विलोम भी समझ सकते हैं आप में जो रोग दिख रहा उससे संबंधित ग्रह अभी अरिष्‍टकारक है, उसके निवारण के लिये उपाय किया जाना चाहिये । इन बातों को इस सारणी से समझा जा सकता है और उपाय किया जा सकता है –

ग्रहदान सामग्रीरत्‍नव्रतजड़ी-बूटी धारण करनाजप-मंत्रजाप संख्‍याजाप-समयहवन-समिधाअन्‍य पूजन
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सूर्यलाल रंग की वस्‍तु, लाल वस्‍त्र, गेहूँ, गुड़, लाल रंग गाय, माणिक, ताम्र, स्‍वर्ण, लाल फल, यथा शक्ति दक्षिणामाणिकरविवारबेलपत्र की जड़ लाल डोरे में धारण करनाॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:7000सूर्योदयआकआदित्‍यहृदयस्‍त्रोत का पाठ, हरिवंशपुराण
चन्‍द्रसफेद रंग की वस्‍तु, श्‍वेत चंदनख्‍ चावल, कपूर, दही, दूध,चांदी, श्‍वेत वस्‍त्रमोतीसोमवारखिरनी की जड़ सफेद डोरे में धारण करनाॐ श्रां श्रीं श्रीं स: चन्‍द्रमसे नम:11000संध्‍यापलाशशिवपूजन, पूर्णिमा व्रत
मंगललाल रंग की वस्‍तु, गेहूँ, मसूर दाल, गुड़, सोना, लाल वस्‍त्र, लाल चन्‍दन, लाल फलमूँगामंगलवारअनन्‍तमूल की जड़ लाल डोरे में धारण करनाॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:10000सूर्योदयखैरहनुमत्‍पूजन, ब्रह्मचर्य का पालन
बुधहरे रंग की वस्‍तु, मूाग, चीनी, हरा वस्‍त्र, हरी सब्‍जी, कांस्‍य-पात्र पन्‍नाबुधवारविधार की जड़ हरे डोरे मेंॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:9000सूर्योदयअपामार्गगोरी-गणेश पूजन
गुरूपीले रंग की वस्‍तु, पीला चावल, चना, हल्‍दी, शहद, पीला वस्‍त्र, सोनापुष्‍परागगुरूवारकेले की जड़ को पीेले डोरे मेंॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:19000संध्‍यापीपलबिष्‍णुजी का पूजन
शुक्रसफेद चमकीले रंग की वस्‍तु, चॉंदी, चॉंवल, मिश्री,हीराशुक्रवारसरपोंख की जड़ चमकीले डोरे मेंॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:16000सूर्योदयगूलरलक्ष्‍मीदेवी का पूजन
शनिकाले रंग की वस्‍तु, काला तिल, काला वस्‍त्र, लोहपात्र, काले जूतेनीलमशनिवारबिच्‍छू की जड़ काले डोरे मेंॐ प्रां प्रीं प्रौं स:शनैश्‍चराय नम:23000संध्‍याशमीभैरव पूजन, शनि पूजन
राहूसप्‍त अनाज, उडद, नारियल, कम्‍बल, बेल पत्रगोमेदराहू जिस राशि में स्थित हो उस राशि के स्‍वामी के अनुरूप रंग का दानसफेद चंदन राशि स्‍वामी के रंग के डोरे मेंॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:18000रात्रिदुर्वाशिव पूजन
केतुराहू के अनुसारलहसूनियाराहू के अनुसारअसगंध की जड़ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम:10000रात्रिकुशागणेश पूजन
ग्रहदान सामग्रीरत्‍नव्रतजड़ी-बूटी धारण करनाजप-मंत्रजाप संख्‍याजाप-समयहवन-समिधा
Astrology and Ayurveda अरिष्‍ट निवारण के लिये ग्रहों का जप-दान पूजन

ज्‍योतिष रोगाें के उपचार में सहायक है किन्‍तु स्‍वयं उपचार नहीं Astrology is helpful in treating diseases but not self treatment-

Astrology and Ayurveda ईश्‍वर उन्‍हीं का साथ देता है जो अपना कर्म करते हैंं बिना कर्म किये फल की प्राप्ति नहीं होती । आयुर्वेद उपचार प्रक्रम है, ज्‍योतिष इस प्रक्रिया को आसान बनाता है । जब कभी आपको यह लगे कि आप पर डाक्‍टरी उपचार का सही ढंग से लाभ नहीं हो पा रहा है तो डाक्‍टरी उपचार के साथ-साथ ज्‍योतिष का भी सहायता लिया जाना चाहिये । यह उचित नहीं होगा कि हम ज्‍योतिषी उपाय तो कर रहें हैं किन्‍तु डाक्‍टरी उपचार नहीं ले रहें हैं । ज्‍योतिषी उपाय निश्चित रूप से आपके रोगों को शमन करने, मूल से नष्‍ट करने में समर्थ है किन्‍तु इनको एक माध्‍यम चाहिये और यह माध्‍य उपचार है । अत: अपने उपचार कराते हुये ज्‍योतिषी उपाय करने चाहिये ।

Astrology and Ayurveda आलेख-रमेश चौहान

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