जब जाता है एक पिता -प्रो रवींद्र प्रताप सिंह

जब जाता है एक पिता
काम पर ;
तरह तरह के काम
जीवकोपार्जन हेतु ,
सामाजिक
सांस्कृतिक।
आर्थिक ,
और न जाने क्या क्या
बचपन से लेकर ,देखता रहा मैं
साढ़े चार दशक
कई कई रूप
भावनाएं
स्वरूप
कई कई रंग और ढंग
बस , हां सब में ,कैसे हों क्षण
एक पिता होता है बस
एक पिता ।

पिता का रूप
प्रारंभ से मानक लिए
न जाने कितने कितने
कैसे कैसे भाव
कैसा कठोर और कैसा नम्र
पिता की हंसी तो बहुत कम
उनका गांभीर्य याद सदा ।

एक एक कदम पर , एक एक सीख
हरेक दिन , कोई नई बनी रीत ,
कभी रहे शांत भाव ,
लिए कसी स्वर , अजीब से
और कभी नए नए हर तरफ संचार ।

व्याकरण ,संस्कृति अंग्रेजी
संस्कृत ,इतिहास भूगोल ,
राजनय ,साहित्य धर्म
संविधान एवम जीवन पर
उनकी सीख , उनके विचार
उनके लेख , और शिक्षा
याद है , वही है मेरी नीव
जीवन के लिए ।

चला जीवन क्रम
समतल ,
अविरल शिक्षण
अविरल चिंतन ,

और फिर एक दिवस ,
बसंत का था अंत,
नई ऋतु तरुण ग्रीष्म
जब मैं हुआ अनाथ ,
दूर हुई वह
एक आभासी छांव ।

बीत रहे वर्ष
यूं आह भी सिमट
बन रही एक भाव ,
और बन रहा इतिहास ।

अभी अपूर्ण कई कार्य ,
योजनाएं हैं जमी अनेक
अभी अपूर्ण कई कार्य
जिन्हे किया संग संकल्प ।

कह रहे धर्म ग्रंथ, कह रहा हृदय
वह गए चले अनंत पथ लिए लक्ष
हो अनंत में विलीन ,आज के दिवस
चार वर्ष पूर्व ,
भर रहे प्रेरणा मास ,वर्ष दिवस ।

बन रहे कर रहे
कई कथन ,
मार्ग को प्रशस्त ,
हां , दिख रही
हस्तलिपि , और कई बिम्ब ,

दिख रही पांडुलिपि
दिख रही पुस्तकें ,
दिख रही वो खड़ी दीवार
जहां हुआ सृजन और संचार ।

एक अपूर्ण पांडुलिपि
कह रही दर्शनों की बात
एक अपूर्ण पांडुलिपि
दे रही भंगुरता का सार ,
एक अपूर्ण डायरी
कह गई , हजार भाव
अनसुलझे
अनकहे
अबूझ से व्यवहार ।

हां कहते हैं होता है पिता आकाश ,
अवश्य , प्रतीत होता है ,जब वह जाता है ,
बचपन में कुछ काम से ,
कुछ लाने ,खिलौने आदि
या इस समय के समान
जब कभी आता नही लौट कर ।

हां उपस्थित है पिता, हर कदम
दे रहा शक्ति ,दे रहा दृष्टि ,
हर कथन , हर पल , हर समय
समक्ष ।
( प्रो रवींद्र प्रताप सिंह द्वारा उनके पूज्य पिता डॉ राजेन्द्र बहादुर सिंह ( 01-07-1951- 14-04-2019 )को श्रद्धांजलि स्वरूप )

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