जानकी और कैकयी का त्‍याग- वसुंधरा पटेल “अक्षरा”

वसुंधरा पटेल “अक्षरा” के दो गीत

जानकी और कैकयी का त्‍याग

जानकी और कैकयी का त्‍याग- वसुंधरा पटेल "अक्षरा"
जानकी और कैकयी का त्‍याग- वसुंधरा पटेल “अक्षरा”

जानकी और कैकयी का त्‍याग वसुंधरा पटेल ‘अक्षरा’ के दो गीत हैं जिसमें रामचरित मानस के दो प्रमुख महिला पात्रों जानकीजी और माता कैकयी को चित्रित किया गया है । पहले गीत में सार-सार में जानकीजी का संपूर्ण त्‍यागमय जीवन का चित्रंण है वहीं दूसरे गीत में माता कैकयी के त्‍याग को चित्रित किया गया है । दोनों ही गीत पठनीय हैं ।

जानकी और कैकयी का त्‍याग

1. जानकी निर्णय तुम्हारा

धर्म मर्यादा पुरुष प्रभु राम से परिणय तुम्हारा
जानकी निर्णय तुम्हारा

जय सती सीता सदा सुखदायिनी कल्याणिनी तुम
छोड़ सुख की राजधानी बन गई वनवासिनी तुम
राम के श्री राम बनने की सुखद तुम यात्रा हो
प्राण रघुवर की तुम्ही कर्तव्य पथ सहगामिनी तुम

जग नियंता राम के प्रति प्रेम है अतिशय तुम्हारा
जानकी निर्णय तुम्हारा

दुष्ट नगरी को जलाया एक पतिव्रत ताप ने माँ
देखकर दानव दुराचारी लगे थे काँपने माँ
भूमिजा तृण से दशानन को हराई, जानता जग
सत्य ने पाई विजय है हार माना पाप ने माँ

इस धरा पर हे सिया है धन्य यह अभिनय तुम्हारा
जानकी निर्णय तुम्हारा

है मनुज अज्ञान या अनजान हैं सारे अभागे
जो स्वयं शक्ति स्वरूपा भगवती पर प्रश्न दागे
लोकहित लीला रची आई यहाँ भू- भार हरने
वह परीक्षाओं से बंधकर थी खड़ी श्री राम आगे

माँ मही स्वीकारती है अंत मे अनुनय तुम्हारा
जानकी निर्णय तुम्हारा

इस जगत में रामसेतु प्रेम का पर्याय होगा
रामसीता त्याग का पावन सभी अध्याय होगा
लांछनों का नाश होगा प्रश्न को उत्तर मिलेगा
एक दिन निर्दोष सीता का यहाँ पर न्याय होगा

जीत मेरे राम की होगी यही निश्चय तुम्हारा
जानकी निर्णय तुम्हारा

जानकी और कैकयी का त्‍याग

2. अपयश था स्वीकार तुम्हें

मातु कैकयी सदा जगत से, मिला कुपित व्यवहार तुम्हें
त्याग भरा इक कलुषित जीवन, अपयश था स्वीकार तुम्हें

रामलला का पावन यश हो, इसीलिए वनवास चुना
मान गँवा निज का तुमने माँ, कुलहित सुख का नाश चुना
केवल तप से ही संभव था ,दुष्टों का संहार यहाँ
शापित-शोषित अरु पापों का, होना था उद्धार यहाँ

हे जननी ममता की मूरत, प्रभु से नेह अपार तुम्हें
त्याग भरा इक कलुषित जीवन, अपयश था स्वीकार तुम्हें

हार गई सिंदूरी लाली, पुत्र भरत ने त्याग दिया
अपवादों को गले लगाई, जीवन भर संताप किया
जग ने तुमको दोषी माना,तुम पर निंदा वार किया
अपमानों के तीर चलाकर, घाव भरा उपहार दिया

दोष तुम्हारा कहीं नही है, बोले पालनहार तुम्हें
त्याग भरा इक कलुषित जीवन, अपयश था स्वीकार तुम्हें

दशरथ रानी मातु सुबोधा, निष्ठुर है यह कथ्य नही
प्राण प्रिय प्रभु राम का जीवन ,भर दे दुख से सत्य नही
ज्ञात तुम्हे था होनहार सब, प्रभु लीला पहचान गई
मार्ग मंथरा के चलकर तुम, दोषी बनना ठान गई

भक्त बड़ा ना तुमसा कोई, वंदन बारम्बार तुम्हें
त्याग भरा इक कलुषित जीवन, अपयश था स्वीकार तुम्हें

-वसुंधरा पटेल “अक्षरा”
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

इसे भी देखें- रामचरित मानस दोहामाला (108 मनका)

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12 thoughts on “जानकी और कैकयी का त्‍याग- वसुंधरा पटेल “अक्षरा”

  1. अप्रतिम सृजन दीदी 👌👌👌आपकी लेखनी को नमन

  2. रामचरितमानस के दो प्रमुख पात्रों, जिनपर ज्यादा लेखनी नहीं चलाई गई है, आपने अपनी लेखन कला से अद्भुत चिंतन करते हुए विस्मित कर दिया।
    बहुत-बहुत बधाई
    शुभकामनाएं

  3. मानस पटल को करुणा से सींच कर भावविभोर कर देने वाली पंक्तियों व अक्षरा को नमन

  4. रामायण के ज्ञान सार को अपनी लेखनी से अपने भावों को पिरोकर जो मनका तैयार किया है अक्षरा ने उसके एक एक मोती की चमक और शीतलता का भान सभी पाठकगण करेंगे l
    बहुत बहुत बधाई हो बेटा…. निरंतर अपनी लेखनी के साथ प्रगति शिखर पर बनें रहो l शुभाशीर्वाद l

  5. रामायण के ज्ञान सार को अपनी लेखनी से अपने भावों को पिरोकर जो मनका तैयार किया है अक्षरा ने उसके एक एक मोती की चमक और शीतलता का भान सभी पाठकगण करेंगे l
    बहुत बहुत बधाई हो बेटा…. निरंतर अपनी लेखनी के साथ प्रगति शिखर पर बनें रहो l शुभाशीर्वाद l

  6. बहुत अच्छे गीत रचा है आपने मैडम, ग्रूप में इसके ऑडियो
    प्रेषित करना।

  7. बहुत अच्छे गीत रचा है आपने मैडम, ग्रूप में इसके ऑडियो
    प्रेषित करना।

  8. वसुंधरा अक्षरा जी आपकी कविताओं में नारी विमर्श व नारियों का ममत्व,मर्म प्रबलता से चित्रित है,,इसमें दो मत नही आप एक ऐतिहासिक कार्य श्रीराम की प्रेरणा से कर रही जो प्रदेश में कोई नही कर रहा,,,,जिन पात्रों को रामायण में (कैकई विशेषकर)सम्मान भारतवर्ष ने न दिया उन्हें न्याय दिलाने उनके सकारात्मक पक्षों व तयांग का वर्णन कर आपने शिखर का सृजन किया है,,बहुत आशीष व बधाईया,,,,,आशा है ऐसे ही मर्मस्पर्शी रचनाएँ पढ़ने को मिलते रहेंगे,,वन्दे मातरम,,जय श्रीराम

  9. बहुत सुंदर जी! हमेशा ऐसे ही कविताएं लिखते रहे, हम यही प्रार्थना करते हैं कि आपकी रचनाएं जल्द ही पाठयपुस्तकों में सामिल किया जाए।

  10. आप सभी का हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद,,,, आप सभी का आशीर्वाद व मार्गदर्शन ही मेरी जीवन पूँजी है यूँ ही मेरा हौसला व आशीष आप सब से मिलता रहे।

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