Sliding Message
Surta – 2018 से हिंदी और छत्तीसगढ़ी काव्य की अटूट धारा।

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 18 एवं 19-बुद्धिसागर सोनी “प्यासा”

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 18 एवं 19-बुद्धिसागर सोनी “प्यासा”

गताँक (कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 16 एवं 17) से आगे.

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 18 एवं 19

-बुद्धिसागर सोनी “प्यासा”

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 18 एवं 19
कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 18 एवं 19

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 18

…….।।।ःः कर्मण्ये ःः।।।……..

मन तो   चंचल    उड़ना चाहे
नील गगन   में    पँख  पसारे
किसे मिला  मनचाहा मंजिल
जीवन पथ   में   बिना  सहारे

जिसने साहस कर चलना सीखा
अभिशापों  को     दलना सीखा
ले अभीष्ट   की   चरम  पिपासा
पथ पर    आगे    बढ़ना  सीखा

साहस   करने वालों  को
लेकर    चलती है सहारा
सागर में   सेतु बन जाता
पशु   बनते   मीत हमारा

यदा   यदा   ही   धर्मस्य्
ग्लार्निभवति       भारतः
धर्म        संस्थापनार्थाय
संभवामि      युगे    युगे

साहस  हो तो   संचनाओं  को
मुँह   की    खानी    पड़ती   है
पलपल बहता भीतर का लावा
मैदानों    में            जलती  है

गीता   बनकर भीतर का लावा
उतरा  अर्जुन   के     कानों  में
सीता   बनकर अभीष्ट कामना
बस  गई    राम  के    प्राणों में

तुम चाहो तो  गढ़  सकते हो
अपना     भी        इतिहास
गौतम     गाँधी      विश्व गुरू
बन   जाते     हैं      विश्वास

इनके पथ पर चलकर दैखो
वंचनाओं को  सहकर देखो
वर्जनाओं  में  रहकर  देखो
भावनाओं  में  बहकर देखो

कितने   राम रहीम   छिपे हैं
कितने  कृष्ण कबीर छिपे हैं
पगले      तेरे     अंतरमन में
कितने जन्नत जागीर छिपे हैं

क्यों व्यर्थ भागता मरुखंड पर
क्यों व्यर्थ जागता कर्मदंड पर
जीना  है   हर  साँस को   जी
प्रारब्ध बसा है मुण्ड मुण्ड पर

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 19

………।।।ःः कर्मण्ये ःः।।।……..

बस इसे   तुम्हें   सहना होगा
कल यही तुम्हारा गहना होगा
कुन्दन बनना है  जग    में तो
अंगारों   में       जलना  होगा

कल क्या होगा अनजान हो तुम
प्रारब्ध   नहीं     इंसान   हो तुम
गढ़ लो   लेकर  आज की माटी
भावी कल का  पहचान हो तुम

तुमसे लेकर  तुम्हारा  सत्वर
कल      नई चेतना   जागेगी
वरना तुमसे   संतति तुम्हारी
सब कर्मों का   लेखा माँगेगी

किया धरा जो अब तक तुमने
कल       बन जायेगा    थाती
चिर  उर्वर    प्रण प्राण प्रणेता
या फिर         बंजर      माटी

तुम      क्या गढ़ना    चाहोगे
करता है     तुम पर    निर्भर
ठोकर  खाता  स्थावर  सत्वर
या   प्रतिपल   बहता  निर्झर

मूल मंत्र   है   चलती  साँसे
चलते पग और  चलती बाँहें
आँख उठाकर चलना सीखो
पकड़ो   हाथ बढ़ाकर   राहें

मैं  क्या जानूँ   क्या है दोहा
क्या जानूँ   क्या है   चौपाई
हाथ मेरे दो     नैन भी दो हैं
हैं   चलने को   दो पग भाई

वश में     मेरे    मेरी  नियति
फिर   मैं        क्यों   घबराऊँ
हाथ है अवसर साथ है सत्वर
मैं      बस      चलता   जाऊँ

साथ रहे   बस    स्मृतियों में
मेरी         अन्तिम    श्लाघा
बढ़ता जाऊँ    पग पग आगे
क्या   बंदिश     क्या   बाधा

पैरों के   ठोकर में।   पलता
महा दशा     भी        काँपे
मेरा   स्वागत करने      मेरी
मंजिल          आये    आगे

-बुद्धिसागर सोनी “प्यासा”
 रतनपुर,7470993869

शेष अगले भाग में

One response to “कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 18 एवं 19-बुद्धिसागर सोनी “प्यासा””

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अगर आपको ”सुरता:साहित्य की धरोहर” का काम पसंद आ रहा है तो हमें सपोर्ट करें,
आपका सहयोग हमारी रचनात्मकता को नया आयाम देगा।

☕ Support via BMC 📲 UPI से सपोर्ट

AMURT CRAFT

AmurtCraft, we celebrate the beauty of diverse art forms. Explore our exquisite range of embroidery and cloth art, where traditional techniques meet contemporary designs. Discover the intricate details of our engraving art and the precision of our laser cutting art, each showcasing a blend of skill and imagination.