गताँक (कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 18 एवं 19) से आगे.
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 20
…….।।।ःः कर्मण्ये ःः।।।……..
चलना है निर्बाध चलूँगा
अवरोधों को लाँघ चलूँगा
मैं तो हूँ यायावर मितवा
सब की पीड़ा बाँट चलूँगा
कहता जाऊँगा मैं कविता
रचता जाऊँगा मैं रचिता
ओ मेरे हमराही बन्धु
बनता जाऊँगा मैं वनिता
जो भी होगा अच्छा होगा
मन में इतना धीर धरुँ
रहे जागती मेरी वेदना
मैं औरों के पीर हरुँ
बस थोड़ा सत्वर मिल जाये
साँसों का अवसर मिल जाये
हो सकता है चलते – चलते
मीत कोई पथ पर मिल जाये
युग बदले हैं बदली सदियाँ
दिन बदलेगें नियति यही है
जिन हाथों ने युग बदले हैं
मत भूलो वे हाथ यही हैं
हाथों में गढ़ लूँ कर्मरेख
थोड़ा कर्मठ हो जाऊँ
फिर मैं साथ चलूँगा नियति
तुम सा पहले बन जाऊँ
तुम बन जाओ प्रीत मेरा
मैं मीत तुम्हारा बन जाऊँ
तुम छेड़ो सरगम की लय
मैं गीत सुनाता जाऊँ
तुम बिन मेरा मौन अधूरा
मैं तो चाहूँ पूर्ण समर्पण
बन जाऊँ प्रतिबिंब तुम्हारा
तुमको बना लूँ अपना दर्पण
किन्तु क्या है मेरी सम्पदा
मैं करुँ क्या तुमको अर्पण
तुम हो सत्वर मैं यायावर
तुम से सजता मेरा जीवन
तुम बन जाओ पथ मेरा तो
मैं मंजिल पा जाऊँ
देकर तुम्हें सहारा संग संग
पथ पर बढ़ता जाऊँ
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 21
तुम मेरा आयाम बनो तो
स्मृतियों को गढ़ लूँ
मिलकर तुम संग सृष्टि के
कुछ और लकीरें पढ़ लूँ
रहूँ मौन तो तुम कुछ बोलो
बरसों की अपनी चुप्पी खोलो
थक जाऊँ तो संग हवा के
नई चेतना मुझमें घोलो
सघन वृक्ष की छाया में
आओ कुछ पल विश्राम करें
मिल जुल सपने देखें कल के
कल सपनों को साकार करें
शशी झाँकने लगी है देखो
पत्तों के चिलमन से
तारा ताक रही है हमको
बैठी नील गगन से
चाहा बहुत कि स्मृतियों से
तुमको मैं बिसरा दूँ
बँध जाऊँ जगती के डोर से
बीती स्मृतियाँ भुला दूँ
जो एकाकी मन के साथ रहेगें
क्या वे भी तन के साथ जलेगें
है पुर्नजन्म यदि मौन प्रश्न
हम जनम जनम हर बार मिलेगें
रह जाये अवशेष नियति बन
या पुर्नजन्म विधि लेख बने
मैं ही क्या कह सुन पाऊँ
विधि जाने कितने लोग सुनें
जागो सूरज निकल चला है
अम्बर के आँगन मैं
सिन्दूरी हो चला क्षितिज
पर तौल रहे नभचर नभ में
आओ भर लें नई ज्योत्सना
श्रान्त क्लान्त तन मन में
प्रतिदिन आता नया सबेरा
जगती के आँगन में
अब आगे है नई मंजिलें
नई दिशायें नये रास्ते
सब कुछ तेरे खातिर मितवा
मेरा जीवन है तेरे वास्ते
-बुद्धिसागर सोनी "प्यासा" रतनपुर,7470993869