गताँक (कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 18 एवं 19) से आगे.
कर्मण्ये वाधिकारस्ते भाग 22
………।।।ःः कर्मण्ये ःः।।।……..
क्यों ना कहूँ खामोश रहूँ
वाणी की वेदना कैसे सहूँ
मत रोक मुझे मेरी नियति
कह लेने दे मैं जो भी कहूँ
कहते सुनते गिले शिकवे
पथ मजे मजे कट जायेगा
बाँटेगें पीड़ा थोड़ी थोड़ी तो
पीड़ा दंश यहीं मिट जायैगा
आओ कह लें जो कहना है
और कहाँ तक चुप रहना है
मौन सहा जो यातनाओं को
नादाँ है जग का कहना है
जो घुट घुट कर मर जाते हैं
वे लोग कहाँ जी पाते हैं
नई चेतना के मुँह से
बुजदिल कायर कहलाते हैं
जो भी होगा अच्छा होगा
मन में इतना धीर धरुँ
रहे जागती मेरी वेदना
मैं औरों के पीर हरुँ
बस थोड़ा सत्वर मिल जाये
साँसों का अवसर मिल जाये
तुम मेरा हमराह बनो तो
मुझको मेरी मंजिल मिल जाये
तेरी अभिलाषा मैं जानूँ
जान ले तू भी मेरी बात
तू मेरा हमराही बन जा
थाम लूँ मैं भी तेरा हाथ
स्मृतियों में रहे जागती
मेरी अंतिम श्लाघा
पगपग पथपर बढ़ता जाऊँ
क्या बंदिश क्या बाधा
धू धू जलता सूरज डाले
किरणों की चिंगारी
अभिलाषा के लिये सहूँ
मैं जीवन की विपदा सारी
रुठ गया मधुमास तो क्या
अगला बसन्त तो आयेगा
बरस चूकेगा आँखों का सावन
फिर मधुमास तो छायेगा
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 23
द्वितीयखंड
……..।।ःः वाधिकारस्तेःः।।……..
क्यों बैठें अवसाद थामकर
करे और अब किसे प्रतीक्षा
पगपग बढ़कर पा लें मंजिल
पूरी कर लें अपनी इच्छा
मैं नियति हूँ मेरे पथ
यति तुम्हें चलना होगा
अभीष्ट तुम्हे पाना है तो
मेरी साँसें पढ़ना होगा
तेरा आईना तेरा मन है
तू परछाई अपने मन की
आँख उठाकर देख आईना
परछाई क्या है तेरे मन की
आओ भारत हमतुम मिलकर
एक नया विश्वास बनें
क्यों बैठें अवसाद थामकर
एक नया इतिहास बनें
मत करो समय की अनदेखी
कहीं ऐसा ना हो जाये
मंजिल के मिलने से पहले
दिन का सूरज ही ढल जाये
थाम समय का हाथ यति
संग संग मेरे आज चलो
तिल तिल जलकर सोने जैसा
वसुधा का आभूषण बनो
इतना समझो जो गल जाये
रुप नया बन जाता है
जब गल जाये रात का तारा
सृष्टि को धूप मिल जाता है
दीपक बनकर जलो आज तुम
समय के संगसंग चलो आज तुम
नव सृष्टि का सृजन पुकारे
बनो दधीचि गलो आज तुम
यथार्थ वही मुट्ठी भर चाँवल
बाकी सब आडम्बर है
विश्व शिवम् हो मूलमंत्र तो
यत्र तत्र किसका डर है
जब जागे तब हुआ सबेरा
अब सोते से उठ जाओ
आगे बढ़कर राह पकड लो
मंजिल तक चलते जाओ
-बुद्धिसागर सोनी "प्यासा" रतनपुर,7470993869