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कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 26 एवं 27

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 26 एवं 27

गताँक (कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 24 एवं 25) से आगे

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 26 एवं 27
कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 26 एवं 27

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 26

……..।।ःः वाधिकारस्ते ःः।।…….

हर पल हर क्षण मन के भीतर
जो एक अनोखा द्वन्द छिड़ा है
उसी द्वन्द के अंर्तमन में
महाभारत का अंश छिपा है

नेकी के पथ पर बढ़ जाना
मानवता की खातिर लड़ जाना
स्व विवेक निश्चय कर अर्जुन
बद या बेहतर ऐसा कर जाना

यह युद्ध जो होने वाला है
सतत समर की माला है
मन के भीतर जग में बाहर
जलता इसी समर की ज्वाला है

नेक वही जो रच गढ़ जाये
सहज सुगम पथ कल के लिये
इतिहास तो बनता जा पगले
आने वाले पल के लिये

हे तात उठो हे भ्रात उठो
मन के भीतर को जानो तुम
वहाँ कौन छिपकर रहता
उस इंसा को पहचानो तुम

एक अलग ही अर्जुन है
जो मन के भीतर रहता है
सुनते जाओ उसकी जरा
वह तुमसे कुछ कहता है

सुनो पार्थ तुम उसकी बेबसी
तुम दुनियादारी वाले हो
वह तो बेबस कैद है भीतर
तुम उसके रखवाले हो

स्थित प्रज्ञ बनो तुम भाई
कर्मों की परिभाषा पढ़ लो
साँख्ययोग सा कर लो जीवन
भावी का जिज्ञासा गढ़ लो

कैद करो ना यूँ सत्वर को
अपनी प्रतिभा को पहचानो
आगे बढ़कर गले लगा लो
मन का भी तुम कहना मानो

पथ पर आगे बढ़ते जाओ
मन की बातें साथ लिये
रणभूमि में लड़ते जाओ
नवजीवन का सौगात लिये

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 27

…….।।ःः वाधिकारस्ते ःः।।……..
साँख्ययोग

सूरज के रहते गहन अँधेरा
जब आँखों में छा जाये
झाँकों थोड़ा मन के भीतर
आलोक कोई मिल जाये

झाँको मन के भीतर बैठा
गाँडीवधारी कुरूकुल वीर
कितना चँचल मन है तेरा
वह कितना लगता गँभीर

तेरे भीतर शोणित बहता
उसके भीतर लावा है
तू क्या जाने वह तो समझे
जग तो एक छलावा है

विमुख ना हो संघर्ष से तुम
यह तेरी मेरी सृष्टि नहीं
समय की सीमा लाँघ सके
ऐसी तेरी मेरी दृष्टि नहीं

जर्रा जर्रा समय के वश में
समय के वश में अपनी नियति
समय जहाँ ले जाये चल
राज महल या रण भूमि

मन की आँखें खोलो मितवा
अपने मन को तौलो मितवा
मन की आँखें समय को देखे
मन से तेरी पहचान है मितवा

उठ जाओ धनंजय युद्ध करो
नियति का कहना मानो तुम
भूखी है रण की देवी
अरिमुण्ड लहू से सानो तुम

शस्त्र उठाओ रहो ना कायर
अबला नियति उस पार खड़ी
अवसर तेरा बाट जोहती
इस महासमर के पार खड़ी

हे अभ्यंकर हे प्रलयंकर
शस्त्र उठाओ समरभूमि है
ज्ञानयोग ले बैठा नादां
इष्ट नहीं सम्मुख अरि है

है कौन जिसे तू कहता है
मैं, मेरा, अपना अपना
जागी आँखें युद्ध को देखे
तू क्यों देख रहा सपना

 -बुद्धिसागर सोनी "प्यासा"
   रतनपुर,7470993869

शेष अगले भाग में

3 responses to “कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 26 एवं 27”

  1. अशोक आकाश Avatar
    अशोक आकाश

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