कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 30 एवं 31

गताँक (कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 28 एवं 29) से आगे

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 30 एवं 31

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 30 एवं 31
कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 30 एवं 31

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 30

…….।।ःः वाधिकारस्ते ःः।।…….
साँख्ययोग


इसलिये कहूँ मैं हे अर्जुन
यह ज्ञानयोग का राग हटा
अपनी नियति पथ के
सारे अवरोधों को दूर हटा

और कब तक तुम सहोगे
मौन रहकर यातनायें
क्या तुम्हारे ही लिये है
जग की सारी वर्जनायें

देखो सपने युवा मन के
राह चलो तुम सीधातन के
अड़ो नहीं ऐरावत बन के
अभीष्ट मिलेगा सत्वर बन के

नियति कहे सुन मितवा
जीवन के कुछ धुन मितवा
मैं भी देखूँ क्या है तुझ में
कोई सपना बुन मितवा

मैं तो अभीष्ट तुम्हारी हूँ
तुम पर सत्वर वारी हूँ
आजीवन मैं साथ हूँ तेरे
मैं स्पन्दन तुम्हारी हूँ

संग साथ चलूँगी मैं उस पथ
जिस राह तुम्हारे कदम चले
छोड़ दिया है सबकुछ तुमपर
सुमन खिले या शूल मिले

इस जगती में तेरा मेरा
जनम जनम का नाता है
तू कर्ता मैं कर्मण्ये
यह तेरा मेरा नाता है

तू जो भी करना चाहे है
वह सबकुछ मेरी खातिर है
मैं हूँ तुम्हारी सतत् साधना
और तू मेरा प्रियवर है

आज हमारे बीच में मितवा
अपना ही प्रारब्ध खड़ा है
शोक मुझे इस बात का है
तू कर्मगति के विमुख अड़ा है

शोक ना कर अवसाद ना धर
जो होनी है वह होना है
मैं तेरी हूँ तू मेरा है
अब क्या पाना क्या खोना है

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 31

…….।।ःः वाधिकारस्ते ःः।।…….
साँख्ययोग

कौन किसी का हुआ है जग में
सब अपना – अपना जीते हैं
किया धरा हो जिसने जैसा
मीठा – खारा पीते हैं

आस रही तो संगी साथी
साँस रही तो रिश्ते नाते
धड़कन धड़कन कहता जाये
पलपल आते पलपल जाते

सृष्टि से अंतिम साँसों तक
मानवता का जंग छिड़ा है
महासमर की पृष्ठभूमि में
किसके पीछे कौन खड़ा है

यह महासमर है गांडीवधर
कायरता छोड़ो संग्राम करो
अब नवयुग आने वाला है
उसका पथ संज्ञान करो

दांत बतीसा रसना एक
रहना चलना सदा ही नेक
तब पछताये होत क्या
जब चिडिय़ा चुग गई खेत

नहीं चूकने वाले बैरी
तुम पलभर भी चूके अगर
हे भारत तुम संग्राम करो
थाम लो सत्वर अपने कर

कौन्तेय उठो! संग्राम करो
बैरी ललकार रहे हैं
जननी का अपमान किया
मनु पर हुंकार रहे हैं

मत रखो अकर्मठ काया को
परमार्थ करो पुरुषार्थ करो
निजसत्वर गढ़ने की खातिर
तुम थोड़ा सा स्वार्थ करो

ऐसा कोई काम नहीं
जो तुमसे नहीं होने वाला
बस चार कदम चलना होगा
उठ जाग रे बंधु! तज माला

सकल पदारथ है जगमाहीं
कर्महीन नर पावत नाहीं
याद हमेशा रखना भाई
तुलसी की अनुपम चौपाई

 -बुद्धिसागर सोनी "प्यासा"
   रतनपुर,7470993869

शेष अगले भाग में

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