गताँक (कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 30 एवं 31) से आगे
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 32 एवं 33

कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 32
……..।।ःः वाधिकारस्ते ःः।।…….
कर्मयोग
पलपल जीना पलपल मरना
हर पल में तुमको निभना है
समराँगण है यही नियति है
नियति की खातिर लड़ना है
नई संस्कृति बाट जोहती
असुरों के पार खड़ी है
मनुपुत्र तुम राह बनाओ
रिपुबल बीच अड़ी है
महारथी गांडीवधारी तुम
कृत्या का आवेश धरो
कूद पड़ो तुम समरभूमि में
नियति का संताप हरो
यूँ ही मिल जायेगा सत्वर
जब चल पड़ोगे नियतिपथ पर
हाथ है अवसर साथ है सत्वर
हे पार्थ! ना देखो पीछे मुड़कर
उठो आर्य! अनार्य संस्कृति
अब ना रहने पाये
भगीरथ का राह रोकने
ऐरावत अड़ ना पाये
ये जो रिश्ते – नाते हैं
सब दुनिया की सौगातें हैं
सुखदुख बाँटे संगसंग कोई
साथ कहाँ तक जाते हैं
यह महाप्रलय की भूमि है
अंतिम सच है मृत्यु यहाँ
महाप्राण का करो आलिंगन
तुम खोये हो . पार्थ कहाँ
गांडीवधर शर संधान कर
अरि शीश बचने पाये ना
लपलपाती मृत्यु क्षुधा
भूखी ही रह जाये ना
होम कर नरमुण्ड समिधा
क्रोध की ज्वाला जगा
आचमन कर लहू का
मृत्यु को हालाहल पिला
जागो अर्जुन! युद्ध करो
पाँचजन्य मैं फूँक रहा
तेरी यह कायरता पगले
मेरे मन को हुक रहा
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 33
……..।।ःः वाधिकारस्ते ःः।।…….
कर्मयोग
लो तुम अपने अंर्तमन की
गहराई को नापो
एक झरोखा तुम्हें मिलेगा
शायद तुम झाँको
जीवन क्या है जानो तुम
जानो जीवन की परिभाषा
सतत श्रृँखला साँसों की
कुछ पल जीने की आशा
पलभर के इन आशाओं में
सृष्टि का अनुराग छिपा है
आशाओं के अंर्तमन में
जीवन का हर राज छिपा है
बियावान जंगल से लेकर
राजमहल के गलियों तक
आशाओं का द्वन्द छिड़ा है
सृष्टि से लेकर सदियों तक
कौन नहीं चाहेगा जग में
अजर अमर हो जाना
कौन नहीं चाहेगा जग का
ध्रुव तारा बन जाना
साथ साथ साँसों के जागी
आशाओं का झंझा
तेरा मेरा अपना पराया
आशाओं से उपजा
सागर अपने अंर्तमन में
आशाओं का सीप छिपाये
गहन अँधेरा ओढ़े बैठा
आशाओं का दीप जलाये
जीवन मृत्यु सम लहरों के
अन्तस्तल में गहन शाँति है
जैसे तेरे मन के भीतर
शाँत सुलगता विपुल क्राँति है
आशाओं का पुँज बना है
आज तुम्हारा सत्वर
समरभूमि बन खड़ी है आशा
हे पार्थ! तुम्हारे पथ पर
आशाओं का स्वागत कर तू
निराशाओं को दूर हटा
तरकस का कस खोल रे मितवा
शत्रु को भव पार लगा
-बुद्धिसागर सोनी "प्यासा" रतनपुर,7470993869