गताँक (कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 34 एवं 35) से आगे
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 36 एवं 37
-बुद्धिसागर सोनी ‘प्यासा’
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 36
…….।।ःः वाधिकारस्ते ःः।।…….
निष्कामयोग
अब संशय कैसा ओ अर्जुन
यह रण तो आहूत हुआ
रणनाद सुनाओ गांडीव का
नर आहुति प्रत्याभूत हुआ
मृत देह सी संवेदनायें
हाहाकार करती भावनायें
अविश्वास की ऐसी लहर
निज आग जलती याचनायें
और अब क्या शेष है
फिर तुझे क्या क्लेश है
पतझड़ का सूखापात जीवन
आशा हुआ अखिलेश है
आशा जब अखिलेश हुआ
सपनों का समावेश हुआ
सपनों से जागी अभिलाषा
यही तो है जीवन परिभाषा
आशाओं ने महल बनाये
आशाओं ने युद्ध लड़े
आशाओं की खातिर अर्जुन
हम समरभूमि में आज खड़े
जब आ ही गये रणभूमि में
फिर पीठ दिखाना ठीक नहीं
नियति से मुँह मोड़ चले
जीवन का यह रीत नहीं
जयमाला का वरण करो
या मृत्यु को गले लगाओ
मैं मेरा का राग छोड़कर
आर्य युद्धपथ पर बढ़ जाओ
अब तो होनी निश्चित है
अनहोनी का नाम ना दो
छूट चला है तीर धनुष से
अब जो होता है वह होने दो
ना रहो पार्थ तुम मूढ़मति
पल छिन ऐसा आता है
वंचनाओं में पड़कर मानव
अवसर व्यर्थ गँवाता है
आओ तुम्हें मैं आज बता दूँ
मानवता की रीत
अपने भीतर सृष्टि रचकर
रखता है हर बीज
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 37
…….।।ःः वाधिकारस्ते ःः।।…….
निष्कामयोग
तू नहीं तो कुछ भी नहीं यहाँ
जो कुछ है तुम्हारा सत्वर है
आगे बढ़कर बाँह थाम लो
संघर्ष से आगे अवसर है
सँघर्ष काल में हर एक पग
बनता है आयाम नया
उठ जाग अरे ओ मूढ़मते
अब कर ले संग्राम नया
अंर्तमन का व्दन्द छोड़कर
समर भूमि का समर करो
कर्मभूमि कर्मण्ये कहती
मानवता का ताप हरो
आँखों देखी जग अपना है
बन्द पलक में गहन अँधेरा
सोई अँखियाँ सपना देखे
खुली पलक तो हुआ सबेरा
जीता है किस नर ने मृत्यु
कौन यहाँ मृत्युँजय है
जिसने मान रखा मानव का
जग में वह अजर अमर है
ना तुम सदियों राज करोगे
ना मैं सदियों रहने वाला
कब तुम अंतिम साँस भरोगे
कब पीना होगा मृत्यु हाला
नाहक बैठे अवसाद थामकर
योद्धा हो तुम युद्ध करो
मानवता का रीत पुकारे
तुम उसका हमराह बनो
नियति पथ पर चलकर देख
गढ़कर हाथों में कर्मरेख
हमराही बनने के बाद
नियति को ना रहे खेद
नियति नाजुक बेल सी अर्जुन
कर देती सर्वस्व समर्पण
तेरा एक सहारा उसको
तू उसको क्या करता अर्पण
तुम अपनी परछाई देकर
अपना भी कर्तव्य निभाओ
नियतिपथ के अवरोधों को
नियति पथ से दूर हटाओ
-बुद्धिसागर सोनी "प्यासा" रतनपुर,7470993869
शेष अगले भाग में
Very nice
Budhi Sagar Soni ji