गताँक (कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 42 एवं 43) से आगे
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 44 एवं 45
-बुद्धिसागर सोनी ‘प्यासा’
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 44 एवं 45
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 44
……..।। वाधिकारस्ते।।…….
होनी
स्वविवेक मानव कर जाये
जाने कितने काम अनोखे
अति विवेक बौराया मानव
देता अपने मन को धोखे
मन के भीतर नियति रहती
जाने कितने धोखे सहती
तेरे मिथ्या मैं की खातिर
वह कितने कष्टों को सहती
उसकी एक सहेली होनी
पग पग संग संग चलती है
नियति की सारी विपदायें
कोरे कागज लिखती है
यूँ ही एक कहानी बनती
तेरी होनी तुझसे कहती
ओ मूढ़मते तेरी नियति
तेरे खातिर क्या क्या सहती
तू तो एक छलावा अर्जुन
पलपल तिलतिल गल जायेगा
तूने जैसा कर्म किया है
कहानी बनकर रह जायेगा
होनी और नियति दो सखीयाँ
तुम सँग अपना नेह लगाये
तेरे सँग सँग अनजाने पथ
जाने कहाँ कहाँ बढ़ जाये
तू क्यों ढूँढे अवसर जग में
पग पग सँग सँग अवसर है
अवसरों के सदुपयोग से
बनता निज का सत्वर है
संघर्षों में तप जा भारत
यदि बनना है खरा सोना
महासमर के बाद बनेगा
तू महाभारत का गहना
स्थितप्रज्ञ बनो तुम भाई
कर्मों की परिभाषा पढ़ लो
साँख्ययोग सा कर लो जीवन
नियति की प्रत्याशा गढ़ लो
नियति जब जब कदम बढ़ाये
होनी सँग सँग चलती जाये
तुम सँग कदम मिलाकर चलती
किन्तु तुमको नजर ना आये
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 45
…….।। वाधिकारस्ते ।।…….
होनी
जैसे तुम कर जाते हो
पलकों के पीछे कितने पाप
होनी भी पलकों के पीछे
लिख जाती कोई अभिशाप
यह महासमर भी गाँडीवधर
उन अभिशापों की माला है
मन में भीतर जग में बाहर
जलता इसी समर की ज्वाला है
होनी तो नटनी है अर्जुन
इशारों में कर जाती काम
हम तुम केवल देखा करते
सुबहो शाम नया अंजाम
बस तुमको कदम मिलाना है
नियति सँग चलते जाना है
नियति होनी के सँग मिलकर
नव सत्वर गढ़ते जाना है
मँजिल को मिलना है आखिर
साहिल तो मिल ही जायेगा
पतवार सम्हाला है जिसने
उसको ही जीवनदान मिला
🙏प्रणाम🙏
सुधि पाठक, अब तक आपने “कर्मण्ये” और “वाधिकारस्ते” के विभिन्न अध्यायों का वाचन किया। मेरा प्रयास था कि महाभारत गीता जैसे अबूझ और अपारगम्य ग्रंथ को तुकान्त काव्य के माध्यम से सरल और सुबोध शब्दों में उकेर सकूँ।
कर्मण्येवाधिकारस्ते के शेषाँश में मैंने अपनी कल्पना को मानवीय धरातल देने मर्यादा पुरषोत्तम राम के जीवनयात्रा को समावेशित किया है। अपने शब्दों में रामचरित मानस के गूढ़ दर्शन को अभिव्यक्ति देने का साहस मेरी लेखनी में नहीं है, कदाचित इसीलिये मुझे जग्द्गुरूकृष्ण
के भावबोधता का अनुसरण करना पड़ा है।
काव्याजँलि के शेष भाग में आपको रामायण के ऐसे स्वरुप का आस्वादन मिलेगा जिसमें राज्यलिप्सा की आपूर्ति हेतु रचे गये राजनैतिक और कूटनीतिक षड़यंत्रों का रहस्योद्घघादन होगा।
आपके विचाराभिव्यक्ति का अनुग्रही हूँ। कृति के प्रति अपने विचार और सुझाव से अवगत करायेगें इसी प्रार्थना के साथ….. आप सभी का एवं सुरता: साहित्य की धरोहर मंच के संयोजक रमेश कुमार चौहान जी, जिन्होंने रचना को वेबपोर्टल में स्थान दिया के प्रति विनम्र आभार 🙏
बुद्धिसागर सोनी “प्यासा”
रतनपुर,7470993869
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