कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 8 एवं 9

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते गतांक से आगे

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 8 एवं 9
कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 8 एवं 9

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग-8

गरल जहाँ है    वहीं सुधा है
तृप्ति जहाँ है    वहीं क्षुधा है
है शोक जहाँ खुशीयाँ है वहीं
जीवन  का  है       रीत यही

भोगजहाँ है    वहीं भुक्ति है
त्रास जहाँ है   वहीं तुष्टि है
जीवन के  आयाम अनोखे
जहाँ मोह है   वहीं मुक्ति है

कथनी करनी का अंतर
पग चलने से मिट जाता है
कदम कदम चलने से यार
मंजिल खुद मिल जाता है


गर साहस है चल सकने का
चलती हवा के साथ चलो
गर हिम्मत है दल सकने का
अंतर्मन का अभिशाप दलो

पथ का क्या है    वह तो
निश्चित है    चिर स्थिर है
पगपग चलना काम तुम्हारा
किंतु मन चंचल तन स्थिर है

युग पुरुषों ने    किया यही
तन चंचल स्थिरमन रहकर
सारे बंधन   खोल दिये
उदित हुआ   पूर्वा परिकर

दुःस्साहस का   नाम दूसरा
पहला कदम    कहलाता है
इस सीमा को लाँघा जिसने
विश्वगुरू         बन जाता है

सही कदम चलने वाले
तनहा कहाँ रह पाते हैं
जिस राह चले जायें यारों
गुबार      छोड़ जाते हैं

दुनिया    अजब निराली है
कुछ भरा भरा कुछ खाली है
निर्जन पर्वत   शिखर कहीं
कही मदमाती    हरियाली है

असीम गगन आकाश कुसुम
मटमैली धूसर माँ का चादर
जितना  मन     उतनी   राहें
जीवन खिलता इनको पाकर

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग-9

अब और कसर क्या बाकी है
ज्यादा कहना      बे बाकी है
कदम चलना       दुश्वार नहीं
बस साहस करना   बाकी है

तुम श्रेठ कृति हो सृष्टि का
तुम श्रेष्ठ यति हो नियति का
तुमसे ही सारे विधान यहाँ
तुम स्पन्दन हो   धरती का

कोसेगीं तुमको   संततियाँ
चुप रहे अगर वाणी पाकर
रोयेगीं तुमपर सारी खुशीयाँ
दुख सहे अगर संयम पाकर

संयम से पथ चलना सीखो
कठिन मोड़ भी आता है
हमतुम क्या गुणीयों का भी
साहस     घबरा जाता है

इस राह अकेले तुम ही नही
गुजरे हैं अनेकों     रहगुजर
जिसने कर लिया हो  सुधापान
क्या फर्क मिले जो पथ में गरल

मिला विवेक वरदान तुम्हे
पथ का पहचान सरल है
अंतर्मन से  पूछ के देखो
पदचिंह अमिट अविरल है

क्यों सोचा करते   हो तुम
जिसे अभी      देखा ही नहीं
जाना ही नहीं समझा ही नहीं
कसोटी में      परखा ही नहीं

चलकर देखो पथ में कितने
कन्टक मिले    सुमन खिले
गहरी दरिया    ऊँचे पर्वत
मरु अनन्त  वन सघन मिले

हो सकता है   घबरा जाओ
किन्तु!    पथ चलते रहना
अंतर्मन का   दीप जलाकर
पथ आलोकित करते रहना

हो बियावान तो  डर कैसा
सर सर करती है संग हवा
धू धू जलता हो दावानल तो
नभ में    छा जाती है घटा
बुद्धिसागर सोनी "प्यासा"
        रतनपुर,7470993869

शेष अगले अंक में..

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