कर्मण्येवाधिकारस्ते एक परिचय-
छायावादी खंडकाव्य ‘कर्मयेवाधिकारस्ते’ श्री बुद्धिसागर सोनी, रतनपुर छत्तीसगढ की कृति है । इस कृति में रचनाकार कर्म के महत्व को बहुत रोचक किन्तु सहज भाव से प्रस्तुत किया है । इस खण्ड़ काव्य को धारावाहिक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है-
खण्ड़- कर्मण्ये, भाग-1
रहा अकर्मठ यह काया तो परछाई बोझ बनेगा दहरे का ठहरा हुआ पानी केवल रोग जनेगा कर्मण्येवाधिकारस्ते जीवन की परिभाषा है सुख दुख इसके संगी साथी आशा और निराशा है किसी ने कहा है किसी ने सुना है यही जिन्दगी है यही दास्ताँ है जिसे जो मिला है वो उसका नसीबा माँगने से किसे मनचाहा मिला है ये बुनियाद होते ना तामीर होते नहीं तो ये पत्थर ना यूँ पूजे जाते पोशीदा जर्रे जर्रे में उसका नसीबा ये दस्तूरे जमाना जिंदगी का सिला है सरेराह चलकर सुबह शाम चलकर मंजिल को छू लें जज्बा यही है यूँ ही चलते चलते बनेगी कहानी आज आगाज है आज ही इँतहा है जो समझो तो है जिंदगी इक रवानी कभी गहरी दरिया कभी बहता पानी कोई मोड़ लगता है कितना सुहाना कोई राह काँटों भरा भी मिला है ना यूँ बैठ जाना कोई छाँव थामे चलकर ही मिलता है मंजिल जहाँ में यूँ ही चलते चलते सबेरा हुआ तो जागी है धरती चमन भी खिला है जब जागे तब हुआ सबेरा अब सोते से उठ जाओ आगे बढ़कर राह पकड़ लो मंजिल तक चलते जाओ मुश्किल नहीं है कुछ भी प्यारे सँकल्प यदि हो सर्व शिवम् उठ जाग अरे ओ मूढ़मते अब कर ले नियति को नमन अब तक जो है पास तुम्हारे वही तुम्हारी थाती है आगे गढ़ लो नई सम्पदा चिर उर्वर अपनी माटी है गहन निराशा के आँगन में आशा का संचार करो हो दूर अँधेरा अंर्तमन का कर्मो का आलोक भरो होनी अनहोनी तुम छोड़ो सत्वर है मिल जायेगा कल कोई अनहोनी ना हो इसीलिये पुरषार्थ करो तुम ऐसा कोई काम करो जग में अपना नाम करो तुम मनुपुत्र हो भाई मेरे नाम ना यूँ बदनाम करो उठो पार्थ कायरता छोड़ो दुष्टों का संहार करो पाप पुण्य की बातें छोड़ो समराँगण है पुरुषार्थ करो ऐ धीर वीर भारती युदध्य् च् युदध्य् च् यह रंगभूमि है युदध्य् च् युदथ्य् च् .
शेष अगले भाग में....
-सागर सोनी "प्यासा" बुद्धिसागर सोनी रतनपुर 7470993869.