कर्मण्येवाधिकारस्ते गतांक से आगे
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग-6
कर्मण्ये-
जीवन क्या है…
बुझो तो अबूझ पहेली है
मत बूझो संग सहेली है
इसकी रौ में गर डूब सको
यह दुल्हन नई नवेली है
कुछ दूर सही जब ज्वार न हो
मौजों के सहारे जाने दो
संताप नहीं कुछ तब होगा
कुछ पल खुशीयों के आने दो
रौ में बहकर लिख जाता
अपना ही इतिहास कवि
मैंने तो बस वही लिखी
जग ने जैसी कही सुनी
कतरा सागर से जब मिलता है
धरती पर जीवन खिलता है
ऐसे ही स्पन्दन चलता है
तम के तन पर द्युति जलता है
दीपक तले अँधेरा
कहावत है पुरानी
किंतु भूत के बिना भविष्य
कितना है बेमानी
जेठ दुपहरी जब जाता है
वारिद नभ में तब छाता है
तप्तवनी के अजश्र गर्भ में
जीवन अंकुर मुस्काता है
क्षोभ उठा है नभ में जब भी
सरसा है अवनि का जीवन
पतझड़ के भीतर पलता है
नव ऋतु का सोया स्पन्दन
घनघोर घटा के बीच दामिनी
आऔर चपल हो जाती है
सात सुरों में कसी रागिनी
जीवन का राग सुनाती है
तपकर सोना कुन्दन बनता
मानव मनु को ऐसे रचता
क्यों घबराये दुख से प्यारे
दुख के भीतर सुख भी मिलता
पतवार गिरा दे जो माँझी
साहिल तक कैसे जायेगा
झँझा का एक हल्का झोंका
यहाँ वहाँ। ले जायेगा
……..शेष अगले अंक में
बुद्धिसागर सोनी “प्यासा”
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग-7
कर्मण्ये-
और कब तक तुम सहोगे मौन रहकर यातनायें क्या तुम्हारे ही लिये हैं जग की सारी वर्जनायें लाँघ दो रेखा पुरानी हो गई बीते समय की कहानी हो गई ज्वार उठने दो हृदय में आह दबकर अब सयानी हो गई आगे मिलेगें और भी अवरोध तो क्या पग पग बढ़ेगा विचाऱों का विरोध तो क्या कंटकों के शिखर पर खिलते सुरभि सुमन प्यारे ताप सहकर चमकते हैं धवल शीतल ये सितारे गर्दिशों से निकलकर चमकता है भोर तारा श्रम सिंकर से पिघलकर उतरता संताप सारा हो घनीभूत पीड़ा मन में या जीवन की लाचारी हो विश्वास हमेशा खुद पर करना चाहे कैसी दुनियादारी हो श्रद्धा का कर लो अर्जन धर्म पूर्ण हो जायेगा कर्तव्यों का कर लो सृजन अर्थ यही कहलायेगा काम मोक्ष तो पैरों चलकर पास तुम्हारे आयेगा जीवन सत्वर बन जायेगा अस्तित्व अमर हो जायेगा तुम क्या गढ़ना चाहोगे करता है तुम पर निर्भर ठोकर खाता स्थावर सत्वर या प्रतिपल बहता निर्झर समय तो ऐसे गुजर रहा ज्यों छुटी हुई कमान सबकुछ तेरे वश में मितवा तू कितना अनजान बुद्धिसागर सोनी "प्यासा" रतनपुर 7470993869