कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 10 एवं 11
-बुद्धिसागर सोनी
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 10 एवं 11
कर्मण्येवाधिकारस्ते गतांक से आगे;
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 10
……..।।। कर्मण्ये ।।……..
तुम साहस करके देखो तो
दरिया भी राह दिखाती है
उत्तुंग शिखर झुक जाता है
मरू मे जीवन मुस्काती है
जड़ चेतन गुण दोष मय
विश्व कीन्ह करतार
संत हंस गुण गहहिं पय
परिहरि वारि विकार
गर चाहत है मंजिल की
पथ तो तुम्हे चलना होगा
शहद अगर पीना है तो
मधुदंश तुम्हे सहना होगा
पथ कोई भी आसान नही
पग धरना मुश्किल काम नही
कदम कदम बढ़ जाओ अगर
अनछुए सितारे चाँद नही
ढूंढ़ो मत तुम राह का साथी
चलना होगा निपट अकेले
बूंद बूंद से सागर भरता
लोगों से लगते हैं मेले
एकाकी तुम चलते जाना
पथ के काँटे चुनते जाना
हो सकता है कल और आयें
पथ प्रशस्त करते जाना
पगचिन्हों को देख रहे हो
उन लोगों ने किया यही
सहज सरल पथ दिया तुम्हे
खुद काँटो के चुभन सही
वैष्णव जन तो तेणे कहिये
पीर पराई जाणे रे
परदुःखे उपकार करे तोये
मन अभिमान ना आणे रे
चलते जाना मानव का धर्म है
चलते जाना मानव का कर्म है
पगपग चलते चलते जाना
जीवन का यही मूल मर्म है
बढ़ती दरिया सागर से मिल
प्राण सुधा बरसाती है
दहरे का ठहरा हुआ पानी
रोग जनित हो जाती है
कर्मण्येवाधिकारस्ते भाग 11
ठहर गये जो बीच राह में
पैरों की ठोकर खाते हैं
आगे बढ़कर इतिहास बने
वो घर घर पूजे जाते हैं
पीड़ाओं से मत घबराओ
पीड़ा कहाँ नही है
सृष्टि से अंतिम साँसों तक
जीवन व्यथा लड़ी है
ठोकर खाकर चलना सीखे
आगे बढ़कर चल पाते हैं
गिरने का साहस ना हो तो
वो पंगु ही रह जाते हैं
जब तक शेष जीवन के क्षण
तुम बस चलते जाना
तुम पर ही निर्भर करता है
सहजसरल या कि ठोकर खाना
जा के पाँव ना फटे बिंवाई
वो क्या जाने पीर पराई
पतझड़ के पीछे ही आती
मदमाती बरखा बौराई
लहलह पालक महमह धनिया
सरसों की खेत फली फूली
हरित काँतिमयी माँ वसुंधरा
अलसीदल सी मटमैली
बासन्ती बलखाती नदिया
नव वधु सी इतराती
केरी से महकी अमराई
सारंग मीठी तान सुनाती
समय तो ऐसे गुजर रहा
ज्यों छूटी हुई कमान
सबकुछ तेरे वश में मितवा
पर तू कितना अनजान
तू चाहे तो शिलाखण्ड पर
उपजा सकता है पानी
तू चाहे तो वश में कर ले
आने वाली जिन्दगानी
तू चाहे तो सूने पथ पर
गढ़ सकता है आयाम
कल भी ऋणी रहेगा तेरा
हे बापू! हे राम!!
बुद्धिसागर सोनी “प्यासा” रतनपुर,7470993869
बहुत सुंदर काव्य रचना