कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 14 एवं 15

गतांक से आगे

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 14 एवं 15

-बुद्धिसागर सोनी “प्यासा”

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 14 एवं 15

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 14 एवं 15
कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 14 एवं 15

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 14

…….।।। कर्मण्ये।।।……..

तृष्णाहत तन होकर व्याकुल
यहाँ        वहाँ         डोलेगा
तन क्या   भीतर का मन भी
पानी       पानी       बोलेगा

रहिमन   पानी   राखिये
बिन   पानी   सब   सून
पानी   गये   ना     उबरैं
मोती     मानुष      चून

धू  धू करते रेत के ऊपर
धुआँ  रूपहला  छायेगा
अब  तुमको  भरमायेगा
मरीचिका  बन   जायेगा

जितना पीछे    दौड़ोगे तुम
वह  आगे    बढ़ता जायेगा
चूकेगा   आँखों का साहस
पिपासा यत्रतत्र भटकायेगा

धीरज  धर्म  मित्र  अरु नारी
आपतकाल परखियेहू चारी

बस चार कदम तुम और चलो
आगे  बहती   सरिता  कलकल
जीवन के   नूतन   राग  सुनाती
परिवेश बदलती प्रकृति पलपल

रोकेगा  अवरोध उसे   क्या
जो निश्चय कर  निकला हो
विपदाओं के    चौराहों पर
जिसने  पथ ना   बदला हो

मैदानों में  बलखाती  नदिया
दर्रा   में    हहराती    नदिया
विपिनखण्डपथ चलते चलते
सरगगम राग सुनाती नदिया

चट्टानों को    फोड़ निकलती
तटबंधों को    तोड़ निकलती
पावस की    मदमाती नदिया
सागरपथ पर जब चल पड़ती

मरूश्रृँखला मिल जाये तो
भीतर धँसकर    चलती है
मरूकाया के भीतर भीतर
अमरबेल   सी    पलती है

सम्पूर्ण समर्पण   हो तो श्लाघा
स्वयं     चला     करती     है
अभिशशापजन्य गहन निराशा
स्वयं    जला      करती     है

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 15

……..।।। कर्मण्ये ।।।……..

तुम बस अपना कदम बढ़ाओ
राही बनकर    चलते   जाओ
लोग मिलेगें     शहर  मिलेगा
झंझावातों  का  पहर  मिलेगा

राग    मिलेगा    द्वेष   मिलेगा
पलपल परिवर्तित वेष मिलेगा
मिलेंगी खुशीयाँ अनगिन किंतु
अनचाहा   सा  क्लेश  मिलेगा

अपने       तुमसे      रुठेंगे
गैरों  से   नाता  बन जायेगा
जीवन  सत्वर खुल जायेगा
पहली मंजिल मिल जायेगा

रुको नहीं तुम जीवनपथ की
यह तो    पहली   सीढ़ी   है
मुड़कर देखो   पथ पर पीछे
आने   वाली        पीढ़ी  है

तुम पल भर पथ रुके अगर
वे   सदियों पीछे रह जायेगें
सारा जीवन खेल है पल का
वे मंजिल तक कैसे जायेगें

बस इसीलिये   चलते जाओ
दुनिया  तो   आनी जानी है
क्या चीज यहाँ जो ठहर सके
हर चीज यहाँ की  फानी है

सूरज ढलता चाँद भी गलता
ज्यादा मीठा   जहर उगलता
बहता पानी   बनता   पत्थर
पत्थर  बनकर लावा  बहता

मत सोचो   इतना सब  तुम
तुम तो   बस चलते  जाओ
जीवन पथ    गढ़ते  जाओ
अपना सत्वर रखते जाओ

रह जाये   अवशेष नियति बन
पथ    ऐसा       गढ़ते  जाना
अवसान ना हो सत्वर का कभी
बस  इसीलिये    बढ़ते जाना

तुम   चले तो    पथ  पर
बन जायेगा पदचिंहो का रेख
भूले भटकों को राह मिलेगा
तुम्हारे   पदचिन्हो  को  देख

-बुद्धिसागर सोनी “प्यासा”
 रतनपुर,7470993869

शेष अगले अंक में…. कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 16 एवं 17

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