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कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 16 एवं 17-बुद्धिसागर सोनी “प्यासा”

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 16 एवं 17-बुद्धिसागर सोनी “प्यासा”

गताँक कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 14 एवं 15 से आगे

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 16 एवं 17

-बुद्धिसागर सोनी “प्यासा”

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 16 एवं 17

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 16 एवं 17
कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 16 एवं 17

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 16

…….।।।ःः कर्मण्ये ःः।।।……..

नहीं ठहरना    ओ यायावर
तुम ठहरे   तो    जग ठहरा
खुले हुये बंधन    क्यों बाँधें
अब क्यो डालें पथपर पहरा

चलते जाओ पथ पर आगे
शरद    मास        आयेगा
स्वाति का    विरही चातक
प्यास    बुझाने     आयेगा

इंदुप्रभा का आहट पाकर
सागलतल पर  बैठा सीप
पट  खोलेगा   अधरों का
गगनवीथि  चमकेगा दीप

स्वाति     बरसायेगी  मोती
प्यासे चातक के अधरों पर
हुई   बावरी    छवि देखेगी
तारा   सागर के  लहरों पर

सौ सौ बलखाती रात चलेगी
पपीहरा  की      बात चलेगी
दुल्हन बन      थिरकेगी चाँद
तारों  कघ      बारात चलेगी

पेड़ों के   पातों पर   जुगनु
जगमग   दीप     जलायेगा
मधुनिशा का स्वागत करने
दूर्वा दल   सेज  सजायेगा

धीरे से    उतरेगी    रजनी
चन्दा  का  आँचल    थाम
पुलकित होगा      मन का
कणकण थम जायेगा याम

जुही  और  चमेली   दोनों
सुरभि का      पट खोलेगें
छूकर चंदन मंद पवन दल
नभ   में        पर   तौलेगें

उर में अपने      भरकर मकरंद
मदहोश मिलिंद  अलकों में बंद
मृणाल ताल    किल्लोल लहर
हर्षित कम्पित खुलता बाजूबंद

अधखिली कली अधखुले नयन
मन मीत मिलन का   पागलपन
आँदोलित तन     उद्वेलित  मन
झूमे    एकीकृत  युगल   अयन

झूमे    धरती       झूमे है गगन
लहरों  में       जाग उठा  नर्तन
आहट पाकर      मन्द    हवा
कर चली    गति में   परिवर्तन

पुरवाई   की     थपकी पाकर
सोया       शतदल      जागा
थका थका  अलसाया भँवरा
उठकर       बाहर       भागा

तृप्त हुआ विरहाकुल चातक
प्राची में   शुक     उदय हुआ
तृप्त हुये    अधखुले     नयन
पलकों का भार असह्य हुआ

पूरब का सूरज   निकल चला
रजनी का उलझा   वसन हटा
खुलने लगा    पत्तों का सम्पुट
चिड़ियों का कलरव जाग उठा

कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 17

 ……..।।।ःः कर्मणये ःः।।।……..
  …….सत्वर…….

इन्दु      जैसे          मावसी
जीवन   वंलय    घटता रहा
ओढ़          चादर  मौन की
स्वप्न  शिशु     पलता   रहा

है मौन प्रश्न   जीवन क्या है
क्या केवल पथ चलते जाना
धार नयनजल उमड़ पड़े तो
भग्न भगोना     भरते जाना

ओ यायावर      ओ यायावर
चलता जा निरन्तर   पथ पर
जितनी मंजिल    उतनी राहें
जितनी विपदा    उतनी बाहें

दो पल खुशीयाँ दो पल आहें
जितनी पीड़ा    उतनी कराहें
यही तो है    जग का स्पन्दन
जैसी  चाहें       वैसी  निगाहें

कर्म प्रधान   विश्व     करि राखा
जो जस करिअ तस फल चाखा
कर्मण्ये           वाधि     कारस्ते
मा       फलेषु          कदाचनम्

समझ सको तो समझ लो प्यारे
राम  कृष्ण      की     भाषा  से
इतिहास भरा  है   युगपुरषों की
गौरव   मयी            गाथा   से

जो चले   अकेले     पथ किन्तु
पथिकों  का   .मेला   छोड़ गये
अपनी मर्यादा     में      रह कर
दस्तूर     पुराना         तोड़ गये

आती जाती    साँसों   का जब
तय है     एक दिन        थमना
जब तक चलती   साँसें   प्यारे
तुम   भी      चलते        रहना

पैरों  का     ठोकर  बन  जाती
पथ  की        सारी   विपदायें
साहस   कर के    चलने  वाले
खुद      गढ़ लेते  हैं        राहें

मन   के   हारे          हार   है
मन   के   जीते           जीत
जो  मन   मन को  जीत    ले
बन      जाता        जगमीत

-बुद्धिसागर सोनी “प्यासा”   
रतनपुर,7470993869

शेष अगले अंक में….

4 responses to “कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते भाग 16 एवं 17-बुद्धिसागर सोनी “प्यासा””

  1. डॉ. अशोक आकाश Avatar
    डॉ. अशोक आकाश

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