कविता नेता और गिरगिट-रमेश चौहान

कविता नेता और गिरगिट

-रमेश चौहान

कविता नेता और गिरगिट-रमेश चौहान
कविता नेता और गिरगिट-रमेश चौहान

नेता और गिरगिट

कुण्‍डलियां

(1)

नेता और गिरगिट में, दिखता स्पर्धा मौन ।
रंग बदलने में भला, आगे निकले कौन ।।
आगे निकले कौन, गजब वह बहकाने में ।
शिकार को भी आज, अजब वह चहकाने में ।
शिकार हुए रमेश, सहज में बने चहेता ।
पार न पाये लोग, रंग बदले जब नेता ।।

(2)

मौसम के अनुसार ही, गिरगिट बदले रंग ।
इसमें उनका कुछ भला, होता नहिं हैं ढंग ।।
होता नहिं हैं ढंग, बदल जाये कब नेता ।
मांग बढ़े जब माल, भाव बदले विक्रेता ।।
देखे मूक ‘रमेश’, पीर सहकर गौ सम ।
बदले जनता रंग, यथा नेता का मौसम ।।

(3)

नेता की तरह गिरगिट, बदल रहा है रंग ।
काया की ना ही सहीं, बदले जीवन ढंग ।।
बदले जीवन ढंग, जहॉं मिल जाये चारा ।
वहीं पालथीमार, बैठ जाए बेचारा ।
गिरगिट करे विचार, बुने है कौन बरेता ।
क्या वह नहीं समाज? कैद है जिस पर नेता ।।
(बरेता-सन का मोटा रस्सा)

(4)

गिरगिट बदला है नहीं, अपना नियत स्वभाव ।
रंग बदलना देह का, उसका नहीं प्रभाव ।।
उसका नहीं प्रभाव, रंग बदले जो काया ।
बदले रंग समाज, चढ़े मन पर जब माया ।।
नाहक करे ‘रमेश’, आज नेता पर किटकिट ।
नेता जन का मैल, नहीं है नेता गिरगिट ।।

(5)

सारे नेता कह रहे, तुम न रहोगे दीन।
मिटजायेंगे दीनता, हम से रहो न खिन्न ।।
हम से रहो न खिन्न, कुर्सी हमको दिलाओ ।
सब देंगे हम मुफ्त, कटोरा तुम ले आओ ।।
मुफ्तखोर है ‘रमेश‘, उसी को कहता प्यारे
करता नहीं विचार, बात सुनकर यह सारे ।।

(6)

मतदाता को मान कर, पत्थर सा भगवान ।
नेता नेता भक्त बन, चढ़ा रहे पकवान ।।
चढ़ा रहे पकवान, एक दूजे से बढ़कर ।
रखे मनौती लाख, घोषणा चिठ्ठी गढ़कर ।।
बिना काम का दाम, मुफ्तखोरी कहलाता ।
सुन लो कहे ‘रमेश‘, काम मांगे मतदाता ।।

(7)

देना है तो दीजिये, हर हाथों को काम ।
नही चाहिये भीख में, कौड़ी का भी दाम ।।
कौड़ी का भी दाम, नहीं मिल पाता हमको ।
अजगर बनकर तंत्र, निगल जाता है सबको ।।
सुन लो कहे ‘रमेश‘, दिये क्यों हमें चबेना ।
हमें चाहिये काम, दीजिये जो हो देना ।।

-रमेश चौहान

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *