पठनीय काव्य कृति है – “कविताई कैसे करूँ“
समीक्षक: श्लेष चन्द्राकर
पुस्तक परिचय
कृति का नाम | कविताई कैसे करूं |
कृतिकार का नाम | कन्हैया साहू ‘अमित’ |
प्रकाशक | बुक रिवर्स प्रकाशन |
कृति स्वामित्व | कृतिकार |
प्रकाशन वर्ष | 2020 |
सामान्य मूल्य- | 200.00 |
विधा | पद्य |
शिल्प | छंद |
भाषा | हिन्दी |
समीक्षक | श्लेष चन्द्राकर |
ISBN | 9789388727549 |
पठनीय काव्य कृति है – “कविताई कैसे करूँ“
मानव मन में दिन भर हजारों विचार आते जाते रहते हैं। उनमें से कुछ विचार ऐसे होते हैं जो कविता रूप में ढलकर मानव को नया दृष्टिकोण, नई सोच, नई ऊर्जा दे जाते हैं। नेक विचारों की चाशनी से पग कर ही उत्कृष्ट कविता का जन्म होता है। कविता लिखना हर किसी के बस की बात नहीं है। चिंतनशील, लगनशील, धैर्यवान, परिश्रमी और संवेदनशील व्यक्ति ही कविता कर सकता है। कवि वह व्यक्ति होता है जिसकी पहुँच वहाँ तक होती है जिसकी कल्पना एक साधारण मनुष्य नहीं कर पाता। तभी तो कहा गया है कि जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि। कवि अपने अनुभूत यथार्थ कोरे पन्नों पर इस प्रकार व्यक्त करता है कि उसे पढ़ने वाला स्वत: ही वाह वाह करने को विवश हो जाता है। इसीलिए कविता लिखने वाले कवियों को संसार सिर आंखों पर बिठाकर रखता है। किन्तु यह बात भी सत्य है कि कविताई करना कोई हँसी ठठ्ठा नहीं है। छंदोबद्ध कविता लिखना तो और भी दुष्कर कार्य है। किंतु सतत् अभ्यास से इस कला में निपुणता प्राप्त की जा सकती है। इस बात को सिद्ध किया हैं छत्तीसगढ़ उभरते हुए कलमकार कन्हैया साहू ‘अमित’ जी ने। उनकी नवीनतम प्रकाशित कृति छंदमय काव्य संग्रह “कविताई कैसे करूँ” इस बात की पुष्टि करती है। इसी पुस्तक से कुछ छंद दृष्टव्य हैं…
साल चुनावी है ‘अमित’, बिछने लगी बिसात।
जनता के जज्बात से, खेल रहें शह मात।।
(दोहा छंद, पृष्ठ-41)
कवि तो कहता है वही, जो देखे हैं नैन।
कागज पर कविता दिखे, लिखे वेदना चैन।।
लिखे वेदना चैन, विरह की व्यथा विभावन।
कभी प्रेम का पत्र, मिलन का राग सुहावन।।
कहे अमित मतिमंद, लेखनी लिखता हर छवि।
जो भी देखे नैन, वही तो लिखता है कवि।।
(कुण्डलिया छंद, पृष्ठ- 66)
बहुमुखी प्रतिभा के धनी और छंद गुरु श्री अरुण कुमार निगम जी के परम शिष्य कन्हैया साहू जी की इस पुस्तक में उनकी 104 छंदोबद्ध छोटी-बड़ी रचनाएँ संकलित हैं। उन्होंने प्रचलित छंदों के अतिरिक्त ऐसे छंदों पर भी कविता लिखी है जिनमें विचारों को विस्तार करना टेढ़ी खीर हैं। किन्तु कन्हैया जी ने सतत् साधना के बल पर कठिन समझे जाने वाले छंदों को आसान बनाकर भावपूर्ण रचनाओं का सृजन किया है। कुछ छंद देखिए…
मेघ मल्हार मनोहर मोहित, राग सभी अब सुंदर गायें।
नीर भरे नभ में मनभावन, बादल सादर लोग बुलायें।।
गोल मटोल झरे जल बूँद धरा पर बारिश खूब सुहायें।
पोखर ताल नदी नलकूप कुआँ छलकै नव रूप दिखायें।।
(मत्तगयंद छंद, पृष्ठ- 148)
कविता मन की भावना, अंतर्मन की आह।
नवल सृजन नव आशा ही, आत्मबोध की चाह।।
आत्मबोध की, चाह हृदय में, चंचल दिखता।
अनुभव मोती, शब्द स्याह के, अक्षर लिखता।।
(अमृतध्वनि छंद, पृष्ठ- 109)
हर कवि अपनी लेखन शैली होती है, और हर कवि अपनी सुविधानुसार छंद, रस एवं अलंकार का प्रयोग कर अपनी कविता में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज कराता है। वैसे ही कवि ‘अमित’ जी अनुप्रास अलंकार का प्रयोग कर अपने छंदों को भावपूर्ण और रुचिकर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। कुछ छंद दृष्टव्य हैं…
धरती धनिता धर्मिता, धीरज धायस धाम।
धारण करती धाय सा, वसुंधरा है नाम।।
वसुंधरा है नाम, नमन है पावन माटी।
पालन पोषण पुष्ट, जीव पालक परिपाटी।।
कहे अमित अरदास, भाव भरसक सम भरती।
जन्मभूमि यशगान, मातु सम धारित धरती।।
(कुण्डलिया छंद, पृष्ठ- 109)
माघ महीना शुक्ल पंचमी, शुभ तिथि है जब आ जाती।
अति वासित वासंती वैभव, नवल रूप यह दिखलाती।।
बाग बगीचे बहके-बहके, बन बहुरंगी बहुताई।
आम्र मंजरी कनक कला सी, अनुरंजक अब अमराई।।
(लावणी छंद, पृष्ठ – 105)
कविता में सपाटबयानी के दौर में कवि कन्हैया साहू ‘अमित’ जी की अलंकारों से सुसज्जित काव्य कृति “कविताई कैसे करूँ“ पठनीय पुस्तक है। ‘अमित’ जी ने अपनी पुस्तक के माध्यम वर्तमान की गंभीर मुद्दों के अलावा अछूते विषयों पर भी लेखनी चलाकर अपने कवि धर्म का पालन किया हैं। उन्होंने दोहा, सोरठा, उल्लाला, रोला, चौपाई, कुण्डलिया, सार, सरसी, लावणी, ताटंक, विष्णुपद, अमृतध्वनि, सवैया एवं घनाक्षरी जैसे अनेक छंदों पर भावाभिव्यक्ति देकर अपनी लेखन क्षमता का लोहा मनवाया हैं। ‘अमित’ जी को उनकी पुस्तक के लिए बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं। आशा करता हूँ कि, वे भविष्य में भी ऐसी ही बेहतरीन पुस्तक के साथ पाठकों के सम्मुख फिर उपस्थित होंगे।
✍️ श्लेष चन्द्राकर,
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