कवितायेँ-
स्वप्न, पंछी और रोटी
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

स्वप्न भी कुछ देर उलझा
स्वप्न भी कुछ देर उलझा ,
फिर न जाने क्या हुआ
कुछ उसे भी याद आया ,
जिसे उसने था गढ़ा।
कई सांसों को छुड़ा कर
सिसक कर रोया है वह
उसे सब कुछ याद है ,
वादा न पूरा कर सका।
2.पंछी
मौसम ने कुछ बोला होगा ,
वरना क्यों पंछी उड़ जाता ,
इन्ही बहारों झीलों से
उसका जनम जनम का नाता ।
3.हर तरफ गुमसुम पड़े कामगार कुछ यूँ रहे
उलझी हुयी गलियां शहर की
सिसक कर कुछ थम गयीं ,
जब उन्हें आहट हुई कि
वो मुसाफिर जा चुका।
रात भर जगती रहीं ,
थम सी गयीं , उलझी हुई
रहा कोई नहीं रिश्ता,
कभी ये सोचा नहीं।
और वो बूढ़ी इमारत,
उसे जाने क्या हुआ,
उसने ज्यों चरचा सुना ,
वो भी फिसल के रह गई।
हर तरफ गुमसुम पड़े
कामगार कुछ यूँ रहे
काम में मशगूल हैं ,
पर क्या करें , कैसे करें।
4. बिना रोटी सैकड़ों सोये हुये हैं आज भी
रात का करवट बदलना
बेसबब जारी रहा ,चाँद तो था पास ,
लेकिन फ़िक्र ए दुनिया कहाँ कम।
बिना रोटी सैकड़ों सोये हुये हैं आज भी
तस्दीक इसकी रात भर चाँद भी करता रहा।
चांदनी शायद यही कुछ रात भर कहती रही
अपने यहाँ ये तो गनीमत , अभी तक बस्ती नहीं।
इन बस्तियों के हाल तो देखो जरा कुछ ठहर कर
कहीं पर रोटी नहीं , कहीं पर महफ़िल सजीं।
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
(प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्किट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें(2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी(2019) , चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं । बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017) ,पथिक और प्रवाह(2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑफ़ फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सोलह पुरस्कार प्राप्त हैं ।)
हृदयस्पर्शी पंक्तियां!
वाह!! बेहद ही खूबसूरत रचनाएं!