केवरा यदु की कुछ गीत कविताऍं
केवरा यदु की कुछ गीत कविताऍं
गीत – आज पिया के आने से
छलक खुशी के आँसू बहते,
प्रियतम गले लगाने से।
अधरों पर मुस्कान आ गई,
आज पिया के आने से।।
बिछुड़े साथी आज मिले हैं,
जीभर के बातें होंगी।
हँसते गाते दिन बीतेगा,
मिलन पिया की राते होगी।
अपकल मुझे निहारोगे तुम ।
हटे नजर न हटाने से।
अधरों पर मुस्कान आ गई,
आज पिया के आने से।।
कब से प्यासी थी ये अँखियाँ,
जी भर तुझे निहारूँगी।
विरह गीत भावों से उपजे,
गाकर आज सुनाऊँगी।
बीते नहीं कभी ये रैना।
कहदो आज जमाने से।।
अधरों पर मुस्कान आ गई,
आज पिया के आने से।।
सावन बीता बिन साजन के,
चपला चमक ड़राती थी।
सावन भादो नैन बने थे,
बरखा सँग बह जाती थी।
पूजन अर्चन शिव की करती,
आये पिया रिझाने से।।
अधरों पर मुस्कान आ गई,
आज पिया के आने से।।
अभी कान्हा जी भर के देखा नहीं है
जरा देर ठहरो श्याम विनती यही है।
अभी कान्हा जी भर के देखा नहीं है।।
जीवन में कैसी घड़ी आज आई।
जाते हो कैसे हमें छोड़ के कन्हाई।
तेरे बिना ओ श्याम जीना नहीं है।।
अभी कान्हा जी भर के देखा नहीं है।।
सांवरी सुरतिया तेरी मोहनी मुरतिया।
दिल को चुराया तूने बजा के बाँसुरिया।
वो तिरछी नजर से न नजरे लड़ी है।।
अभी कान्हा जी भर के देखा नहीं है।।
कैसे जियेंगे कान्हा बिना हम तुम्हारे।
इतना बता दो हमको जाते हो बिसारे।
रुलाओगे ऐसा हमने सोचा नहीं है।।
अभी कान्हा जी भर के देखा नहीं है।।
किसे तुम बुलाओगे बंशी बजाकर
खाओगे किसकी श्याम दहिया चुराकर।
तेरे बिन यमुना तट पे जाना नही है।
अभी कान्हा जी भर के देखा नहीं है।
जरा देर ठहरो श्याम विनती यही है।
अभी कान्हा जी भर के देखा नहीं है।।
मनहरण घनाक्षरी
(1)
करके श्रृंगार चली, आज वृषभान लली।
बृंदाबन की है गली,मिलने जी श्याम को।।
बांध के पग पायल, करने श्याम घायल।
चली इठलाती राधे,आज बृज धाम को।।
ओढ़ के चुनर लाली,मोती के झालर वाली।
अधर लगाये लाली,जपती है नाम को।।
नैनन में कचरा है,बाल सजे गजरा है।
मतवाली चाल चले,लजा रही काम को।।
(2)
हाथ में गगरिया है, संग में गुजरिया है।
हँसती हँसाती चली,मोहन की साधिनी।।
यमुना को जाय रही,पायल खनका रही।
श्याम रंग में है रंगी, लो ह्रदयागिनी ।
बीच राह कान्हा मिले,देख के अधर खिले।
नैनन के बाण मारे,धायल वो कामिनी।।
बैठो जरा पास राधा,तुझ बिन मैं हूँ आधा।।
कब से मैं राह तकूँ, तू है मेरी मानिनी।।
(3)
मुरली की तान छेड़े, गोप ग्वाल संग घेरे।
राधे राधे तान बोले,प्यारी को बुला रही।
दौड़ी दौड़ी आई राधे, प्रीत श्याम संग बाँधे।
माखन भी साथ लाई, हँस के खिला रही।।
मारे नजरों से बाण,करे जब हलकान।
हँसती है राधा रानी,मन में लजा रही।।
छीन लेऊँ बाँसुरी को,सौतन सी बेसुरी को।
यमुना में फेंक देऊँ, कान्हा को जला रही।।
(4)
राधे बड़ी भोली तुम, कहती सुनादे धुन।
आज काहे रूठ गई, कान्हा मुस्कात है।।
बाँसुरी है प्यारी मेरी,जैसे तू राधिका गोरी।
अधरों पे सोहती है,राज की ये बात है।।
इसी से बुलाऊँ राधे,रखती है तुझे बाँधे।
बाँसुरी के बिन मेरा, जिया अकुलात है।।
सुनकर बात राधे,मोहना के लग काँधे,
सच कहो कान्हा मेरो,कह के लजात है।।
-केवरा यदु “मीरा “
राजिम