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डॉ.अर्चना दुबे की कहानी: किन्नर का आशीर्वाद

डॉ.अर्चना दुबे की कहानी: किन्नर का आशीर्वाद

‘किन्नर का आशीर्वाद’

-डॉ.अर्चना दुबे

डॉ.अर्चना दुबे की कहानी: किन्नर का आशीर्वाद

आज पण्डित राम प्रसाद के बडे बेटे सुरजीत को पुत्र रत्न की प्राप्ती हुई ।बहुत दिनों के बाद उनके घर आंगन में एक नंहे – मुन्ने नवजात शिशु की किलकारिया सुनाई पडी‌ । द्वार  पर बडी‌ भारी संख्या में लोग पंण्डित जी को बधाई देने आ रहे थे । पंडित जी भी अपने दरवाजे पर आये हुए सभी आगंतुक का खुब खातिरदारी कर रहे थे । जल – जलपान की खूब अच्छी व्यवस्था बनाये थे । हर आने जाने वाले को मिठाई , नमकीन ,समोसा , चाय कर के जाने के लिए हाथ जोड़ कर आग्रह करते  थे ।

      उनके दादा बनने की खुशी देखते ही बन रही थी । क्योकि बहुत समय के बाद बहु को बेटा पैदा हुआ था । जब भी वे दुसरे किसी को दादा – दादा पुकारते बच्चे का सुनते तो वे इस दिन के लिए तरस जाते थे कि कब अपने घर में ऐसा दिन आयेगा कि कोई हमे भी ऐसे ही पुकारेगा और मैं उसे जी भर प्यार – दुलार करूगां । आखिर ईश्वर ने आज उनकी मुराद पुरी कर दी । उन्हें भी दादा कहकर बुलाने वाला कोई आ गया है । इस खुशी का उन्हें ठिकाना नहीं था, दिल खोलकर खर्चा कर रहे थे । मानों कुबेर ने आज तिजोरी ही खोल दी हो । दान – दक्षिणा में किसी प्रकार की कमी नहीं कर रहे थे  । पंडिताइन थोड़ी – बहुत कंजुसी भी दिखाना चाह रही थी, परंतु पंडित जी कहने लगे अरे ! पंडिताइन आज दिल खोलकर खर्च करों ऐसा दिन रोज – रोज नहीं आता । अपने सारे अरमान आज पूरा कर लो, हम तुम आज दादा – दादी बन गये । इसी दिन के लिए तुम तो हमेशा रोती – बिलखती थी ।

     बहु – बेटा भी माता – पिता की खुशी देखकर मन ही मन अपार खुश हो रहे थे । बहु तो खुशी के मारे रोने लगी कि आज ईश्वर के कृपा से मेरा भी गोंद भर गया, एक प्यारा – प्यारा राजकुमार मेरे भी घर आ गया । इसी कारण तो लोग मुझे बाझन का नाम दे रहे थे । यहॉ तक कि कोई – कोई तो दुसरी शादी करने का भी मुफ्त में सलाह देकर जा रहा था । सारी कमियॉ मेरे ही अंदर निकाली जा रहीं थी, मानों इस संसार में लड़ॅकी का जनम लेना ही सबसे बड़ा दाग  है । ऐसा लगता था कि सारा दोष मेरा ही है, मैं जान – बूझकर मॉ बनना नहीं चाहती हू । इसी बच्चे के लिए तो मुझे सबका ताना सुनना पड़ता था । कभी – कभी तो पतिदेव जी भी इसी बात को लेकर मुझसे नाराज हो जाते थे, सासु मां के तो ताने पर ताने सुनने की लत लग गयी थी । मैं अपनी व्यथा कहू तो कहू किससे ? परंतु समय की मारी मैं सब कुछ सुन – सहकर एक कोने में पड़ी रही ।

    एक बार तो मेरे साथ हद ही हो गया । परिवार में ही चचेरे देवर की शादी के कुछ ही दिनों के बाद देवरानी को बच्चा पैदा हुआ । मंगल गीत गाया जा रहा था, तभी वहां से बड़ी अम्मा का बुलावा मेरे लिए आ जाता है तो सासु माँ के साथ मैं भी चली गयी । जैसे ही मैं वहां जाकर औरतों के बीच बैठी कि सभी एक दुसरे से काना– फुंसी करना शुरू कर दी कि देखो पंडित रामप्रसाद जी को, कितने नेक इंसान है, इतने बड़े जायदाद के मालिक है, लेकिन पोता का मुंह देखने को तरस रहे है । पता नहीं बेटे का कहां जाकर शादी कर दिये बांझ लड़की से, जो एक बच्चे को भी जनम नहीं दे सकती है । अरे ! अगर इसका सामना नई – नवेली बहुरिया पर पड़ेगा तो, इस कलमुई का असर उन पर भी पड़ जायेगा । क्या जरूरत थी इन्हें बुलाने की ? इनकी सास यानी पंडिताइन तो थी ही । अरे ! इसका तो मुंह देखना भी पाप है पाप ।

     अपने बारे में उन गांव की औरतों से ऐसी अनाप – सनाप बाते सुनकर मैं शरम के मारे गड़ी जा रही थी, अजीब सी बेचैनी महसुस हो रही थी, परंतु क्या करती ? जब भगवान की यही इच्छा है तो सहन तो करना ही पड़ेगा । उनके आगे किसकी चलती है, जो मेरा चलेगा । अब तो रोज – रोज के ताने सुनते- सुनते एक आदत सी बन गयी है । मैं चुपचाप सब सुनकर मानों जहर के घूट पिये जा रही थी । न तो आंखों में आंसू आता न ही चेहरे पर मुस्कान । उस समय तो ऐसा लग रहा था मानों जमीन में गड़ सी गयी थी । अपनी व्यथा कहूं तो कहूं किससे ? अंदर ही अंदर मैं इस दुख से पीसी जा रही थी । कोख सुना रहने का गम मुझे अंदर ही अंदर खाये जा रही थी ।    गांव की औरतो का आना – जाना लगा हुआ था । बड़ी सासु मां को पोता के जन्मोंत्सव की सब लोग मुबारकबाद दे रही थी । तभी वहां पर यह सुखद समाचार पाकर शांताबाई हिजड़ों की टोली आ जाती है । शांताबाई वहां की हिजड़ों की टोली लीडर थी, और नाच – गाने में बहुत ही मशहूर थी । उनका टोला जहां भी जाता था लोग भाव – विभोर होकर मुक्तकंठ से प्रशंसा करते थे । शांताबाई के नाच के आगे तो स्वर्ग की अप्सराएं भी फीकी पड़ जाय, वो तालियां बजा – बजाकर उच्चा स्वर में गाती थी कि सुनने वाले भी वहां से हिलने तक का नाम नहीं लेते थे । रंग तो तब और चढ़ गया जब वे सुरीली आवाज में सोहर गाने लगी ———

 आज अवधपुर में राम जनमें             
दशरथ हुए खुश,              
तो धन को लुटावत हैं ।             
नगर के वासी सब आयें,              
बलइयां देने द्वारे              
बलइयां देने द्वारे पर हो ------

तो सुनने वालों की और भी भरमार हो गयी । पूरे मुहल्ले में शोर हो गया कि शांताबाई का टोला आज पंडिताने में आया है । बहुत देर तक हिजड़ों का नाच – गाना होता रहा । सभी लोगों ने खूब आनन्द उठाया । इतने में काफी समय बीत गया, कुछ पता ही नहीं चला । अब बारी आयी हिजड़ों के आशीर्वाद देने की और नेग – पद लेने की । बच्चे को लेकर उनकी दादी सऊरी के घर से बाहर आकर शांताबाई के गोंद में दे देती हैं, और कहती है खूब लल्ले को आशीर्वाद दियो, अजर – अमर रहे लल्ला, इसके सारे बलाए दूर हो जाय ।

    शांताबाई और उनका टोला उस नवजात शिशु को ढ़ेरों आशीर्वाद देती है …….. अजर – अमर रहे तु, बड़ा होकर नाम कमाएं, मां – बाप, दादा – दादी का खूब नाम रौशन करना, इस आंगन में ऐसे ही सदा किलकारियां गुजें । ऐसे ही शांताबाई का आना – जाना बना रहे, क्योकि आप लोगों के घर में खुशियां आयेगीं तो हमे भी न्योछावर मिलेगा, इसी से तो हम लोगों का भी गुजर – बसर होता है । नहीं कौन पूछता है हम हिजड़ों को ?

   इसी तरह “दूधों नहाओं पूतों फलो” , “जुग – जुग जिये तेरा लल्ला ….  लाओं अब मेरा न्योंछावर , शांताबाई को भी अब खुश करो । आज…. आज कोई कंजूसी नहीं चलेगी । मुझे नेग – पद में कोई एक निशानी भी चाहिए, आज तो मैं आपको छोड़ने वाली नहीं हूं । रोज – रोज ये दिन थोड़े ही आता है । हम सारे हिजड़े आज तुम्हारे घर दिल खोलकर नाचें – गाये है । आप भी अब अपना दिल खोलकर पंडिताइन मेरी विदाई करो ।

   पंडित – पंडिताइन भी बहुत ही अच्छे ढ़ंग से हिजड़ों की विदाई करते है । निशानी में भी कान का बाला देते है और  नगद धनराशि भी अच्छा – खाशा देते है । इसके बाद सबको एक – एक साड़ी पहनाकर और अनाज की भरी बोंरियां देकर, हाथ जोड़ते हुए उनको विदा करते है । क्योकि ऐसा माना जाता है कि इनके नाराज हो जाने पर घर में कलह आती है।

    हिजड़ों का टोला भी विदाई से खुश था । देखने वाले भी एकदम दंग रह गये कि कोई नाराजगी नहीं है इन हिजड़ों में, यह तो कमाल की बात है कि बिना मान – मनौवल के ही बात बन गयी, नहीं  तो ये लोग बिना ठनगन किये जाते नहीं है ।

  मैं भी वही बैठकर नाच – गाने का आनंद ले रही थी, बहुत अच्छा लगा कि खुशी – खुशी सब कुछ हो गया । कहीं – कहीं तो सुनने में आया है कि हिजड़ें लोग बहुत अन – बन करते है । जल्दी मानते नहीं, बहुत जिद्दी स्वभाव के होते है । एक बार जो कह दिए तो कह दिए, लेकर ही पीछा छोड़ते है । अगर उनकी मांगे पूरा न हो तो, वे बद्दूआ भी देते है, और लोग कहते है कि उनका बद्दूआ खाली नहीं जाता है ये सब सुन – देखकर तो रोएं कांप जाते है, लेकिन यहां पर शांताबाई में तो ऐसी कोई बात ही नहीं है । किसी बात की जिद नहीं । जो मिला सो उनका । सारे किन्नर एक जैसे नहीं होते । सबका स्वभाव अलग – अलग होता है । इनमें भी कितनों की अच्छी सोच होती है । पता नहीं क्यो लोग हिजड़ों की बुराई करते फिरते है ।

    यह सब देखकर मेरे आंखों से आंसू गिरने लगता है, तभी शांताबाई की दृष्टी मेरे ऊपर पड़ती है तो, वे मेरे पास आकर कहती है …..  क्यू रे छोरी, तु रो क्यों रही है ? इतने खुशियों के माहौल में भी ये आंसू ? जरूर तेरे अंदर कोई न कोई दर्द है, तेरा चेहरा देखकर मुझे ऐसा लग रहा है । तु कुछ पीड़ा अपनी छिपा रही है, मुझसे बता क्या बात है ? मैं ताड़ गयी हूं तेरी उतरी सूरत देखकर । अरे ! मैं हिजड़ा जरूर हुं, पर मेरे भी अंदर इंसानियत है । तभी बड़ी सासू मॉ शांताबाई से मेरे बारे में सब बता देती है । ऐसे में मेरी हालत और भी बुरी हो जाती है, आखों से आंसू गिरना शुरू हुआ तो थम ही नहीं  रहा था । मुझे कुछ  भी अच्छा नहीं लग रहा था कि बड़ी मां मेरे बारे में क्या सोचेगीं । खुशी के मौके में  भी मैं रो रही हुं । पर शायद वो मेरे दर्द को समझ रही थी, तभी तो वो मेरे बारे में सब कुछ बता रही थी । सबकी नजर अब एक टक मेरे ऊपर थी । ऐसा लग रहा था कि सभी मेरे दुःख में दुःखी थे । सारी बातों को सुनने के बाद शांताबाई मेरे पास  आकर बोलीं, तु दुःखी ना हो……. तेरा भी सुना गोंद वो ईश्वर जरूर भरेगा । तु इतनी उदास मत हो, जल्द ही तेरे घर में किलकारियां गूजेंगी । ये शांताबाई का जबान है। ईश्वर की दया से आज तक खाली नहीं गया है। जो मुखं से निकला है, वह उसकी दया से पूरा हुआ है, याद रखना और मुझे भूलना भी मत । लल्ला के जनम के बाद मैं मंगल गीत गाने आऊगीं, सुचना देना । तेरे भी आंगन में तालियां बजेगीं ये शांताबाई बाजे बजा – बजाकर सोहर गायेगीं नाचेगी । खूब सारा न्योछावर लूगीं । छोड़ने वाली नहीं हुं । जा खुशी – खुशी अपने घर ये एक किन्नर का आशीर्वाद है । झूठा नहीं जायेगा । आज के नवें महीने फिर से मैं आऊगीं तेरे घर पर । ऐसे कहते हुए मेरे आंचल में एक मुठ्ठी चावल मेरे चारों तरफ घुमाकर डाल देती है । कहती है कि इस चावल को लाल कपड़े में बाधकर अपने सिरहाने रखना । भूलना मत ईश्वर तेरा मनोकामना जरूर पूर्ण करेगा । कहते हुए हिजड़ों का टोला चला जाता है ।

   पता नहीं क्यो मुझे ऐसा लग रहा था कि मुझे दुःखी देखकर , मेरा दिल रखने के लिए ऐसा कह दी हो । जब डॉक्टर, हकीम कुछ न कर सके तो, किसके ऊपर भरोसा करू । अब मन नहीं मानता इन बातों को । भरोसा ही एकदम टूट गया है । वह बाबा भी मुझे दुःखी देखकर ऐसे ही कहे थे, पर क्या हुआ ? सब केवल कहने – सुनने को है ।

    लेकिन फिर भी मन न माना । बार – बार शांताबाई की दुआएं मन को बेचैन कर रही थी । शायद सत्य हो जाय । इनकी दुआ मुझे लग जाय । अपने घर पर आकर मैं शांताबाई के बताएं हुए बात को अक्षरसः की । कुछ ही दिनों के बाद मैं गर्भ से हो गयी । सत्य ही हुई उनकी बात । ठीक नवें महीनें में मेरी खुशी मुझे मिल गयी । घर का सुनापन आज खुशियों में बदल गयी । ईश्वर ने आज उनकी एक – एक जबान से कहीं हुई बात सत्य करके दिखा दिए । मेरी सुनी गोंद उनकी दुआ से भर गयी । मुझे आज भी शांताबाई का एक – एक आशीर्वाद याद है । कैसे मैं उनको भूल सकती हूं ? जो एक किन्नर होते हुए भी मेरे दर्द को महसूस की । मुझसे प्यार भरी बातें की ।

    कौन से देवी – देवता नहीं पूँजी ? कहां मन्नते नहीं मांगी ? इस कोख के लिए कितने डॉक्टर को दिखा डाली, कितने तरह के दवावों को खा ली परंतु निराशा ही बनी रही । अब तो उम्मीद भी खत्म हो होने लगी थी कि मैं भी मां बन पाऊगीं कभी । क्या मेरा ये सपना भी पूरा होगा ?

  वास्तव में किन्नर का जबान सत्य है । किन्नर के प्रति अब मेरे अंदर आस्था बढ़ गयी । मैं पतिदेव को बुलाकर कहने लगी कि शांताबाई के टोले को सुचित कर दो कि मेरे घर पर बेटे का जनम हुआ है । पतिदेव को इन सब बातों पर विश्वास नहीं था बोले वे लोग खुद ही आ जायेगीं । वैसे भी उनका काम ही क्या है ? तुम इतना परेशान क्यू होती हो ? ये खबर खुद ही धीरे – घीरे उनके पास पहुंच जायेगी । सुचना देने की क्या जरूरत है ? इधर आकर फालतु में अन – बन करेगीं, लेकिन मैं पतिदेव की हाथ जोड़कर बिनती की कि ऐसा मत कहो । किन्नर होने में उनका क्या दोष हैं ? ईश्वर ने ही उन्हें ऐसा बना दिया है कि उन्हें ये सब करना पड़ रहा है । आखिर उन्हें पेट पालने का दुसरा सहारा ही क्या है ? मेरे लिए तो वे भगवान है, उन्हीं का तो आशीर्वाद मुझे लगा । आप के मन में उन किन्नर के प्रति इतनी नफरत क्यू है ? इतने दिनों के बाद आप पिता बने हो, मेरी बातों को यो टालों नहीं ।

   पत्नी द्वारा बार – बार बिनती करने पर पतिदेव शांताबाई को सुचित कर देते है । शाम होते- होते किन्नर शांताबाई का टोला आ जाता है, फिर क्या था ? खूब धमाल- चौकड़ी शुरू होती है । वो गाना – बजाना, नये – नये गीत – गौनई, तालियों की तेज आवाज से पूरा घर गुंजने लगता है । वो ढ़ोल – नगाड़े की आवाज  । अप्सराओं जैसे सुंदर नृत्य । देखने के लिए लोगों का तो तांता लग गया पंडित रामप्रसाद के दरवाजे पर । पूरा परिवार इतना खुश था कि उनके खुशियों का ठिकाना ही न था । आखिर बहुत दिनों के बाद उनके मुंह मांगी मुराद ईश्वर ने पुरी की है । इसी तरह कई घंटे हिजड़ों का नाच – गाना,धमाल – चौकड़ी का कार्यक्रम चलता रहा ।

     पंडित रामदास जी दिल खोलकर हिजड़ों की विदाई करते है । कान का बाला, हाथ का जड़ाऊ कंगन, पायल और उसके साथ सबको अलग – अलग नगद धनराशि, अनाज से भरी तीन – चार बोरीयां दिये । इसके अलावा भी पूरे हिजड़ों की टोली को जोड़ी – जोड़ी साड़ी और श्रीन्गार का सामान देते हुए बोले कि आप लोगो ने आज अपनी कला के जादू से मेरे मन को खूश कर दिया । मैं बिना रात का भोजन कराए आप लोगो को जाने नहीं दूंगा । इतना आदर और सम्मान पाकर किन्नर लोग भी निहाल हो जाते है । विधिवत भोजन कराने के बाद पंडित जी उन्हें विदा करते है । सब कुछ इतने प्रेम से हो गया कि गांव वाले, रिश्तेदार यह सब देखकर उनकी आंखे खुली की खुली रह जाती है । बहु भी बहुत खुश होती है, अपने तरफ से वह भी खुश होकर शांताबाई को अंगूठी व साड़ी और श्रींगार का सामान देती है ।

  शांताबाई भी उसे और उसके नवजात शिशु को ढ़ेरों आशीर्वाद देती है । ऐसा लगता था कि शांताबाई और बहु दोनो में बहुत ही अपनापन सा हो गया है । दोनो की आंखे गीली थी । देखकर ऐसा लग रहा था कि पिछले जनम में दोनों सगी बहने थी ।

     शांताबाई मंगल गीत गाते हुए विदा लेती है —–

जुग – जुग जिये तेरा लल्ला
          अगन में खेले बल्ला
          श्री रामचंद्र जैसा बने
           माता देखे खुश होवे
           बलइयां तेरो लेवे
           आशीश तुझे सबका लगे ॥

-डॉं. अर्चना दुबे

किन्‍नर पर कविता- किन्नर व्यथा-डॉ. अशोक आकाश

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