किन्नर व्यथा भाग-11 -डॉ. अशोक आकाश


गतांक से आगे

किन्नर व्यथा भाग-11
किन्नर व्यथा भाग-11

किन्नर व्यथा भाग-11

किन्नर व्यथा भाग-11

निज तनय नित गर्व करो,यह तो शान है घर-घर की |
भ्रमवश भेद किया जिसने भी,हर हर कर दी धरती ||
इन्हें सदा दिल से अपनाओ,दूर करो तनहाई |
परिवार परित्याग बिसारे,गिरि दुख गुन लो भाई || 1 ||

शारीरिक विकृतियां पिछले,जन्म का पाप नहीं है |
क्या विज्ञान सतत चरमोत्कर्ष,परिचित आप नहीं है ||
मानसिक विकृतियां हों तो,लोग चिकित्सा करते |
सदियां गुजरी किन्नर जन तन, मान प्रतीक्षा करते ||2||

इसी तरह किन्नर आबादी,विकृतियों से जूझे |
उस पर परिजन नित प्रताड़ना,मन में नहीं कुछ सूझे ||
सुरभित कर बेरौनक जीवन,तन खुशहाली भर दो |
किन्नर बंजर धरती पतझर,मन हरियाली कर दो || 3 ||

इनका जीवन देखा तन मन,शूल चुभा रहता है |
बाहर चहके पर अंतर्मन,बुझा-बुझा रहता है ||
सामाजिक परिपुष्ट अंग यह,नहि दुनिया का अजूबा |
दृढ़ समाज को बांटे उनका,तोड़ो सब मंसूबा || 4 ||

इस समाज पर आदिकाल से,मनगढ़ भ्रॉति फैली |
जो कर देती किन्नर दल की उज्ज्वल कीर्ति मैली ||
इनका जीवन खुली किताब जो,नित रहस्यमय करते |
अनजाने लोगों के मन में,मनचाहा भय भरते || 5 ||

इनको लेकर हीन भावना,अपने दिल से निकालो |
खुद समाज से अलग समझते,इन्हे अपनों में ढालो ||
इनको भी जीना है खुलकर,मनमर्जी जीने दो |
दुनिया को दिखलादो इनके,गर्व भरे सीने को || 6 ||

नित्य डराते रहने से भी,बच्चे बिगड़ जाते हैं |
दहशत के आलम हों तो घर,बार बिखर जाते हैं ||
इन्हें बाद में जानना प्यारे,पहले खुद को जानो |
जो तुम दोगे वही मिलेगा,यह कटु सच पहचानो || 7 ||

बचपन कटी जवानी बुढ़ापा,चली कटार दुधारी |
जीता रहा जलालत में,मर मर उम्र गुजारी ||
मन की भ्रांति मिटायें तत्क्षण,अब जग नहीं भरमायें |
धिकमय जीवन पलछिन चुभता किन्नर व्यथा बतायें || 8 ||

-डॉ. अशोक आकाश
बालोद

शेष अगले https://www.surta.in/kinnar-vyatha-dr-ashok-akash-12/भाग में

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