किन्नर व्यथा भाग-12
किन्नर व्यथा भाग-12
चकाचौंध जीवन दिखावा, मान बड़ाई लड़ाई |
बाहर निरखत हँसमुख अंतस, अंतहीन दुख खाई ||
औरत बनने का संघर्ष है, मॉ बनने अति इच्छा |
मात पिता गुरू भाई बहना, लेते सतत परीक्षा || 1 ||
पाले कुत्ता को कोई कुत्ता, कहदे डॉट लगाते |
मालिक को लगता झट अभद्र, जो कुत्ता कहे भगाते ||
लेकिन किन्नर हो निज संतति, सब मिल उन्हें छिपाते |
खानदान सम्मान रक्षा हित, भागे इतना सताते || 2 ||
इनको पशु से बदतर क्यों कर, ऑके दुनिया सारी |
गैरों की छोड़ो यारों ये, है अपनों की मारी ||
आज इतना विज्ञान विकसित, लड़का लड़की बनता |
लड़की भी लड़का बन सकती, टलती ऐसी विषमता || 3 ||
हर शारीरिक विकृतियॉ जब, दूर हो सकती भाई |
तब विज्ञान के इस युग में क्यों ? किन्नर जन्म दुखदायी ||
क्षत जीवन कारागर कब तक, कैदी बने रहेंगे |
ले विकृत काया जीवन भर, यातना गहन सहेंगे || 4 ||
नयी जिंदगी नया हौसला, चाहत नवल गढ़ेंगे |
इनमें भी है अतुलित क्षमता, जीवन समर अड़ेंगे ||
विज्ञान में सबकुछ संभव है, फिर क्यों इनको रोना |
इनका हक दे दो ये चाहे, परिवार संग होना || 5 ||
इन्हे मिले अधिकार पूर्ण, सम्मान समर्पण दिल से |
ये भी तो सामर्थ्यवान है, फिर क्यों दूर मंजिल से ||
चाहत पूरी हो जाने दो, शल्य चिकित्सा कर दो |
तन की विकृतियॉ सुधारकर, मन जखम सब भर दो || 6 ||
जो इनकी आत्मा है क्यों ना, अब शरीर हो जाये |
रूह और तन की मिलान से, दूर पीर हो जाये ||
मन में भरकर दृढ़ संतुष्टी, आजादी महसूस करे |
इन्हे मिले खुशियों का तोहफा, तब कौन मनहूस कहे || 7 ||
शावक करने सुरक्षित हिरणी, सिंहों से लड़ जाती |
अंड सुरक्षारत नित चींटी, उच्च शिखर चढ़ जाती ||
फिर हम तो मानव हैं अपनी, क्षमता हम पहचानें |
वक्त है बदलो फैसला लो, फिर न पड़े पछताने || 8 ||
अपना बच्चा अंधा लंगड़ा, पागल या किन्नर हो |
लड़की हो या लड़का इनमें, फिर न कभी अंतर हो ||
संतति भेद मिटा दृढ़ अंतस, मन उत्साह से भर दो |
अन्तर्मन विकसित परिलक्षित, हीन भावना हर दो || 9 ||
सुत अपराधी हठी जिहादी, हतोत्साह सही है |
अपराधी बच्चों का सुधारक, शख्तोपचार यही है ||
बच्चों की छोटी गलती पर, आज जो परदा कर दी |
समझो उसका सारा जीवन अंगारों से भर दी || 10 ||
घर के बच्चे सभी बराबर, सब पर न्याय सही हो |
दूसरों के बच्चों पर भी कभी कोई अन्याय नहीं हो ||
परिवार ही बच्चे की ताकत, उनसे यह न छीनें |
मॉगी मन्नत नित माथ नवा, मंदिर गुरुद्वार मदीने || 11 ||
यह शारीरिक विकृति कोई, जन्म का पाप नहीं है |
हठी अपमानित कोपित दैवी, दण्ड प्रताप नहीं है ||
जन्मजात तन की विकृतियॉ, सब मिलकर सुलझायें |
धिकमय जीवन पलछिन चुभता, किन्नर व्यथा बतायें || 12 ||
-डॉ. अशोक आकाश
बालोद